RE: Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
मे रोती रही, गिड्गिडाति रही, पर उसने मेरे एक ना सुनी,और अपना लंड मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा… मेरी चूत से खून निकल कर मेरी जाँघो तक फेल चुका था..खून निकलने का पता मुझे सुबह चला, जब मे सुबह कपड़े पहनने के लिए उठी थी..दर्द के मारे मेरी जान निकली जा रही थी…पर दरिंदे ने मुझ पर कोई तरस नही खाया…ना ही उसने मुझे प्यार किया, ना ही मेरी चुचियो को मसला, ना ही चूसा बस अपना लंड डाल कर, वो मुझे पेले जा रहा था…मे उसके भारी बदन के नीचे पड़ी दर्द को सहन कर रही थी…5 मिनट लगातार चोदने के बाद,उसका बदन अकडने लगा, और उसके लंड से पानी निकल गया…और मेरे ऊपेर निढाल होकर गिर गये…उसका सारा वजन मेरे ऊपेर था..मेने गोपाल को कंधों से पकड़ कर साइड करने के कॉसिश की….पर उसका वेट मुझसे कहीं ज़्यादा था..आख़िर कार वो खुद ही उठ कर बगल मे निढाल होकर गिर गया…
मेने राहत की साँस ली… मे अभी भी रो रही थी…मेने अपने पेटिकॉट को नीचे किया और, गोपाल की तरफ पीठ करके लेट गयी…वो तो 5 मिनट मे ही झाड़ कर सो गया था…उसके ख़र्राटों की आवाज़ से मुझे पता चला… मे बाथरूम जाना चाहती थी… पर मेरा पूरा बदन दुख रहा था… मेरे चूत सूज चुकी थी…इसलिए मे उठ भी ना
पे…और वहीं लेटे -2 मुझे कब नींद आ गये…मुझे नही पता…उसके बाद मुझे तब होश आया, जब मेरी सास ने मुझे सुबह उठाया…
मेरे सारे अरमान एक ही पल मे टूट गये थे… मे सोचने लगी काश के मेने मा को मना कर दिया होता…पर होनी को कोन टाल सकता है…अब यही मेरा जीवन है…मेने अपने आप से समझोता कर लिया…मेरी जिंदगी किसी मशीन की तरह हो गयी…दिन भर घर का काम करना, और रात को गोपाल से चुदाना यही मेरी नियती बन गयी थी…कुछ दिनो के बाद मेरी चूत थोड़ी सी खुल गयी…इस लिए अब मुझे दर्द नही होता था…पर गोपाल अपनी आदात के अनुसार, रोज रात को मेरे पेटिकॉट को ऊपेर उठा कर मुझे चोद देते… आज तक उन्होने मुझे कभी पूरा नंगा भी नही किया…
गोपाल जिस गाँव मे रहते थे…उस गाँव की औरतो से भी धीरे -2 मेरी पहचान होने लगी…उनकी चुदाई की बातों को सुन मे एक दम से मायूस हो जाती…पर मेने कभी अपने दिल की बात किसी से नही कही…बस चुप-चाप घुट-2 कर जीती रही…गोपाल मुझे ना तो शरीरक रूप से सन्तुस्त कर पाया, और ना ही उसे मेरे भावनाओ की कोई परवाह थी….दिन यूँ ही गुज़रते गये…मेरा ससुराल एक साधारण सा परिवार था…मेरे पति गोपाल ना ही बहुत ज़्यादा पढ़े लिखे थे, और ना ही कोई नौकरी करते थे…मेरे जेठ जी बहुत पढ़े लिखे आदमी थे…घर की ज़मीन जायदाद ज़्यादा नही थे… इसलिए घर को चलाना भी मुस्किल हो रहा था…जेठ जी सरकारी टीचर थे…पर वो अलग हो चुके थे…. ज़मीन को जो हिस्सा मेरे पति के हिस्से आया तो उसके भरोसे जीवन को चलना ना मुनकीन के बराबर था…
टाइम गुज़रता गया… पर टाइम के गुजरने के साथ घर के खर्चे भी बढ़ते गयी…मेरे शादी को 10 साल हो चुके थी…मे 28 साल की हो चुकी थी…पर मेरे कोई बच्चा नही हुआ था…और मे बच्चा चाहती भी नही थी…क्योंकि दीदी की बेटी को जो अब 14 साल की हो चुकी थी उसके खर्चे ही नही संभाल रहे थे…लड़की का नाम नेहा है… वो मुझे मा कह कर ही पुकारती थी…नेहा पर जवानी आ चुकी थी… उसकी चुचियो मे भी भराव आने लगा था…वो जानती थी कि मे उसकी असली मा नही हूँ, पर अब मुझमे वो अपनी मा को ही देखती थी…अब घर के हालत बहुत खराब हो चुके थे…घर का खरच भी सही ढंग से नही चल पा रहा था…
एक दिन सुबह मैं जल्दी उठ कर घेर मे गाय को चारा डालने गई तो मैने देखा की मेरा जेठ विजय मेरी जेठानी शांति से चिपका हुआ है और उसकी चुचियो को मसल रहा है मेरा हाथ इतना सेक्सी सीन देख कर खुद ही मेरी चूत पर चला गया मैं अपनी चूत मसल्ने लगी फिर मुझे होश आया कि कहीं वो दोनो मुझे देख ना ले इसलिए मैं वापस आने लगी लेकिन शायद उन्होने मुझे देख लिया था
शांति कपड़े ठीक करके दूध धोने बैठ गयी…और विजय बाहर आने लगा…मे एक दम से डर गयी…और वापिस मूड कर आने लगी…बाहर अभी भी अंधेरा था…मे अपने घर मे आ गयी..पर जैसे ही मे डोर बंद करने लगी…विजय आ गया, और डोर को धकेल कर अंदर आ गया…
मे: (हड़बड़ाते हुए) भाई साहब आप, कोई काम था….(मेरे हाथ पैर डर के मारे काँप रहे थे…)
विजय: क्यों क्या हुआ… भाग क्यों आई वहाँ से… अच्छा नही लगा क्या?
मे: (अंजान बनाने का नाटक करते हुए) कहाँ से भाई साहब मे समझी नही…
वो एक पल के लिए चुप हो गया….और मेरी तरफ देखते हुए उसने अपना लंड लूँगी से निकाल लिया…और एक ही झटके मे मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख लिया….
मे: ये क्या कर रहे हैं भाई साहब? छोड़ो मुझे (गुस्से से बोली)
विजय: अब मुझसे क्या शरमाना मेरी जान….वहाँ तो देख देख कर अपनी चूत को मसल रही थी…अब क्या हुआ…
मे: (अपने हाथ को छुड़ाने के कॉसिश करते हुए गुस्से से बोली) देखिए भाई साहब आप जो कर रहे है, ठीक नही कर रहे है…मेरा हाथ छोड़ दो…
विजय ने अपने होंटो पर बेहूदा सी मुस्कान लाते हुए मुझे धक्का दे कर दीवार से सटा दिया…और मेरे दोनो हाथों को पकड़ कर मेरी कमर को पीछे दीवार से सटा दिया…..मेरी सारी का पल्लू नीचे गिर गया…और मेरे ब्लाउस मे तनी हुई चुचिया मेरे जेठ जी के सामने आ गयी…उन्होने एक हाथ से मेरे दोनो हाथों को पकड़ कर दीवार से सताए रखा…फिर वो पैरो के बल नीचे बैठ गये…और मेरी सारी और पेटिकॉट को ऊपेर करने लगे…मेरी तो डर के मारे जान निकली जा रही थी…कि कहीं कोई उठ ना जाए…घर पर बच्चे और सास ससुर थे….अगर वो मुझे इस हालत मे देख लेते तो मे कहीं की ना रहती…..मे अपनी तरफ से छूटने का पूरी कोशिश कर रही थी…पर उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी….उसने तब तक मेरे सारी और पेटिकॉट को मेरी जाँघो तक उठा दिया था….और अपनी कमीनी नज़रों से मेरी दूध जैसी गोरी और मुलायम जाँघो को देख रहा था….अचानक उन्होने ने मेरी सारी और पेटिकॉट को एक झटके मे मेरे चुतडो तक ऊपेर उठा दिया…मेरी ब्लॅक कलर की पॅंटी अब उनकी आँखों के सामने थी…इससे पहले कि मे और कुछ कर पाती या बोलती, उसने अपने होंटो को मेरी जाँघो पर रख दिया…मेरे जिस्म मे करेंट सा दौड़ गया…बदन मे मस्ती और उतेजना की लहर दौड़ गयी…और ना चाहते हुए भी मुँह से एक कामुक और अश्लील सिसकारी निकल गयी…जो उसने सुन ली वो तेज़ी से अपने होटो को मेरी जाँघो पर रगड़ने लगा…मेरे हाथ पैर मेरा साथ छोड़ रहे थे…उन्होने ने मेरे दोनो हाथों को छोड़ दिया…और अपने दोनो हाथों को मेरी सारी और पेटिकॉट के नीचे से लेजा कर मेरे चुतडो को मेरी पनटी के ऊपेर से पकड़ लिया….मेरा जिस्म काँप उठा…आज कई महीनो बाद किसी ने मुझे मेरे चुतडो पर छुआ था…वो मेरी जाँघो को चूमता हुआ ऊपेर आने लगा…और मेरी पॅंटी के ऊपेर से मेरी चूत की फांकों पर अपने होंटो को रख दिया ….मे अपने हाथों से अपने जेठ के कंधों को पकड़ कर पीछे धकेल रही थी…पॅंटी के ऊपेर से ही चूत पर उनके होंटो को महसूस करके मे एक दम कमजोर पड़ गयी…
मे: (अब मेने विरोध करना छोड़ दिया था बस अपने मर्यादा का ख़याल रखते हुए मना कर रही थी) नही भाई साहब छोड़ दो जी…कोई आ जाएगा…. अहह नही ओह्ह्ह्ह बस बच्चे उठ जाएँगे ओह्ह्ह ओह्ह्ह्ह
क्रमशः.................
|