RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
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गतान्क से आगे…………………………………….
उसके रस की धार से मेरा लौडा भी सिहर उठा ...उसकी गर्मी से गन्गना उठा और मैं भी झटके पे झटके खाता उसकी चूत के अंदर झाड़ता गया ..झाड़ता गया ,..उसकी चूत मेरे वीर्य की पीचकारी से भर गयी ...वो भी सिहर उठी ..उसका सूस्त बदन भी कांप उठा ......
मैं पस्त हो कर उसके सीने से लगा उसके उपर ढेर हो गया ..मा के सीने पर सर रखे हांफता जा रहा था ..
मा मेरे बालों को सहला रही थी.."हां बेटा ...हां ..आ जा मेरे लाल ..हां आ जा मेरी गोद में ..मेरे सीने से लगा रह ..." और मेरे गले में अपनी बाहें डाले मुझे अपने सीने से और भी चिपका लिया ...मुझे अपनी बाहों के घेरे में , अपनी महफूज़ सीने से लगा लिया... ..
मैं मा की बाहों और गर्म सीने से लगा ..जाने कब सो गया ...गहरी नींद में...
नींद खुली तो देखा सुबेह हो चुकी है....रात भर मैं बेहोशी के आलम में सोता रहा ..इतनी अच्छी नींद आज तक मुझे नहीं आई...मा की गोद में ...उसकी नर्म , गरम छाती से लगा ...काफ़ी हल्का महसूस हो रहा था ...मानो सर के अंदर बिल्कुल खाली हो...
मेरा सर अभी भी मा के सीने पर ही था..मा की नींद भी खुल गयी थी ...उसके चेहरे पर भी सुकून था ... अलसाई सी थी उसकी आँखे ... सूस्त ..जैसे सारी थकावट उसकी दूर हो गयी हो...
मैने अपना सर उसके सीने से हटाता हुआ उसके बगल लेट गया ..उसकी बाहों का तकिया बनाए और उसके टाँगों पर अपनी टाँगें रख उसे अपनी तरफ खिचाा और उसके होंठ चूसने लगा ..
"उफफफफफफ्फ़..कितना चूसेगा रे..रात भर तो चूस चूस के देख ना कितना सूज गया है...चल अब हट ... सुबेह हो गयी है..मुझे जाना है ना बंगले पे...चल छोड़ ना बेटा .." मा ने मुझे अपने से अलग करने की कोशिश की ..पर मैं उस से और भी लिपट गया..
"उम्म्म्मम..मा ...सुबेह सुबेह तेरे होंटो का रस सही में कितना ताज़ा ताज़ा है ..थोड़ी देर चूसने दे ना .."
" हाईईईईईईईईईईईईईईई रे ..हाईईईईईईईईईईईईईईईईईई ..अब सुबेह सुबेह मेरे होंठ भी तेरे को चाहिए ...ले ले बाबा ले ले ..जल्दी कर .." और अपना होंठ उस ने मेरे होंठों से और भी चिपका दिया ...मैं उसकी चुचियाँ मसलता हुआ होंठ चूसे जा रहा था ...."
" बस बस अब बहुत हो गया ...चल उठने दे ना बेटा ..चूसना ना ..अब क्या है ...जब जी में आए चूस लेना ....मैं कहीं भागी थोड़ी जा रही हूँ बेटा....चल छोड़ ना ...." और इस बार वो मुझे अपने से हटाते हुए उठ गयी ...और फिर अपने कपड़े उठाए और चल पड़ी बाथरूम की ओर...
मैं होंठों पर अपनी जीभ फ़ीराते हुए उसके रस का स्वाद लेता रहा ...
मैं भी उठा ..मेरा लौडा मा की चुसाइ से बिल्कुल सामने की ओर सलामी दे रहा था..हिलता हुआ फन्फना रहा था...
मैं अपनी बहनो के कमरे की ओर रुख़ किया ...सोचा वहीं अपने लौडे को शांत किया जाए ..
वहाँ अंदर गया कमरे में ..तो देखा दोनो बहेनें अभी भी वैसे ही सो रही थीं नीचे बिस्तर पर...
दुनिया से बेख़बर ... कितनी मासूम लग रही थीं दोनो ...
मैं भी वैसे ही दोनो के बीच लेट गया ...और बारी बारी से दोनो को चूमता रहा ...मा के होंठों के बाद इनके होंठों का मज़ा कुछ और ही था ..मा के होंठ मुलायम , भरे भरे और रसीले थे , इनके होंठ पतले पर भरे भरे , कमसिन जवानी की आग थी उनमें ..कसी कसी और नशीली ... अफ दोनो नायाब ...
सिंधु मेरे चूमते ही जाग गयी , बिंदु भी जाग गयी और मेरे सीने पर शरमाते हुए अपना चेहरा रख लिया ..और मेरे सीने पर अपने हाथ फेरने लगी ..बिंदु को मेरे सीने से लगने की चाहत रहती तो सिंधु को मेरे लौडे को थामने की ...
दोंनों अभी भी नींद की खुमारी में थे ..
मैं सीधा लेटा था और मेरा लौडा हवा से बातें कर रहा था ...
सिंधु की आँखों में चमक आ गयी
" उफफफफ्फ़ ... भाई ये लौडा है या बाँस का खंबा ...." उस ने बिना देर किए उसे झट अपनी मुलायम हथेली से थाम लिया और दबा दिया ..मैं सिहर उठा ..मेरा मन किया अभी के अभी डाल दूं उसकी चूत में ...और फिर उसकी चूत उसकी सलवार के उपर से ही अपनी उंगलियों से दबा दिया...
सिंधु चहूंक पड़ी ...
उसे मेरी आँखों में चूत की भूख दिखाई दी...
" भाई चोदेगा क्या ....चल आ जा जल्दी से चोद ले ..मुझे भी बड़ी चूदास लगी है रे ... लगता है कितने दिनों से प्यासी है .."सिंधु बोल उठी ..
बिंदु ने उसकी बात सुनी और जवाब दिया ..
" हां भाई चोद ले सिंधु को ..साली बहुत छटपटा रही है ..पर यही पर चोद्ना ..मेरे सामने ...मैं भी देखूं ज़रा साली कैसे चूद्ति है अपने भाई से ...चल ना भाई ..सुबेह सुबेह एक मस्त नज़ारा ले लें ..फिर रात को मुझे भी चोद देना ..."
मैं तो दोनो बहनो की बातें सुन सुन हैरान था ...कितनी बेबाक हो गयी थीं दोनो अपने भाई से ..
मैं तो बस तैयार ही था .....मा अभी तक बाथरूम में ही थी ..पर अब किसी के रहने यह ना रहने का दर और झिझक हमारे बीच नहीं था ...हम चारों अब एक दूसरे से बिल्कुल अच्छी तरह खुल गये थे ....और एक दूसरे की ज़रूरतों और मूड से वाक़ीफ़ हो चूके थे ..और उसे पूरी करने को जी जान से जुट जाते
मैं सिंधु की ओर बढ़ा ...उसकी टाँगों के बीच आ गया ...
उसकी सलवार का नाडा खोल दिया , उस ने अपने चूतड़ उठाए और खुद ही सलवार को पैरों से बाहर कर दिया और अपनी टाँगें फैला दीं..उसकी चूत तो मेरे लौडे को थामते ही पहले से ही पूरी तरह गीली थी ...सुबेह का टाइम था और हमें काम पर भी जाना था मैने देर करना ठीक नहीं समझा ..
उसकी टाँगें फैलाई और बिंदु झट से अपनी शर्म छोड़ ..हम दोनो के बगल आ गयी और सिंधु की कमीज़ उसके सीने से उपर कर उसकी चूचियों को हल्के हल्के मसल्लना शुरू कर दिया ...
सिंधु तड़प उठी और सिसकियाँ लेते हुए कहा " भाई देर ना करो ..बस अब डाल दो ना ...बस डाल दो कुछ सोचो मत .."
बिंदु का मुँह हमारी तरफ था , मैने अपना लौडा थामा और सिंधु की चूत पे लगाया , मैं इतना पागल हो उठा था एक ही झटके में उसकी चूत के अंदर धँसा दिया ...चूत इतनी गीली थी ..पर टाइट भी ..फिसलता हुआ अंदर गया पर आधे में फँस गया ...
" आआआआः भाई .ज़रा धीरे करो ना ..मा की चूत नहीं है ना ...दर्द होता है .."
मैं थोड़ी देर रुका ...बिंदु ने उसकी चुचियाँ मसल्ते हुए उसे चूम लिया और उसके होंठ चूसने लगी
मैने दूबारा लौडा अंदर पेला ..इस बार पूरा अंदर था
" अभी कैसा लगा सिंधु ..?" मैने पूछा
"मत पूछ भाई ...आ कितना मस्त है रे..अंदर ऐसा लग रहा है जैसे अंदर की खूजली पर कोई मोटी सी उंगली कर रहा हो...बड़ा अच्छा लगा रहा है भाई ..बस अब करते जाओ..रूको मत " और उस ने अपनी चूतड़ उपर कर दी ..टाँगें और भी फैला दी ..अब रास्ता खुला था पूरी तरह ..
और मैने तबाद तोड़ अंदर बाहर का खेल शुरू कर दिया ...
हमारी चुदाई का खेल चालू था ...बिंदु अपने एक हाथ से सिंधु की चुचियाँ मसल रही थी और दूसरे हाथ की उंगलियों से , सारी को अपने घूटने तक कर अपनी गीली चूत की फाँक पर बूरी तरह रगड़ती जा रही थी ..उसकी आँखें बंद थी
मेरे धक्कों के साथ सिंधु की सिसकारियाँ बढ़ती जाती और बिंदु की उंगलियाँ अपनी चूत पर और भी तेज़ होती जाती ...और उसका चेहरा मस्ती से भरता जाता ..मैं तो पहले से ही मस्त था ...ज़्यादे देर तक टीक नहीं सका .सिंधु की टाइट चूत की पकड़ ने भी मस्ती को और भी बढ़ा दिया ..मैं जोरदार धक्के पे धक्का मारता हुआ झड़ने लगा ...
ज़ोर्दार पीचकारी उसकी चूत के अंदर छोड़ने लगा ..और बिंदु हाँफती हाँफती अपनी उंगलियों का चलाना तेज़ करती गयी और मुझे झाड़ता देख वो और भी मस्ती में आ गयी अपनी टाँगें फैलाई फैलाई चूतड़ उछालते हुए गाढ़ा गाढ़ा रस अपनी चूत से उगलने लगी ..
उधर सिंधु भी मेरे गर्म वीर्य की धार से गन्गना उठी ..सिहर गयी और मुझ से चिपक गयी बूरी तरह , मेरे लौडे को अपनी चूत से जाकड़ लिया ...कुछ देर तक ऐसे ही जकड़ी रही अपनी चूत से मेरे लौडे को ..मानो उसे अपनी चूत से चूस डालेगी..और मुझ से और भी जोरों से चिपक गयी ..और फिर ढीली हो कर मेरे नीचे पड़ गयी ...
अया क्या मस्ती थी सुबेह सुबेह ...हम तीनों एक दूसरे से लिपटे थे....और एक दूसरे को चूमे जा रहे थे ...
" सिंधु..आज ज़यादा दर्द तो नहीं हुआ ना रे..? मैं बहुत जोश में था .." मैने सिंधु को चूमते हुए कहा
" नहीं भाई ..अब मेरी चूत बिल्कुल तैय्यार हो गयी है भाई के बाँस के खंबे के लिए.."और उस ने हाथ.नीचे करते हुए अपने प्यारे प्यारे खंबे जैसे मेरे लौडे को , जो अब तक सिकुड कर बाँस के लंबी , सुखी , पतली पट्टियों की तरह झुका झुका और मुरझाया सा था ....
हम आपस में ऐसे ही लिपटे एक दूसरे से खेल रहे थे .कभी चूमते , कभी चाट लेते , कभी दबा देते ...सिंधु मेरे लौडे से खेलती रही और बिंदु मेरे सीने पर हाथ फेरती रही ...बड़ा ही प्यारा माहौल था ..
तभी मा बाथरूम से बिल्कुल तरो-ताज़ा हो..बाहर आई और हमे मस्ती करते हुए देखा और बोल उठी ;
" वाह रे ...सुबेह सुबेह इतना प्यारा माहौल...बस ऐसे ही तुम लोग हमेशा प्यार करते रहो...पर अब उठो भी ...तैय्यार हो जाओ ..मैं जाती हूँ चाइ बनाती हूँ...मुझे देर हो रही है..."
और हम सब फिर से एक दूसरे को चूमते हुए उठ गये... आज के दिन की शुरुआत हो चूकी थी ...प्यार , और रस से भरपूर शुरुआत .
और इसी तरह मस्ती , प्यार और हंसते , मुस्कुराते हमारे दिन गुज़रते गये . हम सब एक दूसरे के इतने करीब थे के एक दूसरे के दिल की बातें , देखते ही समझ जाते ...हम बस अपनी ही दुनिया में मस्त थे ...एक दूसरे में खोए ..किसी और की हमें परवााह ही नहीं थी ..बस हम थे और हमारी चुदासि-चौकड़ी .....येई हमारा मक़सद था ...ये चुदासी-चौकड़ी का नामकरण हमारी सब से चुदासि बहेन सिंधु का ही दिया था ...बड़ा सटीक नाम था ...
ऐसे ही करीब महीने दो महीने निकल गये ......
एक रोज की बात है....
मैं अपने काम से उस रोज कुछ जल्दी ही घर आ गया ...मा अभी भी बंगले पर ही थी
मैं हाथ मुँह धो बिस्तर पे लेटा था ..
दरवाज़े पे ख़त-खत हुई ..मैं बाहर आया तो देखा बंगले का माली वहाँ खड़ा था ..
मैने पूछा " क्या है शंकर भाऊ ..? " उसे सब इसी नाम से बुलाते ...थोड़ा बुज़ुर्ग था ...इसलिए भाऊ याने बड़े भाई के तरह उसे मानते...
" जग्गू ..तुझे मेम साहेब ( म्र्स. केपर ) बूला रही हैं ..जल्दी जा ..."
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