RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
संजय ने विवेक से कहा, चलो मेरे कॅबिन में चलते है, अभी ऋतु बेहोश है, उसे आराम करने देते है.
पर मुझ से रहा नही गया और मैने संजय को आवाज़ लगाई, संजय !!
संजय दौड़ कर मेरे पास आ गये.
विवेक अभी तक वही था.
मैने धीरे से कहा, मैं तुमसे अकेले में बात करना चाहती हूँ.
विवेक मेरी बात समझ गया और कमरे से बाहर चला गया.
संजय ने रूम का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
मैने संजय की आँखो में देख कर कहा, मुझे माफ़ कर दो !!
संजय ने कहा, किस बात के लिए, इस में तुम्हारी क्या ग़लती ?
मेरी आँखो में फिर से आँसू उतर आए और मैने धीरे से कहा, ग़लती मेरी ही है संजय, मैं खुद इस सब के लिए ज़िम्मेदार हूँ.
संजय ने मेरे सर पर हाथ रखा और प्यार से बोले ये क्या कह रही हो ? ये घटना तो किसी के साथ भी हो सकती है, तुम अपने आप को दोष मत दो.
एक पल को मुझे फिर लगा कि मैं बड़े आराम से झूठ बोल कर बच सकती हूँ, क्योंकि जैसा मैने अभी सुना था, वो सभी कामीने मारे जा चुके है, अब कोई ये बात साबित नही कर सकता था कि मैं खुद इस गुनाह में शामिल थी.
पर अगले ही पल मुझे किसी की कही एक बात याद आ गयी
“दा ट्रूथ विल सेट यू फ्री, बट फर्स्ट इट विल मेक यू मिज़रबल”
और मैने मन ही मन ठान लिया कि मेरे साथ चाहे कुछ भी हो मैं संजय को सब कुछ, सच-सच बता दूँगी.
ये सोचने के बाद मैने धीरे से कहा, संजय मैं तुम्हे सच बताना चाहती हूँ.
अब संजय के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे.
मैने हकलाते हुवे कहा, मैं…खुद… बिल्लू…… से….. मिलने घर के पीछे गयी थी.
इतना सुनते ही संजय आग बाबूला हो उठे और गुस्से में बोले, क्या मतलब ? तुम खुद वाहा तीन लोगो के साथ…….. छी……… आइ कॅंट बिलीव दिस !!
मेरी आँखो में फिर से आँसू भर आए.
मैने रोते हुवे कहा, मैं बिल्लू के बहकावे में आ गयी थी, उन दो लोगो के बारे में मुझे नही पता वो कब वाहा आ गये.
संजय ने ये सुनते ही मेरा गला दबा दिया.
मेरा दम घुटने लगा.
मैने खुद को छुड़ाने की कोई कोशिश नही की क्योंकि मैं सब कुछ सहने के लिए तैयार थी.
वो बोले, साली कुतिया, तो ये सब तेरा किया धरा है, मैं ये सोच भी नही सकता था, क्या कुछ नही दिया मैने तुझे, और तू……….. ?
उनका शीकंज़ा मेरे गले पर कसता चला गया
वो बोले, अब पता चला ये चूत चटवाने के ख्याल तुझे कहा से आते थे, वो कुत्ता ज़रूर तेरी चाटता होगा, है ना.
मेरी साँसे घुटने लगी, ऐसा लग रहा था कि मैं अब मरने ही वाली हूँ, और सच पूछो तो मैं इस के लिए तैयार थी. पर तभी चिंटू का चेहरा दीमाग में घूम गया, मैं सोचने लगी कि मेरे बाद चिंटू का क्या होगा.
अचानक किसी ने रूम का दरवाजा खड़काया.
और संजय ने मेरी गर्दन छोड़ दी और बोले मैं तेरे गंदे खून से अपने हाथ नही रंगना चाहता.
ये कह कर संजय गुस्से में दरवाजे की ओर बढ़ गये.
जैसे ही उन्होने दरवाजा खोला, मैने देखा कि मेरे पापा वाहा खड़े थे.
मैने अपने पापा को देखते ही आँखे बंद कर ली.
मेरे पापा ने मुझे जीवन में हमेशा अछी सीक्षा दी थी और वो मेरे आदर्श थे, उन्हे वाहा देख कर मैं फिर से और ज़्यादा परेशान हो उठी.
मैं समझ नही पा रही थी कि मैने संजय को तो ये सब बता दिया पर अपने पापा को क्या कहूँगी.
अब मैं यही दुआ कर रही थी कि हे भगवान मुझे इस दुनिया से उठा लो.
मुझे दूर से ही पापा की आवाज़ आई, उन्होने संजय से पूछा, कैसी है ऋतु ?
संजय ने गुस्से में कहा, आप खुद देख लीजिए ?
मैं चुपचाप आँखे बंद किए पड़ी रही ?
पापा मेरे पास आए और मेरे सर पर हाथ रख कर बोले, बेटा कैसी है तू, मैं आ गया हूँ, घबराने की कोई बात नही है.
वो ऐसा पल था जब वक्त जैसे रुक गया था. पापा को देख कर मेरी आँखो में आंशु भर आए.
मैने बड़ी मुश्किल से भारी मन से कहा, पापा, मैं कुछ नही बता सकती, प्लीज़ अभी कुछ मत पूछो.
पापा, बोले, ठीक है बेटा, तुम किसी बात की चिंता मत करो, मैं आ गया हूँ ना. तुम अभी आराम करो, कुछ खाने को लाउ क्या ?
मैने कहा, नही अभी कुछ नही चाहिए.
पापा ने कहा, मैं ज़रा संजय से मिल कर आता हूँ, उस से तो ठीक से बात ही नही हुई, पता नही क्यो वो थोड़ा परेशान लग रहा था.
ये कह कर पापा कमरे से बाहर चले गये.
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