RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
कुछ देर बाद मैंने अपने होंठ बाजी के होंठों से अलग किए और कहा- बाजी हमने पहले कभी ऐसे अम्मी का दरवाज़ा बाहर से लॉक नहीं किया.. वो उठ गईं तो कहीं उनके ज़हन में ऐसे ही कोई शक़ ना पैदा हो जाए?
बाजी की आँखें बंद थीं और उन्होंने झुंझलाहट में लरज़ती आवाज़ से कहा- कुछ नहीं होता वसीम.. आओ ना प्लीज़..
और वे मेरे सिर को वापस नीचे दबाने लगीं।
मैंने अपने सिर को अकड़ा कर नीचे होने से रोका और कहा- चलो ना बाजी.. मेरे रूम में चलते हैं.. दरवाज़ा खोल देते हैं अम्मी का..
बाजी ने आँखें खोल दीं.. उनके चेहरे पर शदीद नागवारी के भाव थे, उन्होंने दोनों हाथ मेरी गर्दन में डाले और कहा- क्या है वसीम.. तुम भी ना.. मैं कहीं नहीं जा..वा.. रही.. तुम जाओ.. तुम्हें जहाँ जाना है।
बाजी का ये अंदाज़ ऐसा था जैसे किसी बच्चे को चीज़ दिलाने से मना करो तो वो नाराज़ हो जाता है।
मैंने मुस्कुरा कर बाजी को देखा और कहा- अच्छा मेरी सोहनी बहना जी.. इतनी छोटी बातों पर नाराज़ थोड़ी ना होते हैं..
मैंने बात खत्म करके बाजी के होंठों को चूमने के लिए अपना सिर झुकाया तो उन्होंने अपने हाथ से मेरे चेहरे को रोका और होंठ दूसरी तरफ करते हो नाराज़गी से कहा- अच्छा जाओ.. अब खोल दो अम्मी का दरवाज़ा..
बाजी यह कह कर मेरी गोद से उठने लगीं तो मैंने उनको वापस गोद में दबाते हुए कहा- मैं अपनी जान से प्यारी बहना को खुद ही साथ ले जाता हूँ..
यह कह कर मैंने अपना बाज़ू बाजी के कन्धों के नीचे रखा और एक बाज़ू को उनके कूल्हों के नीचे से गुजार कर उनकी रान को मजबूती से थाम लिया और खड़ा हो गया।
‘वसीम..!’ बाजी ने अचानक लगने वाले झटके की वजह से मुझे पुकारा और फिर मेरी गर्दन में दोनों हाथ डाल कर मुझे मुहब्बत भरी नजरों से देखती मुस्कुराने लगीं।
मैंने बाजी को गोद में उठाए-उठाए ही जाकर अम्मी का दरवाज़ा अनलॉक किया और सरगोशी में बाजी से पूछा- बहना जी कहाँ चलें?? आपके रूम में या ऊपर हमारे रूम में?
बाजी ने सोचने की एक्टिंग करते हुए कहा- उम्म्म्म.. ऐसा करो बाहर रोड पर ले चलो..
और दबी आवाज़ में हँसने लगीं।
‘मेरा बस चले तो मैं तो आपको सात पर्दों में छुपा कर रखूँ जहाँ मेरे अलावा आपको कोई देख भी ना सके!’
मैं ये कह कर बाजी के कमरे की तरफ चल दिया।
बाजी बोलीं- नहीं वसीम यहाँ नहीं.. ऊपर ही ले चलो मुझे.. अपने कमरे में.. अम्मी अगर उठ भी गईं तो ऊपर नहीं आ सकेंगी.. और हनी.. ज़ुबैर तो लेट ही वापस आयेंगे।
मैंने बाजी की इस बात पर मुस्कुरा कर उन्हें देखा.. तो उन्होंने शर्मा कर अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया और मैं ऊपर अपने कमरे की तरफ जाते हुए बाजी को भी छेड़ने लगा- अच्छा.. आज तो मेरी बहना जी खुद कह रही हैं कि उन्हें अपने कमरे में ले जाऊँ.. हाँ..!
बाजी ने मेरी तरफ देखा और शर्म से लाल चेहरा लिए बोलीं- बकवास मत करो.. वरना मैं यहाँ ही उतर जाऊँगी।
मैं बाजी को देख कर हँसने लगा.. लेकिन बोला कुछ नहीं।
मैं कमरे में दाखिल हुआ तो दरवाज़ा बंद किए बगैर ही बाजी को लेकर बिस्तर के क़रीब पहुँच गया।
मैंने बाजी को बिस्तर पर लिटाने लगा.. तो उनके वज़न और बाजी के हाथ मेरी गर्दन में होने की वजह से खुद भी उनके ऊपर ही गिर गया।
बाजी ने फिर से मेरे बालों में हाथ फेरा और कहा- उठो.. दरवाज़े को लॉक कर दो..
उन्होंने मेरी गर्दन से हाथ निकाल दिए।
मैंने दरवाज़ा लॉक किया और वापस आते हुए अपनी क़मीज़ भी उतार दी।
बाजी बेड पर बेसुध सी लेटी छत को देखते कुछ सोच रही थीं.. मैं चंद लम्हें उन्हें देखता रहा।
फिर मैंने बाजी के दोनों हाथ पकड़ कर खींचे और उन्हें बिठा कर पीछे हाथ किए और बाजी की क़मीज़ को खींच कर उनके कूल्हों के नीचे से निकाल दिया।
मैं अपने हाथों में बाजी की क़मीज़ का दामन आगे और पीछे से पकड़े.. उनकी क़मीज़ उतारने के लिए ऊपर उठाने लगा तो बाजी ने अपने हाथ मेरे हाथ पर रखा और फिक्रमंद लहजे में कहा- वसीम.. ये सब गलत है.. अभी भी रुक जाओ..
बाजी की कैफियत बहुत मुतज़ाद सी थी.. कभी तो वो ये सब एंजाय करने लगती थीं.. तो कभी उनको गिल्टी फील होने लगता था.. और सब तो होना ही था कि अपने सगे भाई से ऐसा रिश्ता कोई ऐसी बात नहीं थी.. जो उनका जेहन आसानी से क़ुबूल कर लेता।
उनकी बदलती कैफियत फितरती थी और मैं उनकी हालत अच्छी तरह समझता था।
‘बाजी प्लीज़.. अब कुछ मत सोचो बस जो हो रहा है होने दो..’ मैंने ये कह कर बाजी की आँखों में देखा.. तो उन्होंने एक अहह भरी और मेरे हाथ से अपना हाथ उठा दिया।
मैंने बाजी की क़मीज़ को गर्दन तक उठाया.. तो बाजी ने भी मेरी मदद करते हुए अपनी क़मीज़ को अपने जिस्म से अलग कर दिया।
बाजी ने आज भी ब्लैक लेसदार ब्रा ही पहन रखी थी।
क़मीज़ उतारने के बाद मैं दोबारा अपने हाथ सामने से घुमाता हुआ बाजी की पीठ पर ले गया और उनकी ब्रा का हुक खोलने लगा.. तो बाजी ने अपने दोनों हाथों से ब्रा को सीने के उभारों पर ही थाम लिया।
मैंने हुक खोला तो बाजी ने अपने बाज़ू से ब्रा को अपने मम्मों पर ही रखते हुए ब्रा की पट्टियाँ अपने हाथों से निकाल दीं और इसी तरह ब्रा को थामे हुए ही लेट गईं।
मैंने बाजी के सीने से ब्रा हटाना चाहा.. तो उन्होंने अपने सिर को नहीं के अंदाज़ा में ‘राईट-लेफ्ट’ जुंबिश दी और अपनी बाँहें फैलाते हुए मुझे गले से लगने का इशारा किया।
अब मेरे और बाजी के जिस्म पर सिर्फ़ हमारी सलवारें ही मौजूद थीं और बाजी के सीने के उभारों पर उनकी खुली हुई ब्रा रखी हुई थी। मैंने अपने दोनों घुटने बाजी की टाँगों के इर्द-गिर्द टिकाए और उनके सीने के उभारों पर अपना सीना रखते हो बाजी के ऊपर लेट गया।
मेरे लेटते ही बाजी ने मेरी कमर को अपने बाजुओं से कसा और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए। कभी बाजी मेरे होंठ चूसने लगती थीं.. तो कभी मैं.. कभी मैं बाजी की ज़ुबान चूसता.. तो कभी बाजी मेरी ज़ुबान का रस चूसने लगतीं।
मैं बाजी के चेहरे को अपने हाथों में थामे 10 मिनट तक किस करता रहा। फिर बाजी ने अपने होंठ मेरे होंठों से अलग किए और नशीली आवाज़ में कहा- वसीम थोड़ा ऊपर उठो..
मैंने ऊपर उठने के लिए अपने सीने को उठाया ही था कि बाजी ने अपना लेफ्ट हाथ मेरी कमर से हटाया.. और अपने सीने पर रखी ब्रा को हम दोनों के बीच से खींचते हुए राईट हैण्ड से मेरी कमर को वापस अपने जिस्म के साथ दबा दिया।
जैसे ही बाजी के सख़्त हुए निप्पल मेरे बालों भरे सीने से टकराए.. तो मेरे जिस्म में एक बिजली सी कौंध गई और बाजी के जिस्म में भी मज़े की लहर उठी और उनके मुँह से एक सिसकती ‘अहह..’ निकली।
यह मेरी जिन्दगी में पहली बार थी कि मैं किसी लड़की और वो भी अपनी सग़ी बहन जो हुस्न का पैकर थी.. के मम्मों को अपने सीने से चिपका महसूस कर रहा था।
मैं अपने होश खोता जा रहा था और मेरे साथ-साथ बाजी के दिल की धड़कनें भी बहुत तेज हो गई थीं।
उनकी धड़कनों की आवाज़ मुझे साफ सुनाई दे रही थी।
मैंने एक बार फिर बाजी के होंठों को चूमा और फिर उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए।
मैंने पहले बाजी की गर्दन के एक-एक मिलीमीटर को चूमा और फिर अपनी ज़ुबान निकाली और बाजी की गर्दन को चाटने लगा।
मेरी ज़ुबान ने बाजी की गर्दन को छुआ तो उन्होंने एक झुरझुरी सी ली और मेरी कमर पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तेजी से हाथ फेरने के साथ-साथ अपने सीने को राईट-लेफ्ट हरकत देते हुए अपने निप्पल्स मेरे सीने से रगड़ने लगीं।
बाजी ने अपनी आँखें मज़बूती से भींच रखी थीं और चेहरे का गुलाबीपन सुर्खी में तब्दील हो गया था।
मेरा लण्ड अपने पूरे जोश में आ चुका था और बाजी की रानों के बीच दबा हुआ था। मैंने बाजी की गर्दन को सामने से और दोनों साइडों से मुकम्मल तौर पर चाटा और अपने घुटनों पर वज़न देता हुआ अपने लण्ड को बाजी की रानों से थोड़ा उठा लिया और अपना सीना भी बाजी के सीने से उठाते हुए गर्दन से नीचे आने लगा।
मैंने नीचे की तरफ ज़ोर दिया.. तो बाजी ने अपने हाथों की गिरफ्त भी ढीली कर दी और एक हाथ से मेरी कमर सहलाते हुए दूसरा हाथ मेरे सिर पर फेरने लगीं।
मैं गर्दन से होता हुआ बाजी के कंधे पर आया और अपनी ज़ुबान से चाटते बाजी के बाज़ू.. हाथ और फिर हाथ की ऊँगलियों तक पहुँच गया।
एक-एक ऊँगली को मुकम्मल चूसने के बाद मैं बाज़ू के निचले हिस्से को चाटता हुआ बाजी की बगलों में आ कर रुका।
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