RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
सब आग में जल रहे थे मोहन और मोहिनी प्रीत की आग में, चकोर और संयुक्ता हवस की आग में और दिव्या अपनी उलझनों में अब करे भी तो क्या करे सब के तार आपस में जो उलझे थे पर सुलझे कैसे इसका जवाब किसी के पास नहीं था
इधर केवट अपनी पुत्री को लेकर परेशां था जब की महाराज चंद्रभान ने दिव्या की शादी अपने मित्रः के ज्येष्ठ पुत्र के साथ तय की और सोचा की महल पहुचते ही सबसे पहले ये खुशखबरी दिव्या को देंगे जबकि उनको कहा भान था की जब वो महल पहुचेंगे तो एक नयी मुसीबत उनका इंतज़ार कर रही है
केवट किसी भी तरह मोहिनी रोकना चाहता था तो उसने एक बार फिर से उस से बात करने का सोचा
केवट- मोहिनी, क्या सोचा है
मोहिनी- सोचना क्या है पिताश्री
केवट- शायद तुमने ठीक से विचार नहीं किया कल को जब उस मनुष्य को तुम्हारी असलियत पता चलेगी तब क्या होगा क्या वो तुम्हे स्वीकार करेगा तब तुम ना इधर की रहोगी ना उधर की रहोगी फिर शेष जीवन कैसे काटोगी
केवट की बात में दम था मोहिनी ने ये तो सोचा ही नहीं था क्या पता अगर उसका सच जानकार मोहन अगर उसे ठुकरा दे और दिव्या से विवाह कर ले तो अब घबराया उसका मन , क्या वो मोहन को बता दे नहीं नहीं पर आज नहीं तो कल उसे बताना तो होगा ही
मोहिनी- पिताश्री, अगर मेरा प्यार सच्चा होगा तो वो मुझे अवश्य अपनाएगा
केवट- खोखले शब्द है तुम्हारे अगर तुम आजमाइश करना चाहती हो तो अवश्य करो
अब मोहिनी फसी पर उसे पूरा भरोसा था और उसने निर्णय किया की इस बार जब वो मोहन से मिलेगी तो उसे अवश्य ही सच बताएगी आगे उसकी किस्मत इधर महाराज चंद्रभान ने दिव्या का रिश्ता अपने मित्र के ज्येष्ठ पुत्र से तय कर दिया और सोचा की महल पहुचते ही दिव्या को ये खुशखबरी देंगे
पर वो क्या जानते थे की वहा पर एक नयी मुसीबत उनका इंतज़ार कर रही है दूसरी तरफ जैसे ही पृथ्वी को मौका लगता वो संगीता को पेल देता इन सब से दूर मोहन बेचैन था मोहिनी से मिलने के लिए पर वो पता नहीं कहा उलझी थी जो आ ही नहीं पा रही थी इधर मोहिनी को अनजाना डर सता रहा था
की क्या होगा जब मोहन उसकी असलियत जान जायेगा पर कही ना कही उसे अपने प्रेम पर भी विश्वास था पर क्या उसका और मोहन का विवाह हो सकता था या हो पायेगा ये भी यक्ष प्रश्न ही था उसके सामने , और फिर वो दिन भी आ ही गया जब महाराज और रानी वापिस आ ये महाराज
ये सोचकर खुश थे की दिव्या को उसके रिश्ते की खबर बतायेंगे और संयुक्ता ये सोच कर खुश की बस अब वो मोहान से जी भर के चुदवायेगी इधर दिव्या भरी बैठी थी कितने दिनों से बस इंतजार था की कब पिता आये और वो अपनी बात कहे और अब वो लम्हा कितना दूर था भला महाराज सबसे पहले अपने मंत्रियो से मिले राजी-ख़ुशी पूछी
और फिर बुला लिया दिव्या को , आई वो
राजा- पुत्री हमे तुम्हे एक खुशखबरी देनी है
दिव्या- मुझे भी आपसे कुछ कहना था
राजा- कहो
दिव्या- पिताजी, मुझे गलत ना समझिएगा पर मुझे मोहन से प्रेम है और मैं उस से विवाह करना चाहती हु
जैसे ही महाराज ने ये सुना उसको गुस्सा आ गया एक महलो की राजकुमारी और कहा वो एक बंजारा ये कैसा मेल और फिर वो तो तय कर आये थे दिव्या का रिश्ता तो बात अब इज्जत की हो गयी थी
रजा- ये क्या कह रही हो तुम कहा तुम और कहा वो एक मामूली बंजारा
दिव्या- प्रेम उंच—नीच नहीं देखता पिताजी
राजा- पर हमे तो देखना पड़ता है , हमे तुम्हरा विवाह अपने मित्रः के पुत्रः से तय किया है और जल्दी ही तुम उस घराने की बहु बनोगी अपने दिमाग से ये फितूर उतार कर फेंक दो
दिव्या- प्रेम कोइ फितूर नहीं
महाराज समझ गए मामला घम्भीर है तो पुछा- क्या मोहन भी तुम्हे प्रेम करता है
दिव्या- जी
अब महाराज को गुस्सा तो पहले से ही था पर फिर भी सम्झ्धारी से काम लिया बोले- मोहन को बुलाया जाये
और कुछ भी देर बाद मोहन उनके सामने था
महाराज- तो क्या तुम दोनों आपस में प्रेम करते हो
मोहन- नहीं राजाजी
महाराज- परन्तु, दिव्या तो कह रही है की
मोहन- महाराज मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा राजकुमारी का मैं सम्मन करता हु मुझे तो मेरे इष्ट की सौगंध है अगर मैंने ऐसा कुछ सोचा हो तो
मोहन ने अपना पक्ष रख दिया था अब महाराज ये तो समझ ही गए थे की दिव्या की जिद है ये पर क्यों वो उसका कारण अवश्य ही जानना चाहते थे एक कहे प्रेम है दुसरे को स्वीकार नहीं चंद्रभान एक पिता के साथ एक राजा भी थे तो न्याय ऐसा होना था की लोग कहे वाह एक तरफ पुत्री का हट दूसरी तरफ मोहन की अस्वेक्रोती
महाराज- दिव्या, जब मोहन ने स्पष्ट किया है की उसको तुमसे ऐसा कुछ नहीं तो बात को टूल मत दो और हमारा कहा मानो तुम्हारी इस जिद से कुछ हासिल नहीं होगा और वैसे भी अगर मोहन तुमसे प्रेम करता तब भी ये मुमकिन नहीं होता
दिव्या- मुमकिन होगा
महाराज- असम्भाव
दिव्या- मैं इस राज्य के महाराज से अपने वचन सवरूप मोहन को अपने पति के रूप में मांगती हु
|