RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
कुछ देर बाद जब लण्ड की तक़लीफ़ कम हुई तो मैं कमरे में आ गया। ज़ुबैर सो चुका था.. शायद इतने दिन बाद अपने बिस्तर का सुकून नसीब हुआ था इसलिए।
मैं भी बिस्तर पर लेटा और जल्द ही दुनिया-ओ-माफिया से बेखबर हो गया।
सुबह जब आँख खुली तो 10 बज रहे थे, ज़ुबैर अभी तक सो रहा था। उसके स्कूल की छुट्टियाँ अभी खत्म नहीं हुई थीं।
मैंने बाथरूम जाने से पहले ज़ुबैर को भी जगा दिया।
मैं बाथरूम से बाहर आया.. तो ज़ुबैर इन्तजार में ही बैठा था। मेरे निकलते ही वो अन्दर घुस गया.. तो मैं उससे नीचे आने का कह कर खुद भी नीचे चल दिया।
जब मैं डाइनिंग टेबल पर बैठा तो किचन में से अम्मी की आवाज़ आई- उठ गए बेटा.. बस थोड़ी देर बैठो.. मैं नाश्ता बना देती हूँ।
मैंने कहा- अम्मी 2 बन्दों का नाश्ता बनाइएगा.. ज़ुबैर भी वापस आ गया है.. नीचे आ ही रहा है और बाजी नहीं हैं घर में क्या.. जो आप नाश्ता बना रही हैं?
‘नहीं.. वो तो सुबह ही यूनिवर्सिटी चली गई थी और वो छोटी निक्कमी भी जाकर नानी के घर ही बस गई है.. ना कुछ खाना बनाना सीखती है.. ना सीना पिरोना.. कल दूसरे घर जाएगी तो..!’ अम्मी का ना रुकने वाला सिलसिला शुरू हो चुका था।
फर ऐसे ही अपनी फिक्रें बताते हुए और शिकायत करते हुए ही अम्मी नाश्ता बनाने लगीं, मैं उनकी बातों का जवाब देते हुए ‘हूँ.. हाँ..’ करने लगा।
ज़ुबैर नीचे आया तो अम्मी की आवाज़ सुनते ही सीधा किचन में गया और उन्हें सलाम करने और उनसे प्यार लेने के बाद उनके साथ ही नाश्ते के बर्तन पकड़े बाहर आया और मेरे साथ वाली कुर्सी पर ही बैठ गया।
हमने नाश्ता शुरू किया और अम्मी का रुख़ अब ज़ुबैर की तरफ हो गया था। नाश्ता करते-करते ज़ुबैर अम्मी से भी बातें करता रहा.. जो गाँव के बारे में ही पूछ रही थीं।
नाश्ता खत्म करके में टिश्यू से हाथ साफ कर ही रहा था कि ज़ुबैर ने पीछे मुड़ कर अम्मी को देखा और उन्हें किचन में बिजी देख कर ज़ुबैर ने मेरे ट्राउज़र के ऊपर से ही मेरे लण्ड को पकड़ कर दबाया और बोला- भाई चलो ना आज.. बहुत दिन हो गए हैं।
‘फिर किसी ख़याल के तहत चौंकते हुए उसने कहा- अम्मी का बिहेव तो ठीक ही है.. इसका मतलब है बाजी ने अम्मी अब्बू को नहीं बताया ना कुछ..!
उसकी बात के जवाब में मैंने मुस्कुराते हो उसका हाथ अपने लण्ड से हटाया और खड़े होते हुए कहा- नाश्ता खत्म करके कमरे में आ जाओ।
कह कर मैं ऊपर चल दिया।
जब ज़ुबैर कमरे में दाखिल हुआ तो मैं बिस्तर पर लेटा हुआ बाजी के बारे में ही सोच रहा था और मेरा लण्ड खड़ा था। ज़ुबैर ने मेरी तरफ आते हुए कहा- अम्मी सलमा खाला के घर चली गई हैं.. कह रही थीं कि इजाज़ खालू से भी मिल लेंगी और शाम को ही वापस आएँगी।
बात खत्म करके ज़ुबैर मेरे पास आकर बैठा.. तो मैं भी उठ कर बैठ गया।
ज़ुबैर ने मेरे खड़े लण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और बोला- भाई आज तो ये कुछ बड़ा-बड़ा सा लग रहा है।
मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया.. मैं अपनी सोच में था।
ज़ुबैर ने मुझे सोच में डूबा देख कर मेरे लण्ड को ज़ोर से दबाया और बोला- भाई बाजी ने किसी को शिकायत नहीं लगाई.. तो लाज़मी बात है कि आपको बहुत बुरा-भला कहा होगा?
मैंने ज़ुबैर की तरफ देखा और उससे कहा- जो मैं तुम्हें बताने जा रहा हूँ.. सुन कर तुम्हारे होश उड़ जाएंगे।
वो बगैर कुछ बोले आँखें फाड़ते हुए मेरी तरफ देखने लगा।
और मैंने उससे शुरू से बताना शुरू किया।
‘उस रात तुम्हारे सोने के बाद मुझे ख़याल आया कि मैं कंप्यूटर में से अपना पॉर्न मूवीज का फोल्डर तो डिलीट कर दूँ.. ताकि बाजी अब्बू को बता भी दें तो कोई ऐसा सबूत तो ना हो। मैं उठा और कंप्यूटर टेबल पर आकर कंप्यूटर ऑन करने लगा.. तो मैंने देखा कि उसकी पॉवर कॉर्ड गायब थी। कुछ देर तो मुझे समझ नहीं आया.. लेकिन आख़िर में याद आया कि बाजी कमरे से जाने से पहले कंप्यूटर के पास आई थीं। यक़ीनन वो ही पॉवर कॉर्ड निकाल कर ले गई होंगी..’
पूरी बात ज़ुबैर को बताने के बाद जब मैंने ध्यान दिया.. तो हम दोनों ही बिल्कुल नंगे हो चुके थे और हम दोनों ने एक-दूसरे के लण्ड को अपने हाथों में ले रखा था।
हमें पता ही नहीं चला था कि कब हमने कपड़े उतार कर फैंके और कब लण्ड हाथों में ले लिए।
ज़ुबैर की हालत बहुत खराब थी.. बाजी के बारे में सुन कर उसके होशो-हवास गुम हो गए थे।
ये तो होना ही था.. क्योंकि हमारी बहन जो हर वक़्त बड़ी सी चादर में रहती थी जिसके सिर से कभी किसी ने स्कार्फ उतरा हुआ नहीं देखा था.. जो नफ़ासत.. और पाकीज़गी का पैकर थी.. उसको इस हाल में देखना तो दूर की बात.. सोचना भी मुश्किल था। और ज़ुबैर को मैं वो सच बता रहा था.. ऐसा सच जो चाँद की तरह सच था।
मैं अपनी जगह से उठा और मैंने अपने होंठ ज़ुबैर के होंठों से चिपका दिए और हमने एक-दूसरे का लण्ड चूसा.. गाण्ड का सुराख चाटा.. एक-दूसरे को चोदा.. मतलब हम जो-जो कुछ कर सकते थे.. सब कुछ किया।
जब एक शानदार चुदाई के बाद हम दोनों फारिग हुए.. तो 3 बज चुके थे, मतलब 4 घन्टे से हम चुदाई का खेल खेल रहे थे और अब थक कर बिस्तर पर नंगे ही लेटे हुए थे।
हम दोनों के हलक़ खुश्क हो चुके थे।
ज़ुबैर को इसी हालत में छोड़ कर मैंने अपने कपड़े पहने और पानी लेने के लिए नीचे चल दिया।
उसी रात मुझे और ज़ुबैर को फिर एमर्जेन्सी में गाँव जाना पड़ गया। इस बार हम 8 दिन रुके और सब काम मुकम्मल निपटा कर साथ ही वापस लौटे थे।
जब 8 दिन बाद भरपूर सेक्स करने के बाद ज़ुबैर सो गया था और मैं अपने कमरे से निकल कर नीचे आ गया था।
जब मैंने आखिरी सीढ़ी पर क़दम रखा तो सामने सोफे पर बाजी आधी लेटी आधी बैठी हुई सी हालत में सोफे पर पड़ी थीं और पाँव ज़मीन पर थे।
उनकी टाँगें थोड़ी खुली हुई थीं.. उनकी गर्दन सोफे की पुश्त पर टिकी थी और सिर पीछे को ढलका हुआ था.. आँखें बंद थीं।
यूनिवर्सिटी बैग सामने कार्पेट पर पड़ा था.. शायद वो अभी-अभी ही यूनिवर्सिटी से आईं थीं और गर्मी से निढाल हो कर यहाँ ही बैठ गईं थीं।
मैंने किचन के तरफ रुख़ मोड़ा ही था कि किसी ख़याल के तहत मेरे जेहन में बिजली सी कौंधी और मैं दबे पाँव बाजी की तरफ बढ़ने लगा।
मैं उनके बिल्कुल क़रीब पहुँच कर खड़ा हुआ और अपना रुख़ सीढ़ियों की तरफ करके भागने के लिए अलर्ट हो गया। मैंने एक नज़र बाजी के चेहरे पर डाली.. उनकी आँखें अभी भी बंद थीं।
मैंने अपना सीधा हाथ उठाया और थप्पड़ के अंदाज़ में ज़ोर से अपनी सग़ी बहन की टाँगों के बीच मारा और फ़ौरन भागा.. लेकिन 3-4 क़दम बाद ही किसी ख़याल के तहत रुक गया। वहाँ हाथ मारने से ना ही कोई आवाज़ आई थी और मुझे ऐसा महसूस हुआ था जैसे मैंने फोम के गद्दे पर हाथ मारा हो.. पता नहीं मेरा हाथ बाजी की टाँगों के बीच वाली जगह पर लगा भी था या मैं सोफे पर ही हाथ मार के भाग आया था।
फ़ौरन ही बाजी के हँसने की आवाज़ पर मैं घूमा.. तो बाजी बेतहाशा हँस रही थीं और उनके चेहरे पर जीत की खुशी थी।
उन्होंने हँसते-हँसते ही कहा- कमीने तुमने बदला ले लिया है.. यह अलग बात है कि इसका नुक़सान मुझे हुआ ही नहीं.. लेकिन हिसाब बराबर हो गया है। अब तुम दूसरी कोशिश नहीं कर सकते समझ गए?
‘ओके मेरा वादा है कि दोबारा कोशिश नहीं करूँगा हिसाब बराबर..’
मैंने कन्फ्यूज़ और कुछ ना समझ आने वाली कैफियत में जवाब दिया।
बाजी ने मुझे कन्फ्यूज़ देखा तो मेरी कैफियत को समझते हुए और मेरी हालत से लुत्फ़-अंदोज़ होते हुए कहा- उल्लू के चरखे.. कन्फ्यूज़ ना हो.. मैं महीने से हूँ और शुरू के और आखिरी दिनों में मेरा बहुत हैवी फ्लो होता है इसलिए में डबल पैड लगाती हूँ.. आज आखिरी दिन है.. समझे बुद्धू..’
यह कह कर उन्होंने एक नज़र मुझ पर डाली और फिर खिलखिला कर हँस पड़ीं.. क्योंकि मेरी शक्ल ही ऐसे हो रही थी।
मेरी हालत उस शख्स जैसी थी जैसे भरे बाज़ार में किसी गंजे के सिर पर कोई एक चपत रसीद करके भाग गया हो।
बाजी ने मुझे वॉर्निंग देते हुए कहा- मैंने भी तुमसे एक बात का बदला लेना है मैं भूली नहीं हूँ उस बात को..
मैंने पूछा- कौन सी बात?
बाजी ने जवाब दिया- मैं सही टाइम पर ही बदला लूँगी.. अभी नहीं.. देखो शायद वो टाइम आ जाए और हो सकता है कि ऐसा टाइम कभी ना आए।
मैं कुछ देर खड़ा रहा.. फिर झेंपी सी हँसी हँसते हुए.. सिर खुजाते किचन में चला गया और बाजी भी उठ कर अपने कमरे की तरफ चली गईं।
लेकिन मैंने देखा था बाजी के चेहरे पर अभी भी शैतानी मुस्कुराहट सजी थी।
मैंने पानी पीकर कमरे में ले जाने के लिए जग भरा और किचन से निकला तो बाजी भी अपने कमरे से बाहर आ रही थीं।
वो अभी-अभी मुँह हाथ धोकर आई थीं.. उनका चेहरा बहुत बहुत ज्यादा खूबसूरत और फ्रेश लग रहा था।
उन्होंने क्रीम रंग का स्कार्फ जिस पर बड़े-बड़े लाल फूल थे.. बहुत सलीक़े से अपने मख़सूस अंदाज़ में सिर पर बाँध रखा था।
क्रीम रंग की ही कॉटन की कलफ लगी क़मीज़ थी और उस पर भी लाल रंग के बारे बारे फूल थे।
सफ़ेद कॉटन की सादा सी सलवार थी।
बाजी ने अपने जिस्म के गिर्द ग्रे कलर की बड़ी सी चादर लपेट रखी थी.. वो नंगे पाँव थीं।
उनके गोरे पाँव मैरून कार्पेट पर बहुत खिल रहे थे।
‘बाजी आप इस सूट में बहुत ज्यादा हसीन लग रही हैं..’ मैंने भरपूर नज़र बाजी पर डालते हुए कहा।
‘अच्छा अभी तो तुमने सही तरह से सूट देखा ही कहाँ है.. चलो तुम भी क्या याद करोगे.. देख लो..’ ये कहते हुए बाजी ने अपनी चादर उतारी और अपने बाज़ू पर लटका दी।
बाजी के चादर हटते ही उनके बड़े-बड़े मम्मे मेरी नजरों के सामने थे। बाजी की ये क़मीज़ भी उनकी बाक़ी सब कमीजों की तरह टाइट थी और बाजी के मम्मे उनमें बुरी तरह से दबे हुए थे।
ब्रा का रंग नहीं मालूम पड़ रहा था.. लेकिन गौर से देखने पर पता चलता था.. जहाँ-जहाँ ब्रा का कपड़ा मौजूद था.. वहाँ-वहाँ से क़मीज़ का रंग गहरा हो गया था और ब्रा की शेप और डिजाइन वज़या नज़र आ रहा था।
ब्रा ही की वजह से निप्पल बिल्कुल छुप गए थे और उनका निशान भी नहीं नज़र आता था।
‘यार बाजी.. ये इतने ज्यादा दबे हुए हैं, इतना टाइट होने से इनमें दर्द नहीं होता क्या?’ मैंने अपनी सग़ी बहन के सीने के उभारों पर ही नज़र जमाए हुए उनसे पूछा।
‘अरे नहीं यार.. अब आदत हो गई है बिल्कुल भी महसूस नहीं होता.. लेकिन जब ब्रा पहनना शुरू किया था.. तो उस वक़्त मैं बहुत तंग होती थी.. ब्रा ना पहनने पर रोज़ ही अम्मी से डांट पड़ती थी और उस वक़्त ब्रा से बचने के लिए ही मैंने बड़ी सी चादर लेनी शुरू की थी.. जो बाद में मेरी आदत ही बन गई।’
बाजी ने यह कह कर मेरे हाथ से जग लिया और जग से ही मुँह लगा कर पानी पीने लगीं।
पानी पीकर वो सोफे के तरफ बढ़ीं.. तो मैंने कहा- आप यहीं रहना.. मैं पानी कमरे में रख कर आता हूँ।
मैं कमरे में पहुँचा तो ज़ुबैर सो रहा था।
मैंने उसके पास पानी रखा और बाहर निकल कर दरवाज़ा बंद करते हुए.. मैंने बाहर से लॉक भी कर दिया।
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