RE: Mastram Kahani खिलोना
2 घंटे बाद वीरेंद्र जी की कार दोनो को लिए पंचमहल से बाहर जाने वाली सड़क पे भागी जा रही थी.कार 1 पोलीस पोस्ट के पास से गुज़री तो रीमा के दिल मे ख़याल आया कि अगर विरेन्द्र जी शेखर के बारे मे पोलीस को बता देते तो शायद होता.पर उनका दिल तो शायद ये मानने को तैय्यार ही नही था कि उसका अपने भाई & शंतु की मौतों से कोई लेना-देना था..आख़िर था तो वो उनका बेटा ही ना!..ये भी तो हो सकता है की शेखर ने किसी और वजह से शंतु के बारे मे झूठ बोला हो & सचमुच उसका इन मौतों से कोई वास्ता ना हो...लेकिन फिर उसने मीना के बारे मे इतना बड़ा झूठ क्यू बोला?
रीमा खिड़की के बाहर देख रही थी...उसने अपने जिस्म के सहारे इन दोनो मर्दो के दिल की असलियत तो जान ही ली थी & उसे अब पूरा यकीन था कि जहा उसका जेठ 1 धोखेबाज़ इंसान है,वही उसके ससुर 1 भरोसेमंद शख्स हैं.उन्होने उस से अपने शुरुआती रवैय्ये के लिए माफी भी माँग ली थी & अब तो वो उसे बेइंतहा चाहने लगे थे.रीमा के दिल मे 1 कसक पैदा हुई..अगर उन्हे पता चल गया कि वो केवल उनके साथ ही नही,शेखर के साथ भी चुदाई करती थी तो क्या होगा?..और मान लो पता ना भी चले तो उसके दिल के किसी कोने मे ये बात हमेशा फाँस की तरह अटकी रहेगी कि उसे अपने उपर जान च्चिड़कने वाले इस शख्स से मरते दम तक ये राज़ च्चिपाए रखना होगा.
कार अब हाइवे से उतर 1 सुनसान से रास्ते पे दौड़ रही थी,सामने 1 पुराना सा पुल नज़र आ रहा था जिसके नीचे बहुत शोर करती 1 नदी का पानी काफ़ी तेज़ी से बह रहा था,”ये कौन सी नदी है?”
“नदी नही बरसाती नाला है.बारिश की वजह से पूरा भर गया है,यहा से कुच्छ 5-6 किमी बाद ये जाके नदी मे मिल जाता है.गर्मी मे तो बिल्कुल सच जाता है ये.”
रास्ते के दोनो तरफ काफ़ी हरियाली थी पर यहा उतना ट्रॅफिक नही था,बीच-2 मे इक्का-दुक्का सवारिया दिख रही थी,तभी विरेन्द्र जी ने कार को बाए मोड़ा & सामने 1 फार्महाउस नज़र आया.उसके गेट पे पहुँच उन्होने हॉर्न बजाया.रीमा ने आस-पास देखा तो पाया कि अगला फार्महाउस थोड़ा दूरी पे था-लगता था जैसे की जंगल के बीच लोगो ने थोड़े घर बना रखे है.गेट खुलने की आवाज़ आई तो उसने देखा कि 1 देहाती सा इंसान विरेन्द्र जी को हाथ जोड़ नमस्ते करता गेट खोल रहा है.कार फार्महाउस के पोर्च मे खड़ी हुई तो विरेन्द्र जी ने उसे समान उतारने को कहा.उसका नाम भूलवा था & वो यहा फार्महाउस के आउटहाउस मे अपनी पत्नी मुनिया के साथ रहता था.
“अच्छा अब मुझे जाना है,शाम को आ जाऊँगा.किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो भूलवा या मुनिया से कहना & कोई भी बात हो तो मुझे फ़ौरन फोन करना.”,अपनी बहू को बाहो मे भर उन्होने चूम लिया,”..डरना मत.भूलवा को मैने ताक़ीद कर दी है की बिना मेरी इजाज़त यहा कोई बाहरी आदमी नही घुसेगा.”,उन्होने रीमा के कुर्ते मे हाथ घुसा उसकी कमर को सहलाया.
“ये किसका फार्महाउस है?..उम्म......& आपने इन दोनो के मेरे बारे मे क्या बताया है?”,शर्ट के गले मे से झाँकते अपने ससुर के बालो भरे सीने को रीमा ने चूम लिया.
“ये मेरे 1 दोस्त का था,इसे मैने कुछ दीनो पहले ही खरीदा है...शेखर को इसके बारे मे कुच्छ नही पता..”,उसकी कमर को दबाते हुए उन्होने उसकी गर्देन चूम ली,”..& तुम्हारे बारे मे ये कहा है कि तुम मेरी खास मेहमान हो.”
अच्छा अब जाता हू,शाम को जल्दी आओंगा.”,अपनी बहू को 1 आखरी बार चूम कर विरेन्द्र जी चले गये.
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अगले 4 दिन रीमा ने काफ़ी मज़े मे बिताए.शाम ढले विरेन्द्र जी आ जाते थे फिर वो उनके साथ सुबह तक तरह-2 से चुदाई करती थी.विरेन्द्र जी आते ही उसके & खुद के कपड़े उतार देते & फिर दोनो जो भी काम हो-खाना,टीवी देखना या फिर यू ही बाते करना,नंगे ही करते.दिन भर उसे कोई भी काम करने की ज़रूरत नही पड़ती.दोनो पति-पत्नी उसका पूरा ख़याल रखते.दोनो ठेठ देहाती थे.रीमा को तो उनकी बोली बड़ी मुश्किल से समझ मे आती थी पर वो उसकी बाते समझ लेते थे.दोनो वैसे भी ज़्यादा बाते नही करते थे & अपना काम ख़तम कर अपने आउटहाउस मे चले जाते थे.
फिर विरेन्द्र जी का फोन आया कि वो 4 दिन तक नही आ पाएँगे.पहली रात तो रीमा को अकेले सोने मे काफ़ी डर लगा & उसकी चूत ने भी उसे काफ़ी परेशान किया,उसे तो रोज़ भरपूर चुदाई की आदत पड़ गयी थी,बिना लंड के उसका बुरा हाल हो गया.
पाँचवे दिन उन्होने फोन किया की आज शाम 7 बजे तक वो ज़रूर आ जाएँगे लेकिन भूलवा & मुनिया 4 बजे वाहा से अपने गाँव के लिए निकल जाएँगे तो उसे 3 घंटे बिल्कुल अकेली रहना पड़ेगा.
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