RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
गतांक से आगे .........................
20 एप्रिल 2008, से लेकर 26 सेप्टेंबर 2008 तक, कोई 5 महीनो में, मेरे साथ इतना कुछ हो गया और मेरी हँसती खेलती जींदगी बर्बाद हो गयी. वो 26 सेप्टेंबर का ही दिन था जिस दिन दीप्ति मुझे अपनी इतनी लंबी कहानी शुना रही थी.
उस दिन दीप्ति के जाने के बाद मैं अंदर ही अंदर गहरे विचारो में खो गयी. मुझे भी अब ये बात परेशान कर रही थी कि आख़िर बात क्या है.
अचानक मुझे याद आया कि बिल्लू ने कयि बार मुझ से कहा था कि तुम्हे वक्त आने पर सब कुछ पता चल जाएगा. आख़िर क्या पता छल्लेगा मुझे, मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ??
मुझे बस इतना ही पता चला था कि संजय और विवेक बिल्लू को जानते थे, क्यो जानते थे, उनकी क्या जान पहचान थी, इशके बारे में मैं किसी भी नतीज़े पर नही पहुँच पा रही थी.
वही वो पल था जीशमें की मैने अपनी छोटी सी भूल को एक डाइयरी में लिखने का फैंसला किया, ताकि उसे पढ़ कर बाद में किसी नतीज़े पर पहुँचा जा सके.
पर अगले ही दिन यानी के 27 सेप्टेंबर को घर पर डाइवोर्स के पेपर आ गये और मैं टूट कर बिखर गयी और कुछ भी नही लिख पाई. दिन रात अपने कमरे में पड़े पड़े मैं आँसू बहाती रही. इशके अलावा कर भी क्या सकती थी. जो पाप मैने किया था उशी की सज़ा तो मुझे मिल रही थी.
मुझे अंदेशा तो था कि संजय शायद ऐसा ही करेंगे और मैं खुद को मेंटली प्रिपेर भी कर रही थी, पर फिर भी जब वाकाई में ऐसा हो गया तो आंशुओं को रोकना मुश्किल हो गया. खुद से ज़्यादा में चिंटू के लिए परेशान थी, मेरे कारण वो अपने पापा के प्यार से जुदा होने जा रहा था.
आज 6 जन्वरी 2009 है और मैं पीछले चार दीनो से ये डाइयरी लिख रही हूँ. जब पीछले हफ्ते 29 डिसेंबर 2008 को संजय से डाइवोर्स हो गया तो कुछ समझ नही आया कि क्या करूँ. बार बार अपनी किशमत को रो रही हूँ.
2 जन्वरी को मैं यू ही परेशान बैठी थी कि अचानक मुझे अपनी टेबल पर एक डाइयरी दीखाई दी और मैने एक पेन उठाया और अपनी दर्द भारी दास्तान लीखनी शुरू कर दी.
आज 6 जन्वरी 2009 है और मैं मुंबई में हूँ. चिंटू अपने नाना नानी के साथ देल्ही में है. अभी 15 दिन ही हुवे है मुझे यहा आए, इसलिए यहा बिल्कुल मन नही लग रहा. यहा सेट्ल हो कर चिंटू को थोड़े दीनो बाद ले आउन्गि
दीप्ति ने मुझे बताया था कि उनकी कंपनी की सिस्टर क्न्सर्न ज़ेडको प्राइवेट लिमिटेड में असिश्टेंट मॅनेजर की पोस्ट खाली है, तुम चाहो तो जाय्न कर लो. पर तुम्हे मुंबई जाना पड़ेगा.
मैने बहुत सोचने के बाद जाय्न करने का फ़ैसला कर लिया और इस तरह मैं मुंबई आ गई. अब मुझे चिंटू के लिए तो जीना ही था इसलिए मैने जाय्न करना ठीक समझा. कंपनी ने मेरे रहने के लिए कोलाबा में एक फ्लॅट दे दिया है पर इतने बड़े घर में मुझे बहुत अकेला महसूष हो रहा है.
अभी अभी ऑफीस से आई हूँ और पहली बार इतना काम करके थक गयी हूँ. थोड़ा फ्रेश होने के बाद आगे की कहानी लीखूँगी.
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उस दिन यानी के 26 सेप्टेंबर 2008 को जाते जाते दीप्ति ने पूछा, यार एक बात पूछनी थी, बुरा तो नही मानोगी ?
मैने कहा, “पूछो ना, मैं बुरा क्यो मानूँगी”
“एक बात बताओ, बिल्लू में ऐसा क्या था जो की तुम उशके चक्कर में पड़ गयी, क्या तुम भी उन लॅडीस की तरह हो जीनके लिए लिंग का साइज़ इंपॉर्टेंट है, ना कि पति का प्यार ??
“कैसी बात कर रही हो दीप्ति, छी, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो” ---------- मैने थोड़ा गुस्से में कहा.
“तभी पूछ रही थी कि तुम बुरा तो नही मानोगी, सॉरी इफ़ आइ हर्ट यू” ---- दीप्ति ने सॉरी फील करते हुवे कहा.
“दीप्ति….., बिल्लू देखने में बहुत भोला भला और शरीफ सा लगता था और काफ़ी स्मार्ट भी था, हां उसकी बातें ज़रूर बहुत गंदी होती थी, और सच बताउ तो मुझे खुद अभी तक नही पता कि मुझे क्या हो गया था कि मैं उशके साथ पाप के दलदल में डूबती चली गयी, और शायद मैं ये कभी जान भी ना पाउ”
“ह्म्म… अछा ठीक है, सॉरी टू हर्ट यू, मैं अब चलती हूँ, ऑफीस का कुछ काम भी करना है. तुम अब किसी बात की चिंता मत करो. बुरे से बुरा वक्त भी बीत जाता है. देखना ख़ुसीया फिर से आएँगी. भगवान ने दिन और रात यू ही नही बनाए है. ना हमेशा दिन होता है और ना हमेशा रात रहती है” ---- दीप्ति मेरे सर पर हाथ रख कर बोली.
मैने कहा, “पर दुनिया में ऐसी भी काई जगह है, जहाँ कि कयि महीनो तक सूरज नही दिखता”
“होगी ऐसी जगह, पर तुम वाहा नही हो समझी, कम ऑन, अंड हॅंग ऑन, यू विल सी दट, सूनर ओर लेटर थिंग्स आर गेटिंग बेटर” ----- दीप्ति ने मेरी पीठ तप-थपाते हुवे कहा.
“… ठीक है, देखते है, थॅंक्स फॉर बीयिंग सच ए नाइस फ्रेंड” --------- मैने दीप्ति का हाथ पकड़ कर कहा.
“मैं कल मनीष से मिल कर उसको इस काम पर लगा दूँगी, और जैसे ही कुछ पता चलेगा तुम्हे फोन करूँगी” ------- दीप्ति ने कहा.
मैने पूछा, “क्या तुम मनीष को सब कुछ बता दोगि”
“तुम चिंता मत करो, मनीष ईज़ ए नाइस मॅन, पर मैं उशे जितना ज़रूरी है उतना ही बताउन्गि, बाकी वो डीटेक्टिव है, तुम तो जानती ही हो” --- दीप्ति ने कहा
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