RE: Mastram Kahani खिलोना
कॉल डीटेल्स मे बस नंबर्स थे उनके मालिको का नाम नही.इस मुश्किल को आसान करने के लिए रीमा ने रवि की टेलिफोन डाइयरीस का सहारा लिया जो वो बॅंगलुर से उसके समान मे लाई थी,पर ऐसा करने का वक़्त उसे दूसरे दिन ही मिला.उस दिन फोन कंपनी.के ऑफीस से वापस आकर वो घर के कामो मे उलझ गयी & रात को फिर पहले जेठ के बिस्तर मे & फिर ससुर के बिस्तर मे उनके & अपनी जिस्म की आग बुझाने के बाद अपने कमरे मे आकर निढाल हो सो गयी थी.
डीटेल्स मे रीमा ने देखा की मौत के दिन रवि ने उसे पहला कॉल करने के 20 मिनिट बाद 1 नंबर से आया कॉल रिसीव किए था & बाद मे उसपे 2 बार कॉल किया था यानी ये आख़िरी नंबर.था जिसपे रवि ने आक्सिडेंट से पहले बात की थी.
रीमा ने रवि की टेलिफोन डाइयरीस खोली,रवि ने बड़े करीने से सारे नंबर. को रिलेटिव्स,फ्रेंड्स & ऑफीस कॉंटॅक्ट्स की केटेगरी मे बाँट के लिखा था.कोई 2 घंटे तक वो उनमे सर खपाती रही पर वो नंबर उसे डाइयरी मे नही मिला.कल इतनी मुश्किल से झूठ बोल कर & अपने जिस्म का इस्तेमाल कर जो ये डीटेल्स उसने हासिल की थी वो बेकार थी.वो अभी भी वही खड़ी थी जहा पहले थी.
1 ठंडी आ बिस्तर पर लेट वो यूही डायरी उलटने-पलटने लगी तो उसने देखा की डाइयरी का आख़िरी पन्ना डाइयरी के लेदर कवर के अंदर घुसा हुआ है & ध्यान ना दो तो ऐसा लगता है जैसे की वो गटते के बॅक कवर का ही हिस्सा हो.उसने उस पन्ने को निकाला तो उसके पीछे बस इतना लिखा था:
शंतु-98क्षकशकशकशकशकश12
रीमा खुशी से उच्छल पड़ी,ये वही नंबर था जिसके मलिक से रवि ने आख़िरी बार बात की थी.पर ये शंतु कौन था?उसने अपना मोबाइल उठाया & वो नंबर.मिलाया पर उसे ये मेसेज सुनने को मिला कि ये नंबर अब मुजूद नही है.वो अपना दिमाग़ दौड़ाने लगी पर उसने रवि के मुँह से ये नाम कभी नही सुना था.
तभी ड्रॉयिंग रूम मे फोने की घनी बजी,उसका दिल धड़क उठा..हो ना हो ये वोही ब्लॅंक कॉल था.वाहा जा उसने रिसीवर उठाया,"हेलो."
कोई जवाब नही आया,"हेलो..हेलो..",तभी दरवाज़े की घंटी बजी जिसे शायद उस ब्लॅंक कॉलर ने भी सुन लिया & फोन काट दिया.दरवाज़े पे गणेश था.वो अंदर आकर किचन मे काम करने लगा.
"दीदी,कल हम दोपहर मे नही आ पाएँगे.",गणेश सब्ज़ी काट रहा था.
"क्यू,गणेश?"
"दीदी,वो क्लाइव रोड पे आहूजा साहब रहते है ना,उनके यहा दिन मे कोई दावत है तो हमारा बापू जो वाहा काम करता है उसने हमे वाहा मदद के लिए बुलाया है."
"ठीक है गणेश,कल दोपहर की छुट्टी कर लो.वैसे ये आहूजा साहब कौन हैं?"
"अरे दीदी,ये बहुत बड़े आदमी हैं,और आपको नही पता है ना..पर ये जो भाय्या है ना.."
"कौन शेखर भाय्या?"
"हा,वही..आहूजा साहब की लड़की से ही तो शादी किए थे.."
"अच्छा..तो दोनो अलग क्यू हो गये?"
"पता नही,दीदी.ये बड़े लोग की बात वही जाने,अभी ब्याह किए अभी छ्चोड़ दिए.."
"क्लाइव रोड पे कहा पे है उनका घर?",रीमा के दिमाग़ मे 1 ख़याल पनप रहा था.
"जब नेहरू पार्क के तरफ से क्लाइव रोड मे घुसते है ना दीदी,तो 1 बहुत ही बड़ा,महल जैसा बांग्ला है..55 नंबर. का वही है आहूजा साहब का घर."
"तो कल तुम महल मे दावत उदाओगे?"
"क्या दीदी आप तो हमारा मज़ाक उड़ती हैं!"
रीमा हँसने लगी तो गणेश भी हंसता हुआ कटी हुई सब्ज़िया कड़ाही मे डाल चूल्हे पे चढ़ने लगा.
रीमा के दिमाग़ ने शेखर की तलाक़शुदा बीवी मीना से मिलकर अपने जेठ के बारे मे कुच्छ जानने का फ़ैसला कर लिया था.
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