RE: Mastram Kahani खिलोना
रीमा के तो पसीने छुत गये,अंडरवेर मे क़ैद उसके ससुर का लंड उसके होटो से आ लगा था.जैसे-तैसे उसने मरहम लगाया & उठ के खड़ी हो गयी,"अब आप आराम कीजिए?",उसका आँचल सीने से नीचे ढालाक गया था वो उसे उठाने ही वाली थी क़ि विरेन्द्र जी बोले,"आज पैरो की मालिश नही करोगी?"
रीमा के जवाब का इंतेज़ार किए बिना उन्होने उसके हाथ से उसका आँचल लिया & उसकी कमर मे खोंस दिया.जब उनका हाथ कमर के उस हिस्से को,जहा पेट ख़तम होता है & जाँघ शुरू होती है,वाहा पे लगा तो रीमा सिहर उठी.
विरेन्द्र जी पलंग के हेडबोर्ड से टेक लगाके पैर फैला कर बैठ गये.
"मैं तेल ले आती हू.",रीमा जाने को हुई तो उन्होने उसका हाथ पकड़ लिया,"नही,बिना तेल के ही कर दो.
रीमा घुटनो के बल पलंग पे अपने ससुर की टाँगो के बगल मे बैठ गयी & झुक कर टांगे दबाने लगी.जब वो नीचे से उपर उनकी जाँघो तक आती तो देखती की अंडरवेर के अंदर कुच्छ हुलचूल हो रही है.झुकने से उसकी छातिया तो बस ब्लाउस के गले से छलक्ने को तैय्यर थी.वो उनपे अपने सासुर की नज़रो की गर्मी महसूस कर रही थी.करीब 10 मिनिट तक बारी-2 से उसने ऐसे ही उनकी दोनो टांगे दबाई.बीच मे 1 बार भी उसकी हिम्मत नही हुई कि नज़र उठा कर अपने ससुर की नज़रो से मिलाए.
"अब ज़रा कंधे भी दबा दो,रीमा."उन्होने ने उसके कंधे पे वाहा हाथ रखा जहा ब्लाउस नही था.
"जी.",विरेन्द्र जी हेडबोर्ड से अलग हो सेधे बैठ गये तो रीमा घुटनो के बल ही हेडबोर्ड & अपने ससुर के बीच मे बैठ गयी & उनके कंधे दबाने लगी.सारी नीचे से घुटनो मे फँसी तो उसने उसे घुटनो से उपर खींच लिया.अब घुटनो तक उसकी टांगे नंगी थी.
विरेन्द्र जी ने अपना बदन अब पीछे अपनी बहू के बदन से टीका दिया.रीमा की साँस अटक गयी,उसके ससुर का सर उसकी चूचियो पे आ लगा था & पीठ उसके पेट से सॅट रही थी,"ज़रा सर भी दबा दो,बहू.",उन्होने कंधे से उसका हाथ उठा अपने सर पे रख दिया.
रीमा सर दबाने लगी पर उसके ससुर के बदन की छुअन उसके बदन मे गुदगुदी पैदा कर रही थी.वो गरम होने लगी & थोड़ी देर बाद आँखे बंद कर पीछे से वो भी अपने ससुर से चिपक गयी & उनका सर सहलाने लगी.काफ़ी देर तक ये सर दबाने का नाटक चलता रहा.रीमा की चूत गीली होने लगी थी.
"रीमा.."
"ह्म्म.",रीमा आँखे बंद किए जैसे नशे मे बोली.
"ज़रा सामने आकर सर दबा दो.",उन्होने हाथ पीछे ले जाके उसका हाथ पकड़ा & उसे सामने ले आए.रीमा उनकी ओर मुँह कर उनकी बगल मे बैठ सर दबाने लगी.विरेन्द्र जी एकटक उसके चेहरे & उसके बदन को देखे जा रहे थे.रीमा का चेहरा शर्म से लाल हो गया था.
"ऐसे तुम ठीक से नही दबा पा रही हो.बिल्कुल सामने होकर बैठो."
रीमा की समझ मे नही आया कि बिल्कुल सामने वो कैसे बैठे,उसने सवालिया नज़रो से उन्हे देखा.जवाब मे उन्होने ने अपने बाए हाथ से उसकी उपरी बाँह को पकड़ा & दाएँ से उसकी बाएँ घुटने को,जोकि सारी उठी होने की वजह से नंगा था,& उसकी बाई टांग को अपने शरीर की दूसरी ओर कर लिया.अब रीमा अपने ससुर के बदन के दोनो ओर घुटने रख के खड़ी थी.उसका दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था.
विरेन्द्र जी ने उसकी कमर को पकड़ा & उसे अपने अंडरवेर पे बिठा दिया,"हां,अब बैठ के सर दबओ."
रीमा को नीचे अपनी गंद & चूत पे अपने ससुर का कड़ा लंड महसूस हो रहा था,उसकी चूत तो बस लंड छुते ही जैसे पागल हो गयी & पानी छ्चोड़ने लगी.रीमा ने किसी तरह सर दबाना शुरू किया.विरेन्द्र जी ने हाथ अब उसके नंगे घुटनो पे रख दिए.
थोड़ी देर तक दोनो ऐसे ही बैठे रहे & रीमा आँखे बंद किए अपने ससुर का सर दबाते रही.वो लगातार उसे घुरे जा रहे थे & उसमे इतनी हिम्मत नही थी कि उनसे नज़रे मिला सके.फिर उन्होने अपना हाथ उसके घुटनो से नीचे उसकी नंगी टाँगो के पिच्छले हिस्से पे फिराना शुरू कर दिया.रीमा ने अपनी आह बड़ी मुश्किल से अपने गले मे दफ़्न की.
विरेन्द्र जी का हाथ नीचे से वापस घुटनो तक आया तो वाहा रुकने के बजाय उपर उसकी सारी मे घुस गया & उसकी भारी जाँघो के पिच्छले गद्देदार हिस्से को सहलाने लगा.रीमा अब हवा मे उड़ने लगी,अपने ससुर के बालो से खेलती वो आँखे बंद किए उनके हाथो का मज़ा उठाने लगी.करीब 10-15 मिनिट तक विरेन्द्र जी उसकी मांसल जाँघो को आगे पीछे,उपर-नीचे सहलाते रहे.
"रीमा.."
"ह्म्म."
"ज़रा ये किताब पीछे शेल्फ पे रख दो.",बिस्तर पे 1 किताब पड़ी थी & पलंग के हेडबोर्ड के उपर दीवार मे 1 शेल्फ बना था,विरेन्द्र जी ने किताब उसे थमा दी & शेल्फ की ओर इशारा किया.
किताब रखने के लिए रीमा को घुटनो पे खड़ा हो आगे की ओर थोडा झुकना पड़ा.ऐसा करने से उसकी चूचिया अब उसके ससुर के चेहरे के बिल्कुल सामने आ गयी,अगर वो थोडा और झुकती तो वो सीधा उनके चेहरे से आ लगती.
"आहह...",रीमा किताब रख रही थी की उसकी आ निकल गयी.विरेन्द्र जी 1 उंगली उसकी नाभि मे घुसा उसे कुरेदते हुए उसके नेवेल रिंग को छेड़ रहे थे,"ये पहनने मे दर्द नही होता?"
"ना..ही..",रीमा ने उखरती सांसो के बीच कहा.
उसके हाथ शेल्फ से उतर कर उनके कंधो पे आ लगे थे.विरेन्द्र जी उसकी नाभि को छेड़ते हुए उसके छल्ले को उतारने लगे.उसकी साँसे तेज़ हो गयी,"ऊव्व...",उन्होने छल्ले को निकाल कर अलग कर दिया.अब वो अपनी पूरी हथेली उसके सपाट,चिकने पेट पे फिराने लगे,हाथ पीछे ले जा उसकी पीठ पे रखा & उसके बदन को अपनी ओर धकेला & उसके पेट पे अपने होंठ रख दिए.
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