Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:39 AM,
#17
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
इधर राजपुरोहित अपनी किताबे लेके गहन अध्ययन में डूबे हुए थे जब से मोहन ने उनसे मदद मांगी थी उन्होंने बहुत कम समय के लिए पुस्तकालय छोड़ा था बस पढ़ते ही रहते थे और फिर उस रात उन्होंने मोहन को बुलाया 

“तो मोहन तुम्हारा वो काम हुआ की नहीं ”

“हो गया, श्रीमान ”

पुरोहित के दिल में झटका सा लगा जैसे 

“तो तुमने सच ने उस तीन सर वाले शेर को देखा ”

“क्या आपको विश्वास नहीं है ”

“है, मोहन बस मैं इतना जानना चाहता हु की वो दूध तुम किसके लिए लाये थे ”

“ये मेरा निजी मामला है श्रीमान, माफ़ी चाहूँगा मैं ये आपको नहीं बता एकता आप बू इतना समझ लीजिये की मैं अपने लिए ही लाया था ”

पुरोहित भी जान गया था की मोहन उतना सीधा भी नहीं है जितना दीखता है पर कुछ भी करके वो पता लगा के रहेगा की क्या वो सच में है अगर तीन सर का शेर किवंदिती नहीं है तो वो भी असली में है
आज मोहिनी के पिता बस्ती लौट आये थे और जब उन्हें पता चला की बेटी ने कितनी बड़ी गलती की थी तो उन्होंने खूब गुस्सा किया उस पर मोहिनी चुप चाप सुनती रही 

“क्या तुमने एक पल भी विचार नहीं किया की ऐसा करने के बाद तुमहरा क्या होगा कैसे कर सकती हो तुम ऐसा मोहिनी जानती हो ना की नियमो के विरुद्ध जाना कितना खतरनाक हो सकता है तुम्हारे दोनों कृत्य ही माफ़ी के काबिल नहीं है तुम्हे इसकी सजा मिलेगी ”

“जी पिताजी मैं सजा के लिए तैयार हु ”

“हाँ पर उस से पहले हम ये जानना चाहेंगे की ऐसी गलती करने के बाद भी तुम ऐसी भली चंगी कैसे हो आखिर तुम्हारा बचाव हुआ कैसे ”

“पिताजी, मुझे औषधि मिल गयी थी ”

“असंभव ,ऐसा कदापि नहीं हो सकता ”

“प्रमाण आपके समक्ष ही है ”

मोहिनी की बात बिलकुल सही थी पर कैसे हुआ ये उसके पिता केवट को हुई जिगयासा 

“हम जानना चाहते है की तुम्हे औषधि कैसे प्राप्त हुई ”


“क्षमा कीजिये पिताजी ये हम आपको नहीं बता सकते बस इतना कह सकती हु की था कोई फ़रिश्ता जिसने मेरे प्राण लौटा दिए ”
“पर ये तो असंभव है स्वयं महादेव भी नरसिंह की माता को दूध के लिए बाध्य नहीं कर सकते और 

वो अपनी मर्ज़ी से कभी अपने दूध का दान करेगी नहीं और बाबाबर्फानी के कबूतर की आँख का आंसू जबकि हमे ज्ञात है सदियों से वो रोया नहीं फिर कैसे विश्वास करे हम आपका पुत्री ”

“मेरा स्वस्थ होना ही प्रमाण है पिताश्री”

केवट का ध्यान और बातो से हट कर इस बात पर आ गया की आखिर ऐसा हो कैसे सकता है नरसिंह की माँ हमारी घोर शत्रु फिर वो कैसे राजी हुई अपना दूध देने को सब कुछ जानते हुए भी की उसके दूध का नरसिंह के आलावा एक मात्र उपयोग क्या है परन्तु यहाँ पर केवट ये भूल गया था की 


व् ओभी एक माँ थी और माँ हमेशा अपने बच्चो की पीड़ा को जान लेती है उनका निवारण करती है 
केवट बहुत परेशान हो गया था इस बात को लेकर बड़े बड़े वीर जिसके दूध के एक बूँद ना ला पाए

ऐसा कौन महारथी हो गया जिसने शेर माता को मना लिया था जो स्वय महादेव को बाध्य नहीं उसे किसने मना लिया पुत्री ने तो बताने से मना ही कर दिया 

अब केवट को हुई हुडक उस से मिलने की जिसने उसकी पुत्री की मृतु को टाल दिया था 

परन्तु उसको ये भी भान था की दोनों का ही तरीका गलत था और दोनों को ही इसका प्रयाश्चित करना होगा 

अब एक पिता को अपनी पुत्री हेतु चिंता करना स्वाभाविक था पर उनकी भी दिलचस्पी हो गयी थी की ऐसे ही किसने उनकी बेटी की ये असंभव सी मदद कर दी खैर अब किया भी क्या जा सकता था 

अगले दिन फिर दिव्या और मोहन मंदिर गए मोहिनी व्ही पर थी पौधो को पानी दे रही थी जैसे ही मोहन को देखा दौड़ी चली आई 
पानी का मटका लिए वो आ खड़ी हुई मोहन के सामने इधर दिव्य का दिल जला

ये कमबख्त लड़की भी ना क्या है इसको रोज मोहन को पानी पिलाने आ जाती है , उसेगुस्स्सा आया पर तभी छोटी रानी संगीता भी आ गयी तो दिव्या को चुप्पी लेनी पड़ी वो दिव्या को अपन साथ अंदर ले गयी बचे मोहन और मोहिनी 

“प्यास लगी है ”

“दिल में कोई आस नहीं और मेरे होंठो पर कोई प्यास नहीं ”

मोहिनी का कलेजा जैसे छलनी ही हो गया था पर क्यों सुनती थी वो जली कटी बाते मोहन की आखिर वो लगता ही क्या थौसका, उसका और मोहन का भला क्या मेल था कुछ नहीं 

पर फिर भी वो अपने होंठो पर मुस्कान लायी बोली- चलो माना की प्यास नहीं पर मेरी आस तो है बहुत दिन हुए तुम्हारी बंसी नहीं सुनी तो मुझ पर इतना एहसान करो, दो पल ही सही मेरे लिए एक बार बंसी अपने होंठो पर लगा लो 

माना की मैं पराई ही सही पर इतना तो हक़ होगा ही तुम पर 

ये क्या कहा मोहिनी ने , परायी वो कब से परायी हो गयी थी मोहन एक अस्तित्व का एक हिस्सा थी मोहन था तो मोहिनी थी फिर परायी कैसे हो गयी थी वो , कैसे 

मोहिनी ने अपनी हरी आँखों से देखा मोहन को और मोहन डूबा अपने दर्द में पर अगले पल उसने बंसी निकाली और छेड़ दी एक मधुर तान पल भर में ही जैसे पूरा प्रांगन जिवंत हो उठा वहा पर

जैसे जैसे मोहन की तान बढ़ी मोहिनी पर चढ़ा नशा उसका सर झोमने लगा पैरो की थिरकन आई ,

इधर मधुर ध्वनी सुनकर दिव्या पूजा करनी भूली अब पूजा से उठ जाये तो महादेव को क्रोध आये और ना जाये तो दिल परेशान करे तो क्या करे मोहिनी को मद चढ़ा मोहन की बांसुरी का

ये कैसा प्रेम संगीत छेड़ दिया था मोहन ने आज वो खुद को नहीं रोक पाएगी बांधे घुंघरू उसने पांवो पर और दिखाई अपनी थाप 
अपनी आँखों को मटकाते हुए उसने मोहन को इशारा किया 

मोहन भला उसका निवेदन कैसे ना स्वीकारता उठ खड़ा हुआ वो और किसी बीन की तरह बजाने लगा बांसुरी को इधर मोहिनी ने अपने बाल खोल दिए लगी झुमने मंदिर में उपस्तिथ सभी लोग देखे मुकाबला एक नर्तकी और एक बंसी वाले का 

मोरो ने पिहू पिहू के ध्वनी से सारे वातावरण को अपने सर पर उठा लिया कोयल कूके किसी डाल पर उअर मोहिनी अब बेखबर इस इस दीन दुनिया से कभी मोहन के आगे कभी मोहन के पीछे कभी आँखों से आँख मिलाये कभी मुस्काए कैसा था ये मुकाबला कैसी थी होड़ ये ,नहीं नहीं ये तो प्रयतन था रिझाने का , मनाने का 

घुंगरू की झंकार ने मिला ली थी बंसी से तान जैसी कोई बिजली गिर रही हो इधर उधर सब मन्त्र मुग्द्य से हो गए थे उन दोनों को देख पर पर दिव्या के दिल पर छुरिया चल रही थी आखिर दिल का कहा सुन के उसने भागी पूजा में से उठ के वो उअर जो देखा दर्श सर्प लोट गया राजकुमारी के दिल पे आँखों में अग्नि का वास 


जी तो चाह की फूंक दे इस लड़की को अभी या चुनवा दे दिवार में हमारे मोहन पर डोरे डाल रही है हिम्मत तो देखो उसकी पर तभी मोहिनी और दिव्या की नजरे मिली आपस में और दिव्या का खून खौल गया इधर मोहन की बंसी पर क्या खूब ठुमक रही थी मोहिनी अब दिव्या कितना बर्दाश्त करती नारी ही नारी की शत्रु परम शत्रु 

आग लगी दिव्या के, बांधे घुंघरू और आ गयी मैदान में दी थपकी दर्शाया की मैं भी कम नहीं और कम रहे भी तो कैसे दिव्या स्वयं एक कुशल नर्तकी थी जो एक सांस चोबीस घंटे नाच सकती थी 52 परकार के न्रत्य में पारंगत और ऊपर से जब चाह किसी को अपना बना लेने की , हद से ज्यादा जूनून तो अब क्या हो
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