RE: Gandi Kahaniya एक आहट जिंदगी की
मेने सोचा कि, क्यों ना राज को ऊपेर ही खाना दे आउ…..इसीलिए मेने खाना थाली मे डाला और ऊपेर ले गयी….जैसे ही मैं ऊपेर पहुँची तो लाइट भी आ गयी….राज के रूम की तरफ बढ़ते हुए मेरे जेहन मे अजीब सा डर उमड़ रहा था…..रूम का डोर खुला हुआ था. मैं सर को झुकाए हुए रूम मे दाखिल हुई, तो मेरे कदमो के आहट सुन कर राज ने पीछे पलट कर मेरी तरफ देखा…..”हाई तोबा…..” राज सिर्फ़ लोवर पहने खड़ा था… उसने ऊपेर बनियान वहगरा कुछ नही पहना हुआ था….मेरी नज़रें उसकी चौड़ी छाती पर ही जम गयी…..एक दम चौड़ा सीना मांसल बाहें…..एक दम कसरती बदन….मेने अपनी नज़रों को बहुत हटाने की कॉसिश की….पर नज़ाने क्यों बार-2 मेरी नज़रें राज की चौड़ी छाती पर जाकर टिक जाती….
मैं: जी वो मैं आपके लिए खाना लाई थी……
अभी राज कुछ बोलने ही वाला था कि, एक बार फिर से लाइट ऑफ हो गयी…..रूम मे एक दम से घुप अंधेरा च्छा गया…..एक जवान लड़के के साथ अपने आप को अंधेरे रूम मे पा कर मैं एक दम से घबरा गयी…मेने हड़बड़ाते हुए कहा…..”मैं लालटेन जला देती हूँ….” पर राज ने मुझे रोक दिया……”अर्रे नही आप वही खड़ी रहिए….आपके हाथ मे खाना है.. मैं लालटेन जला देता हूँ….” ये कह कर राज लालटेन और माचिस ढूँढने लगा….फिर थोड़ी देर बाद राज ने लालटेन जला कर टेबल पर रख दी….
जैसे ही लालटेन की रोशनी रूम मे फेली, मेरी नज़र एक बार उसके गठीले बदन पर जा ठहरी, पसीने से भीगा हुआ उसका कसरती बदन लालटेन की रोशनी मे ऐसे चमक रहा था मानो जैसे सोना हो…..तभी राज मेरी तरफ बढ़ा, और मेरी आँखो मे झाँकते हुए मेरे हाथ से खाने की थाली पकड़ ली…..मेने शर्मा कर नज़रें झुका ली, और हड़बड़ाते हुए बोली. “मैं बाहर चारपाई बिछा देती हूँ….आप बाहर बैठ कर आराम से खाना खा लीजिए….”
मैं बाहर आई, और बाहर चारपाई बिछा दी, राज भी खाने की थाली लेकर चारपाई पर बैठ गया…..”अंजुम भाई कहाँ है….” राज ने खाने की थाली अपने सामने रखते हुए कहा…पर मेने राज की आवाज़ नही सुनी….मैं तो अभी भी उसके बाइसेप्स देख रही थी…. जब मेने उसकी बात का जवाब नही दिया, तो वो मेरी ओर देखते हुए दोबारा अंजुम के बारे मे पूछने लगा…..राज की आवाज़ सुन कर मैं होश मे आई….और एक दम से झेंप गयी. और सर झुका कर बोली…….”पता नही कही पी रहे होंगे….रात को देर से ही घर आते है….”
राज : अच्छा कोई बात नही….उफ़फ्फ़ ये गरमी….इतनी गरमी मे खाना खाना भी मुस्किल हो जाता है…..
मैं राज के बाथ रूम मे चली गयी….और हाथ से हिलाने वाला पंखा लेकर बाहर आ गयी……और राज के पास जाकर बोली…”आप खाना खा लीजिए. मैं हवा कर देती हूँ……”
राज: अर्रे नही -2 मैं खा लूँगा…..आप क्यों तकलीफ़ कर रही है…..
मैं : इसमे तकलीफ़ की क्या बात है….आप खाना खा लीजिए ….
राज चारपाई पर बैठ कर खाना खाने लगा….और मैं राज के साथ चारपाई के बगल मे खड़ी होकर पंखा हिलाने लगी…..”अर्रे आप खड़ी क्यों है….बैठिए ना…” राज ने मुझ को यूँ खड़ा हुआ देख कर कहा….
मैं : नही कोई बात नही मैं ठीक हूँ….(मेने अपने सर को झुकाए हुए कहा)
राज : नही नजीबा जी ऐसे अच्छा नही लगता मुझे कि मैं आराम से खाना खाऊ. और आप खड़ी होकर मुझे पंखे से हवा दें….मुझे अच्छा नही लगता…आप बैठिए ना….(अंजाने मे ही उसने मेरा नाम बोल दिया था….पर उसे जलद ही अहसास हो गया)सॉरी मैने आप का नाम लेकर बुलाया…वो जल्दबाज़ी मे बोल गया…
मैं : कोई बात नही….
राज: अच्छा ठीक है…अगर आपको इतराज ना हो तो आज से मैं आपको भाभी कहूँगा… क्योंकि मैं अंजुम को भाई कहता हूँ….अगर आप को बुरा ना लगे.
मैं : जी मुझे क्यो बुरा लगेगा…
राज : अच्छा भाभी जी….अब ज़रा आप बैठने की तकलीफ़ करेंगी….
राज की बात सुन कर मुझे हँसी आ गयी….और फिर सामने चारपाई पैर नीचे लटका कर बैठ गयी…और पंखा हिलाने लगी….राज ने खाना खाना शुरू कर दिया…..राज खाना खाते हुए बार-2 मुझे चोर नज़रों से देख रहा था. लालटेन की रोशनी मे मेरा हुश्न भी दमक रहा था…..बड़ी-2 भूरे रंग की आँखे….तीखे नैन नक्श गुलाब के रसीले होन्ट….लंबे खुले हुए बाल…. सुराही दार गर्दन….भले ही लाखों मे ना सही पर हज़ारो मे तो एक हूँ ही…
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