RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
ऋतु ने दरवाजा खोला. उशके चेहरे पर चिंता और परेशानी सॉफ दीखाई दे रही थी.
मैने दरवाजा बंद किया और पूछा, “कैसी हो जान”
ऋतु मेरे गले लग गयी और रोते हुवे बोली, “कहाँ रह गये थे तुम, मुझे बहुत चिंता हो रही थी, फोन भी नही किया तुमने”
“ऋतु तुम मेरे गले लग कर खड़ी हुई हो. तुम्हे प्यार करने का ये मतलब नहीं है कि तुम मेरे शरीर से खेलोगी, चलो हटो” ---- मैने हंसते हुवे कहा
ऋतु हट गयी और बोली, “सॉरी ग़लती हो गयी, पर तुम क्या एक फोन नही कर सकते थे, मुझे अपनी जान कहते हो पर तुम्हे मेरी कोई चिंता नही है”
“सॉरी जान बहुत बिज़ी था, ध्यान ही नही रहा कि कब 12 बज गये, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो” ---- मैने ऋतु के कंधे की और हाथ बढ़ा कर कहा
पर वो पीछे हट गयी और बोली, “चलो हाथ धो लो मैं खाना लगाती हूँ”
ऋतु किचन में चली गयी. बहुत नाराज़ लग रही थी. जब आपका प्यार नाराज़ हो तो कुछ अछा नही लगता. मैने पहली बार उसे ऐसे नाराज़ होते हुवे देखा था.
ऋतु किचन में मेरे लिए खाना गरम कर रही थी.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि कैसे मनाउ मैं ऋतु को. में किचन के डोर में खड़ा खड़ा ऋतु को देखता रहा. उशके नज़दीक जाने की हिम्मत नही हो रही थी
पर फिर भी मुझ से रहा नही गया और मैने ऋतु को पीछे से बाहों में भर लिया और कहा, “सॉरी जान आगे से ऐसा नही होगा. आगे से कभी लेट हुवा तो तुरंत तुम्हे फोन करके बताउन्गा, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो”
“तुम्हारी मर्ज़ी है जतिन, मुझे तो बस तुम्हारी चिंता हो रही थी. बुरे बुरे ख्याल आ रहे थे कि पता नहीं तुम कहाँ रह गये” ---- ऋतु ने कहा
अजीब बात थी ऋतु ने मुझे हटने को नही कहा. मैने फिर मेरी जान को बहुत अच्छे से अपनी बाहों में दबोच लिया
मैने कहा, “ऋतु मैं तुम्हे बाहों में भर कर खड़ा हूँ, तुम मुझे डाँट कर हटा क्यों नही रही हो, मुझे डाँट कर वही डाइलॉग बोलो ना शरीर से खेलने वाला…. प्लीज़”
“तुम मेरे पति हो, अब क्या ये भी बताना पड़ेगा तुम्हे, मैं चाहे चाहूं या ना चाहूं तुम मेरे साथ कुछ भी कर सकते हो, तुम्हारा मुझ पर पूरा अधिकार है” --- ऋतु ने कहा
मैं तुरंत हट गया और बोला, “तुम्हारी मर्ज़ी के बिना मैं कभी कुछ नही करूँगा जान, अपने प्यार को मैं कभी दुख नही दूँगा”
ऋतु घूम कर मेरे गले लग गयी और बोली, “जतिन आइ लव यू…. मुझे ऐसे मत सताया करो. पता है दिल बहुत भारी हो रहा था. एक फोन भी नही कर सके तुम. इतना बिज़ी कोई नही होता, मैं 6 बजे से आँखे बिछाए बैठी हूँ. एक एक मिनूट बहुत मुश्किल से बीता है मेरा”
शादी के बाद पहली बार हम ऐसे गले लग कर खड़े थे. वक्त मानो ठहर गया था. मुझे बहुत अछा लग रहा था खुद को ऋतु के इतने करीब पा कर. मुझे ये अहसाश हो रहा था की शायद ऋतु अब उस सफ़र पर चलने के लिए तैयार है जो कि एक पति, पत्नी का होता है.
मैने ऋतु के चेहरे को अपने हाथो में थाम लिया
उसने अपनी आँखे बंद कर ली.
मैने आगे बढ़ कर ऋतु के होंटो पर अपने होन्ट टीका दिए.
और फिर मेरे और ऋतु के होंटो के बीच वो किस हुई जीशकि मैने सपने में भी कल्पना नही की थी.
हमारे होन्ट क्या जुड़े, ऐसा लग रहा था जैसे की हम दोनो की आत्मा जुड़ गयी हो और जुड़ कर एक हो गयी हो. बहुत प्यारा अहसाश हो रहा था मुझे ऋतु को किस करते हुवे. जिस तरह मैं ऋतु के होंटो को अपने होंटो में दबाता था उशी तरह ऋतु भी मेरे होंटो को अपने होंटो में दबाने की कोशिश करती थी. मेरे होंटो की हर एक मूव्मेंट का जवाब ऋतु अपने होंटो की सिमिलर मूव्मेंट से दे रही थी. कोई 15 मिनूट हम यू ही किचन में खड़े खड़े एक दूसरे को बेतहासा किस करते रहे. हमारी साँसे भी तेज तेज चलने लगी थी.
ऐसी किस के बाद मुझे बिल्कुल विश्वास हो गया कि एक आदमी और औरत के बीच किस प्यार का इज़हार करने का सबसे प्यारा तरीका है. एक दूसरे को किस करते करते मैं और ऋतु प्यार की उस गहराई तक पहुँच गये जिसकी हमने कल्पना भी नही की थी.
जिस तरह हम एक दूसरे को किस कर रहे थे, उस से ऐसा लग रहा था कि हम एक दूसरे के लिए जन्मो से प्यासे हैं.
ऋतु अचानक हट गयी और बोली, “चलो खाना खा लो, तुम्हे भूक लगी होगी”
“नहीं आज भूक नहीं है” --- मैने कहा और कह कर फिर से ऋतु के होंटो को अपने होंटो में दबा लिया.
हम फिर से उस प्यारी सी किस में खो गये. मेरे लिए खुद को संभालना मुश्किल हो रहा था.
मैने ऋतु को अपनी गोदी में उठा लिया और उसके बेडरूम की तरफ चल पड़ा
“जतिन ये क्या कर रहे हो, खाना ठंडा हो रहा है” --- ऋतु ने कहा
“हो जाने दो ठंडा, आज हमारी सुहाग्रात है जान, भूल जाओ सब कुछ और इस पल में खो जाओ” ---- मैने कहा
ऋतु ने आँखे बंद कर ली
मैने ऋतु को बेडरूम में ला कर प्यार से बेड पर लेटा दिया.
मैने उशके चेहरे पर सिकन देखी. शायद वो फिर से कुछ बुरा महसूष कर रही थी.
मुझ से देखा नही गया और मैने कहा, “चलो ऋतु खाना खाते हैं”
“नहीं जतिन प्लीज़ मुझे छ्चोड़ कर मत जाओ, मुझे बाहों में भर लो प्लीज़” ---- ऋतु ने रोते हुवे कहा.
मैं बहुत भावुक हो गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया.
“क्या बात है जान रो क्यों रही हो मैं तुम्हारे पास ही तो हूँ” ---- मैने कहा
“जतिन जब भगवान को हमारे दिल में ये प्यार का फूल ही खिलाना था तो हमें इतने लंबे रास्ते से क्यों घुमाया की हम घूम घूम कर थक जायें, और इस प्यार के फूल की खुसबु तक को महसूष ना कर पायें” ---- ऋतु ने पूछा
“पता नही ऋतु, हम दोनो इस विशाल दुनिया के आगे बहुत छ्होटे हैं. हमें बस इतना पता है कि हमें प्यार है. पूरी कहानी तो बस भगवान ही जानते हैं. क्या पता हमारा जन्मो का रिस्ता हो. इस जनम में ग़लती से तुम संजय की पत्नी बन गयी और फिर भगवान ने इस ग़लती को सुधार दिया. कुछ भी हो सकता है जान. ये दुनिया बहुत अनोखी है और रहाशयों से भरी है. हम जानते ही कितना हैं इस दुनिया को” --- मैने कहा
इतने प्यार में जब पति पत्नी एक दूसरे के गले लगे हों तो उनके बीच एक खूबसूरत सेक्स की संभावना बन जाती है. ऐसा ही कुछ मेरे और ऋतु के बीच हो रहा था.
पति होने के नाते मुझे एक कोशिश करने की ज़रूरत थी. पर मुझे बस ऋतु का डर था. मैं उसे कोई दुख नही देना चाहता था. वो बहुत एमोशनल हो कर मुझ से लीपटि हुई थी. मैं उस के इतने करीब होने के कारण बहकता जा रहा था.
और फिर बिना सोचे समझे मैने एक कोशिश की. वैसे भी प्यार सोच समझ कर नही होता.
मैने ऋतु के उभारो को थाम लिया और उन्हे प्यार से दबाते हुवे कहा, “जान तुम्हे प्यार कर रहा हूँ, जब भी कुछ बुरा लगे तो मुझे रोक देना, मैं तुरंत रुक जाउन्गा”
ऋतु ने कुछ नही कहा और अपनी आँखे बंद कर ली
थोड़ी देर तक मैं ऋतु के उभारो को प्यार से मसलता रहा
मैने ऋतु के चेहरे को ध्यान से देखा तो पाया कि वो शांति से आँखे बंद करके उस पल में खोने की कोशिश कर रही है. वो कोशिश ही कर रही थी क्योंकि कभी उशके चेहरे पर सिकन होती थी और कभी शांति. वो किसी कसम-कस में दीख रही थी.
मैने बहुत प्यार से धीरे से ऋतु की कमीज़ को उपर सरका कर उशके उभारो को थाम लिया.
ऋतु ने ब्रा नही पहनी थी. शायद रात को शोते वक्त वो नही पहनती होगी. मुझे अपनी पत्नी के बारे में पता ही कितना है.
मैने ऋतु के एक निपल को मूह में ले लिया और प्यार से चूसने लगा.
मैने नज़रे उठा कर ऋतु के चेहरे को देखा. कुछ क्लियर नही हो रहा था कि उशे कैसा लग रहा है.
मैने पूछा, “ जान क्या मैं हट जाउ”
“नहीं जतिन आज मुझे ये सब फेस करना ही होगा, वरना मैं कभी नही कर पाउन्गि. मैं तुम्हारी पत्नी हूँ. तुम मेरी परवाह किए बिना जो मन में आए करो” --- ऋतु ने कहा
“ये क्या कह रही हो जान, ऐसा नही कर सकता मैं जान, चलो किसी और दिन ट्राइ करेंगे” ---- मैने कहा
“तुम जब मेरे उभारो को चूम रहे थे तो तुम्हारे मन में क्या था जतिन, हवश या प्यार” ----- ऋतु ने पूछा
“प्यार था जान, हवश को तो मैं कब का त्याग चुका हूँ” ---- मैने कहा
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