RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
हम एक दूसरे से बहस कर रहे थे कि अचानक मुझे सामने से साइकल पर वही घिनोनी सूरत वाला आदमी आता दिखाई दिया जो कि उस दिन रिक्से में मुझे परेसान कर रहा था.
मैने झट से सर घुमा लिया, कि कही वो कमीना फिर से परेशान करने ना आ जाए.
पर जिस बात का डर था वही हुवा, उसने मुझे और बिल्लू को पहचान लिया और अपनी साइकल मोड़ कर हमारे रिक्से के पीछे लगा दी.
मैं मन ही मन सोचने लगी कि बस इसी की कमी रह गयी थी.
मेरा दिल ज़ोर, ज़ोर से धड़कने लगा.
मुझे लग रहा था कि शायद ये आदमी भी इन्ही लोगो के साथ है.
वो तेज़ी से रिक्से के बिल्कुल पास आ गया और साथ, साथ चलने लगा.
मैं और ज़्यादा सहम गयी, मैने मन ही मन कहा, ओह नो, नोट अगेन.
वो बोला, अरे वह लगता है तुम दोनो का गरमा, गरम चक्कर चल रहा है.
मैं मन ही मन पिश कर रह गयी.
उसने बिल्लू से पूछा, क्यो बे, ली की नही इस परी की ?
बिल्लू ने उसे डाँटते हुवे कहा, आबे चल आगे बढ़, अपना काम कर.
वो बोला, अपना काम ही तो कर रहा हू.
उसने मेरी और देखा और बोला, क्या बात है मेरी जान आज तो कमाल लग रही हो.
मैने उसकी और गुस्से से देखा, वो बड़ी बेशर्मी से मेरी और मुस्कुरा रहा था.
उसे देखते ही मेरा मन उल्टी करने का हो गया, बहुत बदसूरत जो था वो.
वो बोला, आजा मेरी जान आज मुझे भी दे दे.
बिल्लू ने रिक्सा रोक दिया, और रिक्से से नीचे उतर गया, वो आदमी चुपचाप पीछे देखते हुवे आगे बढ़ गया.
मैने चैन की साँस ली.
मैने पूछा, इस सब नाटक के पीछे तुम लोगो का क्या मकसद है ? इस आदमी से तुम लोग मुझे जॅलील क्यो करवा रहे हो, मुझे बर्बाद तो कर ही चुके हो अब इश्कि क्या ज़रूरत है तुम लोगो को ?
बिल्लू बोला, मैं उसे नही जानता, और ये कोई नाटक नही था, अगर वो हमारे साथ होता तो उसे घर ही ना बुला लेते तुझे जॅलील करने को.
मैं चुप हो गयी.
बिल्लू बोला, और हमने तुझे बर्बाद नही किया है, तुझे तेरी जवानी के मज़े दिए है.
मैने कहा, बंद करो ये बकवास और मुझे जल्दी घर छोड़ दो मैं लेट हो रही हू.
फिर हमारे बीच कोई बात नही हुई.
बिल्लू ने ठीक 3 बजे रिक्सा घर के सामने लगा दिया. घर पर लॉक था, मतलब कि संजय अभी नही आए थे.
बिल्लू बोला, मैं फोन करूँगा.
मैने गुस्से में कहा ऐसी जुर्रत भी मत करना, अब तुम लोगो का कोई नाटक नही चलेगा, दफ़ा हो जाओ यहा से.
वो बोला, मैं तो तेरे लिए कह रहा था, तू तो शरमाती है, कभी खुद तो बुलाएगी नही.
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और आगे बढ़ गयी.
मैने देखा कि, घर के दरवाजे पर एक नोट लगा था.
उस पर लिखा था कि चिंटू मौसी के घर है.
क्योंकि मैं घर पर नही थी इश्लीए मौसी चिंटू को लेकर अपने घर चली गयी थी.
मैं ताला खोल कर जल्दी से अंदर आ गयी.
मैने फॉरन कपड़े चेंज किए और फटाफट किचन में खाना बना-ने लग गयी.
आज मैं फिर से संजय को बिना लंच किए घर से नही भेज सकती थी. मेरे साथ तो जो हो रहा था सो हो रहा था, मैं अपने पति को कोई दुख नही देना चाहती थी.
संजय 3:30 पर घर आ गये. मैं चिंटू को भी मौसी के यहा से ले आई. हम सब ने एक साथ लंच किया.
पर सच तो ये था की खाना मेरे गले से उतर ही नही रहा था, मुझे रह, रह कर, बिल्लू के घर मेरे साथ जो भी हुवा याद आ रहा था, और मैं गिल्ट से मरी जा रही थी.
संजय ने मुझ से पूछा, अरे ऋतु आजकल तुम्हे क्या हो गया है, किस सोच में डूबी रहती हो तुम, सब ठीक तो है ना ?
मैं हड़बड़ा गयी और मैने धीरे से कहा, हा सब ठीक है बस यू ही.
संजय बोले, अगर मोम, डॅड की याद आ रही है तो चली जाओ, जाकर मिल आओ.
मैने कहा, नही ऐसी कोई बात नही है.
संजय बोले, और हा तुम कह रही थी ना कि कोई काम तलाश करना, मेरे दोस्त ने एक कंपनी खोली है तुम इस वीक कभी भी, वाहा जाकर मिल आओ, मैने बात कर ली है, मॅनेजर लेवेल की पोस्ट मिल जाएगी, अछा लगे तो जोइन कर लेना.
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