RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
मैने भी किसी औरत को अपनी जिंदगी में पहली बार इस तरह से इतने करीब से और प्यार से छुआ था
शायद दोनो को पहली बार एक दूसरे का छूना इतना अच्छा लगा था
मुझे ऐसा लगा मैं उसे अपनी बाहों में ऐसे ही जकड़े रहूं जिंदगी भर ....
उफ्फ कितना सुकून था..कितना मज़ा था ....
" भाई ....आई सो गयी है ..लिटा देते हैं ना ..?" बिंदु की धीमी सी आवाज़ से मैं अपने ख़यालों से बाहर आया ...
" हां .... " मैने चौंकते हुए कहा " हां बिंदु तू इसे लिटा दे ....
फिर दोनो बहनें माँ को थामते हुए नीचे फर्श पर लगे बिस्तर पे लिटा दिया ...माँ अब गहरी नींद में थी.
मैं बैठा था ..पर मेरा लंड अभी भी खड़ा था....अचानक सिंधु की नज़र वहाँ पड़ी ...देखते ही चौंक गयी ..मैने उसकी नज़रों का पीछा किया ..नीचे देखा ....उफफफफफ्फ़ ये क्या हुआ मुझे ....मैं सकपकाता हुआ उठा और बाहर निकल गया ....
बाहर निकलते हुए मुझे बिंदु और सिंधु के होंठों पर एक अजीब सी मुस्कुराहट दिखी ....
बाहर निकल कर मैं थोड़ी दूर एक गुट्टर के किनारे जा कर मूतने लगा .....अया आज पहली बार मूतने में इतना अच्छा लगा..जैसे अंदर से कुछ भारी भारी सी रुकावट एक बार ही खाली हो गयी हो ..मैने काफ़ी हल्का महसूस किया ..लंड अब सिकुड गया था ....
मैं अंदर झोपड़ी में घुसा ....और अपने बिस्तर ..जो माँ और बहनो के बिस्तर से लगा हुआ था ..लेट गया ...
बिंदु मेरी दाई ओर थी ...उसके बगल में माँ सो रही थी और माँ के बगल में सिंधु ..
"भाई ...." बिंदु ने मुझ से कहा
" क्या है बिंदु ..? "
" खाना नहीं खाओगे ..? "
" रहने दे रे ...आज तो माँ की आँसुओं से ही मेरा पेट भर गया ..खाने का मन नहीं ..ऐसे भी आज बाहर ही खा लिया था ...." मैने जवाब दिया ..
" भाई तुम कितने अच्छे हो ....माँ को तुम ने कितने अच्छे से संभाल लिया .."
" बापू तो नहीं हैं अब ..और कौन संभालेगा .." मैने जवाब दिया
शायद मुसीबत और दुख में लोग एक दूसरे के और करीब आ जाते हैं ...बिंदु के साथ भी येई हुआ ..ववो मुझ से लिपट गयी और सिसकने लगी ..फिर कहा
" भाई तुम ऐसे ही हमेशा रहोगे ना ...."
उसकी आवाज़ सुन सिंधु भी मेरे पास आ कर लेट गयी और लिपट गयी
" हां भाई ..तुम हमेशा ऐसे ही रहना .." उस ने भी रोते हुए कहा ..
" अरे हां बाबा हां ...मैं हमेशा तुम सब के लिए ऐसे ही रहूँगा .बस अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो ...." मैने कहा
दोनो बहनें मुझसे दोनो तरफ से चिपक गयीं , मेरे गाल चूमने लगीं , मेरे सीने पर अपने हाथ फेरने लगीं और अपना प्यार जताती रहीं ..
" तुम बहुत अच्छे हो भाई ..ऐसे ही रहना "
और हम तीनों कब सो गये एक दूसरे की बाहों में कुछ पता ही नहीं चला ...
बाप की मौत ने बहनो को अपने भाई और माँ को अपने बेटे के काफ़ी करीब ला दिया था ...
सुबेह जल्दी ही मेरी नींद खुल गयी. आँख खुली तो देखा मा नहीं थी ...पर दोनो बहेनें अभी भी मेरे सीने पे हाथ रखे सो रही थी...बाहर अभी भी अंधेरा ही था ... बिंदु और सिंधु मेरे सीने से लगी कितनी मासूम लग रही थी .... दोनो ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रख दिए थे ...उनके सीने का उभार उनकी साँसों के साथ , उनके दिल की धड़कनों के साथ उपर नीचे हो रहे थे .... और दुपट्टा के बिना उनका सीना बिल्कुल सॉफ नज़र आ रहा था ... कितनी हसीन तीन मेरी दोनो बहेनें ...
आज तक मैने कभी भी किसी ग़लत नज़र से उन्हें नहीं देखा था ..पर आज ना जाने क्या हो गया था मुझे ... आज मेरे सामने वो मेरी बहेनें नहीं बल्कि दो खूबसूरत जवान लड़कियाँ नज़र आ रही थीं ..जवानी के तॉहफ़ों , उभारों और रस से भरपूर.....जिन्हें कोई भी मर्द चूसे और चखे बिना रह नहीं सके ...
एक बार तो मन में आया उन्हें जाकड़ लूँ , सीने से लगा लूँ और चूस लूँ उन्हें ...मेरा लंड भी वैसे ही सुबेह सुबेह तन्नाया रहता था..आज तो तन्नाया था और हिल रहा था ...
तभी माँ हाथ में खाली मग लिए अंदर आई...मैं समझ गया वो फारिग होने अपने झोपडे से थोड़ी दूर नाले के किनारे की तरफ गयी थी ...
मैं हड़बड़ाते हुए अपने हाथ से लंड दबाता हुआ उठा ...मा ने शायद ताड़ लिया था ..उसके होंठों पर मुस्कान से ज़ाहिर था ...
उसने अनदेखा करते हुए कहा
" देख तो कैसे बिंदु और सिंधु अपने भाई से लग कर सो रही हैं ..." उनके इस बात से मेरी परेशानी और शर्म मिट गयी .
मैं अभी भी पूरा नहीं उठा था ..बिस्तर पर बैठा था ...बिंदु और सिंधु अब तक जाग गयी थीं.
" अरे बिंदु..सिंधु अब उठ भी जाओ ..देखो अभी भी अंधेरा है ..जाओ नाले के किनारे हो आओ ..थोड़ी देर में उजाला हो जाएगा फिर कैसे जाओगी ...चलो उठो जल्दी करो..." मा ने दोनो को प्यार से झिड़की लगाते हुए कहा और फिर मेरी ओर देखते हुए कहा " तेरा क्या है..तू तो मर्द है कभी भी जा सकता है ... " और फिर हँसने लगी ....
मैं मा के आज के रवैय्ये से फिर सोच में पड़ गया ..कल रात कितनी दुखी थी अपने मर्द की मौत से , पर आज उसके चेहरे पर उस गम का नामो-निशान नहीं ...वाह रे औरत ..क्या कमाल की है तू भी ..
अब तक दोनो बहनें बाहर जा चुकी थीं ..और मा बिस्तर पर मेरे बगल बैठ गयी .
मैने उसकी तरफ देखा ..उसके चेहरे पर सही में कल के हादसे का कोई नामोनिशान नही था ..बिल्कुल तरो ताज़ा था ....
मैने कहा " मा एक बात पूछूँ ..? "
" हां ..हां पूछ ना बेटा ..क्या बात है..?"
"मा कल रात तुम कितना रोई ..कितनी दुखी थी ..पर आज इतनी खुश दिख रही हो ...कितना अच्छा लग रहा है ..कल हम सब कितने परेशान थे तुम्हारी परेशानी से.."
" हां जग्गू ..कल मैं परेशान थी ..आख़िर तुम्हारा बाप था ..मेरा आदमी था ....इतने दिनों का साथ था ...उसने जो किया भगवान इंसाफ़ करेगा ...पर हमे तो जिंदा रहना है ना ...उसके जाने के गम में हम तो मर नहीं सकते ..क्यूँ है ना ..? "
मैने उसे गले लगा लिया और कहा ..." कितनी बड़ी बात कह दी मा ... तुम ना होतीं तो हम क्या करते ..?"
" और येई बात तो मैं तुम से कहती हूँ..अगर तुम ना होते कल तो मैं क्या करती ..? तुम ने एक मर्द के माफिक मुझे हिम्मत दिया ...तू सही का मर्द है रे ...तेरा बाप तो साला नमार्द था .... "
और उस ने मुझे अपने से चिपका लिया ..मुझे अपनी छाती से लगा लिया ...
हम दोनो एक दूसरे से लिपटे थे ....
क्रमशः…………………………………………..
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