Mastram Kahani खिलोना
11-12-2018, 12:42 PM,
#8
RE: Mastram Kahani खिलोना
खिलोना पार्ट--3

गांद के नीचे लगे कुशन पे पड़े खून के धब्बे उसके कुंवारेपन के ख़त्म होने की दास्तान बयान कर रहे थे.

"ऊओ....रवि!",रीमा 1 हाथ से अपनी छातिया मसल्ते हुए & दूसरे से अपने चूत के दाने को रगड़ते हुए झाड़ गयी.आँखे खोल वो अपनी सुहग्रात की यादो से बाहर आई.टवल से अपनी चूत से बह आए पानी को उसने सॉफ किया & कपड़े पहनने लगी.

कपड़े पहनते हुए उसने 1 नज़र घड़ी पे डाली तो देखा की 2 बज रहे हैं,तभी उसका मोबाइल बजा.उठाया तो रवि था,"हेलो!जान,सॉरी आने मे थोड़ी देर हो जाएगी.कुच्छ ज़रूरी काम आ गया है."

"आज के दिन भी काम!जाओ मैं तुमसे बात नही करूँगी."

"प्लीज़ नाराज़ मत हो,रीमा.क्या करू!बहुत ज़रूरी है.नही तो क्या मेरा दिल नही कर रहा आज का दिन सेलेब्रेट करने का.सवेरे से मैं तो बस यही सोच रहा हू कि आज तुम्हे कैसे चोदुन्गा.."

"धात!फोन पे भी ऐसी बातें कर रहे हो.ऑफीस मे कोई सुन लेगा तो."

"तो सुन ले.अपनी बीवी को चोदने की बात कर रहा हू किसी और को नही."

"चुप!पागल.अच्छा बताओ कितने बजे तक आ जाओगे."

"7 बजे तक पक्का."

"ओके.उस से देर मत करना."

"नही करूँगा,डार्लिंग.ओके,बाइ!"

"बाइ!"

शादी के बाद रीमा को अपने बारे मे 1 बहुत अहम बात पता चली थी.वो ये कि उसे चुदाई मे बहुत मज़ा आता था.जितना रवि उसे हर रोज़ चोदने को बेताब रहता था उतना ही वो भी रहती थी-शायद उस से ज़्यादा ही.हनिमून के तीसरे दिन जब रवि ने उसका हाथ पकड़ अपने लंड पे रखा तो वो कुच्छ शर्म & कुच्छ झिझक से अपना हाथ खींच बैठी थी,पर रवि के इसरार के बाद ना केवल उसने उसके लंड को अपने हाथो मे लिया बल्कि मुँह मे भी लेकर जम के चूसा.उसे लंड से खेलने मे बहुत मज़ा आया था.

हनिमून के 5 दीनो के बाद उसने कभी भी रवि को कॉंडम नही इस्तेमाल करने दिया.उसने उसे साफ कह दिया कि जो भी प्रोटेक्षन लेना है वो लेगी पर उसकी चूत & उसके लंड के बीच कुच्छ भी आए,ये उसे मंज़ूर नही था.पिच्छले 1 साल मे दोनो पति-पत्नी 1 दूसरे से पूरी तरह से खुल गये थे.छुट्टी के दिन अगर वो शहर नही घूम रहे होते तो घर के किसी कमरे मे चुदाई मे लगे होते.रवि तो छुट्टी मे उसे कपड़े पहनने ही नही देता था.

जहा रवि को उसे डॉगी स्टाइल & स्पून पोज़िशन -जिसमे वो करवट से लेट जाती & रवि उसके पीछे करवट से लेट उसकी चूत मे लंड घुसा कर चोद्ता-मे चोदना पसंद था वही रीमा को रवि के नीचे या फिर उसके उपर आकर चुदाई करना भाता था.दोनो हर रात कम से कम 2 बार चुदाई करते जिसमे 1 बार रवि की पसंद की & दूसरी बार रीमा की पसस्न्द की पोज़िशन मे चुदाई होती.

सारी पहन रीमा ने अपनी नाभि पे हाथ फेरा,फिर ड्रेसिंग टेबल से 1 रिंग उठा उसमे पहन ली.रीमा ने रवि के जनमदिन के मौके पे उसके तोहफे के तौर पे अपनी नेवेल पियर्सिंग कराई थी.रवि तो ये देख पागल ही हो गया था & पता नही कितनी देर तक उसकी ज़ुबान उसके पेट & नाभि पे घूमती रही थी.जब दोनो चुदाई नही कर रहे होते & यूँही बैठे टीवी देख रहे होते या कुच्छ पढ़ रहे होते तो रवि उसकी बगल मे कमर मे बाँह डाल बैठ जाता & अपना हाथ उसके पेट पे पहुँचा उस नेवेल रिंग से खेलता रहता.

ऐसा नही था कि सब कुच्छ सपने सा सुंदर था.रवि के पिता की नाराज़गी रीमा को बहुत परेशान करती थी.वो अनाथ थी शायद इसलिए परिवार की अहमियत रवि से ज़्यादा समझती थी,पर इस समस्या का हाल कैसे निकाले उसे समझ नही आता था.हनिमून के बाद रवि उसे ले पंचमहल गया.उसे लगा था कि पिताजी जब ये देखेंगे की उसने शादी कर ली है तो उन्हे मान ही जाएँगे.पूरे सफ़र मे रवि उसे अपने माता-पिता,भाई & दद्दा की कहानिया सुनाता रहा.

दद्दा कहने तो उसके परिवार के नौकर थे पर सभी लोग उन्हे भी परिवार का सदस्य ही मानते थे.दद्दा का नाम दर्शन था पर रवि & उसका भाई शेखर प्यार से उन्हे दद्दा बुलाते थे.जब शेखर 1 साल का था तो दद्दा घर मे आए & तब से यही रह गये.

रीमा को वो दिन याद आया,जब टॅक्सी से उतर रवि & वो उसके घर मे दाखिल हुए,"दद्दा ओ दद्दा!",रवि ने गेट खोलते हुए आवाज़ दी.

घर का दरवाज़ा खुला & वीरेन्द्रा साक्शेणा बाहर आए,"वो बाज़ार गया है."

रवि ने आगे बढ़ पिता के पाँव च्छुए तो रीमा ने भी वैसा ही किया.दोनो घर के अंदर गये तो रीमा ने पहली बार रवि की मा को देखा.रवि उन्हे रीमा के बारे मे बताने लगा.बिस्तर पे पड़ी वो उन्हे देख रही थी पर कुच्छ पता नही आ रहा था कि उन्हे कुच्छ समझ भी आ रहा था या नही.थोड़ी देर बाद विरेन्द्र जी ने रवि को आवाज़ दी तो रवि रीमा को वही छ्चोड़ कमरे से बाहर चला गया.

"...अभी 2-3 महीने बॅंगलुर मे काम करूँगा फिर कोशिश कर यहा ट्रान्स्फर ले लूँगा & आपलोगो के साथ रहूँगा."

"तुम्हारा अपना घर है जब चाहो आओ पर वो लड़की यहा नही आएगी."

"वो लड़की अब मेरी पत्नी है,पिताजी."

"मैं नही मानता."

"आपके मानने ना मानने से कुच्छ नही होता.क़ानून उसे मेरी बीवी मानता है."

"मैं तुमसे बहस नही करना चाहता.उस लड़की को मैं अपनी बहू नही मानता.मैने पूरी बिरादरी मे किसी को तुम्हारी इस बेवकूफी के बारे मे नही बताया है...यहा तक की दर्शन भी कुच्छ नही जानता.अगर इस घर से ताल्लुक रखना है तो उस लड़की को अपनी ज़िंदगी से अलग करो."

"ठीक है,आपने जिस बिरादरी को कुच्छ नही बताया है,आपको वो बिरादरी मुबारक हो.मुझे आपसे या आपकी बिरादरी से कुच्छ लेना-देना नही.अगर इस घर मे मेरी पत्नी की इज़्ज़त नही होगी तो उसे मैं अपनी बेइज़्ज़ती समझूंगा."

"जो मर्ज़ी समझो.मैने अपनी बात कह दी है."

"ठीक है.मैं जा रहा हू & तब तक वापस नही आओंगा जब तक रीमा को अपनी बहू नही मानेंगे.",और दोनो वॉया से चले आए.

रीमा ने कई बार रवि को समझाया कि वो नही जा सकती तो क्या हुआ वो चला जाया करे पंचमहल पर रवि भी अपने पिता की तरह ज़िद्दी था.दिल ही दिल मे तड़प्ता रहता था अपनी मा को देखने के लिए लेकिन जाने का नाम तक ज़ुबान पे नही लाता था.अपने भाई शेखर से उसे घर का हाल मालूम होता रहता था,शेखर 1-2 बार अपने ऑफीस टूर पे बॅंगलुर भी आया था & दोनो से मिला भी था.रीमा को वो 1 बहुत शरीफ इंसान लगा था.

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रीमा ने घड़ी देखी तो 8 बज रहे थे,उसने रवि को फोन लगाया तो स्विच ऑफ का मेसेज आया.ऐसे ही 9 बज गये तो वो चिंता से परेशान हो उठी.रवि का मोबाइल लगातार स्विच ऑफ आ रहा था.उसके ऑफीस के साथियो को फोन किया तो उन्होने कहा की वो तो 3 बजे ही दफ़्तर से निकल गया था,रीमा को बहुत घबराहट होरही थी & कुच्छ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे.घड़ी ने 10 बजाए & उधर डोरबेल बाजी.वो चैन की साँस ले भागती हुई दरवाज़े पे पहुँची.

"कहा थे इत-.."दरवाज़ा खोल उसने सवाल पोच्छना शुरू किया पर बीच ही मे रुक गयी.सामने 1 पोलीस्वला खड़ा था.

"आप मिसेज़.रीमा साक्शेणा हैं?"

"जी."

"आप मिस्टर.रवि साक्शेणा ,जो मेट्रोपोलिटन बॅंक मे काम करते हैं,उनकी वाइफ हैं?"

"जी,हां.क्या बात है?",रीमा का दिल ज़ोरो से धड़क रहा था.

"आपके पति का आक्सिडेंट हुआ है."
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