RE: Mastram Kahani खिलोना
फिर 1 दिन उसने 1 नयी नौकरानी रख ली-कजरी.कजरी 1 अच्छे मगर ग़रीब परिवार की थी.बाप था नही & मा ने किसी तरह उसकी शादी करा दी,कुच्छ दिन तो सब ठीक चला,उसका पति 1 अच्छा इंसान था & मा-बेटी दोनो की ज़िम्मेदारी उसने उठा ली थी.पर 1 दिन उसे विदेश मे नौकरी का मौका मिला तो वो बाहर चला गया.6 महीने तक वो कजरी को नियम से पैसे भेजता रहा पर फिर उसके बाद उसके पैसे आने बंद हो गये & उसके खत भी." "..मा-बेटी ने उसका पता लगाने की बहुत कोशिश की पर यहा बैठे-2 कोई क्या कर सकता था!धीरे-2 करके उनके पैसे भी खर्च हो गये.इन्ही मुसीबत के दीनो मे पता नही कैसे सुमित्रा उसकी मा से मिली & कजरी को वो हमारे यहा ले आई.पर उनकी मदद करना सुमित्रा का मक़सद नही था.उसके असली मक़सद का पता मुझे तब चला जब मैने छुट्टियो मे छैल जाने का प्रोग्राम बनाया & सुमित्रा ने कहा कि कजरी भी हमारे साथ जाएगी.",रीमा गौर से उनके निपल्स को अपने नखुनो से खरोंछती हुई उनकी कहानी सुन रही थी,अपनी जाँघ के नीचे उनके लंड को तड़फ़दता वो सॉफ महसूस कर रही थी. "..तब सुमित्रा ने मुझे बाते की उसने कजरी की मा के साथ क्या सौदा किया था.उसने पैसो के बदले मे कजरी को मेरे बच्चे की मा बनने के लिए तैय्यार कर लिया था & वो चाहती थी छैल मे मैं उसे जम के चोदु & अपना बीज उसकी कोख मे डाल दू." "..शायद हमारी शादीशुदा ज़िंदगी मे पहली बार हमारा ज़ोरदार झगड़ा हुआ,मैं सुमित्रा के अलावा किसी और के साथ सोने की बात सोच भी नही सकता था.पर सुमित्रा अपनी ज़िद पे आडी रही & आख़िर मुझे ही झुकना पड़ा.मैं कजरी को हम दोनो के साथ छैल ले जाने को तैइय्यार हो गया.मैने सोचा था कि वाहा जाके मैं किसी तरह सुमित्रा को मना लूँगा & उसके दिमाग़ से ये वाहियात ख़याल भी निकाल दूँगा.",विरेन्द्र जी का हाथ रीमा की पीठ से होता हुआ अब उसकी गंद तक पहुँच गया था & जब भी वो उसकी फांको को दबाते तो जवाब मे रीमा अपनी जाँघ से उनके लंड को दबा देती. "छैल मे हम 1 कॉटेज मे रुके थे,पहले दिन घूमे-फिरने के बाद रात को जब मैं कमरे मे सोने गया तो सुमित्रा ने कजरी को कमरे मे धकेल दिया & बाहर से कुण्डी लगा दी.कजरी सहमी सी बिस्तर पे बैठी थी.मैने उसे बिस्तर पे सोने को कहा & खुद कमरे मे पड़े कार्पेट पे रज़ाई डाल कर सो गया.सुबह उठने पे मुझे लगा कि सुमित्रा आज फिर मुझ से झगदेगी.रात की खबर उसने कजरी से ले ली थी पर उसने मुझ से ज़रा भी नाराज़गी नही जताई.मैने सोचा कि अब उसके दिमाग़ से ये बेवकुफ़ाना ख़याल निकल चुका है.वो पूरा दिन हमने कुद्रत की खूबसूरती का लुत्फ़ उठाने मे बिताया." "उस रात सुमित्रा ने कजरी को मेरे पास नही भेजा बल्कि खुद कमरे मे आई.दरवाज़ा लगा मुस्कुराते हुए वो बिस्तर पे मेरे करीब आई तो मैने उसे अपने आगोश मे खींच लिया.वो भी मुझसे लिपट मुझे चूमने लगी.मेरे हाथ उसकी नाइटी मे घुसने लगे तो वो छितक कर मूह से दूर हो गयी & शरारत से मुस्कुराइ,'आज तुम पहले अपने कपड़े उतारो.'..मैने फ़ौरन उसकी बात मानते हुए अपने कपड़े निकाल दिए.",ससुर की कहानी अब मस्त मोड़ ले रही थी & रीमा भी गरम होने लगी थी.वो उनकी गर्दन चूमने लगी. "..मुझे लिटा सुमित्रा हौले-2 मेर होठ चूमने लगी.धीरे-2 उसके होठ मेरे होंठो से नीचे मेरी गर्दन पे आ गये,मैने हाथ बढ़ा उसे अपनी बाहो मे भींचना चाहा तो उसने मुझे रोक दिया,'ना,अभी नही,जब तक मैं ना काहु मुझे हाथ मत लगाना.',मैं तो बस मस्ती मे उसकी हर्कतो का मज़ा ले रहा था.और नीचे आ उसने मेरी छाती चूमि & फिर मेरे पेट से होते हुए मेरी नाभि मे जीभ फिराने लगी.मैं मस्ती मे कराहने लगा.सुमित्रा की जीभ ने और नीचे का रास्ता तय किया & मेरे लंड तक पहुँच गयी.जी तो कर रहा था कि उसे पकड़ कर लिटा दू & अपनी बाहो मे भींच उसकी चूत मे पाने लंड को पेल सवेरे तक उसे चोदु.",अब विरेन्द्र जी भी रीमा के बदन को कस के मसल रहे थे.रीमा अब बहुत जोश मे आगाई थी,उसने अपने ससुर को चूम लिया तो उन्होने उसे पूरा क पूरा अपने उपर कर लिया & उसकी कमर को भींच उसकी जीभ से अपनी जीभ लड़ा दी. "आगे बताइए.",रीमा ने किस तोड़ के उनका चेहरा अपने हाथो मे भर लिया.विरेन्द्र जी उसकी गंद को दबाने लगे,"..सुमित्रा ने मेरे सूपदे पे हल्के से चूमा & फिर बिस्तर से उतर कर खड़ी हो गयी...'क्या हुआ?रुक क्यू गयी,सूमी?',जवाब मे उसने अपनी नाइट का ज़िप खोल दिया तो वो ज़मीने पे सरक गयी.नीचे उसने कुच्छ भी नही पहना था & अब मेरी प्यारी बीवी मुझे अपने कातिल हुस्न का दीदार करा रही थी.मुझे लगा कि अब वो मेरे करीब आएगी पर ऐसा ना करते हुए,वो मूडी & कमरे का दरवाज़ा खोल दिया.वाहा डरी सहमी कजरी खड़ी थी.सुमित्रा ने हाथ बढ़ा उसे अंदर खींच कर कमरा फिर बंद कर लिया.",अपने ससुर के उपर लेटी रीमा अब और मस्त हो गयी.उनका लंड दोनो जिस्मो के बीच दबा हुआ था,रीमा घुटनो पे बैठ गयी & ससुर के सीने को खरोंछती उनके पेट पे दबे लंड को अपनी चूत से उसकी लंबाई पे रगड़ने लगी. "
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