RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
इसी बेचानी में मैने ब्रेकफास्ट बनाया और जैसे तैसे संजय और चिंटू को खिलाया. पर मैं एक निवाला भी ठीक से नही खा पाई.
मैं संजय से अपनी हालत छुपाने की कोशिश कर रही थी, पर मेरे अंदर बेचानी हर पल बढ़ती जा रही थी.
संजय और चिंटू चले गये और मैं बेडरूम में आ कर लेट गयी. घड़ी में 9:45 बज रहे थे.
आँखे बंद करते ही मेरी आँखो में उस दिन का नज़ारा घूम गया जब में अपने घर के पीछे झाड़ियो में झुकी हुई थी और बिल्लू मेरे पीछे मेरे नितंबो में लिंग डाले हुवे था.
मैं फॉरन हड़बड़ा कर उठ गयी और अपने ध्यान को यहा वाहा लगाने की कोशिस करने लगी. मैने एक गिलास पानी पिया और फिर से लेट गयी.
पर फिर से ना जाने क्यो वो पल याद आ गया जब बिल्लू ने मेरे नितंबो में धक्के लगाते हुवे पूछा था कि, “कैसा लग रहा है” और मैने जवाब दिया था कि “बहुत अछा”.
मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर ऐसे विचार मुझे क्यो आ रहे है.
मैं बेड से उठ कर किचन में आ गयी.
इस कसम्कश में मुझे ध्यान ही नही रहा कि पूरा घर बिखरा पड़ा है.
मैं जैसे तैसे अपने काम में लग गयी पर दिमाग़ अभी भी इसी उधैीडबुन में था कि अब मुझे क्या करना चाहिए.
बिल्लू आने वाला था, और मैं कोई फ़ैसला नही कर पा रही थी.
पर इतना ज़रूर था कि मेरे लिए उशके साथ चलना मुमकिन नही था.
उशके घर में मेरे साथ जो कुछ हुवा था उशके बाद, वाहा जाना मेरे लिए किसी भी हालत में मुनासिब नही था.
10:45 बज गये और बिल्लू नही आया, मुझे लगा अछा हुवा मैं अपने मन की दुविधा से बच गयी.
मैं ये सोच ही रही थी की डोर बेल बज उठी.
मैं फिर से बेचन हो गयी.
मुझे यकीन था कि ये बिल्लू ही होगा.
मैने हल्का सा दरवाजा खोला, सामने बिल्लू खड़ा था.
वो मुझे देख कर बोला, सॉरी थोड़ा लेट हो गया.
मैने कहा, बिल्लू मैं तुम्हारे साथ नही जा सकती, तुम यहा से चले जाओ.
उसने कहा, क्यो क्या हुवा ?
मैने कहा, मुझे नही पता, तुम प्लीज़ जाओ कोई देख लेगा.
उसने दरवाजा धकैलते हुवे कहा, अंदर बैठ कर बात करें.
मैने दरवाजा ज़ोर से थाम कर कहा, नही तुम अब जाओ.
उसने कहा, पूरी रात मैं सो नही पाया, सारी रात तू मेरे ख़यालो में घूमती रही और अब तू कहती है कि मैं जाउ, मैं कहा जाउ ?
उसने फिर से दरवाजे को धकैला पर मैं दरवाजे को मजबूती से थामे रही.
उसने कहा, देखो कोई देख लेगा, मुझे जल्दी अंदर आने दो, थोड़ी देर मुझ से बात ही कर लो, मैं चला जाउन्गा.
मुझे पता तो था कि वो ये सब क्यो कह रहा है पर फिर भी दरवाजे पर मेरे हाथो की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ गयी और वो झट से दरवाजा धकेल कर अंदर आ गया.
अंदर आ कर उसने दरवाजे की कुण्डी लगा दी और मेरे सामने खड़ा हो गया.
उसने पूछा, क्या बात है ?
मैने कहा, कुछ नही मुझे ये सब ठीक नही लग रहा.
उसने कहा, इस में ठीक लगने, ना लगने की क्या बात है ? ये तो एक खेल है, मज़े से खेलो और भूल जाओ, तू बेकार में चिंता कर रही है.
मैने कहा, तुम आदमी हो, एक औरत की मजबूरी तुम नही समझ सकते.
उसने कहा, अगर मैं तुझे मजबूर कर रहा हूँ तो मैं ज़रूर ग़लत हूँ, पर अगर तेरा मन खुद मेरे साथ एंजाय करना चाहता है तो, तुझे खुद को ज़बरदस्ती नही रोकना चाहिए, ये जवानी बार बार नही आएगी.
मैने कहा, पर में कैसे भूल जाउ की में किसी की पत्नी हूँ ? मैं अंदर ही अंदर घुट रही हूँ, मुझ से ये सब नही होगा, तुम प्लीज़ जाओ.
उसने कहा, क्या तुझे यकीन है कि संजय ही तेरा पति है और मैं नही ?
मैने हैरानी में पूछा, क्या मतलब ?
उसने कहा, क्या ऐसा नही हो सकता कि शायद किसी जनम में तुम मेरी पत्नी रही हो.
मैने गुस्से में कहा, हां, हां बिल्कुल हो सकता है, और ये भी हो सकता है कि वो कमीना अशोक भी किसी जनम में मेरा पति रहा हो, तभी तुम मुझे उशके पास ले गये थे.
बिल्लू थोड़ा सकपका गया.
|