vasna kahani बेनाम सी जिंदगी
11-01-2018, 12:13 PM,
#2
RE: vasna kahani बेनाम सी जिंदगी
पिछले कुछ दिनो मे मैं इस साइट का रेग्युलर विज़िटर हो चुका था. अच्छी साइट हैं. आक्च्युयली इसी साइट पर आकर मुझे पता चला कि दुनिया मे कितने अलग अलग तरह की सेक्षुयल हॅबिट्स होती हैं. कभी कभार कोई देसी लड़की भी होती हैं मगर ऐज यूषुयल,नो अफेन्स गर्ल्स, मगर इन देसी लड़कियो की गांद मे पता नही कौनसा रहमानी कीड़ा होता हैं जो यह रिप्लाइ ही नही करती. आप ही सेंड करो तो वहाँ से 'इग्नोर' आ जाता हैं. इसीलिए मैने देसी गर्ल्स को पिंग करना ही बंद कर दिया था. मगर उस रात बात कुछ और थी. मैने पेज स्क्रोल डाउन किया और एक अजीब सा नाम दिखा मुझे,'यूथिका'. नाम ही इतना अजीब था कि मैं रोक नही पाया और उस नाम पे क्लिक किया और प्रोफाइल मे नॅशनॅलिटी आई इंडियन. अब मुझे बात तो करनी थी मगर जैसा कि मैने कहा कि देसी गॅल्स आर नोट वर्त दा अटेन्षन कॉज़ दे नेवेर रिप्लाइ. मगर फिर भी मैने एक 'ही' सेंड करके चॅट विंडो क्लोज़ करदी,क्योकि मुझे विश्वास था कि ये रिप्लाइ नही करने वाली और मैं बाकी लड़कियो से चॅट करने मे लग गया. उनसे बात करते वक़्त भी मेरे दिल मे बार बार यूथिका के रिप्लाइ की आस जाग रही थी.
मैं सेक्शय्यौंगकित्तेन नाम की कनाडा की लड़की से बात करने लगा. उसके साथ मैने 2 ही मिनट बात की होगी तो यूथिका का रिप्लाइ आया. मैं खुश हो गया मगर साथ साथ ही साथ दिल मे ये डाउट भी आया कि शायद ये जेंडरफेकर हैं. हो सकता हैं लड़का हैं. मैने भी रिप्लाइ किया,
मे:: हे.
यूथिका: हाई.
मे:: कैसी हैं?
यूथिका: आइ आम फाइन. हाउ अबाउट यू?
मे:: वेल, आइ आम हॅपी दट यू रिप्लाइड.. सो, आइ'डी से आइ आम गुड टू.
यूथिका: आइ हॅव टू गो. बाइ..
मे:: व्हाट?? अभी तो मिली और जाना भी हैं? फ्रीक्वेंट्ली आती हो यहाँ?
यूथिका: कॅंट से. दिस ईज़ माइ नंबर 95********..
उसने नंबर देते ही मुझे लगा कि ये या तो कॉल गर्ल हैं और ज़्यादा चान्सस हैं कि ये कोई बंदा हैं.
मे: हाउ आर यू सो स्योर टू शेर युवर नंबर वित मी?
यूथिका: आइ गेट लोन्ली. सो आइ नीड सम्वन टू टॉक.
मे: मैं कॉल करूगा तुझे. बाइ फॉर नाउ.
इतना कह कर मैने चॅट से लोगोफ्फ कर दिया. मैं अपना नंबर किसी से शेर नही करना चाहता था, फॉर ऑब्वियस रीज़न्स. और अगर आप भी सोचो तो ये पासिबल नही कि लड़की अपना नंबर डाइरेक्ट्ली शेर कर्दे. मुझे डाउट आया तो मैने अपना नंबर नही दिया और उसका दिया हुआ नंबर किसी .ट्क्स्ट फाइल मे सेव कर दिया. अजीब सा नाम था. यूथिका!!
तभी दरवाजे पर किसी ने नॉक किया. मैं 90% स्योर था कि ये कौन होगा. अधमरे मन से मैने दरवाजा खोला.
मे: क्या हैं? क्यू नॉक की?
आकांक्षा: तेरी शकल नही देखनी का शौक नही मुझे!! मम्मी बुला रही हैं इसीलिए नॉक किया..
मे: हा हा.. जा यहाँ से..!
मूह बिगाड़ते हुए वो चली गयी. मुझे सख़्त नफ़रत थी उससे. कोई लड़की 16 साल की उमर मे इतनी इरिटेटिंग हो सकती हैं इस बात का जीता जागता एग्ज़ॅंपल थी आकांक्षा. अजीब से तरीके से बात करेगी, अजीब से जवाब देगी. मेरे माँ-बाप ने ज़िंदगी मे सबसी बड़ी कोई ग़लती की होगी तो वो आकांक्षा ही थी. अगर मेरी सग़ी बेहन ना होती ना तो मैं उसे मेरे सामने मूह भी ना खोलने देता. जी हाँ, आकाँशा मेरी 16 साल की बेवकूफ़, निकम्मी और स्पॉइल्ट बेहन हैं जिसे मेरे पेरेंट्स हमारे घर की खुशी समझते हैं. पता नही किन पापो की सज़ा मिल रही हैं मुझे जो ऐसी बेहन मिली हैं. मैने तो पिछले 3 सालो मे उसे एक बार ठीक तरीके से देखा तक नही. हम बोहोत झगड़ते हैं. वो निकम्मी हर वक़्त चूतिया रीज़न्स पे कंप्लेंट करती रहती हैं और ये बात मुझे बिल्कुल पसंद नही आती. ना ही मैं उससे बात करता हू और नही उससे कोई रिश्ता रखना चाहता हू. मैं मम्मी के पास गया!
मे: क्या हुआ मम्मी? तुमने बुलाया?
मम्मी: हाँ बेटा. वो नेक्स्ट मंत की 14 को निमी बुआ के बेटे की शादी हैं देल्ही मे. तू चलेगा? टिकेट बुक करवाने के लिए कह रहे थे पापा. कल जाकर टिकेट बुक करवाके आजा हम सबकी.
मे: उम्म्म्म...मम्मी, तुम तो जानती हो कि मैं बोर हो जाता हू ऐसी जगहो पे. और वैसे भी निमी बुआ के बच्चो से मेरी कभी नही जमी. मैं नही आउन्गा.. प्लीज़ मम्मी!!.. प्ल्ज़ प्ल्ज़ प्ल्ज़!
मम्मी: नही बेटा, उन्होने हम सबको बुलाया हैं. नही जाएगे तो अच्छा नही लगेगा. बुआ हैं वो तुम्हारे पापा की.
मे: हाँ मगर मैं क्या करूगा वहाँ आकर? और वैसे भी अगस्त मे मेरी इंट्नल्स होती हैं मम्मी. पढ़ना भी तो हैं.
मम्मी: वाह!! अचानक से पढ़ाई प्यारी लगने लगी तुझे? ठीक हैं. हम तीनो की टिकेट निकाल के आ कल.
मे: य्स्स!!
मैं मम्मी के रूम से निकला. मम्मी-पापा का रूम उपर के फ्लोर पे हैं,राइट साइड मे, बीच मे कामन बाथरूम और हॉलवे. फिर मेरा रूम और मेर ऑपोसिट साइड पे मेरी उल्लू बेहन का रूम. मैं अपने रूम मे आया और डोर लॉक करते वक़्त मेरी नज़र मेरी बेहन की तरफ गयी. वो उसके धुले हुए कपड़े लेकर आ रही थी और उससे डोर नही खुल पा रहा था कॉज़ उसके दोनो हाथो मे कपड़े थे. उसने बड़ी कोशिश की मगर नही खुला दरवाजा उससे. तभी उसकी नज़र मेरी ओर गयी और मैं स्माइल करते हुए उसकी ओर देख रहा था. अब मुझसे हेल्प मांगती तो किस मूह से मांगती और कपड़े नीचे भी रख नही सकती थी की गंदे हो जाएगे. फाइनली उसने मुझसे कहा,
आकांक्षा: वहाँ क्यू खड़ा हैं? दरवाजा खोल दे.
मे: हाँ हाँ.. क्यू नही?! और कल से मैं तेरे कपड़े भी धोना स्टार्ट कर दूँगा ना.. ईडियट!..हुहह
आकांक्षा: अर्रे खोल दे ना दरवाजा..इतना क्या आटिट्यूड दिखा रहा. मेरे दोनो हाथ भरे हैं नही तो मैं कहती भी नही तुझे.
मे: तो अब भी क्यू कह रही.
आकांक्षा: गो टू हेल..
मे: ओह्ह..मेबी लेटर डंबो..
इतना कह कर वो गुस्से मे पलट गयी और उसका राइट हॅंड डोर की नॉब से टकरा गया..और उसके हाथ से सारे कपड़े गिर गये.. मुझे बड़ी हसी आने लगी. उसने मेरी ओर गुस्से मे देखा और रुआसी शक़्ल बना कर ज़मीन पर गिरे कपड़ो की ओर देखने लगी.
आकांक्षा: हंस मत! तूने नही धोए कपड़े. मैने बड़ी मेहनत से धोए थे शाम को. सब गंदे हो गये! छी...
मे: हा हा.. वॉशिंग मशीन ऑन करना, उसमे कपड़े डालना, देन पाउडर डालना तो बड़ी मेहनत का काम हैं ना.. सच मे! आइ आम सो सॉरी..
और मैं हँसने लगा.. मगर मेरी हसी से उसे बड़ी तक़लीफ़ होने लगी और उसके आखो मे पानी आ गया. वो नीचे गिरे कपड़े उठाने लगी. मुझे अच्छा नही लगा तो मैं आगे बढ़कर नीचे गिरे कपड़े उठाने मे उसकी हेल्प करने लगा.
मे: बस हुई नौटंकी तेरी. कर रहा हूँ हेल्प. नही तो मम्मी के सामने बक देगी कुछ उल्टा सीधा और मेरी वॉट लगाएगी.
मैं एक-कपड़ा उठाने लगा. और तभी मेरे हाथ मे उसकी लाइट वाय्लेट कलर की पैंटी लग गयी. मैने उसे 2 उंगलियो से उठाया और देखने लगा. तो उसने झपट्टा मार कर मेरे हाथ से पैंटी छीन ली और कहने लगी,
आकांक्षा: बेशरम, ऐसे क्या देख रहा.? दे सभी कपड़े..
मे: वाह, एक तो हेल्प कर रहा.. उसमे भी तेरा सड़ा हुआ, बकवास आटिट्यूड.. जा.. मर..
इतना कहके मैने कपड़े फिर से ज़मीन पर फेक दिए और वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी.. मैं वहाँ से उठकर अपने रूम मे चला गया. कसम से अगर मेरी सग़ी बेहन ना होती तो इतने ज़ोर का थप्पड़ मारता उसे कि ज़िंदगी मे कभी बदतमीज़ी से बात ना करती वो मुझसे. मैने रूम का दरवाजा दोबारा लॉक कर लिया और अपना काम करने लगा. हालाकी, मेरे दिमाग़ मे अब भी यही सवाल आ रहा था कि मैने आकांक्षा की पैंटी को इस तरह से क्यू देखा? ऐसा तो नही था कि मैने ज़िंदगी मे पहली बार पैंटी देखी हो. हाँ एक पल के लिए आकांक्षा की पैंटी देख कर मेरे दिल नेहा के साथ बिताए हुए पल ज़रूर याद आ गये. उसकी सॉफ्ट,फुल और गोल-गोल थाइस. जिनको मैं धीरे धीरे चूमता था. उसे टीज़ करता था. इंच बाइ इंच चूमते हुए उसकी चूत के आस पास पैंटी से खेलता था. उसकी भीगति हुई चूत को पैंटी के उपर से छेड़ते हुए अपने हाथो से उसके निपल्स को पिंच करता. मैं नेहा के साथ बिताए हुए पॅलो को याद करने लगा और बेड पे लेट गया. धीरे धीरे मैं अपने शॉर्ट्स के उपर से अपने खड़े लंड को सहलाने लगा. हर एक पल मेरे सामने एक तस्वीर की तरह आ रहा था. और जैसे जैसे तस्वीरे आ रही थी वैसे वैसे मेरे लंड मे दर्द हो रहा था. 9 इंच का सख़्त लंड मुश्किल से टाइट शॉर्ट मे रह पाता हैं. मैने अपनी कमर उपर उठाई और एक ही झटके मे शॉर्ट्स और जॉकी दोनो ही निकाल फेकि. और जैसी ही मैने लंड आज़ाद किया वो स्प्रिंग के जैसा उछल पड़ा. मुझे अपना लंड बोहोत पसंद था. 9 इंच लंबा, 2 इंच छोड़ा और एक लाइट ब्लॅक कलर का साप जैसा दिखता था. मैं हमेशा लंड को क्लीन शेव्ड रखता हू. जितनी बार मैं अपना फेस नही धोता उसेसे ज़्यादा बार मैं अपने लंड को सॉफ करता हू, मालिश करता हू. मेरे जिस्म का सबसे फॅवुरेट पार्ट हैं मेरा लंड.


हर पल को याद करते करते मैने धीरे धीरे लंड को पंप करना स्टार्ट किया. अब मेरा लंड पूरी तरह कड़ा हो चुका था. मैने अपने बेड के साइड मे रखे क्लॉज़ेट मे से एक बेबी-आयिल की बॉटल निकाली और अपने लंड पे आयिल डाला. सिर्फ़ हेड पर नाकी पूरे लंड पे. और लंड की चॅम्डी को 2 बार आगे पीछे किया तो लंड बिल्कुल चिकना हो गया. मुझे वो एहसास बोहोत अच्छा लगता हैं क्योकि उससे मुझे नेहा के नाज़ुक होंठो की और गरम मूह की याद आती हैं. हर स्ट्रोक के साथ मुझे ऐसा लगता कि नेहा मेरा लंड उसके मूह मे अंदर लेती जा रही हैं. बीच मे ही मैं अपने लंड के हेड पर उंगली घुमा देता तो ऐसा लगता कि नेहा अपनी जीभ से मेरे लंड के साथ खेल रही हैं. मैं रफ़्तार बढ़ा दी और ज़ोर से लंड हिलाने लगा. मेरे ज़हन मे नेहा की मुलायम और चिकनी गांद का ख़याल आने लगा. मैं ज़ोर ज़ोर से लंड को हिलाने लगा. मैं अपने आँड मे प्रेशर महसूस कर पा रहा था. मेरी कमर अपने आप ही हिलने लगी. आयेज से मेरा हाथ और पीछे से मेरी कमर. मानो मैं सच मे नेहा को चोद रहा हू. बस अब कुछ ही सेकेंड्स मे मैं छूटने वाला था. मेरी आखे बंद हो गयी थी. पैर सख़्त हो गये थे. मेरी बॅक आगे की तरफ निकली और मैने महसूस किया वो सुंदर, अद्वितीय, मोहक एहसास! ऑर्गॅज़म!! मेरी सासे तेज़ चल रही थी. किसी तरह मैने दिल की धड़कन को काबू मे करने के लिए ज़ोर ज़ोर से साँस लेना शुरू किया और तभी मुझे ये एहसास हुआ कि ऑर्गॅज़म के वक़्त मेरे दिल मे नेहा नही कोई और थी.

मैं बेड पर से उठा. साइड मे रखे टिश्यू से लंड सॉफ किया मगर उस वक़्त मेरे दिमाग़ मे कुछ और चल रहा था. ऐसा कभी नही हुआ था. आज तक नही. पिछले 6 सालो से मैं मूठ मार रहा हू. आज अचानक कैसे? मैं हैरान था अपने आप पर. आज पहली बार ये हुआ हैं. मैं गहरी सोच मे पड़ गया की यह कैसे हो सकता हैं? जिस लड़की की मैं शक़्ल भी नही देखना चाहता. जो लड़की मुझे फूटी आख नही सुहाती. जिसके ख़याल भर से मैं गुस्सा हो जाता हू. उस लड़की का ख़याल आज मुझे मूठ मारते हुए आया. आकांक्षा!? नेहा के नाम से मूठ मारनी स्टार्ट की मैने और ज़हन मे चेहरा आया तो आकांक्षा का?? 16 साल से वो मेरी ज़िंदगी मे हैं. पिछले 3 सालो से मैने उसे ठीक से देखा तक नही और आज ये कैसे हो गया? इन सब सवालो के घेरे मे आकर पता ही नही चला कि कब मेरी आख लग गयी और कब मैं सो गया.
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RE: vasna kahani बेनाम सी जिंदगी - by sexstories - 11-01-2018, 12:13 PM

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