RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
मैं तो कब से वाहा से निकालने का सोच रही थी, वाहा खड़े खड़े मेरे पाँव दुखने लगे थे.
हम चुपचाप 102 से निकल कर 103 में आ गये
103 में आकर हमने चैन की साँस ली. पर मैं मनीष से नज़रे नही मिला पा रही थी. क्योंकि मनीष ने भी मेरे साथ साथ सब कुछ देखा था.
उस दिन शाम को मैने सुरेश को फोन करके घर आने को कहा.
मैने पिंकी को फोन करके उसे भी वही बुला लिया. वो आने से मना कर रही थी. कह रही थी मुझे कुछ अछा महसूष नही हो रहा है. पर मैने उशे आने के लिए मना ही लिया.
मैने अपने ख़ास ख़ास रिस्तेदारो को भी फोन करके बुला लिया.
सभी लोग 8:30 बजे तक घर पहुँच गये थे.
सभी के सामने मैने सुरेश(महेश) की चप्पल से खूब धुनाई की और सभी को उसकी शादी के बारे में बताया.
बाकी के लोगो ने भी उशे खूब मारा.
और तो और मैने उसे पिंकी से भी पितवाया.
दरअसल, मैने वाहा किसी को पिंकी और सुरेश के रिस्ते के बारे में नही बताया था. मैं नही चाहती थी कि पिंकी की बदनामी हो. पिंकी से मैने उसे इसलिए पितवाया क्योंकि उसने पिंकी को ड्राइवर के साथ करने के लिए मजबूर किया था.
पिंकी के चेहरे से यही लग रहा था कि वो उसे नही मारना चाहती, पर मैने खुद वाहा खड़े होके उसके हाथ में चप्पल दी और सुरेश की पिंकी के हाथो धुनाई करवाई.
पिंकी को मैने कुछ नही बताया कि मुझे उशके बारे में पता है कि नही. दरअसल मैने उसे बच्ची समझ कर माफ़ कर दिया. वैसे भी उसे उशके किए की सज़ा मिल चुकी थी.
मैने दीप्ति से कहा, “ह्म्म्म……. बहुत अछा किया तुमने सुरेश की धुनाई करके, वो इशी लायक था”
तभी नेहा बीच में बोल पड़ी, अछी सज़ा मिली दोनो को, वो इशी लायक थे. अरे तुम्हे पता है उस अशोक को भी भगवान ने उसके किए की सज़ा दे दी है.
मैं ये बात सुन कर चोंक गयी
मैने नेहा से पूछा, तुम्हे कैसे पता चला.
वो बोली, किसी ने मुझे बताया है.
दीप्ति ने नेहा से पूछा, “क्या बताया है”
“वो पोलीस एनकाउंटर में मारा गया, उसके साथ 2 लड़को की भी मौत हुई है” --- नेहा ने दीप्ति की और देखते हुवे कहा.
मैने मन ही मन में कहा, “बिल्लू और राजू”
तभी अचानक नेहा का मोबाइल बज उठा और वो एक्सक्यूस मी कह कर कमरे से बाहर चली गयी.
दीप्ति धीरे से बोली, तो तुम ठीक कह रही थी, वो सभी मारे गये है.
मैने कहा, “हां पर तुम मेरी कहानी नेहा को मत शुनाना, मैं ये बात किसी को नही बताना चाहती, तुम्हे इसलिए बताया क्योंकि तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो”
“अरे ये भी क्या कहने की बात है” --- दीप्ति मेरी और देखते हुवे बोली.
तभी नेहा अंदर आ गयी और बोली, “यार मुझे जाना होगा, अछा लगा तुम दोनो से इतने दीनो बाद मिल कर, फिर कभी फ़ुर्सत में मिलेंगे”
हम दोनो ने नेहा को बाहर तक उसकी कार तक सी ऑफ किया और वापस अंदर मेरे कमरे में आ गये.
“यार ये बताओ क्या सोचा तुमने फिर” --- दीप्ति ने मुझ से पूछा
“किस बारे में” ---- मैने उल्टा सवाल किया
“अरे वही कि संजय और विवेक बिल्लू को कैसे जानते है” ---- दीप्ति ने कहा
“यार अब तो कन्फर्म हो गया कि वो सभी मारे जा चुके है, मुझे नही लगता कि ये सब जान कर हमें कुछ हाँसिल हो पाएगा” ---- मैने गहरी साँस ले कर कहा.
“तुम्हे याद है, वो बिल्लू तुम्हे संजय को सब कुछ बताने को कह रहा था, आख़िर वो ऐसा क्यो चाहता था” ?? दीप्ति ने मुझ से पूछा
“मैने कहा, मुझे नही पता दीप्ति और ना ही मुझ में ये सब जान-ने की हिम्मत बाकी है, जितना मैं पिछली बातो को याद करूँगी उतना ही घुट घुट कर जीयुन्गि, अछा यही है कि मैं सब कुछ भूल कर एक नयी शुरूवात करूँ, संजय शायद मुझे ना अपनाए पर मेरा बेटा चिंटू तो है ना, उशके लिए तो मुझे जीना ही है”---- मैने दीप्ति से कहा
“यार मैं तुम्हारी दोस्त हूँ, मुझे बार बार कुछ गड़बड़ लग रही है, प्लीज़ कुछ करो ना, सच जान-ने में कोई बुराई नही है” ---- दीप्ति ने मुझे कन्विन्स करते हुवे कहा.
“बुराई है दीप्ति, पाप मैं खुद करूँ और जाशूस अपने पति के पीछे लगा दूं, ये कहा की इंशानियत है, मैं ऐसा नही कर सकती” --- मैने दीप्ति की ओर देखते हुवे कहा.
“अगर ये काम मैं अपनी तरफ से मनीष को दे दूं तो तुम्हे कोई ऐतराज तो नही” ??
“ह्म्म…. दीप्ति तुम क्यों ये सब जान-ना चाहती हो” --- मैने पूछा
“क्योंकि मेरा मन बार बार कह रहा है कि कहीं ना कहीं बहुत बड़ी गड़बड़ ज़रूर है. मैं ये नही कह रही कि संजय ग़लत है, मैं भी उशे जानती हूँ, पर पता नही क्यों मेरा मन कह रहा है कि इस राज की गहराई तक जाना ज़रूरी है” ------ दीप्ति ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा.
“ह्म्म… ठीक है, तुम सारी कहानी जान चुकी हो, करलो जो करना है, पर मेरा नाम कहीं नही आना चाहिए, संजय को पता चल गया तो उन्हे बहुत बुरा लगेगा, मैं उन्हे और कोई दुख नही देना चाहती.
“थॅंकआइयू वेरी मच ऋतु, दट’स लाइक ए ब्रेव ओल्ड ऋतु..हे हे” ---- दीप्ति मुश्कूराते हुवे बोली
मैं भी उसकी बात सुन कर हंस पड़ी
क्रमशः .............................................
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