RE: Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
विजय: जान अब तुम्हें रात को आने के कोई ज़रूरत नही है…तुमने मेरे लंड को अपनी चूत का पानी पिला कर आज के लिए इसकी प्यास बुझा दी है….अच्छा चलो जाकर गेट खोलो मुझे बाहर जाना है…
मेने बाहर आकर गेट खोला…जेठ जी बाहर निकल गये…और मे अपने रूम मे आ गयी…और चारपाई पर आकर लेट गयी…मे आज पूरी तराहा सन्तुस्त थी…आज मेरी बरसों के प्यास बुझ गयी थी…
शाम ढल चुकी थी …आसमान मे अंधेरा होने लगा…मेरे सास ससुर और बेटी घर वापिस आ चुके थे और, मे खाना बनाने किचन मे चली गयी…उस रात खाना खाने के बाद मुझे ऐसे नींद आई, कि मे बयान नही कर सकती…
अगली सुबह मे रोज की तराहा सुबह 5 बजे उठ कर दूध दोहने घर के पीछे गयी…और दूध दोहने लगी…मुझे नही मालूम के जेठ जी भी दूध दोहने आए हुए थे…मे दूध ले कर वापिस जाने लगी….तो मुझे पीछे से जेठ जे ने पुकारा…मेने पीछे मूड कर देखा तो, वो उस झोपड़ी नुमा कमरे के दरवाजे पर खड़े थे….जहाँ वो अपनी भैंसॉं को बाँधते हैं….जब मेने उन्हे देखा, तो उन्होने मुझे इशारे से अपनी तरफ आने को कहा…
आसमान मे अभी भी अंधेरा छाया हुआ था....ना चाहते हुए भी मेरे कदम उनकी तरफ बढ़ने लगे….जब मे डोर तक पहुची तो उन्होने मेरा हाथ पकड़ कर अंदर खींच लिया…मेने उस समय सारी और ब्लाउस पहना हुआ था…और अपनी चुचियो को अपनी दुपपते से ढक रखा था….उनके खींचने से मे एक दम अंदर आ गयी….अंदर आते ही उन्होने दूध की बालटी मेरे हाथ से ले ली….और एक साइड मे रख दी….
विजय: और कैसी हो रचना….रात को अच्छी नींद आई होगी…..अगर कोई मरद अपने लंड से किसी की चूत का पानी निकाल दे…तो उस लुगाई को रात मे बहुत अच्छी नींद आती है…..
मे अपने जेठ जी के मुँह से ऐसे बातों को सुन कर, एक दम से शर्मा गयी….अब उनके कही गयी चूत लंड और चुदाई की बातें मुझे भी अच्छी लगने लगी थी…पर मे बिना कुछ बोले चुप चाप खड़ी रही….
उन्होने ने मुझे अपनी तरफ खींच के अपने से सटा लिया….और जो दुपट्टा मेने अपने ब्लाउस के ऊपेर ले रखा था…उन्होने ने उसे निकाल कर एक तरफ टांग दिया…और मेरे ब्लाउस के ऊपेर से मेरी चुचियो को मसलने लगे…मे उनकी बाहों मे कसमसाने लगी…उन्होने ने मेरे होंटो को अपने होंटो मे ले लिया….और चूसना चालू कर दिया…
मेरे हाथ खुद ब खुद उनकी पीठ पर चले गये…और मे उनकी छाती से चिपक गयी…उनके हाथ भी मेरे पीठ पर आ गये….और पीठ से होते हुए नीचे आने लगे…मेरे बदन मे एक बार फिर से मस्ती छाने लगी…चूत मे फिर से एक बार लंड को लेने के लिए खुजली होने लगी….
अचानक उन्होने ने मुझे उल्टा कर दिया….अब मेरी पीठ उनकी तरफ थी…उन्होने ने मेरे पेटिकॉट को ऊपेर उठाया….और मुझे दीवार के सहारे आगे की तरफ झुका दिया…मेने अपनी हथेलयों को दीवार से सटा लिया…उन्होने फिर अपने घुटनो को थोड़ा सा मोड़ कर नीचे झुक कर अपने लंड को पीछे से मेरी चूत के छेद पर टिका दिया…मेरे अंदर वासना के लहर दौड़ गयी…और मेरे मुँह से आह निकल गयी…
चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगी….उन्होने ने मेरी कमर को पकड़ कर आगे की तरफ धक्का मारा….लंड का सुपाड़ा मेरी चूत की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर घुस गया…और दो तीन धक्को मे पूरा का पूरा लंड मेरी चूत मे समा गया था….जैसे ही लंड का सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से टकराया….मेरे बदन मे आग सी लग गयी…मेने अपनी चूत को उनके लंड पर और ज़ोर से दबा दिया….
थोड़ी देर शांत रहने के बाद उन्होने ने मेरी कमर को पकड़ कर तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए….लंड तेज़ी से अंदर बाहर होने लगा….मे पूरी तरह मस्त हो चुकी थी…आज वो बहुत तेज़ी से अपने लंड को मेरी चूत के अंदर बाहर कर मुझे चोद रहे थे…मुझे उनके लंड की नसे अपनी चूत मे फुलति हुई महसूस हो रही थी….कोई 5 मिनट की तेज और लगतार चुदाई मे ही उनके लंड ने पानी छोड़ दिया…और वो हाँफने लगे…मेरी चूत मे अभी भी आग लगी हुई थी…और मे उनके पानी छोड़ रहे लंड पर अपनी चूत को पीछे की तरफ दबाने लगी…पर तब तक लंड ढीला पढ़ चुका था…और उनका लंड सिकुर कर मेरी चूत से बाहर आ गया था…मे तेज सांस लेते हुए उनकी तरफ घूम कर उन्हे देखने लगी…
विजय: (मुझे अपनी तरफ देखता देख कर) सॉरी रचना आज मे अपने आप पर कंट्रोल नही रख पाया…क्या करूँ रचना तुम्हारी चूत इतनी टाइट और गरम है…कि लंड अंदर जाते ही पानी छोड़ देता है…
मे उनकी बात सुन कर एक दम से शर्मा गयी…और अपना पेटिकॉट नीचे करके…अपना दुपपता लिया….और दूध के बालटी उठा कर घर की तरफ जाने लगी…घर पहुच कर मे अपने काम मे लग गयी…नाश्ता बनाया और बेटी को तैयार करके स्कूल भेज दिया..
क्रमशः.................
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