RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
इस बीच मोहन ने आगया ले ली थी महाराज से की वो कभी कभी अपने डेरे में जा सके इस से वो घरवालो से भी मिल सके उअर मोहिनी से भी पर सब बातो से अनजान राजकुमारी दिव्या की रातो की नींद उडी पड़ी थी
जबसे मोहन ने उसके प्राण बचाए थे उसे हर जगह मोहन ही दिखे उसके मन में बस मोहन खाना नहीं खाती सजना संवारना भूल गयी बस दिल में एक ही नाम मोहन
मन ही मन वो प्रेम करने लगी,देखो किस्मत का खेल निराला महलो की राजकुमारी एक बंजारे से इश्क करने लगी अब मोहबात है ही ऐसी कहा उंच नीच देखती है महल में ही दो चार बार दिव्या और मोहन का आमना सामना भी हुआ था पर वो बस शर्म के मारे उस से बात ही नहीं कर पायी थी
करीब दस दिन गुजर गए इन दस दिनों में संयुक्ता ने हर उस मौके का फायदा उठाया था जिसमे वो चुद सकती थी और फिर मोहन ने कुछ दिन डेरे में जाने की आज्ञा मानी तो उसने हां कह दिया मोहन निकल पड़ा डेरे के लिए बीच में वो महादेव मंदिर रुका दर्शन किये थोडा पानी पिया पर वो वैसे ही सादा पानी था
वो फिर चला पर डेरे की जगह वो उसी कीकर के पेड़ के निचे पंहुचा और आवाज दी मोहिनी मोहिनी पर कोई नहीं आया कोई नहीं आया कई देर इंतजार किया पर कोई जवाब नहीं हार कर वो वापिस हुआ तभी कुछ आवाज हुई पर कोई नहीं था वो निराश हुआ और डेरे आ गया सब लोग उसे देख कर बहुत खुश थे
खासकर चकोर, सब से बात करके उसके पिता ने उसे एकांत में बुलाया और बोला- छोरे एक बात पूछनी थारे से साची साची बताना
“उस दिन वो साप थारे बुलाने से कैसे आया , मैं देवनाथ राज सपेरा मेरा बुलावा ना स्वीकार किया और तेरे बुलाने से आ गया के बात है यो ”
“ना पता बापू, वो रानी का गुसा था तो मैंने सोचा मैं एक कोशिश कर लू बस इतनी ही बात थी ”
“फेर तू साप से बात के करे था ”
“आपने भी तो सुनी होगी बापू ”
“वो ही तो जानना चाहू के म्हारे छोरे ने सर्पभाषा कित आई मैं ना सीख पाया आज तक और तू
“के कह्य बापू सर्पभाषा ना बापू ना मैं तो अपनी बोली में बात करी ० ”
अब घुमा दिमाग देवनाथ का साप ने मनुष्य की बोली में बात कर पर फिर वो बोला- पर सबने देखा तू हिस्स हिस्स करके बात करे था
अब मोहन को भी झटका लगा बोला- ना बापू मैं तो अपनी बोली में ही बात करू था
अब देवनाथ ने भी झटका खाया छोरा बोले अपनी बोली पर सबने देखा वो संप की तरह करे था तो ये क्या बात हुई कुछ बात उसके मन में आई पर फिर वो चुप हो गया मोहन उठ कर बाहर आ गया पर उसको भी कहा चैन था उसे आस थी मोहिनी से मिलने की पर उसे जल्दी ही चकोर ने पकड लिया
“तुम्हारे बिना मेरा जी नहीं लगता ”
“”मेरा भी याद आती है तुम्हारी
“मुझे भी ”“
चकोर बहुत देर तक महल के बारे में ही पूछती रही पर मोहन का मन उलझा था मोहिनी में ही अब करे तो क्या करे जाए तक कहा जाये उसने बताया तो था की वो पहाड़ो की तरफ रहती है वो दूर था जाये तो कैसे जाए रात इसी उधेड़बुन में ही बीती सुबह हुई जैसे तैसे करके दोपहर हुई और वो आ पंहुचा उसी कीकर के पेड के निचे
“मोहिनी मोहिनी पुकारा उसने ”
पर कोई जवाब नही उसने तो कहा था की वो आएगी पर कब मोहन रोने को आया बार बार पुकारे पर कोई नहीं आये हार कर उसने अपनी बंसी निकाली और अपने दर्द को धुन बनाके रोने लगा आँखों से आंसू बहते रहे वो बंसी बजाता रहा और फिर उसे एक आवाज सुनि किसी ने उसे पुकारा था
उसने नजर घुमा के देखा तो मोहिनी आ रही थी धीमे धीमे चलते हुए
मोहन भागकर उस से लिप्त गया रोने लगा पुछा कहा चली गयी थी वो आखिर क्या रिश्ता था उन दोनों का जो इतनी तदप थी एक दुसरे को देखने की इतनी चाह थी दोनों कीकर के निचे बैठ गए मोहिनी कुछ बीमार सी लग रही थी उसकी त्वचा आज चांदी की तरह नहीं दमक रही थी कुछ बुझी बुझी सी थी
मोहन ने पुछा तो मोहिनी ने कहा बुखार सा है ठीक हो जायेगा
मोहन ने उसकी आँखों में देखा और फिर उसे कुछ आयद आया उसने उस दिन वाली घटना बताई मोहिनी को तो उसने अस्चर्या किया ऐसा सर्प तभी मोहन ने पुछा तुम भी तो मेले में थी फिर तुमने नहीं क्या
मोहिनी- नहीं मोहन मैं इस घटना से पहे ही चली गयी थी
“ओह ”
मोहन कई देर तक उस से बात करते रहा वो उसकी सुनती रही सांझ होने को आई फिर मोहन ने अगले दिन का करार किया और वापिस डेरे आ गया अब रात कैसे कटे कभी इधर करवट ले कभी इधर करवट ले मोहन बस दिल में ललक मोहिनी से मिलने की आँखे बंद करे तो मोहिनी दिखे और खोले तो भी
अगले दिन सुबह से शाम तक उसने व्ही इंतजार किया पर वो ना आई मोहन क्या करे फिर सोचा तबियत ख़राब हो गयी होगी एक रात और कटी फिर आई दोपहर अब आई मोहिनी थोड़ी और मुरझा गयी थी ऐसे लग रहा था की जैसे प्राण सेष ही नहीं अपना सर मोहन की गोद में रख के वो लौट गयी
मोहन बार बार उसे पूछे की उसे क्या हुआ है पर वो कुछ ना बताये हार कर मोहन ने उसे अपनी कसम दी मोहिनी मुस्कुराई और फिर उसने मोहन की कसम का मान रखते हुए बता दिया की उसे एक गंभीर रोग हुआ है जिसका बस एक इलाज है की जिस शेरनी ने तीन सर वाले शेर को जन्म दिया है उसका दूध मिल जाये तो
मोहन को कुछ पल्ले नहीं पड़ा उसने फिर से पुछा तीन सर वाला सर मोहन ने आजतक शेर ही नहीं देखा था यहाँ तीन सर वाले शेर की बात थी और शर्त ये की उसकी माँ अपनी मर्ज़ी से दूध दे तो ही मोहिनी का रोग ठीक हो पाए
मोहन ने उसकी पूरी बात सुनी और ये वादा किया की वो कुछ भी करके मोहिनी के लिए वो दूध लाएगा चाहे उसे सात समुन्द्र पार जाना पड़े पर उसे ये काम शीघ्र ही करना था मोहिनी की हालत पल पल गंभीर होती जा रही थी वो डेरे में आया और अपने पिता से तीन सर वाले शेर के बारे में पुछा तो उन्होंने मना कर दिया की ऐसा कुछ नहीं होता है
अब किस् से पूछे वो कौन मदद करे कोई तो पागल ही समझ ले उसको पर उसके पिता ने बताया की राजपुरोहित बहुत ही ज्ञानी है वो अवश्य ही जानते होंगे अगर ऐसा कुछ हुआ तो मोहन ने रात में ही डेरा छोड़ा और महल आया सीधा राजपुरोहित के पास गया और अपनी समस्या बताई उन्होंने बहुत ही गंभीर दृष्टि से मोहन की तरफ देखा फिर बोले- तुम जानते हो क्या कह रहे हो
मोहन- जी अच्छी तरह से
पुरोहित- तो फिर तुम्हे ये भी पता होगा की किसको इसकी जरुरत है
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