Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:42 AM,
#33
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
पर उसने नहीं सुना बस आगे बढ़ता रहा और महल के उस बड़े से दरवाजे के पास पहुच गया 



“मोहन, रुको जरा ”


वो रुका सामने संयुक्ता खड़ी थी 



“महारानी आप ”””


“वक़्त का बवंडर हैं मोहन बस हम ही रुके हुए है ”


“पर क्यों महारानी ”


“दिव्या के लिए ”


अब मोहन चुप हो गया 



“हम जानते है मोहन सब जानते है पर कलेजा आज भी जलता है जब अपनी पुत्री को पीड़ा में देखते है आखिर कब तक ये दर्द सहना होगा उसे ”


“तो फिर मुक्त क्यों नहीं हो जाती राजकुमारी प्रेम मन से होता है महारानी आप तो समझती है फिर क्यों ये जिद ”


“मुझे तुम दोनों ही प्रिय हो मोहन मैं खुद अटकी हुई हु तुम्हारे इस जंजाल में ”


“मैं आपकी मुक्ति के लिए कुछ करू ”


“नहीं मोहन जब तक दिव्या को चैन नहीं मिलता यही मेरी भी नियति है ”


“माफ़ी चाहूँगा, महारानी ” पर मुझे जाना होगा कोई मेरा इंतजार कर रहा है 



बिना संयुक्ता के जवाब के वो महल से निकला और चला पड़ा अपनी मंजिल की और अपनी मोहिनी की और और जाते ही उसने वापिस शहर जाने की तयारी की 



मोहिनी- क्या हुआ मोहन 



मोहन- मोहिनी, दिव्या अभी भी है महल में 



“क्या कह रहे हो ”


“हां मोहिनी वो प्रेत योनी में है एक शक्तिशाली प्रेतनी एक महा प्रेतनी हमे अभी के अभी यहाँ से जाना हो गा हम कही दूर अपनी दुनिया बसायेंगे ”


“जो तुम्हे ठीक लगे ” दरअसल मोहिनी ये बात सुन कर थोड़ी टेंशन में आ गयी थी क्योंकि एक महा प्रेतनी से टकराना अब उनके लिए थोडा सा मुश्किल था उसके माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई 
“कुछ नहीं होगा मोहिनी हमारा प्रेम दुनिया की हर किसी शक्ति से टकरा सकता है और फिर महादेव भी तो अपने ही साथ है ”


तैयारिया करते करते शाम हो चली थी आसमान में काले बादल उमड़ आये थे अँधेरा सा हो चला था एक एक बाद एक गाडियों का काफिला गाँव की गलियों से होते हुए दौड़ रहा था मोहिनी मोहन का हाथ पकडे बैठी हुई थी पर चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ़ थी 



गाँव से निकले ही थे की बरसात ने जैसे आज कहर ही ढा दिया था गाडियों के वायपर चल तो रहे थे पर पानी कम नहीं हो रहा था बादलो का ऐसा शोर जैसे की कानो के परदे फट जाए और फिर सबने जो नजारा देखा रीढ़ की हड्डी में सिरहन दौड़ गयी 



सबसे आगे वाली गाडी धू धू कर के जल उठी थी बिजली गिर गयी थी उस पर 



“दिव्या ” बोली मोहिनी 



“सभी गाड़िया तुरंत वापिस गाँव में ”मोहन अपने वाकी-ताकि पर चिल्लाया 



उसने अपने ड्राईवर को और लोगो के साथ रोका और उसी कीकर के पेड़ के पास रह गए बस दो प्रेमी जो आज इतिहास को फिर से देखने वाले थे उसने थामा अपनी जिंदगी का हाथ और चिल्लाया “तुम कुछ भी कर लो दिव्या कुछ भी कर लो अब जुदाई मंजूर नहीं हुए नहीं मंजूर हमे सुना तुमने सुना तुमने ”


और फिर बिजली गिरी और कीकर के पेड़ के पास और आग की लपटों को चीरते हुए दिव्या आई उसके पास “मोहन, मैंने कहा था ना की बस तुम और मैं बस तुम और मैं ”


“मोहन बस मेरा था और मेरा ही रहेगा दिव्या तुम अपनी सारी कोशिश कर लो पर हमे जुदा ना कर पाओगी ”मोहिनी मोहन का हाथ पकड़ते हुए बोली 



“आज मैं इस मामले को सुलझा ही देती हु मोहिनी, बहुत हुआ ये बाज़ी मैं ही जीतूंगी ”””


“तुम इसे खेल समझ रही हो दिव्या पर ये खेल नहीं जिंदगी है मेरी चलो देखते है फिर ”


मोहिनी भागी दिव्या की तरफ पर रासते में ही रोका दिव्या ने उसे और उठा कर फेका मोहिनी कार के दरवाजे से टकराई जाके और उसकी चीख गूंज गयी 



मोहन चिल्लाते हुए भागा उसकी और पर दिव्या ने रोका उसे और दूर उठा कर फेक दिया 



“जब तू शक्तिशाली थी मोहिनी आज बाज़ी मेरे हाथ है उठ ”


दिव्य ने अपना हाथ उठाया और अगले ही पल मोहिनी हवा में उड़ कर पास के पत्थरों से जा टकराई सर फूट गया खून की धारा बह उठी 



“दिव्या, मोहिनी को छोड़ दो ” चिल्लाया मोहन 



“कैसे छोड़ दू मोहन, मेरी जिंदगी तबाह हो गयी इसकी बजह से नासूर बन कर चुभ रही है है ये मुझे आज इस कांटे को हमेशा के लिए निकाल फेकुंगी मैं ”


“”दिव्या, मेरी लाश पर से गुजरना होगा तुम्हे मोहिनी तक पहुचने के लिए “


पर दिव्या एक महा प्रेतनी के आगे दो इंसानों की क्या बिसात उसने फिर से फेका मोहिनी को मुह से खून की उलटी हुई किसी खिलोने की तरह वो इधर से उधर फेकती रही उसको मोहन के सब्र का बाँध टूट गया 



“दिव्या बहुत हुआ बस रुक जाओ त्याग दो क्रोध को वर्ना मत बोलो महारानी संयुक्यता मेरे वचन में बंधी है मैं अपनी रक्षा के लिए उनको बुलाऊंगा ”


“हट पीछे आज मेरे रस्ते में कोई नहीं आएगा कोई नहीं आयेगा ”


“महारनी, रोकिये अपनी पुत्री को मैं वचन को पूरा करने की मांग करता हु महारानी मोहिनी की रक्षा कीजिये ”


दिल तडप उठा संयुक्ता का पर वचन की आन प्रकट हुई संयुक्ता 



“महारानी रक्षा कीजिये मोहिनी की ”


हसी संयुक्ता – कैसा वचन मोहन कैसा वचन , वो वचन तो मेरी देह के साथ नस्त हो गया अब मैं तुम्हारी बाध्य नहीं बल्कि मैं तो ये ही कहूँगी की छोड़ो इस मोहिनी को और हम दोनों से आके मिलो हमारे साथ जियो 



“तो आप अभी भी अपनी हवस की डोर से बंधी है महारानी अच्छा हुआ आपने याद दिया दिया कल्युग है मैं अभी भी वचन की आस लगाये बैठा था पर कोई बात नहीं आप भी अपनी कर लो ”


“मोहन मैं तुम्हे मार कर प्रेत बना लुंगी फिर तुम हमारे अधीन रहोगे, इस तरह दिव्या तुमहरा वरण करेगी ”


“ऐसा कभी नहीं होगा महारानी कभी नहीं होगा ”


सनुकता अपनी जहरीली मुस्कान हसी और उसने जकड लिया मोहन को अपने पाश में और जिस्म के हर हिस्से से खून रिसने लगा दर्द में डूबने लगा मोहन का अस्तित्व दोनों माँ बेटी की हंसी बादलो की गर्जना से भी विकराल लग रही थी 
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