RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
सुबह हुई शिवाय बाकि टाइम बस सोचता ही रहा मोहिनी कौन हो सकती है आज उसे महल देखने जाना था पर शगुन ने बताया की गाँव में आज शिवरात्रि का मेला है तो सरपंच जी मेले में व्यस्त रहेंगे उन्होंने माफ़ी के साथ कहा है की आज तो मुलाकात नहीं हो पायेगी तो हम कल महल चलेंगे अब मालिक का साथ होना जरुरी है ना
शिवाय- तो चलो हम भी मेले में चलते है अब आये है तो थोडा घूमना फिरना भी हो जायेगा
शगुन- ये तुम्हे क्या हो गया है , वो शिवाय जिसके लिए एक एक मिनट कीमती है वो मेले में जाने को बोल रहा है
शिवाय- कभी कभी हमे भी हक़ है सुकून के पल जीने का
एक मेला तब लगा था एक मेला आज लगा था , वो तब भी था वो अब भी था जल्दी ही सरपंच को सूचना मिली की शिवाय सिंह ओबरॉय मेले में आ रहे है तो वो भी खुश हो गया स्वागत की तैयारिया की गयी और फिर शिवाय पंहुचा वहा पर
सरपंच- स्वागत है सर आपका वो मेले की वजहसे मैं मिलने नहीं आ पाया
शिवाय- कोई बात नहीं सरपंच जी, चलो इसी बहाने मेले में घूमना भी हो जायेगा
सरपंच शिवाय को बताने लगा मेले के बारे में घूमते घूमते वो मंदिर के प्रांगन तक पहुचे
शिवाय- ये बड़ा सा पत्थर कैसा है रस्ते में सरपंच जी आने जाने वालो को परेशानी होती होगी इसको साइड में क्यों नहीं करवाया
सरपंच- बहुत कोसिष की पर नहीं होता, बड़े बुजुर्ग कहते है की स्वयं महादेव ने इसको यहाँ स्थापित किया था ये शिवलिंग है आप गौर से देखिये इसे इस मान्यता के साथ की कोई आएगा और वो खुद इसे अपने हाथो से स्थापित करेगा
शिवाय- आप भी इन बातो में मानते है ये पुराने ज़माने की बकवास बाते
सरपंच- आप बड़े लोगो को बकवास लगता होगा पर गाँव में यही मान्यता है कितने लोगो ने कोशिश की कितनी मशीने मंगवाई पर सब नाकाम अब आप ही बताइए ऐसा क्यों
शिवाय- मैं नहीं मानता
सरपंच- तो फिर आप भी एक कोशिश कर लीजिये देखते है आपकी धारणा सही है या हमारी मान्यता
शिवाय को उसकी बात चुभ सी गयी पर इतना बड़ा पत्थर कोई इन्सान कैसे उठा सकता है पर उसने सोचा कोशिश करने को और कुछ नहीं तो थोडा फन ही हो जायेगा
और जैसे ही शिवाय ने कोशिश की उसे वो पत्थर फूल सा लगा और देखते ही देखते उसने वो भारी भरकम पत्थर उठा लिया और ले चला ऊपर की और जैसे उसके कदम अपने आप उसे बता रहे थे की कहा जाना है
“”असंभव” वहा उपस्तिथ सब लोगो के मुह से बस एक ही शब्द निकला हर कोई हैरत में ये क्या करिश्मा हुआ तो क्या वो आ गया है जिसके आने के बारे में बस बुजुर्गो से पीढ़ी दर पीढ़ी गाँव वाले सुनते ही आ गये थे
जैसे जिसे भी पता चला लोग मेले में जुट गए मंदिर खचाकच भर गया
शिवाय- क्या सरपंच जी, पत्थर वजन दर्द दीखता है जरुर पर था नहीं देखो कैसे मैंने रख दिया
अब सरपंच क्या कहे बस हाथ ही जोड़ दिए, पर लोगो के लिए तो जैसे चमत्कार ही था शिवाय आगे बाधा ही था की एक छोटी बच्ची उसके पास आई और बोली- बाबूजी बंसी खरीदोगे
शिवाय को उस का बंसी बेचना अच्छा नही लगा
वो- बोला- कितने की है गुडिया
लड़की- दस की एक
शिवाय- एक काम करो आप हमे सारी दे दो
उसने शगुन को इशारा किया और वो बंसी उसके हाथ में ही रह गयी तभी सरपंच को किसी के साथ जाना पड़ा
शगुन- बंसी तो ऐसे पकड रही है जैसे की बजाना भी जानते हो
शिवाय- बजा भी सकता हु
शगुन- कोशिश करो
शिवाय ने बंसी अपने होंठो से लगायी और बजाने लगा ये कैसे कैसे रंग थे शिवाय के जो आज उभर रहे थे शगुन तो जैसे खोने लगी और खोने लगी थी दूर कही मोहिनी कितनी सदिया बीत गयी थी उसे ये मधुर तान सुने हुइ उसके पैर मचलने लगे नाचने को पर वो मजबूर थी आज उसे गुस्सा सा आने लगा था अपनी बेबसी पर
और चौंक गयी थी वो भी उसे यकीन नहीं हुआ कितने बरस बीत गए और आज उसने मोहन की बंसी सुनी थी महकने लगी थी वो झुमने लगी थी वो महल जैसे रोशन सा होता चला गया दिव्या की ख़ुशी में वो जान गयी थी मोहन आ गया है उसका मोहन लौट आया है लौट आया है
नाचे गए झूमे अपने आप से बाते करे और करे भी क्यों ना , शिवाय ने अब बंसी अपने होठो से अलग की
शगुन- मुझे नहीं पता था तुम्हे इतनी अच्छी बंसी बजानी आती है
शिवाय- मुझे खुद नहीं पता था
फिर उन दोनों ने पूजा की और बस चलन को ही थे की एक बुजुर्ग साधू उनके सामने आ गया बोला- तो आ गए मोहन
शिवाय बुरी तरह से चौंक गया
शगुन- बाबा, कोई ग़लतफहमी हुई है ये शिवाय है मशहुर बिसनेस मन शिवाय सिंह ओबरॉय
बाबा- तुम्हारे लिए शिवाय है मेरे लिए मोहन है
शिवाय की उत्सुकता बढ़ गयी अपने सपनो में भी तो वो मोहन को ही सुनता था कोई पुकारता था मोहन को
बाबा- ,मोहन उसने बहुत इंतज़ार कर लिया है अब उसे बुला लाओ उसे मुक्त करो इस लम्बी जुदाई से
शिवाय- बाबा मैं समझ नहीं पा रहा हु कुछ भी
बाबा- तुम आ गए हो सब जान जाओगे, क्या लगता है जिस पत्थर को महादेव ने स्थापित किया उसे कोई और क्यों नहीं उखाड़ पाया सिवाय तुम्हारे, ये बंसी जिसे तुमने कभी देखा भी नहीं कैसे सीखी बजानी क्यों तुम्हे वो स्वप्न आते है तुम्हारा यहाँ आना पहले से तय था मोहन ,वो शिवाय सिंह ओबरॉय जो एक घूंट भी मिनरल वाटर पीता है क्यों उस धौरे में पानी पी रहा है क्यों
कैसे तुम अपने आप वहा तक चले गए तुम्हे कैसे पता था की वहा पर पानी होगा
शिवाय- किस्मत से मैं पहुच गया होऊंगा
बाबा- किस्मत नहीं नियति क्या उस कीकर के पेड़ को नहीं देखा जो तुम्हारे और मोहिनी के प्रेम का साक्षी रहा है जाओ मोहन जाओ बुलाओ उसे, बहुत सहा है उसने अब उसे मुक्त करो
शिवाय- मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा बाबा
बाबा- उसी कीकर के पेड़ के पास जाओ मोहन और तीन बार मोहिनी बोलना और फिर कल इसी मंदिर में आना
शगुन- शिवाय कही नहीं जायगा शिवाय हमे नहीं देखनी लोकेशन सब मेरी गलती है मुझे तुम्हे यहाँ लाना ही नहीं था
बाबा- इसकी नियति इसे यहाँ लायी है पुत्री इतिहास में बिछड़े प्रेमियों के मिलने का समय आ गया है मोहन इस पल मोहिनी के हाथो से तुम जल ग्रहण करोगे तुम्हे सब याद आ जायेगा पर अभी तुम जाओ मुक्त करो उसे
पता नहीं शिवाय पर कैसा असर हुआ बाबा की बात का मंत्रमुग्ध सा वो बढ़ा और जा पंहुचा उसी कीकर के पेड़ के पास और बोला- मोहिनी, मोहिनी मोहिनी आ जाओ मोहिनी आ जाओ
और वो पेड़ जल उठा धू धू करके चारो तरफ जैसे आग सी लग गयी पर शिवाय भी समझ गया था कुछ तो गड़बड़ है क्या ये पुनर्जन्म का पंगा है हां, ऐसा हो सकता है उसे अजीब सा डर लग रहा था पूरी रात उसे नींद नहीं आई रात आँखों आँखों में कटी उसकी
अगले दिन वो अकेले ही मंदिर में गया और जैसे ही वो अन्दर गया उसने वहा पर एक लड़की को पूजा करते हुए देखा और शिवाय का दिल जैसे ठहर सा गया ऐसा खूबसूरत चेहरा उसने पहले कभी नहीं देखा था , उसने अपने दिल की धडकनों को आज पहली बार महसूस किया
कुछ तो बात थी उस लड़की में उसका चांदी जैसा रंग उसके बाल जैसे लहरा रहे थे मोहिनी ने देखा उसे और मुस्कुराई उसके पास आई और बोली- परसाद लो
शिवाय ने अपने हाथ आगे किये उसकी उंगलिया मोहिनी की उंगलियों से टकराई शिवाय पर जैसे नशा सा हो गया था
शिवाय- कौन हो तुम
मोहिनी- तुम्हे नहीं पता क्या
वो- नहीं जानता
वो- जान जाओगे मुस्कुराई वो
मोहिनी- मोहन, तरस गयी हु तुम्हारी बंसी को सुनने की आज मेरा नाचने को जी करता है बजाओ ना मेरे लिए
मोहिनी ने उसके हाथ में बंसी थमा दी और कैसे मन कर देता उसको वो ना पहले कभी किया था उसने न अब कर सकता था
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