RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
गतांक से आगे ...................
ऐसा नही था कि बिल्लू से मेरी नाराज़गी दूर हो गयी थी, और ना ही ऐसा था कि मैने उसे माफ़ कर दिया था, पर फिर भी एक इंशान होने के नाते मैं बिल्लू के लिए परेशान थी.चाहे उसने मुझे बर्बाद किया हो पर फिर भी उसका मुझ से कोई ना कोई संबंध तो था ही.
बिल्लू को थोड़ी ही देर में होश आ गया. वो हड़बड़ा कर एक दम से उठ गया और बोला, “मैं कहा हूँ”
मैं वही उसके करीब ही थी, सिधार्थ भी मेरे साथ ही खड़ा था.
मैने कहा, “बिल्लू तुम बेहोश हो गये थे, अभी तुम क्लिनिक में हो, चिंता मत करो सब ठीक है”
“कुछ ठीक नही है ऋतु, मुझे तुमसे अकेले में बात करनी है” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर कहा.
सिधार्थ ने मेरी और देखा और मैने उसे आँखो ही आँखो में वाहा से बाहर जाने की रिक्वेस्ट की.
सिधार्थ मेरा इशारा समझ गया, और बाहर चला गया. बहुत ही अजीब पल था वो मेरे लिए. सोच रही थी कि कही सिधार्थ को बुरा ना फील हो की मैं बिल्लू से बात क्यो करना चाहती हूँ. पर पता नही क्यो मैं बिल्लू की बात सुन-ना चाहती थी
सिधार्थ के जाने के बाद बिल्लू बोला, “
बैठ जाओ ऋतु”
पहले तुम कुछ खा लो बिल्लू डॉक्टर कह रहा था कि तुमने 2-3 दिन से कुछ नही खाया, क्या तुम्हारी फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी खराब है
मेरी बात सुन कर वो थोड़ी देर तक मेरी और देखता रहा, जैसे की मेरे चेहरे पर कुछ पढ़ रहा हो.
मैने उशे ध्यान से देखा तो पाया कि उसकी आँखे नम थी. वो नम आँखे लिए मुझे देखे जा रहा था.
वो बोला, “क्या तुम्हे मेरी चिंता हो रही है ऋतु, ऐसा मत करो मैं इस लायक नही हूँ”
“नही ऐसी बात नही है, डॉक्टर कह रहा था कि तुमने कुछ दीनो से कुछ नही खाया इश्लीए कह रही थी” ---- मैने कहा
“फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी भी खराब नही है. कल जब तुमने मंदिर के बाहर मुझे यहा से दफ़ा हो जाने को कहा तो मेरी उमीद टूट गयी. लग रहा था कि तुमसे मिले बिना ही यहा से जाना पड़ेगा. इश्लीए कल मेरा कुछ खाने का मन नही हुवा. और आज इश्लीए नही खा पाया क्योंकि आज मेरी दीदी कविता का बिर्थडे है और मुझे कुछ नही पता कि वो कहा है, किस हाल में है, इस दुनिया में है भी या नही. ऐसी हालत में कोई कैसे खाना खाएगा ऋतु. मैं एक भाई का फ़र्ज़ नीभाने में नाकाम रहा हूँ.” ---- बिल्लू ने एमोटिनल हो कर कहा.
“बिल्लू मैं समझ रही हूँ, पहले तुम खाना खा लो फिर बात करेंगे, मैं तुम्हारी बात सुन-ने के लिए तैयार हूँ” ----- मैने कहा
“नही ऋतु तुम्हे सब कुछ बताए बिना एक नीवाला भी मेरे मूह से नही उतरेगा, पहले मेरी बात सुन लो, खाना पीना तो होता रहेगा” ------ बिल्लू मेरी और देख कर बोला
“चलो ठीक है, शुनाओ मैं शुन रही हूँ” --- मैने कहा
“पहले ये बताओ कैसी हो तुम” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर पूछा
“कैसी लग रही हूँ बिल्लू………….. बस जी रही हूँ, वरना तो अब बचा ही क्या है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.
“समझ सकता हूँ, पीछले 2 साल से मेरी भी यही हालत है” ------- बिल्लू ने कहा
“इश्लीए तुमने मेरी भी यही हालत कर दी”
? ----- मैने पूछा
“हालात ही कुछ ऐसे थे ऋतु, वरना आज तक मैने किसी को नुकसान नही पहुँचाया, सुनो मैं तुम्हे पूरी बात डीटेल में बताता हूँ.” ----- बिल्लू ने कहा
मैने कहा, “हां सुनाओ मैं जान-ना चाहती हूँ कि मेरी बर्बादी का क्या कारण है”
बिल्लू के शब्दो में :-----
ऋतु, मेरी दीदी कविता मेरे लिए सब कुछ थी. मेरे पेरेंट्स कोई 10 साल पहले एक आक्सिडेंट में मारे गये थे. उसके बाद मेरी दीदी कविता ने ही मुझे पाल पोश कर इतना बड़ा किया है. वो कोई तुमसे 3 साल बड़ी होंगी.
दीदी ने जब 2005 में फरीदाबाद में संजय के क्लिनिक में जाय्न किया था तो वो काफ़ी खुस थी. पर में उनके साथ फरीदाबाद नही आ सकता था. तब मैं बी.कॉम सेकेंड एअर में था. इश्लीए देल्ही में ही रहता था. पर कभी कभी दीदी से मिलने आ जाता था.
सब कुछ अछा चल रहा था. मैं दीदी के लिए कोई लड़का ढूंड रहा था. वैसे वो हमेशा कहती थी कि तुम चिंता मत करो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, मैं खुद सब कुछ संभाल लूँगी. पर मैं ये आछे से जानता था कि उन्हे मेरे कारण अपनी शादी की चिंता नही है.
खैर मैने दीदी के लिए एक लड़का ढूंड ही लिया. लड़का सारीफ़ था और उसके घर वालो की कोई डिमॅंड भी नही थी. हमारी हालत वैसे भी ऐसी नही थी कि ज़्यादा दहेज दे सकें. लड़का सेट्ल था, और बॅंक में पी.ओ था.
मैने 2-02-2007 की सुबह को दीदी को फोन करके बताया कि आप छुट्टी ले कर देल्ही आ जाओ, मैने एक लड़का पसंद किया है, लड़के वाले आपको देखना चाहते है.
पहले तो उन्होने मुझे डांटा की अपनी पढ़ाई छ्चोड़ कर बेकार के काम में क्यों लगे हो, पर फिर वो देल्ही आने के लिए मान गयी और मुझे कहा, “ लगता है, अब तुम बड़े हो गये हो”
ये बोल मुझे अभी तक याद है क्योंकि उसके बाद आज तक मैं दीदी की आवाज़ के लिए तरस रहा हूँ. हर पल लगता है कि अभी फोन बजेगा, अभी कोई आहट होगी और दीदी मुझे कहेगी, “बिल्लू तुम पढ़ाई क्यों नही कर रहे”
3-2-07…को मैं सारा दिन बेचैन रहा. सुबह से दोपहर हुई और दोपहर से शाम, लड़के वाले बहुत देर तक बैठ कर चले गये. जाते जाते कह गये, “कोई बात नही बेटा, हम फिर कभी आ जाएँगे”
मैं दीदी का मोबाइल नंबर. ट्राइ कर-कर के थक गया. हर बार उनका मोबाइल स्विच्ड ऑफ आ रहा था.मुझे लग रहा था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है, वरना दीदी कभी अपना मोबाइल ऑफ नही रखती है.
शाम के कोई 6 बजे मैने फरीदाबाद जाने का फ़ैसला किया. एक घंटा तो देल्ही के आइएसबीटी पहुँचने में ही लग गया. मैं कोई 9 बजे फरीदाबाद पहुँच गया और सीधा वाहा पहुँच गया जहा दीदी पेयिंग गेस्ट थी. पर वाहा मुझे लॉक मिला. मैने आस पास के लोगो से पूछा तो उन्होने बताया कि उन्होने कल से कविता को नही देखा. एक लेडी ने ये भी बताया कि कल से वो वाहा आई ही नही थी.
फिर मैने दीदी के क्लिनिक मतलब कि संजय के क्लिनिक जाने का फ़ैसला किया.
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