RE: vasna kahani बेनाम सी जिंदगी
उस खामोशी का सन्नाटा आज भी मेरे कान मे चीखता हैं. जब भी वो पल मेरे ज़हन मे आता हैं,मेरा दिल तड़प उठता हैं. मैं उस पल की खामोशी से आज तक भाग रहा हूँ. अपने पैरो मे मैं दर्द महसूस कर सकता हूँ मगर उनपे मेरा काबू नही हैं. वो बस भागते जा रहे हैं और मेरे बदन के अपने उपर धो रहे हैं. मुझे ऐसा एहसास हो रहा था कि मैं किसी ऐसी चीज़ से भाग रहा था जो कभी मेरा पीछा नही छोड़ेगा. मेरी साँसे उखड ने लगी थी,मगर किसी ब्रेक फैल कार की तरह मैं आगे बढ़ता जा रहा था. और तभी;
"अबी ओये भडवे!!"
अचानक मुझे एक चीख सुनाई दी और कर्कश हॉर्न की आवाज़ से मेरे कान सुन्न हो गये. मैं अपनी ख़यालो की दुनिया से बाहर आ गया और देखा तो मैं रोड के रॉंग साइड से भाग रहा था. पता नही कब मैं फूटपाथ पर से उतर गया और रास्ते पर भागने लगा. सुबह सुबह दूध पहुँचाने वाले मिनी-ट्रक्स के ठीक सामने मैने अपने आप को पाया. ट्रक की खिड़की मे एक भद्दा सा आदमी अपना सिर बाहर निकाल कर मुझसे कह रहा था;
"अबे ओये भडवे!! नशे मे चल रहा हैं क्या? कुत्ते की तरह मेरी ही गाड़ी मिली तुझे मरने के लिए? चल हट!"
इतना कह कर उसने दोबारा से उसकी गाड़ी आगे बढ़ाई. मैं कुछ नही कह पाया और साइड मे सरक गया. वो ड्राइवर मुझे गालियाँ देते हुए आगे बढ़ गया. मैं साइड मे फूटपाथ के किनारे पर बैठ गया. पता नही मैं कब्से और कितनी दूर तक भाग रहा हूँ.मैने आस पास देखा. ऑलमोस्ट 2 किमी दूर आ गया था मैं मेरे घर से. मैने थोड़ा आराम किया और सोचा कि अब घर वॉक करते हुए जाता हूँ. मैं अब उस दिन जो कुछ हुआ उसके बारे मे कुछ सोचना नही चाहता था. मैने झट से अपना मोबाइल निकाला और गाने सुनते सुनते वॉक करने लगा. टाइम देखा तो सुबह के 5:40 हो रहे थे. मैं वॉक करते करते घर की ओर बढ़ने लगा. अब तक रास्ते पर और भी लोग मुझे दिखाई देने लगे थे. बुड्ढे तो सुबह सूभ वॉक पर निकलते हैं,
पेपर पहुँचने वाले, दूधवाले. धीरे धीरे सारा जनजीवन जागने लगा था. मैं पूरी कोशिश कर रहा था कि नेहा और उस दिन जो हुआ उसके बारे मे ना सोचु. जितने भी सेनटी सॉंग्स हैं मेरे मोबाइल मे,मैं उन्हे स्किप करता हुआ घर की ओर चल पड़ा.
घर पहुँचते पहुँचते मुझे 30 मिनट के आस पास लग गये. मैं पसीने से भीग गया था. पसीने की वजह से टी-शर्ट पूरी तरह से भीग गयी थी और मेरे बदन से चिपक गयी थी. मैं घर का दरवाजा खोल कर घर मे एंटर हुआ. न्यूज़ पेपर उठा कर लिविंग रूम के टेबल पर रखा. अभी भी मेरे हिसाब से घर के सभी लोग सो रहे होगे. मुझे बड़ी गर्मी लग रही थी. मैने शूस निकाले और सोचा की जल्दी से पहले नहा लेता हूँ. तो मैने सीढ़िया चढ़ना शुरू किया और सीढ़िया चढ़ते हुए ही मैने गीली,पसीने से भीगी हुई टी-शर्ट निकाल दी. अब जैसा कि मैने कहा दोस्तो कि मैं पिछले कयि महीनो से बोहोत ही सीरीयस वर्क आउट कर रहा हूँ. हर रोज़ 2 घंटे. तो अब मेरी बॉडी भले ही जॉन अब्राहम तो नही मगर बड़ी ही आकर्षक हो गयी थी. बलून्स की तरह फूले हुए मेरे सख़्त बाइसेप्स बन गये हैं. 14 इंच के आस पास. चेस्ट बिल्कुल मर्दाना. मैं मानता हूँ कि एक मर्द की छाती पे बाल होने चाहिए. इट लुक्स रियल सेक्सी. इसलिए मैने अपनी छाती के बाल वैसे के वैसे ही रखे थे. थोड़े घने और ज़रा से घुँगराले. हर रोज़ 50 डिप्स मारने की वजह से अब मेरी विशाल छाती बड़ी ही सेक्सी लगने लगी थी. बिल्कुल सख़्त कि अगर कोई एक .5 इंच की छड़ी भी मेरी छाती पर मारे तो छड़ी टूट आए मगर मुझे कुछ ना हो. जिम मे मैने एक और बात ये सीखी कि अगर सही तरीके से आप वर्क आउट करने लगो तो मसल्स बोहोत ही अच्छे से टोन अप होते हैं. बहुत रिसर्च करने के बाद मैने अपनी बॉडी टाइप के हिसाब से अपना वर्क और शेड्यूल डिसाइड किया और स्पे जाता रहा. नतीजा सॉफ था. अगर आप लोगो ने X-में मूवी देखी हो और उसमे वॉल्वेरिने का रोल प्ले करने वाले आक्टर ह्यूज जॅक्मन की बॉडी की तरह ही मेरा बदन गथिला हो चुका हैं अब. एक वक़्त था जब सब मुझे मोटू कहते थे. अब लोग मुझे सेक्सी कहते हैं!
तो ऐसे जिस्म का मालिक बन जाने के बाद,मुझे अब शर्म नही आती कि मैने टी-शर्ट पहनी हैं या नही, या कोई शर्ट मुझपर जचेगा या नही? अब आइ आम वेरी मच कॉन्फोर्टब्ले वित एनी क्लोद्स ओर ईवन विदाउट देम. मैं जल्दी से सीढ़िया चढ़ कर अपने रूम मे गया. रूम के क्लॉज़ेट मे से फ्रेश अंडरवेर और शॉर्ट उठाई और बाथरूम को ओर चल पड़ा. ज्यों ही मैं अपने रूम मे से बाहर निकला और ज़रा सा आगे गया मुझे बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई. अब भी मैने उपर कुछ नही पहना था. मैने बाथरूम की ओर देखा और सामने देख कर मेरी आखे फैल गयी. एक लाइट पिंक कलर के बाथरोब जो कि घुटनो के भी उपर तक था, पहन कर आकांक्षा बाहर आई. मैं उसी जगह पर रुक गया और सामने का नज़ारा देखने लगा. आकांक्षा का सिर अब भी बाथरूम की दिशा मे मुड़ा हुआ था,जैसे कुछ ढूँढ रही थी वो. इसलिए वो ये नही देख पाई थी कि मैं उससे महज 5 फुट की दूरी पर खड़ा था और उसकी ओर देख रहा था. उसके गीले गीले बाल उसके कंधो के उपर चिपक से गये थे.
मैने आकांक्षा को उपर से नीचे देखा. बाथरोब तो उसके जिस्म को ठीक से ढक रहा था मगर जैसा कि मैने कहा कि उसकी लेंग्थ सिर्फ़ घुटनो के उपर तक ही थी तो मुझे आकांक्षा की थाइस के लोवर पार्ट से लेकर तो उसके पैर के अंगूठे तक उसकी नंगी टांगे दिखाई दे रही थी. एक भी बाल नही था उसके पैरो पे. एकदम सॉफ्ट,स्मूद और ज़रा से गीले होने की वजह से वो बोहोत ही चमक रहे थे. मुझे लड़कियो की टाँग मे इतना इंटेरेस्ट नही था,मगर उस पल आकांक्षा की नंगी टाँगो को देख कर मैं धरा का धरा ही रह गया.
मैं आकांक्षा को घुरे जा रहा था और अब इसे मेरी बदक़िस्मती ही कहिए,उसी वक़्त आकांक्षा ने मुझे उसकी नंगी टाँगो की ओर घूरते देख लिया. ज्यों ही वो मेरी दिशा मे आगे बढ़ने लगी मेरी नज़र आकांक्षा की टाँगो से उपर होकर उसकी शक़ल पर गयी. दोस्तो, अगर आपने भी ये कभी नोटीस किया होगा तो आप जानते होगे कि एक लड़की जैसे ही नहा कर बाहर आती हैं,उसके जिस्म से एक भीनी सी खुश्बू आती हैं और वो बड़ी ही सुंदर दिखने लगती हैं. और आज मैने 3 सालो के बाद इस बात को नोटीस किया हैं कि आकांक्षा एक बड़ी ही सुंदर और कसे हुए जिस्म की लड़की मे तब्दील हो गयी हैं और सिर्फ़ 16 की उमर मे ही मैं उसकी ओर अट्रॅक्ट होने लगा हू. अफ़सोस इस बात का हैं कि ये सब सोचते हुए मैं अब भी उसकी ओर घूर रहा था. मगर ज्योंही मैने आकांक्षा की आखो मे देखा,मुझे कुछ अजीब महसूस हुआ. मुझे ऐसा लगा कि आकांक्षा मेरी तरफ देख तो रही हैं,मगर उसकी आखें मुझे नही देख रही थी. उसकी नज़रें मेरे चेहरे पे नही थी. कही ऑर थी. और उस वक़्त मैने इस बात को नोटीस किया कि आकांक्षा भी मेरे नंगी छाती को देख रही हैं. मेरे चौड़े सीने और तगड़े बाइसेप्स को देख कर आकांक्षा की आखे जैसे चिपक सी गयी थी. उसकी आखे धीरे धीरे मेरे जिस्म को निहार रही थी. और तभी मैने आकांक्षा के नीचले होंठ को ज़रा सा खुल कर अपने दाँतों से दबाते देखा. जैसे कोई कसक जागी हो उसके अंदर.
हम दोनो एक दूसरे को निहार रहे थे. धीरे धीरे हम दोनो ने एक दूसरे की ओर बढ़ना शुरू किया. हर कदम के साथ हमारे बीच की दूरी कम होने लगी थी और हर नज़दीकी के साथ मैं ये सॉफ देख पा रहा था कि आकांक्षा की नज़रें मेरे जिस्म से हट ही नही रही. जैसे ही मैं आकांक्षा के सामने आ गया;
मे: गुड मॉर्निंग! आज सुबह सुबह?
मैं ये कह कर किसी उल्टे जवाब को एक्सपेक्ट करने लगा. मगर अजीब बात ये हुई कि आकांक्षा कुछ नही बोली,और वो अब भी मेरी छाती को घूर रही थी. ऑलमोस्ट 30 सेकेंड्स के बाद मैने आकांक्षा के सामने चुटकी बजाते हुए फिर से कहा;
मे: हेल्ल्लो??? मेडम? सोई हैं क्या अब तक? मैने कुछ पूछा तुझसे!
आकांक्षा : हुहह?? क..क्या?? जैसे नींद मे से जागी हो जैसे,ऐसे तरीके से आकांक्षा ने मुझसे पूछी. और अब जाकर उसकी नज़रें मुझसे मिली.
मे: अर्रे! मैने कहा कि, आज सुबह सुबह?
आकांक्षा : हाँ..! वो..वो जाना हैं ना.! शादी मे जाना हैं तो रेडी हो रही हूँ.
|