Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:38 AM,
#15
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन- जी मेरे किसी अपने को इसकी जरुरत है 

पुरोहित- तुम्हारे अपनी को क्या सच में

मोहन- हां सच में 

अब पुरोहित के माथे पर बल पड़े चेहरा निस्तेज हो गया जैसे बरसो से बीमार हुए हो उन्होंने मोहन से कल मिलने को कहा और अपने पुस्तकालय में चले गए किताबे छान मारी और 

फिर एक किताब को पढने लगे पूरी रात पढ़ते रहे और जैसे जैसे वो पढ़ते जा रहे थे उनकी आँखों में आश्चर्य बढ़ता जा रहा था किवंदिती सच कैसे हो सकती थी पर किताब को झूठ मान भी ले तो मोहन क्यों झूठ बोलेगा 

खैर मोहन का महल में बहुत रुतबा था तो उसने सोचा की मदद करनी चाहिए सुबह हुई उसने मोहन को बताया की मोहन पूरी धरती पर एक ही तीन सर वाला शेर है

मतलब की है या बस बात है तुम्हे ज्वाला जी के जाना होगा हर नवमी को वो शेर माता के दर्शन करता है तो तभी तुम उसे देख पाओगे ज्वाला जी तो बहुत दूर होंगी मोहन ने नाम भी नहीं सुना था पर फिर भी पुरोहित से नक्शा लेकर वो चल पड़ा 

पुरोहित ने उसे साफ हिदायत दे दी थी की अगर वो शेरनी अपनी मर्ज़ी से दूध देगी तो ही वो दवा असर करेगी वर्ना सब बेकार मोहन का र्ध निश्च्य था उसे हर हाल में मोहिनी के प्राण बचाने थे तो मोहन चल पड़ा 

अपनी मंजिल की और किसी की नहीं सुनी ना किसी को बताया इधर मोहन चल पड़ा था अपने सफ़र पर पीछे से अब ना संयुक्ता का दिल लगे ना दिव्या का भूख लगे ना प्यास 


सबके दिल में मोहन और मोहन के दिल में मोहिनी आँखों में उसका ही चेहरा लिए मोहन जैसे तैसे करके पंहुचा ज्वाला जी के दर्शन किये और अपना काम सफल होने की प्राथना की तिथि जोड़ी तो आज सप्तमी थी मतलब दो दिन मोहन के लिए पल पल कीमती था अब दो दिन बीस साल की तरह लगे उसे जैसे तैसे करके उसने दिन काटे


और आई नवमी आधी रात का समय बस अकेला मोहन और कोई नहीं उअर फिर जैसे की भूकंप ही आ गया हो ऐसी आवाज आई और फिर आया वो निराला माता के दर्शन को मोहन ने जिंदगी में शेर देखा था वो भी तीन सर वाला उसने दर्शन किए और वापिस मुड़ा पर फिर रुक गया 

ऐसा दिव्य शेर मोहन ने कभी नही देखा था मोहन लेट गया उसके पैरो के पास शेर ने अपना पंजा उसके सर पे रखा और एक हुंकार भरी 

मोहन उठा और हाथ जोड़ते हुए अपनी सारी बात बता दी शेर खड़ा था चुप चाप फिर बोला – मनुष्य तुम्हारी राह इतनी आसान नहीं परन्तु आज तुमने माता के दरबार में अरदास लगायी है तो मैं तुम्हे अपनी माँ के पास ले चलता हु 


मोहन उस शेर के साथ गुफा में पंहुचा और शेर ने बात शेरनी को बताई और जैसे ही उसको पता चला वो हुंकारी गुस्से में गर्जना ऐसी की जैसे पहाड़ गिर जायेगा उसने मोहन की और देखा और फिर बोली- मनुष्य मैं साल में दो बार अपने पुत्र को दूध पिलाती हु अगर मैंने तुझे दूध दे दिया तो मेरा पुत्र भूखा रहेगा 

मोहन- हे माता, मेहर करे मुझ पर किसी के प्राण संकट में है 

वो-जानती हु पर क्या तू जनता है किसके प्राण संकट में है 

मोहन-जी मोहिनी के 

शेर माता ने फिर से एक हुंकार भरी एक गर्जना की और बोली- अच्छा मोहिनी के क्या लगती है वो तेरी 

मोहन- जी मैं प्रेम करता हु उस से 

माता को बड़ा आश्चर्य हुआ ये सुनके प्रेम ,,,,,,,,,,,,, प्रेम करता है ये मनुष्य 

वो बोली- क्या वो भी तुझसे प्रेम करती है 

मोहन- जी 

माता- असंभव क्या उसने कहा की कभी वो तुझसे प्रेम करती है 

मोहन- जी कभी कहा नहीं 

माता को उसके भोलेपन पर हसी आ गयी पर वो कैसे दूध दे दे अगर वो मोहन को दूध दे दे तो उसका पुत्र 6 महीने भूखा रहे एक माँ फसी अधर में 

एक तरफ उसका फरियादी जिसे ये भी नहीं पता की वो किसके लिए इतनी दूर आया है और एक तरफ उसका पुत्र जिसे भूखा रहना पड़े 

मोहन- हे माँ मैं भी आपका ही पुत्र हु मेहर करे 

माता- ठीक है मैं दूध तुम्हे दे दूंगी पर मेरे पुत्र की भूख के लिए तुम क्या करोगे 

मोहन- जो आपकी आज्ञा हो 

शेरनी- ठीक है तो तुम्हे अपने शारीर का आधा मांस मेरे पुत्र को भोजन स्वरूप देना होगा बोलो है मंजूर 

एक बार टी मोःन का कलेजा ही निकल गया पर मोहिनी को वचन दिया उसने और अगर उसके जीवन देने से मोहिनी को प्राण वापिस मिलते है तो ये ही सही 

“ मैं तैयार हु हे नरसिघ जी आप मेरा आधा मांस उपयोग करे अभी ”

शेर माता को यकीन नहीं हुआ की एक मनुष्य अपना आधा मांस दे रहा है वो भी बिना ये जाने की वो किसके लिए ये सब कष्ट उठा रहा हा वो तो एक माता थी उसका भी कलेजा था पर परीक्षा अभी बाकी थी 

शेर ने मोहन का मांस खाना शुरू किया पर क्या मजाल थी मोहन ने उफ्फ्फ भी की हो उसका मजबूत देख कर शेर माता का कलेजा पसीज गया 

“बस मनुष्य बस तुमने साबित कर दिया की तुम्हारा इरादा नेक है तुम्हारी मुराद अवश्य ही पूरी होगी ” 

शेर माता ने मोहन को अपना दूध दिया और उनके आशीर्वाद से मोहन का शरीर भी भर गया मोहन ने उनका आभार किया तो शेर माता बोली – मानुष पर मात्र मेरे दूध से ही तुम्हारी मोहिनी का रोंग नहीं कटेगा तुम्हे बाबा बर्फानी के यहाँ से सफ़ेद कबूतर की आँख का आंसू मेरे दूध में मिलाना होगा और

उसके बाद उसमे सुनहरी चन्दन मिलाने पर जो दवाई बनेगी उस से ही ये रोग कटेगा 

मोहन ने कहा वो ये भी लाएगा तो शेर माता ने कहा की सुनहरी चंदन बस कैलाश पर्वत पर ही मिलेगी समय कम है तो मेरा पुत्र तुम्हारी सवारी बनेगा और एक रात में तुम्हे बाबा बर्फानी तक पंहुचा देगा 

अब माता का आदेश था पालन होना ही था तीन सर वाले शेर की सवारी करते हुए मोहन पंहुचा बाबा बर्फानी तक और अपनी आस लगाई उसे वहा पर एक सफ़ेद कबूतर का जोड़ा मिला मोहन ने अपनी व्यथा बताई और एक आंसू ले लिया 

अब पंहुचा कैलाश पर मोसम अलग बर्फ ही बर्फ अब कहा ढूंढें पर साथ नरसिंह तो काम बन गया इस तरह मोहन एक रात में हुआ वापिस 
शेर माता ने कहा मानुष तेरा भला हो तेरा काम अवश्य सिद्ध होगा अब मोहन हुआ वापिस और सीधा पंहुचा उसी कीकर के पेड़ के निचे व्ही दोपहर का समय

मोहन ने पुकारा मोहिनी मोहिनी पर कोई जवाब नहीं उसने फिर से पुकार की और थोड़ी देर बाद मोहिनी आई उसकी तरफ चांदी जैसा रंग काला पड़ चूका था

मांस जैसे हड्डियों से उतर चूका था धीमे धीमे चलते हुए वो उसके पास आई बड़ी मुस्किल से उसने मोहन का नाम पुकारा मोहन का कलेजा ही फट गया उसको ऐसे देख कर 

आँखों से आंसू बह चले मोहिनी भी रोये और मोहन भी 

“बस मोहिनी बस तेरा दुःख ख़तम हुआ देख मैं सब ले आया हु शेरनी का दूध , सफ़ेद कबूतर की आँख का आंसू और सुनहरी केसर”
अब मोहिनी चौंकी,

मोहन को कैसे पता चला की आँख का आंसू और सुनहरी केसर उसकी आँखों से आंसू और तेजी से बह चले उसने तो मोहन को बताया ही नहीं था की दो और चीजों की आवश्यकता पड़ेगी

उसने तो ऐसे ही मोहन की कसम का मान रखने के इए उसे तीन सर के शेर की माँ का दूध कहा था क्योंकि वो जानती थी की असंभव ही था ये दूध मिलना 

“मोहिनी बस अब मैं तुझे मुस्कुराते हुए देखना चाहता हु ले ये दवाई ले और जल्दी से ठीक होजा ”
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