RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
पापा ने कहा, बेटा , तुम अपना कसूर मान रही हो ये क्या कम बड़ी बात है, कितने लोग है इस दुनिया में जो सच कहने की हिम्मत रखते है, मुझे गर्व है तुम पर. चलो अपने घर चलते है, मुझे नही लगता कि इस वक्त तुम्हे यहा रहना चाहिए. मुझे तुम पर पूरा यकीन है, तुम ग़लत हो ही नही सकती, ज़रूर इस बेरहम जमाने ने तुम्हारे साथ कोई भयानक खेल खेला है.
तभी संजय बोले, हां हां ग़लत तो सिर्फ़ मैं हूँ, और ये कह कर वो वाहा से रूम का दरवाजा पटक कर बाहर चले गये.
मैने पापा को बहुत समझाया कि मुझे मेरे हाल पर छ्चोड़ दो, मैं खुद अपनी जींदगी संभाल लूँगी, पर पापा ने मेरी एक नही सुनी और मुझे और चिंटू को अपने साथ घर ले आए.
हर कोई अपने घर आ कर खुस होता है पर मैं ऐसे हालात में घर आ कर बिल्कुल खुस नही थी.
मम्मी और सोनू ( मेरा छोटा भाई ) ने मुझ से कुछ नही पूछा, शायद पापा ने उन्हे समझा दिया था. मेरे लिए तो ये अछा ही था. वैसे भी मैं किसी को कुछ भी बताने या समझाने की हालत में नही थी.
चिंटू अपने नाना, नानी के घर कयि दीनो बाद आया था इश्लीए काफ़ी खुस था. सारा दिन वो घर में उछल कूद करता फिरता था. वो इस बात से बिल्कुल अंजान था कि उशके मा बाप की जींदगी, एक तूफान में फँसी है.
ऐसा लगता ही नही था कि मैं अपने उसी घर में आई हूँ, जहाँ बचपन से लेकर जवानी तक मैने बहुत सारे हसीन लम्हे गुज़ारे थे. मैं हर वक्त अपने कमरे में पड़ी रहती थी.
कुछ दिन यू ही बीत गये. पर मेरे मन को कोई शांति नही मिली. संजय ने कोई फोन नही किया और ना ही मेरा फोन उठाया.
एक दिन सुबह सुबह दीप्ति मिलने आ गयी, मुझे उसे देख कर बहुत ख़ुसी हुई.
मैने पूछा, तुम्हे कैसे पता चला कि मैं यहा घर पर हूँ.
वो बोली, आंटी ने कल फोन किया था कि तू यहा आई हुई है, इश्लीए मिलने आ गयी.
मैं समझ गयी कि मम्मी मेरे लिए परेशान है, शायद इश्लीए उन्होने दीप्ति को फोन किया होगा कि वो मुझ से मिलने आएगी तो मुझे अछा लगेगा. और मुझे वाकाई दीप्ति का आना बहुत अछा लगा.
बुरे वक्त में अगर कोई हल्का सा दामन थाम ले तो मुश्किल से मुश्किल रास्ता आसान हो जाता है. मुझे भी किसी ऐसे सहारे की ज़रूरत थी. वो दीप्ति ही थी जिससे में अपनी आप बीती खुल कर शुना सकती थी. वो कॉलेज के दिनो से मेरी बेस्ट फ्रेंड रही थी.
थोड़ा हाल चाल पूछने के बाद, दीप्ति ने पूछा, यार तू कुछ खोई खोई सी लग रही है, आंटी भी कल फोन पर कह रही थी कि तुम आजकल गुम-सूम सी रहती हो, आख़िर बात क्या है.
मैने गहरी साँस ले कर कहा, दीप्ति जीश ऋतु को तुम जानती थी वो अब मर चुकी है.
दीप्ति हैरानी भरे शब्दो में बोली, ये क्या कह रही है, दीमाग तो ठीक है तेरा ?
मैने कहा, दीमाग ठीक होता तो मैं इस वक्त यहा नही होती.
दीप्ति बोली, अरे तुम अपने मायके में ही तो हो, इसमें यहा, वाहा का क्या मतलब !!
मैने कहा, दीप्ति, संजय ने मुझे घर से निकाल दिया है.
दीप्ति बोली, क्या ?? ये कब कैसे !! क्यों ??
मैने कहा, क्योंकि मैने उन्हे धोका दिया है, इसलिए.
दीप्ति बोली, ये क्या बोल रही है तू, मुझे कुछ समझ नही आ रहा.
मैने कहा, तुम्हे अजीब लगेगा, पर मेरे किचन की खिड़की ने मुझे बर्बाद कर दिया.
दीप्ति बोली वो कैसे ?
मैने गहरी साँस ले कर कहा, एक दिन मैं यू ही ताजी हवा लेने के लिए किचन की खिड़की में आई थी कि अचानक एक लड़का मुझे पेसाब करता हुवा दीखा गया………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………… मैने बिना रुके दीप्ति को सारी बात बता दी.
दीप्ति बोली, यार मुझे बिल्कुल विश्वास नही हो रहा कि तुम्हारे साथ इतना कुछ हो गया, वाकाई में सारी ग़लती तुम्हारी ही है. उस कामीने अशोक ने तुझे फँसा ही लिया.
मैने कहा, हां मैं जानती हूँ कि ग़लती मेरी ही है तभी तो खुद पर शर्मिंदा हूँ. लगता है मैं अब कभी जींदगी में मुस्कुरा नही पाउन्गि.
दीप्ति बोली, ऐसा कुछ नही है, वक्त हर ज़ख़्म भर देता है, मुझे देख मैं भी तो अपनी जींदगी में खुस हूँ, वरना जींदगी ने कौन से झटके नही दिए
मैने पूछा, तुम्हे क्या हुवा है ?
दीप्ति बोली, रहने दे यार फिर कभी, तू खुद अभी परेशान है.
मैने कहा, दर्द बाँटने से कम होता है, मैं खुद तुम्हे सब कुछ बता कर, खुद को हल्का महसूस कर रही हूँ.
वो बोली, मेरी कहानी तेरे जैसी ट्रॅजिक तो नही है पर फिर भी मैं बहुत परेशान हूँ आजकल.
मैने कहा, बताओ तो सही क्या बात है.
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