Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:38 AM,
#16
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन ने उसको दवाई पिलाई और कुछ देर बाद ही असर होना शुरू हुआ वो काला पड गया रंग छंटने लगा मांस फिर से भरने लगा और जल्दी ही मोहन के सामने वो ही दमकती मोहिनी थी

उसकी चांदी जैसी चमक वापिस लौट आई थी एक साधारण मनुष्य ने उसके प्राणों को वापिस मांग लिया था यम के दरबार से 
पहले से भी ज्यादा सुंदर मोहिनी उसकी आँखों के सामने खड़ी थी 

जैसे उस समय नूर बरस पड़ा था वहा पर मोहन ने अपनी बाहे फैलाई और दौडती हुई मोहिनी उसके सीने से आ लगी जैसे हारती और आसमान का मिलन हो गया हो जैसे बहार ही आगई हो मोहन को करार आ गया बहुत देर तक वो उसके सीने से लगी रही ना वो कुछ बोली ना वो कुछ बोला 


मोहन- देखा मैंने कहा था न तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा कुछ नहीं 

मोहिनी उसके सीने से लगी रही 

मोहन- एक बात पूछु 

“हाँ ”

“क्या तुम मुझसे प्रेम करती हो ”

मोहिनी की धड़कने बढ़ गयी अब क्या कहे वो उस मोहन से जो यम को जीत लाया था उसके लिए क्या वो मना कर दे नहीं क्या गुजरेगी मोहन पर 

वो टूट जायेगा तो क्या सत्य बता दे उसको नहीं नहीं तो क्या करे वो क्या उसका निवेदन स्वीकार कर ले की वो भी उसे प्रेम करती है 
क्या कहा वो भी उसे प्रेम करती है , 

नहीं या नहीं हाँ नहीं हाँ हाँ वो भी प्रेम ही तो करती है मोहन से पर ये संभव नहीं , असंभव भी तो नहीं तो क्या करे क्या स्वीकार कर ले इस प्रेम के मार्ग को , मार्ग प्रेम का पर कितनी दूर तक क्या सीमा थी उसके इस प्रेम की दरअसल वो खुद नहीं जानती थी की कब वो मोहन से प्रेम करने लगी थी 


वो तो बस गुजर रही थी उधर से बंसी की धुन सुनी तो रुक गयी थी और रुकी भी तो ऐसे की अब सब उलझ गया था और उलझा भी तो ऐसे की कोई डोर

नहीं जो सुलझा सके प्रेम ही तो था जो इन दोनों को इस हद तक एक दुसरे से जोड़ गया था प्रेम ही तो था जो मोहन उसके लिए इतना कुछ कर गया था पर इस प्रेम का क्या भविष्य क्या शुरआत और क्या अंत 


मोहोनी के मन में द्वंद चालू हुआ इधर मोहन की आवाज से वो वापिस धरातल पे लौटी 

“मोहिनी क्या तुम्हे मेरा प्रेम स्वीकार नहीं ”

वो चुप रही थोड़ी देर और बीती 

“कोई बात नहीं मोहिनी अगर तुम्हे स्वीकार नहीं तो तुम्हारी इच्छा का मान रखना मेरे लिए सर्वोपरी है वैसे भी तुम कहा और मैं कहा कोई तुलना ही नहीं ये तो मन बावरा है जो बहक गया

जिसने ऐसा समझ लिया तुम्हे नाराज होने की आवशयकता नहीं मोहिनी मैं अपने मन को समझा लूँगा पर हां एस ही कभी कभी मिलने आ जाना वो क्या है ना जब तुमसे नहीं मिलता तो मन नहीं लगता मेरा कही भी ”

उफ़ ये सादगी मोहन ने उसके मन के वन्द को समझ लिया था इसी सादगी पर ही तो मर मिति थी मोहिनी पर वो भी करे तो क्या करे बस उसकी आँखों से आंसू बह चले 

आंसू विवशता के आंसू बेबसी के आंसू की वो चाह कर भी मोहन को नहीं बता सकती की वो किस हद तक उसके प्रेम में डूब चुकी है 

“रोती क्यों है पगली, क्या हुआ जो प्रेम नहीं मित्रता तो है ही और हां वैसे भी मैं तुम्हे ऐसे दुखी नहीं देख सकता देखो अब अगर तुम रोई तो मैं बात नहीं करूँगा फिर तुमसे ”

वाह रे मानुस तू भी खूब है 

“अच्छा तो अब चलता हु , थोड़ी देर होगी फिर आने में पर आऊंगा जरुर तुमसे मिलने ” मोहन वापिस मुड़ा बड़ी मुश्किल से संभाला था उसने खुद को रोने से कुछ कदम चला फिर बोला- जाने से पहले थोडा पानी तो पिलादे मोहिनी 

मोहिनी का जैसे कलेजा ही फट गया अब वो अपने दुःख को किसके आगे रोये दर्द भी अपना और आंसू भी अपने कांपते हाथो से उसने मोहन को पानी पिलाया 

“आज मेरा जी नहीं धापा मोहिनी ” ये कहकर मोहन वापिस चल पड़ा एक पल भी ना रुका ना ही पीछे मुद के देखा हमेशा वो मोहिनी को जाते हुए देखा करता था 

आज वो देख रही थी अपनी मोहब्बत को अपने से दूर जाते हुए दिल रोये बार बार दुहाई दे रोक ले मोहन को वर्ना मोहबत रुसवा हो जाएगी पर वो भी अपनी जगह मजबूर कैसे रोक ले उसको 

दो दिन रहा मोहन डेरे में बस गम सुम सा ना कुछ खाया पिया ना किसी से बात की बी घरवालो की परेशानी वो अलग महल आया पर कुछ अच्छा ना लगे बस पूरा दिन गुमसुम रहता 

हर रात संयुक्ता का खिलौना बनता वो पर ना कोई शिकवा ना कोई शिकायत दिन गुजरते गए अब कहे भी तो क्या कहे दिल तो बहुत करता उसका की दौड़ कर मोहिनी के पास पहुच जाये 

पर नहीं जाता रोक लेता अपने कदमो को 

इधर मोहिनी हर दोपहर उसी कीकर के पेड़ के निचे इंतजार करती वो बार बार अपनी पानी की मश्क को देखती ऐसा लगता की अभी मोहन आएगा और पानी मांगेगा दोनों तदप रहे थे झुलस रहे थे अपनी आग में पर किसलिए किसलिए अगर यही प्रेम था तो फिर ये जुदाई क्यों
जिस रात महारनी बख्स देती उसको पूरी पूरी रात बस बंसी बजाता वो ये बंसी ही तो साथी थी उसकी उसके सुख की उसके दुख की आज भी ऐसी ही रात थी पूनम का चाँद अपने शबाब पे था

चांदनी किसी प्रेमीका की तरह उस से लिपटी हुई थी चाँद और चांदनी आखेट कर रहे थे पर मोहन तड़प रहा था और साथ ही तड़प रही थी राजकुमारी दिव्या भी वो अपनी खिड़की से मोहन को देख रही थी 

ना जाने कब दिव्या मन ही मन मोहन को चाहने लगी थी इतनी तड़प थी मोहन की धुन में आखिर क्या गम है इसको वो आज पूछ कर ही रहेगी

वो सीढिया उतरते हुए सीधा मोहन के पास आई मोहन चुप हो गया 

“राजकुमारी जी आप सोये नहीं अभी तक ”

“हम कैसे सोये तुम्हारी इस बंसी से हमे नींद नहीं आती ”

“माफ़ी चाहूँगा मेरी वजह से आपको परेशानी हुई आज से रात को कभी बंसी नहीं बजाऊंगा ”

“वो बात नहीं है मोहन , पर क्या हम यहाँ बैठ जाये ”

“एक पल रुकिए मैं अभी आपके लिए व्यवस्था करवाता हु ”

“उसकी आवश्यकता नहीं ”

दिव्या उसके पास ही बैठ गयी फिर बोली- मोहन क्या कोई परेशानी है तुमको 

“नहीं तो राजकुमारी जी , आप सब ने इतना सम्मान दिया तो मुझे भला क्या परेशानी होगी ”

“तो फिर ये कैसा दर्द है जो हर पल तुम्हारे दिल को छलनी कर रहा है ”

“ऐसी तो कोई बात नहीं ”

“घर की कोई परेशानी है ”

“जी नहीं ”

“तो फिर बताते नहीं की क्या बात है एक राजकुमारी को नहीं बता सकते तो एक मित्र को तो बता सकते हो ना ” दिव्या ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा 

“मैंने कहा ना कोई परेशानी नहीं है वैसे भी आपके राज में भला मुझे क्या दिक्कत होगी ”

“तो फिर बताते क्यों नहीं अपना दर्द क्यों नहीं बांटते मुझसे ”

अब मोहन उसे क्या बताता की उसका मर्ज़ क्या है इश्क क्या है बस इतना समझ लीजे एक आग का दरिया है और डूब के जाना है दिव्या काफी देर तक उस से बाते करती रही उसने मन ही मन ठान लिया था 

की वो जानकार रहेगी की आखिर मोहन की क्या परेशानी है क्योकि वो जानती थी की अगर मोहन दुःख में है तो वो भी उसके साथ ही है क्योंकि कारन व्ही थी प्रेम पर जहा प्रेम हो वहा ये दुःख क्यों ये बिछडन क्यों 

चाँद एक ही था आसमान में पर दो लोग अपने अपने नजरिये से उसको देख रहे थे दोनों के मन में एक ही बात थी एक ही पीड़ा थी जुदाई की मोहिनी की आँखों में आंसू थे उसके बाल हवा में लहरा रहे थे

हलके हलके से पर उसकी निगाहे उसी चाँद पर थी जिसे मोहन देख रहा था दोनों के दिल दर्द से भरे थे पर कहे भी तो किस से की क्या बीत रही है दिल पर 

रात थी तो कट ही जानी थी किसी तरह से अब तो दीवानो के लिए क्या दिन और क्या रात खैर दिन हुआ, आज दिव्या को मंदिर जाना था तो उसने माँ से मोहन को साथ ले जाने का कहा

अब बेटी को संयुक्ता कैसे मना करती तो वो दोनों चले मंदिर के लिए जैसे ही अंदर गए मोहन के कदम थम से गए 
अंदर मोहिनी थी जो शायद पूजा करने ही आई थी , 

“राजकुमारी जी आप पूजा कीजिये मैं बाहर रुकता हु ”

मोहन बाहर आया उसके पीछे ही मोहिनी भी आ गयी मोहन ने अपने कदम बढ़ा दिए बिना उसकी तरफ देखे मोहिनी का दिल रो पीडीए अब कैसे बताये वो मोहन को की क्या बीत रही है उस पर

इर्कुच सोच कर वो बोली- मुसाफिर पानी पियोगे 

मोहन के कदम एक दम से रुक गए दिल कहे चल वो बुला रही है पर मोहन ना जाए उफ्फ्फ ये कैसी नारजगी ये कैसी विवशता 

“पनी मित्र को ईतना अधिकार भी नहीं दोगे अब ”

अब क्या कहता वो , मित्रता तो थी ही वो आया उसके पास मोहिनी ने मटका उठाया और पिलाने लगी उसे वो पानी पर आज वो बिलकुल सादा था मोहन ने सोचा की पानी भी बेवफाई कर गया 

पर उसने अपनी ओख नहीं हटाई बस पीता रहा इधर दिव्या ने जब देखा की एक लड़की मोहन को यु पानी पिला रही है पता नहीं क्यों उसे बहुत जलन हुई क्रोध आया 

वो सीधा आई और छीन लिया मटका मोहिनी के हाथ से और चिल्लाई- गुस्ताख लड़की तेरी हिम्मत कैसे हुई तू मोहन को पानी पिलाएगी 

पलभर के लिए मोहिनी की हरी आँखे क्रोध से चमक उठी पर उसने संभाल लिया खुद को बोली- पानी ही तो पिलाया है कोई चोरी तो नहीं की है 

मोहिनी ने दिव्या की दुखती रग पर हाथ रख दिया था दिव्या गुस्से से तमतमाई पर मोहन बीच में बोला- आपने एक प्यासे को पानी पिलाया कभी मौका लगा तो आपका अहसान जरुर उतारूंगा 

मोहन ने दिव्या का हाथ पकड़ा और उसे ले आया , मोहिनी ठगी से रह गयी अहसान ये क्या बोल गया मोहन अहसान कैसा था उनके बीच वो दोनों तो दो जिस्म एक जान थे क्या रे इंसान बस 

तेरी ऐसी ही फितरत तू कभी समझा नहीं नहीं की मोल क्या होता है मोहिनी एक फीकी हंसी हसी और वापिस मंदिर की तरफ बढ़ गयी 

“क्यों मेरी इतनी परीक्षा ले रहे हो महादेव , अब नहीं सहा जाता मुझे ये कष्ट बहुत पीड़ा होती है मुझे भी और उसे भी पर मुझ को आप पे भरोसा है अगर आपने ये लिखा है तो ये ही सही ”

“मोहन, तुमने क्यों रोका मैं उस लड़की का मुह नोच लेती ”

“आपको कोई जरुरत नहीं किसी के मुह लगने की वैसे भी छोटी सी बात तो थी किसी को पानी पिलाना कोई अपराध नहीं ”
बात तो सही थी मोहन की अब दिव्या को क्या दिक्कत हुई थी 

ये तो बस दिव्या ही जानती थी उसने मोहन की नीली आँखों में देखा और बोली- तुम्हारी आँखे बहुत प्यारी है 

मोहन मुस्कुरा दिया इस बात से अनजान की उसकी मुस्कराहट का तीर किसी के दिल पे जा लगा है , इधर मोहन से चुद के संयुक्ता किसी ताज़े गुलाब की तरह खिल गयी थी

पुरे बदन में निखर आ गया था और और कामुक और सुंदर हो गयी थी जिस से राजा की और दोनों रानिया संगीता और रत्ना जल भुन गयी थी वैसे ही उसकी वजह से महाराज उन दोनों पर इतना ध्यान् नहीं देते थे ऊपर से आजकल वो और जवान हुई जा रही थी 
आखिर कार दोनों रानियों ने तोड़ निकाला की किसी तरह से पता लगाया जाए की माजरा क्या है
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