RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन बढ़ा उसकी और किया प्रणाम, स्वीकार हुआ नरसिंह ने एक मशक मोहन को दी और बोला- मोहन ये दूध अपनी प्रिय को पिला दो ताकि श्राप के रहे सहे अवशेष भी मिट जाये
मोहन ने वो उध मोहिनी को पिलाया और कुछ देर बाद मोहिनी और भी निखर आई चांदी की तरफ चमकने लगी सबलोग ख़ामोशी से बस नरसिंह और मोहन को ही देख रहे थे
नरसिंह- मोहन अपना वचन निभाओ
मोहन-अवश्य ही निभाऊंगा
मोहिनी- कैसा वचन मोहन
मोहन- कुछ नहीं नरसिंह को थोड़ी भूख लगी है उसको भोजन करवाना है
अब नरिसंह आगे हुआ और उधेड़ने लगा मोहन का मांस पर वो मुस्कुराता रहा मोहिनी से देखा नहीं गया उसे क्रोध आया व् चिल्लाई- नहीं नरसिंह नहीं
नरसिंह- मोहन ने वाचन दिया है मेरी माँ को
मोहिनी- पर मैं मोहन को इस हाल में नहीं देख सकती
मोहन- मोहिनी शांत हो जाओ
मोहिनी- नहीं , नरसिंह इस बार अगर तुम्हरे दांतों ने मोहन को छुआ तो ठीक नहीं होगा
नरसिंह- क्या करोगी कहकर उसने मोहन की बाजु का मांस नोच लिया
और साथ ही मोहिनी आ गयी अपने नाग रूप में हुई नरसिंह के सामने , नाग्रूप में मोहिनी को देख कर सब जान गए की मोहिनी ने ही दिव्या को काटा था उस दिन खुद दिव्या हैरान
पर मोहन आया बीच में बोला- मोहिनी, क्या तुम्हे अपने प्रेम पर भरोसा नहीं मैंने नरसिंह को वचन दिया है उसकी भूख मिटाने का मेरी बात का मान रखो विश्वास रखो हमारे प्रेम पर
अब मोहिनी कैसे टाले मोहन की बात को वादे अनुसार आधे शरीर का मांस लिया उसने और हुआ वापिस सबका कलेजा वापिस आ गया उस दर्श को देख कर दिव्या तो रोने ही लगी और रो रही थी मोहिनी भी पर जैसे ही उसके आंसू मोहन के शरीर पर गिरे उसका शरीर फिर से भरने लगा
उफ्फ्फ ये कैसा प्रेम था निश्छल प्रेम था दोनों का बहुत देर तक मोहिनी उस से लिपटी रोती रही पर महाराज संकट में फस चुके थे बोले- अभी के अभी सब महादेव मंदिर चलो अब जो भी बात होगी वही होगी
दरअसल महाराज चाहते थे की अब स्वयम नागराज ही मोहिनी को समझाए दो विपरीत योनियों का मिलन कैसे हो सकता था एक मनुष्य और एक नागकन्या का प्रेम अपने आप में एक असाधारण घटना थी सबकी प्रीत एक दुसरे से जुडी थी पर किसी ना किसी को तो खाली हाथ रहना ही था
महाराज ने मंदिर आते ही नागराज का आह्वान किया और वो आये महारज ने प्रणाम किया और अपने आने की वजह बताई
केवट- महाराज, मैं भी जानता हु की ये गलत है और इसके परिणाम मेरी पुत्री को भुगतने पड़ेंगे पर मैं मजबूर हु मोहिनी को महादेव का आशीर्वाद प्राप्त है इस वजह से उसपे मेरा कोई जोर नहीं है मैं खुद एक बेबस पिता हु
अब महाराज चंद्रभान क्या कहे वो खुद एक बेबस पिता और मजबूर राजा थे इस समय एक तरफ मोहिनी एक तरफ दिव्या और बीच में मोहन अब राजधर्म की तगड़ी परीक्षा हो रही थी पर कोई तो समाधान हो इस बात का
महाराज- देखो, मोहन और मोहिनी एक दुसरे से प्रेम करते है जबकि दिव्या का प्रेम एक तरफ़ा है पर चूँकि हम वचन से बंधे है की उसकी एक इच्छा हम हर हालत में पूरा करेंगे , परन्तु एक नागकन्या और मानुष के प्रेम को समाज में क्या प्रकर्ति में भी स्वीकार्य नहीं है परन्तु मोहिनी को ये न लगे की उसके साथ न इंसाफी हुई है तो दिव्या को भी मोहन नहीं मिलेगा
तुम तीनो अलग अलग ही रहोगे
दिव्या- महाराज अगर मुझे मोहन नहीं मिला तो इसी पल मैं आत्मदाह कर लुंगी
उफ़ ये दिव्या ने क्या कह दिया , ये कैसी जिद इस नादाँ लड़की की
मोहिनी- महारज प्रेम किसी सीमा में नहीं बंधा है मोहन के बिना मुझे भी जीना स्वीकार नहीं यदि मेरी नाग योनी मेरे और मोहन के बीच है तो मैं अपनी नाग योनी का त्याग कर दूंगी
केवट- असंभव पुत्री
मोहिनी- जहा प्रेम हो वहा कुछ भी असम्भव् नहीं
संयुक्ता- मेरी बात पे फिर से विचार करो मोहन दो पत्नी भी रख सकता है
मोहन- अवश्य महारानी परन्तु प्रेम केवल एक को , दूसरी बस नाम की ही पत्नी रहेगी तो उस समय उसका जीवन विधवा से भी ज्यादा कष्टकारी होगा
बात में दम था
महाराज- मोहिनी एक पिता होने के नाते हम तुम्हारे आगे हाथ जोड़ते है तुम तो मान जाओ
मोहिनी- अगर मोहना कह दे की मुझसे प्रेम नहीं तो अभी मैं चली जाउंगी वचन है मेरा
मोहन- मोहिनी के बिना मोहन की कल्पना भी नहीं
दिव्या- मोहन से विवाह नहीं तो मैं मृत्यु का वरण करू
महराज ने अपना माथा पीट लिया एक राजा जो अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध आज उलझा बैठा था एक तरफ पुत्री दूसरी तरफ पुत्री सामान मोहिनी क्या करे किसका पक्ष ले कुछ समझ ना आये
आखिर हार कर महाराज बोले- अब तो महादेव ही राह दिखाए , हे महादेव अगर मैंने राजा के पद पर रहते हुए एक व्यक्ति को भी सच्चा न्याय दिया हो तो दर्शन दे आपके भक्त की इज्जत अब आपके हाथ में है महादेव दर्शन दे इस उलझन को आप ही सुलझाये प्रभु
अब देवो के देव ऐसे कैसे दे दे दर्शन , वो तो बस मुस्कुरा रहे थे इस सारे घटना कर्म को देख कर महाराज ने बीड़ा दे दिया महादेव को की करो फैसला तीन दिन बीत गए वही पर जस के तस और फिर पुरे मंदिर में जैसे की धुआ ही भर गया और जब धुआ हटा तो देखा की एक साधू खड़ा है
सबने प्रणाम किया मोहिनी मन ही मन मुस्कुराई और पाँव पड गयी साधू की उसने आशीर्वाद दिया और बोला- महाराज क्या समस्या है
महाराज- आपसे क्या छुपा है इष्ट आप ही मार्ग दिखाए
साधू- मार्ग तो प्रेम अपने आप दिखायेगा कैसे चलना है ये तो अब तो चलने वाले जाने, दिव्या प्रेम के अनेक रूप होते है मैं ये नहीं कहता की तुम्हे मोहन से प्रेम नहीं परन्तु ये भी तो आवश्यक नहीं की जिस से हम प्रेम करे वो भी हमसे करे
दिव्या- पर मैं मोहन के बिना जी नहीं पाऊँगी
साधू- मृत्यु का वरण कर पाओगी
दिव्या- हां
साधू- मोहिनी, एक दिव्य नागिन होकर एक साधारण से मनुष्य से प्रेम क्यों
मोहिनी- आप तो सब जानते है प्रभु, आपसे क्या छुपा है ये नियति भी तो आपने ही लिखी है
साधू- परन्तु राह बहुत कठिन
मोहिनी- फिर भी चलूंगी
साधू- और तुम मोहन ये कैसी प्रेम की बंसी बजा दी तुमने
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