RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
और संगीता को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा , कुछ ही देर बाद उसने पृथ्वी की सांसो की गर्मी अपनी चूत पर महसूस की संगीता के बदन में खुमारी दौड़ गयी छोटी माँ की चिकनी जांघो को सहलाते हुए पृथ्वी ने अपने चेहरे को आगे की तरफ किया और संगीता की मुलायम चूत की फानको को अपने होंठो से लगा लिया
संगीता के बदन में तरंग दौड़ गयी और अगले ही पल उसकी छोटी की चूत को पृथ्वी ने अपने मुह में किसी रस गुल्ले की तरह भर लिया था
“उफ्फ्फ ” एक आह उसके मुह से निकली
जैसे ही चूत का खारा पानी का स्वाद पिथ्वी को लगा उसे बड़ा मजा आया और उसकी जीभ ने छोटी माँ की चूत के दाने को छू लिया संगीता बिस्तर पर जल बिन मछली की भांति मचल रही थी कभी चादर को उंगलियों से मरोड़े तो कभी अपने उभारो को दबाये जैसे जैसे संगीता की सिस्कारिया बढ़ रही थी पृथ्वी और तेजी से अपनी जीभ चला रहा था
अब संगीता टूटने लगी थी उसके चुतड अपने आप ऊपर को होने लगे थे वो अपने हाथो से पृथ्वी के सर को अपनी चूत पर दबा रही थी मस्ती में चूर संगीता अपने पुत्र सामान पृथ्वी से रास रचा रही थी पर वो ऐसे ही झाड़ना नहीं चाहती थी तो उसने राजकुमार को अपनी चूत से हटा दिया
पृथ्वी छोटी माँ का इशारा समझ गया था उसने मुस्कुराते हुए अपने लंड को संगीता की चूत पर रखा और उसे वहा पर रगड़ने लगा
“ओह पुत्र, कितना तडपाओ गे मुझे अब विलम्ब ना करो बस जल्दी से मुझे अपना बना लो ना ”
पृथ्वी को और क्या चाहिए था उसने अपने लंड का दाब संगीता की चूत पर बढाया और उसका सुपाडा अन्दर को धंसने लगा संगीता ने एक आह भरी और अपनी टांगो को चौड़ा करते हुए पृथ्वी के लंड को रास्ता दिया कुछ ही देर में पूरा लंड अन्दर था और पृथ्वी पूरी तरह से उसके ऊपर छा चूका था
दोनों के होंठ एक दुसरे के साथ गूंथे हुए थे एक दुसरे के थूक का रस पान कर रहे थे वो संगीता बार बार अपने चुतड ऊपर कर कर के मजा ले रही थी इधर पृथ्वी ताबड़तोड़ धक्के मारते हुए छोटी माँ को वो ख़ुशी दे रहा था जिसे उसके पिता नहीं दे पाए थे संगीता की चिकनी चूत में पृथ्वी का घोडा बेलगाम दौड़ रहा था
फच फच की आवाज से पूरा कमरा भर गया था पर संगीता की प्यासी चूत हर धक्के के साथ हु और नशीली होते जा रही थी संगीता के बाल बिखर गए थे बदन पसीने में नहाया हुआ था पर चूत की आग इस कदर भड़की हुई थी की वो बस घनघोर चुदाई की बारिश से भी त्रप्त हो सकती थी
और पृथ्वी भी चुदाई के प्रत्येक पल को भरपूर तरीके से जी रहा था किसी पागल सांड की तरह वो संगीता पे चढ़ा हुआ था उसका
लंड बहुत तेजी से अन्दर बहार हो रहा था संगीता की चूत का रस ऐसे बह रहा था जैसे की किसी नदी में बाढ़ आ गयी हो पल पल वो चुदाई की मस्ती को पाने की दिशा में बढ़ रही थी
और उसकी नाव को पार लगाने के लिए पृथ्वी उसका खाव्व्या बना हुआ था , एक मस्त चुदाई के बाद संगीता बुरी तरह इ झड रही थी उसकी चूत ने लंड को अपने आगोश में कस लिया और चूत की इस गर्मी को पृथ्वी बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके लंड ने भी अपना पानी छोड़ दिया
उस पूरी रत दोनों ने खूब चुदाई की सुबह जब अन्गीता की आँख खुली तो पृथ्वी वहा पर नहीं था पर संगीता की बिस्तर से उठने की जरा भी हिम्मत नहीं थी पूरा बदन ताप रहा तह जैसे की बुखार चढ़ा हो उसने अपनी चूत पर हाथ लगा के देखा उसमे तीस उठ रही थी पर उसके होंठो पर एक मुस्कान थी
दूसरी तरफ
केवट- मोहिनी हमे तुमसे कुछ बात करनी है
मोहिनी- जी पिताश्री
केवट- हमने सोचा है की तुम्हारा विवाह कर दिया जाए
अब मोहिनी थोड़ी परेशां हुई क्या करे पिता को क्या कहे, पिता की चिंता भी जायज थी पर वो तो किसी और की हो चुकी थी अपना दिल दे चुकी थी मोहन को पर लाज भी थी तो पिता से अब क्या कहती
केवट- हमने सोचा है शिवरात्रि के पवन अवसर पर तुम्हारा स्वयम्वर रखा जाए
मोहिनी- पिताश्री, अभी मैं विवाह के लिए तैयर नहीं हु
केवट- पर कब तक पुत्री
वो- जब तक मेरा मन राज़ी ना होगा
केवट- पर पिता की इच्छा का क्या मान
वो- और मेरी कोई इच्छा नहीं पिताश्री
केवट---- अवश्य है पुत्री, पर बताओ तो सही
वो- मुझे किसी से प्रेम है
केवट- हमे ख़ुशी है की हमारी पुत्री ने खुद अपने लिए वर चुन लिया है तुम हमे उसका नाम बताओ ताकि हम तुम्हारे विवाह के लिए उसके घर वालो से बात कर सके
मोहिनी- पिताश्री
केवट- कहो पुत्री
मोहिनी- पिताश्री, मुझे एक मनुष्य से प्रेम है
एक पल को केवट को लगा की उसके कानो ने कुछ गलत सुन लिया है उसने फिर पुछा और मोहिनी का यही जवाब था की उसे एक मनुष्य से प्रेम है अब केवट को आया क्रोध
मोहिनी , होश में तो हो तुम क्या बोल रही हो, अपनी सीमा में रह कर बात करो
मोहिनी- प्रेम की कोई सीमा नहीं पिताश्री
केवट- और इस पाप का दंड भी ज्ञात होगा तुम्हे
वो- प्रेम ही ज्ञात है मुझे तो बस
केवट- बस बहुत हुआ, हमारा आदेश है आज के बाद तुम बस यही रहोगी यहाँ से एक पल भी बाहर नहीं जाउंगी
मोहिनी- जाउंगी
केवट- कहा न हमने आशा है तुम हमे मजबूर नहीं करोगी
मोहिनी- और कौन रोकेगा मुझे
केवट ने मोहिनी की आँखों में एक आग सी जलती देखि, बात तो सही थी किसका इतना सामर्थ्य था जो मोहिनी को रोक सके पर मनुष्य से प्रेम ये भी तो उचित नहीं था बल्कि ऐसा हो ही नहीं सकता था ये कैसा खेल खेलने चली थी नियति क्या लिख दिया था उसने मोहिनी की तक़दीर में
ये तो आने वाला समय ही जानता था पर केवट के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई थी मन ही मन उसे अभास हो गया था की कुछ तो अनिष्ट होने वाला है पर क्या ये देखने वाली बात थी मोहिनी ने अपनी तरफ से शुरुआत कर दी थी पर उसे भी कहा आभास था की प्रेम की डगर कितनी मुश्किल है
पर उसे अपने प्रेम पर पूरा भरोसा था इधर दिव्या पल पल जल रही थी उसे बस इंतज़ार था महाराज के वापिस लौटने का भूत सवार था उस पर किसी भी तरह से मोहन को अपना बना लेने का उसे पा लेने का और उसके पास उसका ब्रहमास्त्र भी था प्रेम की परीक्षा की घडी आने वाली थी
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