Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
11-18-2018, 12:35 PM,
#21
RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
जब बाजी डिसचार्ज होने लगती थीं तो बहुत वाइल्ड हो जाती थीं और ज़ोर-ज़ोर से आवाजें निकालने लगती थीं। अक्सर ही हम डर जाते कि कहीं नीचे आवाज़ ना चली जाए.. लेकिन बाजी की ये आवाजें हमें मज़ा भी बहुत देती थीं।
कुछ रातों तक ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा.. लेकिन अब मैं बोर होने लगा था।
अगली रात जब बाजी कमरे में आईं और अपनी जगह पर बैठते हुए अपनी टाँगों के बीच हाथ रखा और हमें शुरू करने का इशारा किया.. तो मैंने कुछ भी करने से मना कर दिया और कहा- नहीं बाजी.. अब मैं ये रोज़ के रूटीन से थक गया हूँ।
‘क्या मतलब है तुम्हारा..?’ बाजी ने कहा।
मैंने कहा- कम ऑन बाजी.. रोज़-रोज़ एक ही चीज़..! अब हम कुछ अलग चाहते हैं।
बाजी ने कुछ समझने और कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में पूछा- क्या कहना चाहते हो तुम?
मैंने बाजी को आँख मारते हुए शरारती अंदाज़ में जवाब दिया- क्या ख़याल है अगर आप भी हमारे साथ शामिल हों तो?
‘इसके बारे में सिर्फ़ ख्वाब ही देखो तुम.. ऐसा कभी नहीं हो सकता।’ बाजी ने चिल्ला कर कहा।
‘ओके तो फिर हम भी कुछ नहीं करेंगे। ये दुनिया ‘कुछ लो और कुछ दो’ के उसूल पर ही कायम है.. फ्री में कुछ नहीं मिलता।’ मैंने भी अकड़ते हो कहा।
‘ठीक है.. नहीं तो नहीं बस..’ बाजी ने ये कहा और जो चादर कुछ लम्हों पहले उन्होंने ठीक की थी.. उससे खोलने लगीं।
ज़ुबैर ने कहा- भाई छोड़ो ना यार.. चलो शुरू करते हैं..
मैंने ज़ुबैर से इशारे में कहा कि सबर करो ज़रा.. और बाजी की तरफ देखा जो चादर कंधों पर डाल रही थीं।
मैंने कहा- ओके मैं जानता हूँ आपको भी हमें देखने में इतना ही मज़ा आता है.. जितना हमें.. और जाना आप भी नहीं चाहती हो।
यह हक़ीक़त ही थी कि बाजी को अब आदत हो चुकी थी और वो सिर्फ़ हमें डराने के लिए ही जाने की धमकी दे रही थीं और जाना खुद भी नहीं चाहती थीं।
बाजी को ताकता देख कर मैंने कहा- चलो एक समझौता कर लेते हैं।
बाजी ने कहा- किस किस्म का समझौता?
मैंने कहा- चलो ठीक है.. आप हमारे साथ शामिल ना हों.. बल्कि हमसे दूर वहाँ सोफे पर ही बैठो.. लेकिन अपने कपड़े उतार कर बैठो।
ज़ुबैर मेरे इस मशवरे पर बहुत उत्तेजित हो गया और फ़ौरन बोला- हाँ बाजी.. हम लोगों को तो आपने नंगा देख ही लिया है.. अब हमारा भी कुछ ख़याल करें ना..
बाजी का चेहरा शर्म और गुस्से के मिले-जुले तासूर से लाल हो गया और उन्होंने चादर अपने जिस्म के गिर्द लपेटी और खड़े होते हुए कहा- शटअप.. मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी पहले ही तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर चुकी हूँ। अगर तुम लोग आपस में कुछ करने को तैयार हो.. तो बता दो.. नहीं तो मैं जा रही हूँ।
बाजी के इस अंदाज़ ने मुझ पर ज़ाहिर कर दिया था कि वो वाकयी ही चली जाएंगी.. इसलिए मैं कन्फ्यूज सा हो गया कि क्या करूँ। 
ज़ुबैर ने मेरी हालत को भाँप लिया और मिनट समजात करते हो बाजी से कहने लगा- बाजी प्लीज़.. हमने कभी किसी लड़की को रियल में नंगा नहीं देखा.. और आपको देखने से बढ़ कर कुछ नहीं.. क्योंकि मैं कसम ख़ाता हूँ कि मैंने आज तक आप से ज्यादा हसीन लड़की कोई नहीं देखी.. आप बहुत खूबसूरत हैं। सब ही ये कहते हैं.. मेरी कसम पर यक़ीन नहीं तो आप भाईजान से पूछ लें।
‘ज़ुबैर सही कह रहा है बाजी.. प्लीज़ हमारे साथ ऐसा तो ना करो.. यार ऐसे तो मत जाओ.. आपका यहाँ बैठा होना ही हमें बहुत मज़ा देता है.. कि हमारी सग़ी बड़ी बहन हमें देख रही है.. ये अहसास हमारे अन्दर बिजली सी भर देता है। लेकिन प्लीज़ बाजी हमारा भी तो कुछ ख़याल करो ना.. आप अच्छी तरह से जानती हो कि हम ‘गे’ नहीं हैं.. ये सब इसलिए हुआ कि हमें शिद्दत से एक सुराख चाहिए था.. जिसमें हम अपने लण्ड डाल सकें.. जब हमें कोई लड़की नहीं मिली तो हमने एक-दूसरे के साथ शुरू कर दिया।
फिर मैंने भी मिन्नत करते हुए कहा- अच्छा प्लीज़ बाजी आप सिर्फ़ अपनी क़मीज़ थोड़ी सी उठा कर हमें अपने सीने के उभार दिखा दें.. प्लीज़ बाजी.. आप इतना तो कर ही सकती हो ना.. प्लीज़ मेरी सोहनी बाजी..
मुझे देख कर ज़ुबैर ने भी मिन्नत करते हुए कहा- प्लीज़ बाजी जी.. दिखा दो ना.. मेरी प्यारी आापी जी.. प्लीज़..
कुछ देर बाद बाजी ने अपनी चादर उतारी और झिझकते हुए कहा- ओके लेकिन सिर्फ़ देखोगे.. क़रीब मत आना मेरे..
यह कह कर बाजी घूमी और चादर सोफे पर रखने लगीं। 
‘यसस्स स्स..’ मैंने और ज़ुबैर ने एक साथ खुशी से चिल्ला कर कहा।
ज़ुबैर ने मुझे आँख मारते हुए सरगोशी में कहा- गुड जॉब भाई..
बाजी हमारे सामने सीधी खड़ी हुईं और दोनों हाथों से अपनी क़मीज़ का दामन पकड़ा और आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर उठाने लगीं। 
हमें बाजी की काली सलवार नज़र आने लगी.. बाजी की सलवार पर बहुत बड़ा सा सफ़ेद धब्बा बना हुआ था.. जो शायद उनकी मोनी थी.. जो सूख चुकी थी।
उनकी सलवार काली होने की वजह से सफ़ेद धब्बा ज्यादा ही वज़या हो गया था.. क़मीज़ थोड़ी और ऊपर उठी तो बाजी की सलवार का बेल्ट और फिर उनका ब्लैक एज़ारबंद नज़र आने लगा.. जो कहीं-कहीं से सफेद हो रहा था जो ज़ाहिर कर रहा था कि बाजी ने डिस्चार्ज होकर कितनी ज्यादा पानी छोड़ा था कि सलवार से निकल-निकल कर एज़ारबंद को गीला करता रहा था।
बाजी ने क़मीज़ थोड़ी और ऊपर उठाई.. तो हमने पहली बार भरपूर नज़र से अपनी सग़ी बहन का नंगा पेट देखा। बाजी का गोरा पेट और उस पर उनका खूबसूरत नफ़.. जो काफ़ी गहरी होने की वजह से काली नज़र आ रही थी और उसके नीचे छोटा सा तिल.. जो ऐसे लग रहा था.. जैसे दरबार-ए-हुस्न के दर पर निगहबान बिठा रखा हो। 
ये सब नजारा हमारे होश गुम किए दे रहा था। 
बाजी अपनी नजरें हमारे चेहरों पर जमाए धीरे-धीरे अपनी क़मीज़ को ऊपर उठा रही थीं और हम दोनों बिल्कुल खामोश और बगैर पलकें झपकाए दुनिया के हसीन तरीन नज़ारे के इन्तजार में थे।
हम दोनों की साँसें रुक गई थीं और हमारे दिमाग कुंद हो चुके थे। 
बाजी की क़मीज़ उनके मम्मों तक पहुँच गई थी और हमें उनके मम्मों का निचला हिस्सा.. जहाँ से गोलाई ऊपर उठना शुरू होती है.. दिखाई दे रहा था। 
बाजी ने क़मीज़ यहाँ ही रोक दी थी लेकिन हम दोनों ही टकटकी बांधे बाजी के मम्मों का निचला हिस्सा और उनका गुलाबी पेट देख रहे थे। जब काफ़ी देर तक हमने कोई रिएक्शन नहीं दिया.. 
तो बाजी बोलीं- मेरा नहीं ख़याल है कि मैं इससे ज्यादा कुछ कर सकती हूँ.. बस तुम दोनों के लिए इतना ही बहुत है।
बाजी ने ये कहा और शरारती अंदाज़ में मुस्कुराने लगीं। 
मैं समझ गया था कि बाजी हमारी कैफियत से मज़ा ले रही हैं। फिर भी मैंने कहा- प्लीज़ बाजी.. अब तड़फाओ मत.. ऊपर उठाओ ना अपनी क़मीज़.. प्लीज़ बाजी..
ज़ुबैर भी घिघयाने लगा- प्लीज़ बाजी.. दिखाओ ना.. मेरी अच्छी वाली बाजी प्लीज़..
बाजी ने मुस्कुरा कर हमें देखा और एक ही तेज झटके में अपनी क़मीज़ सर से निकाल कर सोफे पर फेंक दी। 
‘वॉववववव..’ 
यह मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीन तरीन नज़ारा था… मेरी बाजी.. मेरी सगी बहन.. मेरी वो बहन जिसकी हया.. जिसके पर्दे.. जिसकी नज़ाकत.. जिसकी पाकीज़गी.. जिसकी मासूमियत.. जिसकी नफ़ासत.. की पूरा खानदान मिसालें देता था.. वो मेरे सामने बगैर क़मीज़ के खड़ी थीं… उसके मम्मे मेरी नजरों के सामने थे।
मेरे लिए वक़्त रुक सा गया था.. मुझे अपने आस-पास का बिल्कुल होश नहीं रहा था और मेरी नजरें अपनी सग़ी बहन के मम्मों पर जम गई थीं।
मेरी बहन के मम्मे बिल्कुल गुलाबी थे, उनकी जिल्द बहुत ज्यादा चिकनी थी.. कोई दाग.. कोई धब्बा या किसी पिंपल का नामोनिशान नहीं था।
मैं अपनी बहन के मम्मों का 1-1 मिलीमीटर पूरी तवज्जो से देख रहा था और इस नज़ारे को अपनी आँखों में हमेशा हमेशा के लिए बसा लेना चाहता था।
उनके गुलाबी मम्मों पर हरी नीली रगों का जाल था और एक-एक रग साफ देखी और गिनी जा सकती थी।
मुकम्मल गोलाई लिए हुए बाजी के मम्मे ऐसे लग रहे थे.. जैसे 2 प्याले उल्टे रखे हों.. इतनी मुकम्मल शेप मैंने आज तक किसी फिल्म में भी नहीं देखी थी।थोड़े बहुत तो लटक ही जाते हैं हर किसी के.. लेकिन बाजी के मम्मे बिल्कुल खड़े थे.. कहीं से भी ढलके हुए नज़र नहीं आते थे। 
सच कह रहा हूँ.. अभी ये सब याद करके ही मेरी इतनी बुरी हालत हो गई है.. कि मुझसे अब मज़ीद नहीं लिखा जा रहा। मेरी कैफियत का अंदाज़ा सिर्फ़ वो ही लोग लगा सकते हैं कि जिन्होंने अपनी सग़ी बहन के मम्मे अपनी नज़र के सामने नंगे देखे हों.. या फिर वो समझ सकते हैं.. जिन्होंने अपनी सग़ी बहन के मम्मों को तन्हाई और इत्मीनान से सोचा हो।
बाजी के गुलाबी मम्मों पर गहरे गुलाबी रंग के छोटे-छोटे सर्कल थे और उन सर्कल के बीच में भूरे गुलाबी रंग के छोटे-छोटे निप्पल अपनी बहार फैला रहे थे।

बाजी के निप्पल को अपनी नजरों की गिरफ्त में लिए-लिए ही मैं बेसाख्ता तौर पर खड़ा हो गया.. अभी मैंने शायद एक क़दम उनकी तरफ बढ़ाया ही था कि बाजी की आवाज़ आई- वसीम.. वहीं रुक जाओ.. आगे मत बढ़ो.. मैंने कहा था कि तुम लोग सिर्फ़ देखोगे.. छुओगे नहीं..
बाजी ने वॉर्निंग देने के अंदाज़ में कहा। 
मैंने खोए-खोए अंदाज़ में बहुत नर्म लहजे में पलक झपकाए बगैर उनके निप्पल को देखते हुए कहा- नहीं बाजी मैं छूना नहीं चाहता.. बस इन्हें क़रीब से देखना चाहता हूँ। 
बाजी के निप्पलों पर बहुत सी दरारें थीं.. जो क़रीब से देखने पर महसूस होती थीं.. निप्पल के टॉप पर बिल्कुल सेंटर में एक गड्डा सा था और ऐसा लग रहा था कि जैसे इस गड्डे से ही दरारें निकल रही हों.. और उनके निप्पल की दीवारों से होती हुई नीचे फैल कर ज़मीन पर दायरा बना रही हों।
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