RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
सिंधु मेरे बगल बैठ गयी ..मैं दोनो के बीच था ..
" पर तुम दोनो को हँसी क्यूँ आई मुझे देख..ये तो बता ..??" मैने फिर से पूछा ..
बिंदु थोड़ा शर्मा गयी ..उसके गाल लाल हो गये ..उस ने सिंधु को देखा
" अरे तू ही बता दे ना रे सिंधु ..लगता है भाई आज मानेगा नहीं ..."
सिंधु ने भी चाइ की एक घूँट अंदर ली . मुझे बड़ी शरारती आँखों से देखा और कहा
" भाई ...आज सुबेह सुबेह तुम्हारे को क्या हुआ था ...??"
" क्या हुआ था...? कुछ भी तो नहीं ..." मैने बौखलाते हुए कहा
" पर तेरे टाँगों के बीच कुछ लंबा सा उभरा उभरा क्या था ...?"
" ह्म्म्म्मम..तो ये बात है ....अरे बाबा जब तुम दोनो की तरह प्यारी और खूबसूरत लड़कियाँ मेरे दोनो ओर लेटी हों ....तो अगर मेरी टाँगों के बीच हरकत ना हो..ये तो तुम दोनो के लिए डूब मरने वाली बात हुई ना .." ऐसा बोलते हुए मैने सिंधु को उसे कंधे से जकड़ते हुए अपने पास खिच लिया ..
मेरा जवाब सुन कर बिंदु के गाल तो लाल हो गये ..पर सिंधु पर फिर से हँसी का दौर चढ़ बैठा ...
मैं समझ गया दोनो बहेनें क्या चाहती थीं ...ग़रीबी के कुछ फ़ायदे भी होते हैं ...
इतने दिनों से हम सब एक ही कमरे में सोते हैं...मेरा बाप मेरी मा की चुदाई भी किसी कोने में वहीं करता था ...बिंदु और सिंधु इन सब बातों को देखते ..परखते ही जवान हो गयी थीं ...उनमें भी उबाल आना शुरू हो गया था ...और अब ये उबाल बाहर आने की कोशिश में था ...
मैं भी आख़िर गबरू जवान था ...तीन तीन हसीन औरतों के बीच ...मेरी भी जवानी फॅट पड़ने की कगार पर पहून्च चूकी थी ...और आज सुबेह मा के साथ वाली बात ने आग में घी का काम कर दिया था और अब बिंदु और सिंधु की बातों से आग से लपट निकल्ने शुरू हो गये थे ..
मैने सिंधु और बिंदु दोनो को अपने सीने से लगा लिया ...उनके माथे और गालों को चूमता हुआ कहा
" वो तुम दोनो के लिए मेरे प्यार का इज़हार था मेरी बहनों ....." मैने भर्राये गले से कहा .
अब सिंधु भी सीरीयस हो गयी थी और अपना चेहरा मेरे सीने से लगाए चुप चाप बैठी थी .
दोनो बहने मेरे से लगे चुपचाप अपने भाई के चौड़े सीने में अपने आप को बहुत महफूज़ समझ रही थी ...बहुत सुकून था उनके चेहरे पर ..आज तक उन्हें अपने बाप से ऐसा प्यार और सुकून नहीं मिला ..मर्द का साया और मर्दानगी उनसे अब तक दूर थी ...वो सब उन्हें मुझ से मिल रहा था ...
हम तीनों चुप थे और एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे का साथ और प्यार में खोए ..
बिंदु ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा ..
" हां भाई हम समझते हैं ....तुम बहुत प्यार करते हो हम तीनों से ..है ना..??" बिंदु ने कहा ...
मैने बिंदु को अपने और करीब खिच लिया उसे अपनी छाती से लगाया ..सिंधु भी और चिपक गयी ..." हां मेरी बहनो..मेरे लिए तुम दोनो बहेनें और मेरी मा के सिवा और कोई नहीं ..तुम सब मेरी जान हो ..मेरी जान .... मैं तुम सब के लिए अपनी जान दे सकता हूँ ..."
सिंधु ने झट अपने हाथ मेरे मुँह पर रखा और कहा
" भाई ..जान देनेवाली बात फिर मत करना ..." और अब तक मेरी टाँगों के बीच फिर से कड़क उभार आ गयी थी ...सिंधु ने उसे अपने हाथों से जाकड़ लिया " अगर देना है तो हमें तुम्हारा ये लंबा हथियार दे दो और हमारी जान ले लो ... हैं ना दीदी ...देखो ना कैसा हिल रहा है हमारे प्यार में .."
उस ने मेरे लंड को थामते हुए बिंदु को दिखाया ..
बिंदु ने भी उसे थाम लिया पर थोड़ा हिचकिचाते हुए ..थोड़ा शरमाते हुए ...सिंधु की पकड़ में सख्ती थी और बिंदु की पकड़ में थोड़ी हिचकिचाहट और नर्मी ...
और मैं आँखें बंद किए अपनी दोनो बहनो के अनोखे अंदाज़ के मज़े में खोया था ..कांप रहा था..
तभी बिंदु ने एक झटके में अपना हाथ हटा लिया ..और पीछे हट गयी ....जैसे किसी गहरी नींद से अचानक जाग गयी हो..
" अरे बेशरम सिंधु..कुछ तो शरम कर ..ये तेरा अपना भाई है ..रे ..सगा भाई .."
" हां ..हां अभी तक तो तू भी मज़े से थामी थी ..क्यूँ..? मज़ा नहीं आया..और अब भाई की दुहाई दे रही है..चल नाटक बंद कर ..मैं जानती हूँ तेरे को....तू मुझ से भी ज़्यादा चाहती है ....पर बोलती नहीं ...मैं जानती हूँ...." और उस ने मेरे लंड को उपर नीचे करना शुरू कर दिया और कहती भी जाती " अरे ऐसा भाई और ऐसा हथियार किस्मत वालों को ही नसीब होता है .... देख ना रे बिंदु कितना फुंफ़कार रहा है ...चल आ जा ...आज काम की छूट्टी करते हैं ...."
बिंदु ने बड़े प्यार से एक चपत लगाई सिंधु के गाल पर " साली बड़ी बड़ी बातें करती है ..कहाँ से सीखी रे.....जा तू भी क्या नाम लेगी ....तू मज़े ले मैं जाती हूँ काम पर ....पर कल की बारी मेरी रहेगी ...और हां भाई ....ज़रा संभाल के हम दोनो अभी भी बिल्कुल अछूते हैं ..तुम्हारे लिए ही संभाल के रखा है हम दोनो ने जाने कब से.."
और बिंदु ने मुझे भी एक चूम्मी दी मेरे गाल पर ..अपने कपड़े ठीक किए और बाहर निकल गयी .
मैं तो दोनो बहनो की बातें सुन सुन एक बार तो भौंचक्का रह गया ..इन्हें मेरी कोई परवाह ही नहीं थी ..बस आपस में ही बकर बकर बातें किए किए सब कुछ फ़ैसला कर लिया.... जवानी भी क्या चीज़ है भाइयो...और उस से भी बड़ी जवानी की भूख ... इस भूख की आग में सब कुछ जल कर खाक हो जाता है..रिश्तों के बंधन तार तार हो जाते हैं ...बस सिर्फ़ एक ही रिश्ता रह जाता है ..लंड और चूत का....और जब उसमें प्यार के भी रंग आ जाए तो मज़ा और भी बढ़ जाता है..फिर ये सिर्फ़ लंड और चूत नहीं बल्कि दो आत्माओं का मिलन हो जाता है.....लंड और चूत अपने अपने रास्ते दोनो के दिलो-दीमाग तक पहून्च जाते हैं ....
कुछ ऐसा ही हुआ था हम सब के साथ..इतने दिनों हम प्यार , रिश्ता और आपसी लगाव से दूर बहुत ही दूर थे..पर इन दो तीन दिनों में अपने बेरहम बाप और एक औरत के जालिम मर्द की मौत ने हम सब को एक दूसरे के बहुत करीब ला दिया था....प्यार और साथ का बाँध , जो इतने दिनों तक रुका था ..अब ऐसा फूटा के रुकने का कोई नाम ही नहीं था ....और हम एक दूसरे से सब कुछ हासिल करने को जी जान से मचाल उठे थे ...तड़प रहे थे हम सब ....
इसी तड़प में सिंधु और बिंदु ने हमें भी शामिल कर लिया था ....अपना सब कुछ लूटाने को तैय्यार ...अपने भाई पर अपना प्यार और जवानी लूटने को मचल उठी थी दोनो ...
सिंधु खाट से उठी और फ़ौरन दरवाज़ा बंद कर दिया ..मैं अभी भी खाट पर बैठा था ..अपने टाँगें खाट से नीचे लटकाए ....सिंधु मेरे टाँगों को अपनी दोनो टाँगों के बीच करते हुए खड़ी हो गयी ...और सीधा मेरी आँखों में देखती रही ....चुप चाप....चेहरे पे कोई भाव नहीं ..एक दम सीरीयस ...जैसे उस ने अपने मन में कुछ सोच लिया हो और अब उसे पूरा करना ही है ..चाहे कुछ भी हो....
" ऐसे क्या देख रही है सिंधु ...? " मैने बात शुरू की..
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