RE: Mastram Kahani खिलोना
वो अपनी बहू के सामने खड़े हो गये."अगर कर सकती हो तो मुझे माफ़ कर देना,रीमा.मैने तुम्हारे साथ बहुत ज़्यादती की है.हाथ जोड़ कर तुमसे 1 गुज़ारिश करता हू,तुम हमे छ्चोड़ कर मत जाओ.जबसे तुम आई हो,सुमित्रा के चेहरे पे 1 सुकून दिखता है जो पहले कभी नही दिखा.घर मे जैसे...जैसे फिर से थोड़ी सी ही सही रौनक जैसी आ गयी है."
अपने ससुर को हाथ जोड़े उस से विनती करते देख उसे अपने उपर शर्म आ गयी,कल शाम शायद वो कुच्छ ज़्यादा बोल गयी,"पिता जी,ये आप क्या कर रहे हैं!",उसने उनके जुड़े हाथो को पकड़ लिया,"माफी तो मुझे माँगनी चाहिए कल शाम मैने भी बहुत तल्खी से बात की."
"पर उसका ज़िम्मेदार भी तो मैं ही था ना."
"आप बड़े हैं,आपका हक़ है पिता जी."
"ओह्ह,रीमा.कितना ग़लत समझा मैने तुम्हे.",उन्होने ने उसे अपने गले से लगा लिया.विरेन्द्र जी 6'2" कद के लंबे चौड़े शख्स था.उन्होने तो जज़्बाती हो उसे गले लगाया था पर उनके चौड़े सीने मे मुँह च्छूपाते हुए रीमा के बदन मे सनसनी दौड़ गई.उसे जैसे वाहा बहुत सुरक्षा का एहसास हुआ,दिल किया की बस ऐसे ही हमेशा खड़ी रहे.पर फिर उसे अपने उपर शर्म आई,अपने ससुर के बारे मे वो ये कैसी बातें सोच रही थी!
विरेन्द्र जी ने उसे अपने से अलग किया,"हम आज ही सबको बता देंगे की तुम असल मे रवि की पत्नी हो."
"नही.ऐसा मत कीजिए."
"पर क्यू?"
"लोग बातें करेंगे,पिताजी की आख़िर इतने दीनो तक आपने सबसे मुझे नर्स के रूप मे क्यू मिलवाया?खमखा हमारे परिवार के बारे मे उल्टी-सीधी बातें सुनने को मिलेंगी."
"पर रीमा..-"
"प्लीज़,पिताजी.मेरी बात मान लीजिए & जैसे चल रहा है चलने दीजिए.आगे भगवान हमे कोई रास्ता ज़रूर दिखाएँगे."
"ठीक है.तुम कहती हो तो मान लेता हू.पर मेरी 1 बात तुम्हे भी माननी पड़ेगी."
"बोलिए ना."
"तुम अब हमसे दूर जाने की बात दिल मे भी नही सोचोगी & रोज़ खाने मे कुच्छ ना कुच्छ बनाओगी."
रीमा के होटो पे मुस्कान फैल गयी,"ठीक है.",विरेन्द्र जी भी हंस के चले गये.आज पहली बार उसने उन्हे हंसते देखा था,लगा जैसे कोई दूसरा इंसान ही उनकी जगह आ गया.
उस दिन से तो घर का माहौल ही बदल गया.रीमा ने भी अपने ससुर का 1 नया रूप देखा.वो उसका बहुत ख़याल रखने लगे थे.वो भी अपनी सास के साथ-2 उनका ध्यान रखने लगी थी.अब तो शाम को दफ़्तर से लौट कर वो बस उस से ही बातें करते रहते थे.जहा हर वक़्त सन्नत पसरा रहता था वाहा अब हँसी की आवाज़े सुनाई देने लगी थी.पर रीमा के मन के 1 कोने मे रवि की मौत की गुत्थी सुलझाने की बात भी थी.वो बस सही मौका तलाश रही थी,अपने ससुर से इस बारे मे बात करने का.
1 बात और भी उसे खटक रही थी.उसके ससुर उतने बुरे नही थे जितना उसने पहले सोचा था.दर्शन तो उनकी बड़ाई करते नही थकता था.बाज़ार-मोहल्ले मे भी सबके मुँह से वो उनके लिए बस तारीफ ही सुनती,फिर आख़िर शेखर उनसे क्यू उखड़ा-2 रहता था?
शेखर उसे 1 सुलझा हुआ इंसान लगा था पर अपने पिता से क्यू उसकी बनती नही थी,ये बात उसकी समझ मे नही आ रही थी.
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उस रोज़ वो अपनी सास को दवा पीला रही थी,परदा खुला हुआ था & रूम के दूसरे हिस्से मे विरेन्द्र जी उसकी तरफ मुँह कर आराम कुर्सी पे बैठे कोई किताब पढ़ रहे थे.सास को दवा पिलाने के बाद उनका बिस्तर ठीक करते वक़्त उसका पल्लू उसके सीने से सरक गया तो उसने भी बेपरवाही से उसे नीचे अपनी सास के बगल मे बिस्तर पे रख दिया.अब उसका ब्लाउस-जिसमे से उसकी चूचियो का 1 बड़ा हिस्सा झाँक आ रहा था & उसका गोरा,सपाट पेट जिसके बीचोबीच उसकी गहरी नाभि पे वो सोने का रिंग चमक रहा था-सॉफ दिख रहा था.
काम करते हुए उसने देखा की उसके ससुर किताब की ओट से उसे देख रहे हैं तो उसे अपनी हालत का ध्यान आया.शर्म से उसके गाल लाल हो गये,उसने धीरे से अपना पल्लू उठा अपने सीने पे रख लिया.काम ख़त्म कर वो बिना उनकी तरफ देखे कमरे से बाहर निकल आई.
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