Hindi Porn Story अनोखा सफर
11-15-2018, 12:31 PM,
#13
RE: Hindi Porn Story अनोखा सफर
तभी विशाला कुटिया में दाखिल होती है उसके हाथ में तलवार रहती है। उसे देखते ही मैं उससे पूछ पड़ता हु " सेनापति विशाला क्या चरक सही कह रहे हैं?"
विशाला क्रोधित होते हुये कहती है " हाँ ये सच है कि कपाला के क़बीले पे पहले मैंने हमला किया और फिर अपने क़बीले पे भी झूठा हमला करवाया ताकि कपाला और आपकी लड़ाई हो ।"
मैंने विशाला से पूछा " आखिर क्यों ?"
विशाला " ताकि आप दोनों में से एक उस लड़ाई में मारा जाये और दूसरे को मैं ठिकाने लगा के क़बीले की सरदार बन जाऊं।"
मैंने फिर विशाला से पूछा " तो क्या तुमने ही रानी विशाखा और रानी त्रिशाला का अपहरण किया है ?"
मेरा सवाल सुन कर विशाला जोर जोर से हँसने लगी । तभी रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कुटिया में प्रवेश करती हैं। रानी त्रिशाला के हाथ बंधे हुए थे तथा रानी विशाखा के हाथ में भी तालवार थी । ये दृश्य देख कर मेरा सर जोर जोर घूमने लगता है रानी विशाखा ने भी मेरे साथ छल किया।
मैंने रानी विशाखा से पूछा " रानी विशाखा आप भी इस षड्यंत्र में शामिल थीं ?"
विशाखा " षड्यंत्र तो आपने किया पहले छल से राजा वज्राराज का वध किया फिर उस क़बीले के सरदार बन गए जिस क़बीले पे मेरा और मेरी बेटी का अधिकार था । अब आपके मुख से ऐसी बातें शोभा नहीं देती हैं महाराज ।"
अब सारी बातें साफ थीं की विशाला और विशाखा ने मिलकर मेरे साथ छल किया है । मैं अब आगे की प्रतिक्रिया के बारे में सोच रहा था कि पुजारन देवसेना विशाखा को बोलती हैं " रानी विशाला मैं आपको आज्ञा देती हूं कि आप रानी त्रिशाला को छोड़ दें।"
ये बात सुनकर विशाखा और विशाला जोर जोर से हँसने लगती हैं । तभी देवबाला आगे आती है और एक कटार पुजारन देवसेना के गले पे रख देती है। इससे पहले की कोई कुछ कर पाता देवबाला पलक झपकते ही कटार पुजारन देवसेना के गले पे फेर देती है। पुजारन देवसेना के गले से रक्त की फुहार निकलने लगती है और उनका शरीर भूमि पे गिर कर तड़पने लगता है । 
मैं देवबाला की तरफ सवालिया दृष्टि से देखता हूं वो मुझसे कहती है " मुझे भी देवी बनना था महाराज और आपकी दया से मैं भी गर्भवती हो गयी हूँ पर पुजारन देवसेना के रहते मैं देवी नहीं बन सकती थी तो मुझे इन्हें रस्ते से हटाना पड़ा।"
भूमि पर गिरा देवसेना का शरीर अब शांत पड़ चूका था और हर तरफ रक्त फ़ैल गया था। तभी चरक और कपाला एक साथ विशाखा और विशाला पे टूट पड़ते हैं। उनकी आपसी लड़ाई का फायदा उठा के मैं रानी त्रिशाला के पास आता हूं और उनके हाथ खोल देता हूं। मैं रानी त्रिशाला से कहता हूं " रानी आप यहाँ से बाहर निकलें और अपनी जान की रक्षा करें।"
रानी विशाला से जाने का कहकर मैं घूम कर कुटिया में हो रहे युद्ध पे नज़र डालता हु पर तभी मेरी पीठ में पसलियों के बीच कुछ नुकीला घुसता हुआ महसूस होता है। मुझे असहनीय पीड़ा होती है और मेरे मुह के रास्ते खून निकलने लगता है। किसी तरह मैं घूम कर पीछे मुड़ता हूं तो देखता हूं त्रिशाला एक छोटी सी रक्तरंजित कटार लिए खड़ी रहती है। उसकी आँखों में विजय की चमक रहती है । किसी तरह मेरे मुख से निकलता है "क्यों?"
वो कहती है " आश्चर्य न करे महाराज राजा वज्राराज मेरे भी पिता थे और आज मैं उनकी हत्या का बदला लूंगी।"
ये कहकर वो दुबारा वो कटार मेरे पेट में घुसा देती है। मुझे लगता है कि जैसे किसी ने मेरे फेफड़ो में से हवा निकाल दी हो। मेरी आँखे धीरे धीरे बंद होंने लगती हैं। मैं अपनी अधखुली आँखों से अपनी मौत का इंतजार कर रहा होता हूं कि तभी देवबाला अपनी कटार त्रिशाला के गले पे फिरा देती है। त्रिशाला भी पुजारन देवसेना की तरह भूमि पर गिर कर तड़पने लगती है। मेरे भी पैर अब जवाब देने लगते हैं और आँखे बंद होने लगती हैं । बस होश खोने से पहले जो आखिरी शब्द मैं देवबाला के मुँह से सुनता हूं वो रहते हैं " मैंने आपको दिया वचन निभाया आपकी रक्षा की महाराज ।"
मेरी आँख खुलती है तो पूरे शरीर में तीव्र पीड़ा का एहसास होता है । सामने देखता हूं तो चरक और कपाला बैठे होते हैं।
मैं चरक से कुछ पूछने की कोशिश करता हु तो मेरा मुँह लहू से भर जाता है। मेरी स्थिति देख चरक बोल पड़ते हैं " महाराज अभी आराम करिये अभी आपके घाव भरे नहीं हैं।"
मैंने रक्त थूकते हुए पूछा " मैं कहाँ हु ?"
चरक " महाराज आप सरदार कपाला के क़बीले पे हैं।"
मैंने फिर पूछा " क्या हुआ वहाँ पर "
चरक " महाराज पुजारन देवसेना और त्रिशाला मारी गयीं । हमने भी किसी तरह विशाखा और विशाला को परास्त किया पर वो भागने में सफल हो गईं। जब हम वहां से बाहर निकले तो हमने देखा की आप कुटिया के बहार पड़े थे आपके पास देवबाला थी वो आपकी चोटो का उपचार कर रही थीं। उसने हमसे आपको अपने साथ ले जाने को कहा और हम आपको अपने साथ लेके आ गए।"
मैंने पुनः पूछा " और मेरा कबीला "
चरक " महाराज वो कभी आपका था ही नहीं सेनापति विशाला और रानी विशाखा पहले भी क़बीले की आधिकारिक राजा थी और अब भी। "
मैंने कपाला की तरफ देखते हुए कहा " सरदार कपाला मुझे अपने क़बीले में आश्रय देने का धन्यवाद। आप अगर बुरा न माने तो मैं एक बात कहूं।"
कपाला " बिलकुल महाराज "
मैं बोला " सरदार कपाला मुझे लगता है कि विशाला और विशाखा आपके क़बीले पे हमला करने की ताक पे होंगी । आपको अपने क़बीले को किसी सुरक्षित स्थान पे ले जाना चाहिए।"
कपाला " मैं कुछ समझा नहीं महाराज "
मैं " महाराज कपाला आपका कबीला चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है और निचले स्थान पे है इसलिए आक्रमण की स्थिति में आप को नुक्सान होगा जैसा की पिछली बार हुआ था।"
कपाला " महाराज आपकी बात सही है पिछली बार आपके हमले ने मेरी कमर ही ताड दी थी और मैं दुबारा उस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं हूं। आप ही बताइए मुझे क्या करना चाहिये।"
मैं " महाराज आप को ऊपर पहाडियो पे चला जाना चाहिए उससे आप ऊंचाई पे पहुच जायेंगे और अपने शत्रु से लड़ने में अधिक सक्षम हो पाएंगे। आप ऊंचाई से अपने शत्रु की गतिविधि पे आसानी से नजर रख सकते है और उसके मुताबिक हमला कर सकते हैं।"
कपाला " आप उचित कह रहे हैं महाराज मैं आज ही क़बीले को ऊपर पहाड़ियों पे ले जाने का प्रबंध करता हूँ।"
चरक " महाराज मुझे लगता है आपको अब आराम करना चाहिए।"
मैं " चरक जी अब मैं आराम विशाला और विशाखा की मृत्यु के बाद ही करूँगा मैं कितने दिन में चलने फिरने में समर्थ हो जाऊंगा ?"
चरक " महाराज आपके घाव बहुत गहरे हैं जरा भी असावधानी आपकी मृत्यु का कारण हो सकती है।"
मैं " मुझे मृत्यु का भय नहीं है चरक जी अब भय सिर्फ विश्वासघात से लगता है और मैं तब तक चैन से नहीं सो पाउँगा जब तक मैं विशाला और विशाखा को मृत्यु शैय्या पे न लिटा दू।"
चरक " ठीक है महाराज जैसी आपकी इच्छा पर अभी आप आराम करिये हम चलते हैं।"

मेरे कहे अनुसार सरदार कपाला ने अपना कबीला पहाड़ियों पे स्थानांतरित कर दिया था।धीरे धीरे मेरे जख्म भरने लगे थे और मैं अब अपने दैनिक काम बिना किसी सहारे के कर पा रहा था। पिछले कुछ दिनों की घटनाओं ने मुझे अंदर से हिला दिया था अब मैं किसी पे विश्वास करने की स्थिति में नहीं था न ही कपाला पर और न ही चरक पर। मैं बस अपना बदला लेना चाहता था पर वो बिना कपाला की सेना के कभी पूरा नहीं हो सकता था। मैं अपनी आगे की योजना और रणनीति पे रोज घंटो मंथन करने लगा।
एक दिन कपाला मेरे पास आया उसने मेरा परिचय अपनी पत्नी और पुत्री से करवाया । दोनों देखने में तो बहुत सुंदर नहीं थी पर बदन से काफी भरी हुई थीं। दोनों के वक्ष और नितंब भी काफी सुडौल थे। दोनों को देख कर कई दिन से चूत का प्यासा लंड झटका खा गया।
कपाला ने परिचय करवाते हुए कहा " महाराज ये मेरी रानी रूपवती और मेरी पुत्री रूपम हैं। "
उन दोनों ने मुझे झुक कर प्रणाम किया । मैंने भी उनका अभिवादन स्वीकार किया। 
कुछ देर सभी ने मिलकर बात की और फिर वे सब कुटिया से चले गए।
Reply


Messages In This Thread
RE: Hindi Porn Story अनोखा सफर - by sexstories - 11-15-2018, 12:31 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,535,471 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 548,233 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,246,696 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 942,680 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,673,823 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,097,779 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,979,934 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,151,765 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,067,960 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 288,197 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)