RE: Mastram Kahani खिलोना
थोड़ी ही देर मे लगभग सारे कपड़े करीने से अलमारी मे सजे हुए थे.तभी बाहर विरेन्द्र जी की कार रुकने की आवाज़ आई तो उसने आकर दरवाज़ा खोल दिया & फिर अपने कमरे मे लौट कर 1-2 बचे खुचे कपड़े रखने लगी.
"क्या कर रही हो?",उसके ससुर ने उसे पीछे से अपनी मज़बूत बाहो मे भर लिया & उसकी गर्दन चूमने लगे.
"छ्चोड़िए ना.देखते नही कपड़े रख रही हू."
"ये क्या है?",उन्होने पास मे पड़ी 1 स्कर्ट उठा ली,"ये तुम्हारा है?"
रीमा ने हा मे सर हिलाया.
"ह्म्म.चलो ये पहन कर आज घूमने चलो."
"पागल हो गये हैं."
"क्यू?ये तुम पहनती हो ना.तो आज ये स्कर्ट & ये शर्ट पहन घूमने चलो."
"लेकिन-"
"लेकिन-वेकीन कुच्छ नही.तैय्यार हो जाओ.अगर सुमित्रा की चिंता कर रही हो तो ज़्यादा परेशान मत हो.जब तुम यहा नही थी तो कितनी ही बार मुझे उसे अकेले छ्चोड़ कर काम के लिए जाना पड़ा है.उसे खाना खिला दो & दवाएँ दे दो & फिर तैय्यार हो जाओ."
थोड़ी देर बाद रीमा घुटनो तक की गहरी नीली स्कर्ट & आधे बाज़ू की सिल्क की सफेद शर्ट मे अपने ससुर के सामने थी.विरेन्द्र जी कुच्छ देर उसे सर से पाँव तक निहारते रहे & फिर उसे चूम लिया,"बाहर जाना ज़रूरी है क्या?"
"हा,ज़रूरी है.घर मे बैठे बोर नही होती तुम.चलो आज तुम्हे फिल्म दिखा लाऊँ.इसी बहाने आज अरसे बाद मैं भी सिनिमा हॉल की शक्ल देखूँगा.",विरेन्द्र जी ने थोड़े नाटकिया ढंग से ये बात कही तो रीमा को हँसी आ गयी.
थियेटर की सबसे आखरी रो की कोने की सीट्स पे दोनो बैठे थे.हॉल मे कुच्छ ज़्यादा भीड़ नही थी & उनके बगल की 4 सीट्स खाली पड़ी थी & उसके बाद 1 प्रेमी जोड़ा बैठा था जो अपने मे ही मगन था.लाइट्स ऑफ होते ही विरेन्द्र जी ने अपनी बाँह रीमा के कंधे पे डाल दी & उसे अपने पास खींच लिया,"क्या कर रहे हैं?कोई देख लेगा?"
"यहा देखने के लिए नही वाहा देखने के लिए लोगो ने टिकेट खरीदे हैं.",विरेन्द्र जी ने पर्दे की तरफ इशारा किया तो रीमा हंस दी.
"ओवव..."
"क्या हुआ?"
"ये हत्था पेट मे चुभ गया."
"अच्छा.",विरेन्द्र जी ने दोनो के बीच के कुर्सी के हत्थे को उपर उठा दिया,अब रीमा उनसे बिल्कुल सॅट के बैठी थी & वो उसे बाहो मे भर चूम रहे थे.रीमा भी उनकी किस का मज़ा लेते हुए उनके सर & पीठ को सहला रही थी.
चूमते हुए विरेन्द्र जी ने अपना 1 हाथ उसके घुटने पे रख दिया,रीमा समझ गयी की उनका इरादा क्या है & उनका हाथ वाहा से हटाने लगी.उसे डर लग रहा था की कही कोई देख ना ले.पर विरेन्द्र जी ने उसकी नही चलने दी उनका हाथ घुटने को सहलाता हुए उसकी स्कर्ट के नादर घुस उसकी मलाई जैसी चिकनी जंघे सहलाने लगा.
रीमा ने मस्ती मे उनके हाथ को अपनी भरी जाँघो मे भींच लिया.विरेन्द्र जी उसके होटो को छ्चोड़ उसकी गर्दन को चूमने लगे.हाथ अब जाँघो को मसलना छ्चोड़ उसकी पॅंटी तक पहुँच गया था.रीमा की हालत खराब हो गयी,वो जानती थी की थोड़ी देर मे वो झाड़ जाएगी & उस वक़्त उसे कोई होश नही रहता.अगर झाड़ते वक़्त वो चीख़ने लगी तो हॉल मे बैठे लोग क्या सोचेंगे.पर साथ ही साथ इस डर की वजह से उसे ज़्यादा मज़ा भी आ रहा था.
विरेन्द्र जी ने उसकी पॅंटी के बगल से अपनी उंगली अंदर घुसते हुए उसके चूत मे डाल दी.रीमा चिहुनकि & अपनी आह अपने हलक मे ही दफ़्न कर दी.विरेन्द्र जी उसके होंठ चूमते हुए उंगली से उसकी चूत को ऐसे चोदने लगे की साथ ही साथ उसका दाना भी रगड़ खा रहा था.थोड़ी ही देर मे रीमा ने अपना चेहरा उनकी गर्दन मे छुपाया & वाहा पे अपनी आहें दबाती हुई झाड़ गयी.
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