RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
“मुझे यकीन था कि वीना जोसेफ से मिल कर सारे राज खुल जाएँगे, पर…..” --- मनीष ने गहरी साँस ले कर कहा.
“पर क्या, उस से हम मिल लेते है या फिर रहमान मिल लेगा, इस में परेशानी वाली क्या बात है” --- दीप्ति ने मनीष से कहा.
मनीष ने अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाला और दीप्ति को देते हुवे बोला, “अभी किसी ने, एक नर्स के हाथो, ये मेरे कमरे में भीज़वाया था, पढ़ो तुम खुद समझ जाओगी”
वो काग़ज़ पढ़ कर दीप्ति के चेहरे का रंग उड़ गया
मैने उशके हाथ से वो काग़ज़ ले कर पढ़ा, तो मेरे पैरो के नीचे से भी ज़मीन निकल गयी
उस में लीखा था
“ आबे डीटेक्टिव, बहुत होशियार समझता है क्या खुद को, चुपचाप ये बेकार की इनक़ुआरी बंद कर और यहा से रफ़ा दफ़ा हो जा. जीश से तुम आज मिलने जा रहे थे, वो वीना जोसेफ भी मारी जा चुकी है. तुम्हारी किशमत अछी है कि तुम आज बच गये, पर अगर यहा से नही गये तो अगली बार नही बचोगे”
मैने रोते हुवे कहा. “प्लीज़ बंद करो अब ये सब, इस सब से मिलने वाला भी क्या है”
“लगता है तुम ठीक कह रही हो ऋतु, मनीष इस काम को फॉरन बंद करो, और जल्दी यहा से चलो, यहा मुझे अब डर लग रहा है” दीप्ति ने कहा.
उशके कहने के अंदाज़ से सॉफ लग रहा था की वो काफ़ी डरी हुई है.
मनीष बोला, “मैने आज तक ऐसा केस नही देखा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई कि कोई मुझे यू हॉस्पिटल में पहुँचा दे. पर मैं अपना कोई काम अधूरा नही छ्चोड़ता. अब वैसे भी ये मेरा पर्सनल काम हो गया है. जिसने भी मेरे साथ ऐसा किया है, उशे मैं नही छ्चोड़ूँगा”
दीप्ति बोली, "अपनी हालत देखो मनीष, तुम अभी 2 या 3 महीने तक चल नही पाओगे, बाद में सोचेंगे की क्या करना है इस बारे में, फिलहाल यहा से निकलते है".
हम मनीष को कन्विन्स करके जैसे तैसे वाहा से देल्ही ले आए.
……….
अभी तक कहानी वही की वही लटकी हुई है. मनीष के घाव भर गये है पर वो अभी भी ठीक से चलने की हालत में नही नही.
ये सब बाते थी जिनके कारण मैने ये डाइयरी लीखने का फैंसला किया. संजय से डेवोर्स के बाद, फ्रस्ट्रेशन में मैने अपनी अब तक की कहानी लीख दी है. देखते है की आगे क्या होता है.
वैसे मैं अब सब कुछ भुला कर, नयी शुरूवात करना चाहती हूँ.
आज मैं सपनो के सहर मुंबई में हूँ, नयी शुरूवात करने की इस से अछी जगह और क्या हो सकती है.
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डेट : 8-01-09
आज मुझे ऑफीस में कोई ऐसा मिला जिश्कि कि मुझे बिल्कुल उम्मीद नही थी. सिधार्थ को वाहा देख कर मैं चोंक गयी थी
“अरे ऋतु, तुम यहा, कैसे” --- सिधार्थ ने पूछा
“मैं यहा असिश्टेंट मॅनेजर हूँ” --- मैने जवाब दिया.
“अछा फिर तो तुम मेरी क्लाइंट हुई” --- उसने हंसते हुवे कहा.
“वो कैसे सिधार्थ” --- मैने हैरानी में पूछा.
“वो ऐसे कि मैं तुम्हारी कंपनी का का हूँ, सारे फाइनान्षियल मॅटर्स मैं ही तो संभालता हूँ, ख़ासकर टॅक्स से रिलेटेड” --- सिधार्थ ने मुझे समझाते हुवे कहा.
मेरे लिए संजय से पहले सिधार्थ का ही रिस्ता आया था, मुझे वो बहुत पसंद आया था और मैने पापा को उशके लिए हां कह दी थी. सिधार्थ ने सभी के सामने कहा था कि “मुझे ऋतु बहुत पसंद है, मैं ऋतु को अपनी पत्नी बना कर खुद को ख़ुसनसीब समझूंगा”
हम ने नज़रो ही नज़रो में एक दूसरे के लिए बहुत सारे खवाब बुन लिए थे.
पर किशमत को ये रिस्ता मंज़ूर नही था.
सिधार्थ के पापा ने हम दोनो की कुंडली पर बवाल खड़ा कर दिया.
उन्हे किशी ज्योतिषी ने बता दिया था कि इस लड़की के आपके घर में आते ही, आप के घर में तबाही आ जाएगी.
इसीलिए रिस्ता बनते बनते बिगड़ गया.
उशके बाद सिधार्थ का काई बार घर पर फोन आया और वो बार बार मुझ से माफी माँगता रहा.
वो अपने पापा के कारण बहुत शर्मिंदा महसूष कर रहा था.
एक बार उसने मुझे फोन किया और बोला, ऋतु एक काम करते है”
मैने पूछा, “क्या”
“मैं तुम से अभी शादी करने को तैयार हूँ, भाड़ में जाए ये कुंडली का चक्कर. मुझे इन बातो पर बिल्कुल विश्वास नही है, चलो किसी मंदिर में जा कर शादी कर लेते है” ---- सिधार्थ ने बड़े प्यार से कहा
एक पल को मुझे भी लगा की मुझे उशके साथ चल देना चाहिए
पर मैं अपने पापा के खिलाफ नही जा सकती थी.
मैने पापा को बता दिया था कि सिधार्थ शादी करने के लिए तैयार है, हमें क्या करना चाहिए
पापा ने मुझे समझाया “तुम्हारे लिए हज़ार रिस्ते है बेटा, तुम उशे भूल जाओ, बात सिर्फ़ तुम्हारी और सिधार्थ की नही है, शादी में दौ परिवार एक दूसरे से जुड़ते है. इस तरह ज़बरदस्ती शादी करके कुछ हाँसिल नही होगा. सिधार्थ के पापा तुम्हे कभी स्वीकार नही करेंगे”
मैने सिधार्थ को बड़ी मुश्किल से मना किया था.
“सिधार्थ मेरे पापा नही मान रहे है और मैं उनकी मर्ज़ी के बिना कुछ नही कर सकती” ---- मैने मायूसी में सिधार्थ से कहा था
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