RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
“मैं हरी, हरी घास पर लेटी हुई हू. मेरे शरीर पर, कोई कपड़ा नही है. चारो तरफ, घास, फूस और झाड़िया है. मेरी टाँगे हवा मे उपर उठी हुई है. बिल्लू ने मेरी टाँगो को अपने शीने पर थाम रखा है. बिल्लू मुझ मे, समाया हुवा है और जनवरो की तरह मुज़मे धक्के लगा रहा है. बिल्लू गंदी, गंदी बाते बोल रहा है, जिन्हे सुन कर मेरा सर फटा जा रहा है. मेरे चहरे पर अजीब सी गर्मी है. मैं ज़ोर से चिल्लाती हू “नहियीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई”
और मैं उठ कर अपने बेड पर बैठ जाती हू.
संजय ने, तुरंत उठ कर, मेरे कंधो पर हाथ रखा, और पूछा, कोई बुरा सपना देखा क्या.
मैने कहा, हा बहुत ही बुरा और भयनक सपना था. उसने पूछा, क्या था सपने मे. और मैं चुप हो गयी. बताती भी, तो क्या बताती.
मैने होश संभाला, और कहा अब कुछ याद नही आ रहा. मैने घड़ी मे, वक्त देखा, अभी बस रात के 1:30 ही बजे थे. मैने चैन की साँस ली कि, सुक्र है, ये सपना सच नही होगा, क्योकि सुबह के सपने ही सच होते है.
मैं पानी पी कर वापस लेट गयी और संजय को कहा, सो जाओ, कोई चिंता की बात नही है.
पर मैं सोच मे थी कि, ये बिल्लू क्या, मेरी जींदगी का इतना बड़ा हिस्सा बन गया है कि अब मुझे उसके सपने भी आने लगे है.
मैं ध्यान से सपने का अनॅलिसिस करने लगी. सपने वाली जगह पता नही कोन सी जगह थी. चारो तरफ झाड़िया और पेड़ (ट्री) थे, लगता था कि किसी जंगल का द्रिश्य है.
मैं ये जानना चाहती थी कि ये सपना मुझे क्यो आया. पर कुछ नतीजा नही निकल पाया. अचानक मैने अपनी पॅंटी मे हाथ डाल कर देखा तो पाया की मैं वाहा पर गीली थी. मैं हैरान रह गयी और खुद पर शर्मिंदा हो गयी.
मैं सोच रही थी कि, वो कमीना बिल्लू, मुझे ये कैसी अजीब शी परेशानी दे गया है. पहले उसने, मेरे नितंबो पर अपने दांतो के निशान छोड़ दिए, जिशे संजय ने देख लिया, और मैं बाल-बाल बची.
फिर उसकी कही बाते मेरे दीमाग मे घूम रही थी, और अब मुझे ये इतना गंदा सपना आ गया.
ये बिल्लू आख़िर मेरी जींदगी से दफ़ा क्यो नही होता. मैने सोचा ताज़ा,ताज़ा बात है. शायद धीरे, धीरे सब ठीक हो जाएगा.
मैं सुबह 7 बजे उठी, और चैन की साँस ली कि चलो कल का भयानक दिन अब बीत गया, आज एक नया दिन है और एक नयी सुरुवात है.
संजय क्लिनिक चले गये और चिंटू स्कूल चला गया. मैं घर के काम मे लग गयी.
सुबह के 11 बज चुके थे. जब मैं किचन मे पहुँची तो सोचा की अब इस खिड़की को अलविदा बोल देती हू और मैने फ़ैसला किया कि मैं कम से कम खिड़की की ओर जाउन्गि.
2 कब बज गये पता ही नही चला. मुझे ख्याल आया कि मुझे बाहर देखना तो चाहिए कि, वह अब आता है कि नही, और यहा ना आने का, अपना वादा, निभाता है कि नही.
मैं खिड़की मे आ गयी और चारो तरफ नज़रे घुमा कर देखा, पर वाहा कोई नही था.
मेरे मन को तसल्ली मिली कि सुक्र है, ये कहानी यही ख़तम हुई.
मैं वापस अपने काम मे लग गयी, पर बार बार बाहर देखने के लिए खिड़की की और आने लगी. पर मुझे कोई नही दिखा.
मैने गहरी साँस ली और सोचा, ठीक ही तो है, ये सब यही ख़तम होना चाहिए था और मैं सोचने लगी कि बिल्लू ने अपना वादा निभाया है.
काई दिन बीत गये और मुझे यकीन हो गया कि वो अब दुबारा यहा नही आएगा.
अब मैं, खिड़की से झाँकना लग भग बंद कर चुकी थी. कभी अगर, बाहर देखा भी तो पाया की वाहा कोई नही है.
एक दिन, संजय शाम को जल्दी घर आ गये और बोले, चलो आज मूवी देखने चलते है. और मैं फॉरन सज-संवर कर तैयार हो गयी. मुझे मूवीस देखना, ख़ासकर थियेटर मे बहुत अछा लगता है.
मुझे पानी की प्यास लगी और मैं किचन मे आ गयी. मैने एक बॉटल निकाली और एक गिलास मे पानी डाला. पानी का गिलास ले कर मैं अचानक खिड़की की और मूड गयी.
मैने बहेर देखा तो पानी पीना भूल गयी. खिड़की के बाहर बिल्लू खड़ा था.
मैं सोच मे डूब गयी कि अब क्या करू ?
उसे बहुत दीनो बाद, देख कर मेरे मन मे अजीब सी बेचानी हो रही थी.
मैं हाथ मे पानी का गिलास लिए खड़ी रही और उसे देखती रही.
वह खिड़की के पास आ गया और बोला कैसी है तू.
इस से पहले कि मैं कुछ बोल पाती, अंदर से संजय की आवाज़ आई, ऋतु कहा हो, हम लेट हो रहे है.
|