RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन ने चूस चूस कर उनको टमाटर की तरह लाल कर दिया अब उसने चकोर के बाकि कपडे भी उतार दिए और उसको पूरी नंगी देख कर वो जैसे पागल ही हो गया था चकोर की भरी भरी टांगे पुष्ट नितम्ब और काले घुंघराले बालो से ढकी छोटी सी हलकी लाल चूत मोहन ने चकोर को लिटाया और उसकी टांगो को फैला दिया
पर तभी चकोर की उसकी माँ की आवाज आई शायद वो इधर ही आ रही थी उसने मोहन को अपने ऊपर से हटाया और जल्दी से अपने कपडे पहने और जैसे ही माँ अन्दर आई उसने दोनों भाई बहनों को गहरी नींद में सोते हुए पाया वो भी उनके पास ही लेट गयी दोनों का दिल उस समय बहुत तेजी से धडक रहा था
दोनों की अपनी अपनी बाते थी काम बनते बनते जो रुक गया था अब सोना ही था अगली सुबह मोहन जरा देर से जागा और जल्दी ही उसकी पेशी अपने पिता के सामने थी
“मैं सुन्यो आजकल तू अजीब सो रहवे कोई परेशानी ”
“ना, बापू सा ”
“”थारी माँ बोल री तीन तीन दिन जंगल में रहबो इसी कुण सी जड़ी खोजबा ज्या सी बता जरा “
“वो बापू सा , वो बापू सा ”
“के हुई, साप सूंघ गो के ”
“कोई बात कोणी, सपेरे को बेटो से, तो जंगल में तो जानो ही पड़े, देख बेटा म्हारे बाद तू ही इ डेरा रो मलिक है अब तू जिम्मेदार बन चार रोज बाद नागपंचमी को मेलो है तो आप भी भोले बाबा रे दर्शन कर्ण वास्ते चलेंगे और मेह चाहवा की इस बार तू भी चले विशेष पूजा होनी है और के पता नागराज भी दर्शन दे दे ”
“जी बापू सा जो थारी आज्ञा ”
मोहन मुड़ा वापिस अब बापू डेरे में था तो वो मोहिनी से मिलने हबी नहीं जा सकता था एक कैद सा लगने लगा था ये डेरा उसको पर बापू के आदेश को वो अनदेखा कर दे अभी इतनी हिम्मत नहीं थी उसकी चकोर भी माँ के साथ मेले जाने की तैयारियों में लगी थी , मोहन का बापू एक माना हुआ सपेरा था ऐसा प्रचलित था की किसी पुरखे को खुद नागराज ने आशीर्वाद दिया था
चार दिन कैसे कटेंगे मोहन के वो सोच रहा था जबकि इधर ऐसा ही हाल संयुक्ता का था वो मोहन से मिलने को छटपटा रही थी पर उसका बेटा राजकुमार पृथ्वी अपनी पढाई पूरी करके नागपंचमी को वापिस आ रहा था तो म्महल को दुल्हन की तरह सजाया गया था
उसी दिन उसका राज्याभिषेक भी था तो पूरी राजधानी में जश्न का माहोल था
हर कोई खुशियों में डूबा था पर संयुक्ता के झांटो में लगी आग उसको परेशान कर रही थी उसे बेटे के आने की खुशी तो थी ही पर साथ ही वो अपनी कामुकता से जूझ रही थी सब लोग अपने अपने विचारो से जूझ रहे थे पर समय से पहले किसी को क्या मिलता है कुक भी नहीं
रात को एक बार फिर चंद्रभान और संयुक्ता संभोगरत थे दोनों का बदन पसीने से नहाया हुआ था रानी घोड़ी बनी हुई थी महाराज उसके नितम्बो को कस के पकडे उसको चोद रहे थे उत्तेजनावश संयुक्ता का चेहरा लाल हुआ पड़ा था अपनी आँखे बंद किये वो अपनी चूत पर पड़ रहे हर धक्के का भरपूर मजा ले रही थी उसकी चूत में महराज का घोडा सरपट सरपट दौड़ रहा था
“आह और जोर से महराज और जोर से ऐसे ही आः आः ”
पुरे कमरे में संयुक्ता की मद भरी आवजे गूँज रही थी महाराज दांत भीचे अपना पूरा जोर लगाते हुए रानी को मंजिल पर पहुचने की पूरी कोशिश कर रहे थे अपने होंठो को दांतों से काट रही थी वो उसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे उसके बदन ने संकेत देने शुरू कर दिए थे की वो अपने चरम की और अग्रसर है
पर तभी महराज का दम फूल गया और वो झड गए संयुक्ता के सारे अरमान एक बार फिर से मिटटी में मिल गए जिस चेहरे पर दो पल पहले असीम आनंद था अब उस पर क्रोध था वो गुस्से में फुफ्कने लगी थी
“महाराज ”
“अब हम क्या करे संयुक्ता, हम तो अपनी तरफ से पूरा करते ही है पर तुम ना, दो रनिया और है वो तो पनाह मांगती है है पर तुम ”
“तुम क्या , अब मैं क्या करू अगर आप मेरी अगन बुझा नहीं पाते है ”
“कभी कभी तुम वेश्याओ की तरह हरकते करती हो अपनी आदतों को सुधारो संयुक्ता ”
महाराजने अपने कपडे पहने और चले गए ,जबकि रानी रह गयी सुलगते हुए वेश्या से तुलना की उसकी , उसकी ये बात उसके मन को चुभ गयी महाराज शब्दों का सहरा लेकर अपनी कमजोरी छुपा रहे थे उसी पल संयुक्ता ने निर्णय किया की अगर उसकी तुलना बेश्या से की गयी है तो वो अब कुछ भी करे अपनी प्यास बुझाने का इंतजाम खुद ही करेगी
आज से महाराज अपनी माँ चुदाय , जाये अपनी उन दोनों रानियों के पास जो उनसे पनाह मांगती है पर संयुक्ता एक शेरनी थी जिसे बस शिकार ही पसंद था उसके मन में आया की अभी के अभी मोहन को बुलवा ले पर उसका बेटा पृथ्वी आने वाला था तो वो कुछ सोच कर चुप रह गयी पर उसकी चुप्पी एक आने वाले तूफ़ान का संकेत थी जो सब कुछ बदल कर रख देने वाला था
तो दिन गुजरे आइ नागपंचमी , राजधानी का महादेव मंदिर आज से पहले कभी इतना नहीं सजा था भव्यता झलक रही थी आज पता नहीं कितनेआभूषण से बाबा का श्रंगार किया गया था ढेरो, बल्कि यु कहू की हजारो नाग आज मंदिर में थे जहा तह पर मजाल क्या जो किसी इन्सान को डर लग रहा हो सब भोले बाबा की कृपा
खुशी दुगनी इसलिए थी की आज राजकुमार पृथ्वी आ रहे थे उनका राज्याभिषेक होना था पर पहले उनको दर्शन करना था बाबा का अपने लाव-लश्कर के साथ महाराज चंद्रभान पधारे तीनो रनिया उनके साथ पर अगर बात की जाये तो संयुक्ता की आभा में बाकि दोनों रानिया जैसे कही खो सी गयी थी
अपने लोगो के साथ मोहन भी आया उसका बाप राज सपेरा था तो महाराज के बाद उसको ही नागराज को दूध पिलाना था सबने महाराज और बाकि लोगो को परणाम किया मोहन और संयुक्ता की नजरे आपस में मिली और दोनों ही तड़प से उठे महाराज ने भोग लगाया फिर मोहन के बापू ने महाराज ने मंदिर के प्रांगन से ही पृथ्वी क राज्याभिषेक की घोषणा की जो की शाम को होना था
रानी का दिल मोहन से मिलने को मचल रहा था पर महाराज के साथ वो नगर के लोगो को तोहफे बाँट रही थी अब कर तो क्या करे मोहन का बापू कुछ लोगो से मिलने चला गया तो मोहन ने सोचा की वो भी नागो को दूध पिला दे भीड़ ज्यादा थी तो अपनी बारी का इंतजार करने लगा तभी उसे अपनी आँखों पर जैसे विश्वास ही नहीं हुआ
उसने सहेलियों के साथ मोहिनी को आते देखा क्या खूब लग रही थी वो मोहन को एक बार तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ की मोहिनी से यु मुलाकात होगी उसकी वो इठलाते हुए उसकी तरफ आ रही थी और फिर उसने अपनी सहेलियों से कुछ कहा वो आगे बढ़ गयी मोहिनी मोहन के पास रुक गयी
“तुम यहाँ ”
“हां, मेले में आया था पर शायद किस्मत में तुमसे मिलना था ”
“अच्छा, किया ये हाथ में क्या है तुम्हारे ”
“दूध है ”
“दिखाओ जरा,”
जैसे ही मोहन ने अपना बर्तन ऊपर किया मोहिनी ने बर्तन को अपना मुह लगाया और गतागत सारा दूध पि गयी मोहन भोचक्का रह गया
“”अरे ये क्या किया “
“इच्छा हुई तो पी लिया वैसे भी किसी की भूख मिटाना से ज्यादा पुन्य मिलता है ना ”
मोहन मुस्कुरा दिया
मोहिनी- मेरे साथ सखिया है और परिवार वाले भी तो मैं ज्यादा बात नहीं कर पाऊँगी पर कल मैं तुम्हे पक्का वही मिलूंगी
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