RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
अचानक,उन्होने मेरी योनि से लिंग निकाल लिया और बोले, थोड़ा घूम जाओ, और डॉगी स्टाइल मे आ जाओ.
जैसे ही मैं उस पोज़िशन मे आई, मुझे याद आ गया कि मैं कैसे कल झाड़ियो में बिल्लू के आगे झुकी हुई थी, और मेरा मन फिर से ग्लानि से भर गया.
मुझे नही पता था कि वो क्या करेंगे, पर मैं प्रेयर कर रही थी कि आज वो वाहा से ना करे.
उन्होने, मेरे नितंबो को फैलाया, और मेरे गुदा द्वार पर चीकना कर दिया. मैं समझ गयी कि जीसका डर था, वही बात हो रही है. मैने पीछे मूड कर देखा तो चोंक गयी
संजय अपने लिंग पर, थूक लगा रहे थे.
जो कुछ भी पिछले दिन हुवा था, सब कुछ मेरी आँखो में घूम गया.
एक पल को लगा, मानो, वाहा मेरे साथ बिल्लू ही है.
मेरा मन फिर से, ग्लानि और गिल्ट से भर गया.
ना चाहते हुवे भी मुझे अपने अंदर, उसका, एक एक धक्का याद आने लगा.
मैने कहा नही, प्लीज़ मेरा मन नही है और झट से सीधी हो गयी.
संजय ने पूछा क्या हुवा.
मैने कहा कुछ नही. आज वाहा से करने का मन नही है.
वो बोले, क्यो तुम्हे तो अछा लगता था ?
मैने कहा, हा पर आज मन नही है.
मेरा मन इश्लीए भी नही हो रहा था क्योंकि मुझे अभी तक, बिल्लू के कारण वाहा दर्द था.
मैने पूछा, तुम थूक क्यो लगा रहे थे.
वो बोले, ट्यूब ख़तम हो गयी ना, नयी लाना भूल गया.
वो मेरे चेहरे पर सीकन देख कर, बोले ठीक है नही करते वाहा से, अपनी टांगे फैलाओ.
मैने टाँगे फैला दी और संजय मुझ मे समा गये.
मेरा ध्यान अपने पति से हाथ कर पूरी तरह कल की घटना पर टिक चुका था, रह, रह कर मुझे कल की घटना याद आ रही थी.
मैं पूरी तरह से संजय की बाहों में नही खो पाई, संजय का कब ख़तम हुवा पता ही नही चला.
ऐसा असर हुवा था, बिल्लू का मुझ पर.
मैं अपने पति के साथ सेक्स भी ठीक से नही कर पा रही थी.
ये इस लिए नही था कि, मुझे कल बहुत अछा लगा था.
दरअसल मेरा मन हर पल शर्मिंदगी और गिल्ट से भरा पड़ा था.
पर वक्त हर जखम भर देता है.
वक्त बीतता गया, और मैं, फिर से अपनी जींदगी मे खोने लगी. किचन मे काम करते वक्त मैं बंद खिड़की की और देखती तो सब याद आता पर मैं फॉरन अपना ध्यान अपने काम पर लगा लेती.
सब कुछ फिर से ठीक चल रहा था.
पर एक दिन की बात है. मैं , सुबह तैयार हो कर चिंटू के स्कूल के लिए निकली.
चिंटू के स्कूल में, कोई फंक्षन था, जीसमे की, बचो के माता, पिता को बुलाया था.
संजय, क्लिनिक मे बिज़ी होने के कारण, नही , आ सकते थे, इश्लीए मैं अकेली ही स्कूल के लिए घर से चल दी.
मैं, 11 बजे स्कूल पहुँची और फंक्षन को एंजाय किया,
मैं वाहा से कोई, 12:30 बजे फ्री, हो कर घर के लिए, चल दी.
मैं स्कूल से बाहर आ कर किसी ऑटो वाले की तलाश करने लगी. मुझे रिक्सा मे बैठना अब बिल्कुल अछा नही लगता था.
इस से पहले, कि कोई ऑटो आता, बिल्लू, वाहा आ धमका. वो रिक्से पर नही था, ना ही उसकी साइकल कहीं दिख रही थी.
मेरा दिल धक धक करने लगा, और मैं सोचने लगी कि अब क्या करू, ये कम्बख़त फिर से आ गया.
मुझे देख कर वो मेरे पास आ कर खड़ा हो गया और, मुझे घूर्ने लगा.
मैं चुपचाप खड़े हुवे ऑटो की रह देखती रही.
वो धीरे से बोला, क्या बात है उस दिन के, बाद तूने मुझे याद ही नही किया, तूने अपनी खिड़की भी बंद कर दी. मैं रोज वाहा 2 बजे आता हू और तेरा, इंतेज़ार कर के वापस आ जाता हू.
मैने कहा, यहा से दफ़ा हो जाओ, मैं तुम्हे नही जानती.
वो, बड़ी बेशर्मी से बोला, अछा, उस दिन तो मज़े से गांद मरवाई और अब मुझे नही जानती.
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