RE: Mastram Kahani खिलोना
इस बार वो बहुत धीरे-2 अपनी सारी मे कसी मस्त,भारी गंद को मतकाते हुए वो सॅंडल पहन कर दो बार चली.शीशे मे उसे उसके ससुर के चेहरे पे अपने बदन के लिए प्यास सॉफ दिख रही थी,"ये सही है.इसे ही ले लेती हू."
विरेन्द्र जी ने उसे कुल मिलाके 3 जोड़ी सॅंडल्ज़ दिलवाए.उन 3 जोडियो को रीमा ने कोई 15 जोडियो को ट्राइ करने के बाद चुना,यानी की उसने कम से कम 15 बार अपने ससुर को अपनी मतकती गंद का दीदार कराया.दुकान से कार तक जाते हुए उसका हाथ उनके हाथ मे ही रहा.
उस रात रीमा कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो गयी थी.बिस्तर पे मचलते हुए उसने 4 बार अपनी चूत को अपने हाथो से शांत किया.
15-20 दीनो के लिए आया हुआ शेखर अब तो जैसे यही बस ही गया था.वैसे तो उसे कुच्छ दीनो पे 1-2 रोज़ के लिए दिल्ली जाना पड़ता था,पर ज़्यादातर वक़्त वो पंचमहल मे ही रहने लगा था.कहने को उसने कह दिया था की काम ही कुच्छ ऐसा आ गया है पर रीमा जानती थी कि ये उसके बदन की प्यास थी,जो उसे यहा रोके हुए थी.
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"रीमा,ज़रा इधर तो आना.",शेखर ने अपने कमरे से उसे आवाज़ दी.रात का खाना हो गया था,रीमा अभी-2 सुमित्रा जी को दवा पीला उन्हे सुला के कमरे से निकली थी.सास की सेवा के बहाने उसने अपने ससुर को अपने बदन की गोलैईयों का पूरा दीदार कराया था.
"हा,कहिए क्या बात है?",रीमा कमरे मे दाखिल हुई.
"1 छ्होटा सा दाना था जो अब फोड़े की शक्ल इकतियार कर चुका है.तुम्हे कोई दवा पता हो तो बताओ ना."
"कहा पे है?"
जवाब मे शेखर ने अपनी कमीज़ उतार दी तो रीमा ने शर्म से आँखे नीची कर ली.
"ये देखो.",उसके बाए निपल के थोड़ा उपर 1 छ्होटा सा फोड़ा था.उसने उसका हाथ पकड़ उस पर रख दिया,"अब तो थोड़ा दर्द भी कर रहा है."
"रुकिये,अभी अपना फर्स्ट-एड किट लाती हू."
रीमा किट ले आई & दवा को रूई मे लगा जैसे ही उसने फोड़े पे लगाया तो शेखर कराह उठा,"आहह!",& उसने अपने हाथ से उसकी कमर को पकड़ किया.रीमा का हाथ काँप गया & रूई शेखर के निपल पे आ लगी.अपने गुज़रे हुए भाई की तरह ही उसका सीना भी बिल्कुल चिकना था.निपल छुते ही रीमा की चूत गीली होने लगी.उसका दिल कर रहा था कि अभी उस से लिपट कर अपनी प्यास बुझा ले...कितने दिन हो गये थे उसे चुदे हुए!
रीमा ने किसी तरह खुद पे काबू रखा & उस फोड़े को फोड़ने की कोशिश करने लगी.शेखर आँखे बंद किए हुए ऐसे दिखा रहा था जैसे उसे बहुत दर्द हो रहा हो & जब भी रीमा फोड़े को दबाती वो कराहते हुए उसकी कमर को दबा देता.पर रीमा जानती थी की फोड़ा मामूली सा ही है & शेखर बस नाटक कर रहा है.
करीब 5 मिनिट मे रीमा ने फोड़े को फोड़ कर सारा गंदा पानी निकाल दिया & वाहा पट्टी लगाने लगी.शेखर का हाथ अभी भी उसकी कमर पे था & उसे हौले-2 सहला रहा था.उसकी हरकत से रीमा के गुलाबी गाल और लाल हुए जा रहे थे.जैसे-तैसे उसने पट्टी लगाई,"हो गया.मैं जाती हू."
शेखर ने उसे नही रोका & 1 आखरी बार उसकी कमर को दबा दिया.
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