vasna kahani बेनाम सी जिंदगी
11-01-2018, 12:13 PM,
#7
RE: vasna kahani बेनाम सी जिंदगी
इतना कहते ही मैं रुक गया. मुझे एहसास हो गया था कि एक कड़वाहट, ये गुस्सा मुझे यूथिका पर नही, ना ही बाकी लड़कियो पर. मेरे दिल मे अब भी नेहा के लिए फीलिंग्स थी जो अब नफ़रत मे तब्दील हो रही थी. मैने अपने आपको ठंडा किया. गहरी साँस लेने लगा. मुझे पता था कि अब अगर वो लड़की हैं तो बिल्कुल मेसेज नही करेगी. मैने सोचा अब वो सिम ऑन रख कर कोई फ़ायदा नही हैं तो क्यू ना स्विच ऑफ कर दिया जाए. स्विच ऑफ करने के लिए मैने जो ही फोन उठाया वो अचानक से वाइब्रट हो उठा और मेरे हाथ से छूट कर नीचे ज़मीन पर गिर गया. ज़मीन पर गिरने की वजह से फोन एक लाश के जैसा हो गया था. उसका बॅक कवर एक तरफ,बॅटरी अलग और मैं बॉडी कही ओर. मैने फोन के अंजर पंजर उठाए और सिम फिर से अंदर डाला. मगर पता नही क्यू मेरा दिल नही माना. मैने वो सिम फिर से अपने वॉलेट मे डाल कर अपना रेग्युलर सिम ऑन कर दिया और फोन फ्लाइट मोड पर डाल कर मैं सो गया. कल सनडे था. मैने अपने आप से कहा;
"सनडे हैं तो क्या हुआ? ये तक़लीफ़ तो हफ्ते के सातो दिन रहती हैं. सनडे को छुट्टी तो नही मिलेगी." 
आज भी मुझे यकीन नही हो पा रहा था कि एक लड़की जिससे मैं बेहद प्यार करता था, मुझे छोड़ कर चली गयी. जिसके साथ मैं अपना फ्यूचर देख सकता था वो मेरे आज मे से चली गयी. जिस लड़की पे मैं अपने सबसे अच्छे दोस्त से भी ज़्यादा भरोसा करता था, वो उसी दोस्त के साथ मुझे छोड़ कर चली गयी. इन सब ख़यालो मे मैं खोता गया और पता ही नही चला कि कब नींद ने मुझे अपने आँचल मे ले लिया और मैं सो गया

अगली सुबह रेडी होकर मैं कॉलेज जाने के लिए अपने घर मे से निकला. बाइक निकली. और रास्ते से लग गया. पता नही मगर आज रास्ता पूरा सुनसान था. सुबह के 9 बजे ऐसा लग रहा था जैसे की मानो रात के 3 बजे हो. ना ही कोई ऑटो रिक्शा, ना कोई दूसरा इंसान और ना कोई और. एक दम सुनसान सड़क पर सिर्फ़ मैं अकेला ही गाड़ी चला रहा था. बाइक चलाते चलाते ही पता नही क्यू मगर मुझे एहसास हुआ कि ये रोड भी मेरी ज़िंदगी की तरह हैं. खाली. सुनसान!! मैं आगे बढ़ने लगा और एक चौक सामने दिखाई देने लगा.तभी कुछ आगे मुझे एक बाइक दिखी. दूर से लग रहा था कि प्लेषर थी. मैं अपने ख़यालो मे से बाहर निकला और रास्ते पर ध्यान देने लगा. मैने सोचा कि चलो अच्छा हैं. सब नॉर्मल हैं. कोई तो दिखा रास्ते पर. मैं आगे बढ़ने लगा. धीरे धीरे मैं उस गाड़ी के नज़दीक पहुँच रहा था और मेरे और उसके बीच की दूरी कम होने लगी थी. देखा तो कोई लड़की रोड की साइड मे उसकी बाइक खड़ी कर के रुकी थी. मुझे लगा शायद मेडम की गाड़ी खराब हो गयी हैं और लिफ्ट माँगने वाली हैं. मेरा मूड अब भी रात की वजह से खराब था और मैने बाइक की स्पीड बढ़ा दी इस कोशिश मे कि झट से मैं उसे क्रॉस करके आगे निकल जाउन्गा. तब इन लड़कियो को अपनी औकात समझ मे आएगी. यह समझ मे आएगा कि हम लड़को को सिर्फ़ जिस्म की भूक ही नही होती,बल्कि वो इंसान भी देखते हैं. मैं स्पीड से आगे बढ़ने लगा और एक नज़र उस लड़की की तरफ डाली. वो लड़की का हाथ धीरे धीरे उठ रहा था और मैं समझ गया था कि अब ये लिफ्ट माँगने वाली हैं. तब मैं और स्पीड से उसे क्रॉस करके आगे बढ़ गया,बाइक के रिवर मिरर मे उस लड़की की ओर देखते हुए. मैने आक्च्युयली उसे ठीक से देखा ही नही. प्लेषर वाली लड़किया मुझे वैसे भी नही पसंद. 


अब मैने मिररो मे उसे देखा. वो लिफ्ट माँगने के लिए हाथ दिखा रही थी और ज्यों ही उसने अपना हाथ नीचे कर लिया; खह्ककचह....!!!!!!!.. मैने ज़ोर से ब्रेक दबा कर बाइक रोक दी. इतने ज़ोर से कि बाइक स्किड हो गयी और ज़रा सी टर्न हो गयी. जिनके पास पुल्सर हो वो ये बात समझ सकते हैं. मैं बाइक किसी तरह संभालते हुए अपनी बाइक रोकी. साइड स्टॅंड पे खड़ी की. हेल्मेट निकाल कर पेट्रोल टॅंक पर रखा और पीछे की ओर मूड कर ज़रा सा आगे चलने लगा. मैं अब भी शुवर नही था कि जो मैने देखा वो मेरे दिमाग़ की उपज थी या सच मे मैने उसे ही देखा. मैं धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा. जैसे जैसे मैं आगे बढ़ा,वैसे वैसे वो लड़की मुझे सॉफ दिखने लगी. मेरी दिल की धड़कने तेज़ होने लगी थी. पता नही क्यू मगर मुझे बहुत पसीना भी आने लगा था. थोड़ा नज़दीक पहुँचा तो देखा कि वो लड़की मेरी ओर पीठ करके खड़ी हैं. उसका फिगर बड़ा जाना पहचाना लग रहा था, मगर उस वक़्त मैने उस बारे मे ज़्यादा नही सोचा और ज्यों ही मैं उस लड़की के पीछे जाके खड़ा हो गया और कहा;
"उम्म्म..एक्सक्यूस मी?!"
पहले तो मुझे लगा कि उसने सुनी नही. तो मैने दोबारा से कहा;
"हेलो?! एक्सक्यूस मी मिस."
और जैसे ही मैने ये कहा वो लड़की पलट कर मेरी ओर देखने लगी. मेरी साँसे रुक गयी. मैं महसूस कर रहा था कि आक्च्युयली मुझे तक़लीफ़ हो रही थी साँस लेने मे. मैं निशब्द था. किसी पुतले की तराहा मैं वही पे स्तब्ध खड़ा था. काटो तो खून नही, पूछो तो ज़बान नही. इस तरह से! ज्यों ही मैने उस लड़की की ओर देखा मैं अपने आप से कह उठा;
"नो..!!"
वो लड़की अब भी मेरी ओर देख रही थी. उसकी आखे बिल्कुल खाली थी. बिल्कुल भी जान नही थी उन आखो मे. ऐसा लग रहा था जैसे कि रो-रोकर खाली हो चुकी हैं ये आखे, दर्द से भरी हैं आखे जो बस बंद होने का इंतेज़ार कर रही हैं;
"नेहा??"
नेहा: हाई सम्राट.
मे: नेहा? तुम....तुम? क्या कर रही हो यहाँ?
नेहा: इंतेज़ार! 
मे: यहाँ? इस चौक मे,सुनसान रास्ते पर खड़े रहकर तुम किसका वेट कर रही हो?
नेहा: तुम्हारा.
मैं उसके जवाब से सकपका गया. यह क्या कह रही हैं ये लड़की. जो खुद मुझे छोड़ कर चली गयी वो मेरा वेट कर रही हैं. ये सब क्या हो रहा हैं?
मे: क्या?? मेरा? तुम मेरा वेट क्यू कर रही हो?
पता नही क्यू मैं पसीने से भीग रहा था. उसने कोई जवाब नही दिया.
मे: बताओ?? मैने कहा कि तुम मेरा वेट क्यू कर रही हो इस चौक मे? बीच रास्ते मे?
नेहा: क्योकि मुझे लगा कि तुम आओगे यहाँ.
मे: हुहह?
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था. 
नेहा: हाँ.. मैं इस चौक मे खड़ी हू सम्राट. तुम्हारा वेट कर रही हू.मैं भटक गयी हू और मैं जानती थी कि तुम आओगे. 
मे: क्या मतलब तुम भटक गयी.? प्त्छ..खैर छोड़ो. चलो. अब आ गया मैं.
मैं इतना कह कर पलट गया अपनी बाइक की तरफ जाने के लिए. केयी विचार थे मेरे मन मे. आज अचानक नेहा ऐसे कैसे मिल गयी मुझे? यह सब क्या हो रहा हैं? इस सड़क पे और कोई क्यू नही हैं? और पता नही क्या-क्या! मैं ये सब सोचते हुए आगे बढ़ने लगा. थोड़ा आगे जाकर मैं रुक गया. पीछे देखा तो नेहा अब भी वही पर खड़ा थी. मैं दोबारा उस तक गया और कहा;
मे: अर्रे? चलो भी. अब क्या उठाकर ले जाउ?
नेहा: नही! 
उसका वो शब्द मेरी रूह तक चुभा मुझे.
मे: नही?? नही का क्या मतलब हैं? तुम मेरा वेट कर रही थी. तो लो! मैं आ गया. अब चलो भी.
नेहा: नही सम्राट! अब नही. देर हो चुकी हैं.
मे: क्या? नेहा क्या बकवास कर रही हो तुम? किस बात के लिए देर हो गयी हैं. मुझे कुछ समझ नही आ रहा.
नेहा: तुम नही समझोगे सम्राट. मगर अब देर हो चुकी हैं. मैं भटक गयी थी और मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी. मैने तुम्हारी तरफ मदद का हाथ भी माँगा था मगर तुम मुझे पीछे छोड़ कर आगे चले गये. अब मैं नही आ सकती. 
मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. मैं पसीने से तर बतर हो गया था. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था. बस ये एहसास हो रहा था कि दिल मे कुछ बोहोत अंदर तक चुभ रहा हैं. ऐसी तक़लीफ़ जो आज कर मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गयी हैं. कभी साथ नही छोड़ ती.
मे: ने..नेहा??!
नेहा: कभी नही........
और उसके वो शब्द जैसे मेरे ज़हन पर प्रिंट हो गये. मुझसे रहा नही गया. तक़लीफ़,डर इतने बढ़ गये कि मैं चिल्ला उठा और उठ गया. मेरा दिल बोहोत तेज़ी से भड़क रहा था. मैने आखे खोली. तो मैं अपने बेड पर ही था. पसीने से भीगा हुआ मेरा जिस्म रूम के ज़ीरो बल्ब की रोशनी मे चमक रहा था. मैं ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगा. सपना था! ये सब कुछ एक सपना था.
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RE: vasna kahani बेनाम सी जिंदगी - by sexstories - 11-01-2018, 12:13 PM

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