RE: Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
गतान्क से आगे.....................
उस दिन मेरी जेठानी घर वापिस आ गयी….पर विजय तब तक मेरी चूत का दीवाना बन चुका था…उसे जब भी मोका मिलता वो मुझे चोद देता….पर अब वो मुझे हर बार सन्तुस्त नही कर पाता….क्योंकि हमेशा हमे किसी से पकड़े जाने का डर रहता था…
एक दिन रात के 12 बजे की बात है…घर मे सब सो रहे थे….जेठ जी ने मुझे 12 बजे घर पीछे वाले हिस्से मे आने को कहा था….जेठ जी ने वहाँ एक पुरानी चारपाई भी लगा ली थी…उस रात मे जब चारपाई पर लेटी, अपनी टाँगों को उठा कर जेठ जी का लंड अपनी चूत मे ले रही थी…मेरी जेठानी ने हमे रंगे हाथों पकड़ लिया….
शांति: ये क्या कर रहे हो तुम दोनो….साले मदर्चोद कहीं के….अब समझी क्यों तो मुझे नही चोदता…साले इस रांड़ की चूत मे कोई नयी चीज़ लगी है क्या….कलमूहि तुझे मेरा ही घर मिला था…उजाड़ने को
वो हमे आधी रात को उँची आवाज़ मे गालियाँ दे रही थी…शांति एक दम भड़क गयी थी…और बोलते-2 वो अपने घर की तरफ जाने लगी…जेठ जी भी उसके पीछे-2 चले गये…मेने डर के मारे जल्दी से उठ कर अपने कपड़े ठीक किए…डर से मेरी जान निकली जा रही थी…और मन मे सोच रही थी…कि कहीं किसी ने सुन ना लिया हो…मे तो किसे को मुँह दिखाने के लायक नही रहूंगी…
जब मे घर आए तो सब सो रहे थे…मेने राहत के साँस ली…पर उस रात मे डर के मारे सो नही पे थी...सुबह क्या होने वाला है…ये सोच-2 कर मे हाथ पैर डर के मारे काँप रहे थे…
खैर सुबह .…चारो तरफ सन्नाटा सा पसरा हुआ था…मेरा दिल अब भी डर के मारे जोरों से धड़क रहा था….नेहा स्कूल जा चुकी थी…जैसे ही मेरे सास ससुर खेतों के लिए गये…मेरी जान मे जान आई….मेने उनके जाने के बाद गेट को बंद नही किया था…मेरी समझ मे नही आ रहा था कि आख़िर मे करूँ तो किया करूँ…मे अपने ख्यालो मे खोई हुई चारपाई पर बैठी थी….
तभी अचानक किसी के आने के आहट से मे अपने ख्यालो की दुनिया से बाहर आई….सामने मेरी जेठानी शांति खड़ी थी…उसके फेस पर गुस्सा भरा हुआ था….वो अंदर आई और बड़े गुस्से से बोली
शांति: देख रचना मेने तुझे अपनी छोटी बेहन की तरह माना है…पर तूने अपनी सारी हंदें पार कर दी है….तुझे ज़रा भी शरम नही आई…अर्रे डायन भी सात घर छोड़ देती है…पर तुझे मेरा ही घर मिला था बर्बाद करने के लाए…
मे: (एक दम से उसके सामने गिड़गिदाने लगी) दीदी मुझे माफ़ कर दो…मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी….मे कसम से कहती हूँ कि मे अब भाई साहब के साथ ऐसा कोई संबंध नही रखूँगी….
शांति: मे तुम्हें माफ़ नही कर सकती…क्योंकि जो तूने किया है…वो माफी के लायक है ही नही….पर हां मे ये बात किसी को नही बताउन्गि…पर अगर आज के बाद मुझे किसी ऐसी बात का पता चला…तो याद रखना मुझसे बुरा कोई नही होगा…
और शांति पलट कर चली गयी…मे वहीं नीचे बैठी रोने लगी….फिर थोड़ी देर बाद मे उठ कर हाथ मुँह धोने चली गयी…पर मन को इस बात के तसल्ली थी, कि कम से कम शांति हमारे नाजायज़ रिश्ते के बारे मे किसी को नही बताएगी….
दिन फिर से गुजरने लगे….उस घटना का असर लगभग मुझ पर ख़तम हो चुका था…पर मेने अपने आप को इस बात के लिए पक्का कर लिया था…कि मे आगे से ऐसा कोई काम नही करूँगी…जिसका असर मेरी और नेहा की जिंदगी पर पड़े…क्यों कि अब वो भी जवानी की दहलीज पर खड़ी थी…
आज गोपाल को लुधियाना गये हुए, 11 महीने हो गये…उस दिन मे घर पर झाड़ू लगा रही थी…बाहर का गेट खुला हुआ था…नेहा घर पर ही थी…उसके 10थ के एग्ज़ॅम ख़तम हो चुके थी…और रिज़ल्ट आने मे अभी महीने थे….तभी गोपाल मेरे सामने आ कर खड़े हो गये…घर के सब लोग आँगन मे बैठे हुए थे…गोपाल को देख सब ख़ुसी से भर उठे…घर मे चारो तरफ ख़ुसी का महॉल सा बन गया….
उस दिन रात को मे जब गोपाल को खाना परोस रही थी….
गोपाल: रचना इस बार मे तुम्हें अपने साथ ही लेकर जाउन्गा….
मे: पर वो मा और पिता जी
गोपाल: बड़े भाई साहब हैं ना….आख़िर वो भी उनके बेटे हैं…मे सुबह उनसे बात कर लूँगा…
अगले दिन गोपाल ने विजय भाई साहब से बात कर ली…और वो मान भी गये….और मे गोपाल के साथ लुधियाना जाने के तैयारी करने लगी…
2 मे महीने का दिन आज भी मुझे याद है….जब मे अपने गाँव और सुसराल से बहुत दूर जा रही थी…एक नये शहर मे….यहाँ की जिंदगी हमारे गाँव से बहुत ही अलग किस्म की थी….मे नेहा के साथ अपने पति के साथ लुधियाना आ गयी….गोपाल ने वहाँ पर एक रूम रेंट पर ले रखा था…गोपाल नेहा को आगे पढ़ाने के हक़ मे नही थे…क्योंकि उनका मानना था, कि अगर बेटी ज़्यादा पड़ी लिखी हो गी…तो उसके लिए उसके काबिल लड़का ढूँढने मे पेरशानी होगी…और हमारी आर्थिक स्थिति भी हमारा साथ नही दे रही थी….और शहर मे वैसे भी खर्चा कुछ ज़्यादा ही होता था…
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