RE: Desi Sex Kahani कमीना पार्ट - II
कमीना पार्ट - II Incest--3
ट्रेन मे एक सीट पर चंगू और मंगु (मौसी के बच्चे) को सुला दिया और दूसरी सीट पर मैं और मौसी बैठ गये रात के 9 बज गये थे और ट्रेन अपनी रफ़्तार से चल रही थी, हम लोग खाना खा चुके थे, मैं लोवर बर्थ विंडो सीट पर बैठा था और मेरे पास मे मौसी बैठी हुई थी, मैं विंडो के बाहर का नज़ारा कर रहा था और मौसी बैठे बैठे ही झपकीया लेने लगी थी, थोड़ी थोड़ी ठंड भी थी तभी मौसी ने बॅग मे से कंबल निकाल कर मुझसे कहा,
सरला- सोनू मुझे बड़ी नींद आ रही है मैं लेट जाउ, कुच्छ देर मे सो लेती हू फिर मैं उठ जाउन्गि तब तू सो जाना,
सोनू- अरे मौसी आप आराम से सो जाओ वैसे भी मुझे ट्रेन मे नींद नही आती है, बस इतना सुनना था कि मौसी ने अपने पेर मेरी तरफ करके लेट गई और अपने उपर कंबल डाल लिया और अपने पेरो के थोड़ा आगे कंबल करके उसे मेरी जाँघो पर भी डाल दिया और कहने लगी तू भी थोड़ा ओढ़ ले ठंड बहुत है और फिर मौसी सो गई, मैं बैठा बैठा इधर उधर देख रहा था जहाँ और भी लोग अपनी अपनी सीट पर सोने की तैयारी कर रहे थे,
अचानक मौसी ने एक पेर लंबा किया और मेरी जाँघ से उसका पेर टच होने लगा, उसकी गोरी पिंडलिया से साड़ी थोड़ा उपर उठ गई थी और उसका एक पेर कंबल के बाहर निकल आया था, मौसी की गोरी पिंडलिया देख कर मेरी पॅंट के अंदर सुरसूराहट होने लगी और मैने धीरे से आजू बाजू देखा और कंबल से उनके पेर ढक दिए, लेकिन अब मुझसे रहा नही जा रहा था, मेरे हाथ भी कंबल के अंदर घुसे हुए थे,
मैने धीरे से मौसी की गोरी गोरी पिंडलियो को हाथ लगाया तो सच उसकी गुदाज कसावट और चिकनाहट के एहसास से मेरा लंड एक दम से 90 डिग्री के कोण जैसा तन गया, मौसी का मूह कंबल के बाहर था लेकिन गर्दन एक ओर लुढ़की हुई थी, मैं मौसी के मूह की ओर देखता हुआ उसकी गोरी गोरी पिंडलियो को सहलाता रहा, धीरे धीरे मेरी इच्छा और उपर तक हाथ फेरने की होने लगी, हल्का हल्का डर भी लग रहा था और आस पास भी ध्यान देना पड़ रहा था,
वैसे तो मेरे और मौसी के उपर कंबल था और मेरी हरकत कंबल के अंदर हो रही थी इसलिए कोई हमारी ओर देखता भी तो मैं मौसी की टाँगो को अंदर ही अंदर सहलाते हुए विंडो के बाहर देखने लगता था, रात के 10 बज चुके थे मैं बराबर मौसी के कभी एक पेर को सहलाता कभी दूसरे का जयजा लेता, जितनी डिस्टेन्स पर मैं बैठा था वहाँ से मेरा हाथ सिर्फ़ मौसी के घुटनो तक ही पहुच पा रहा था, अब मेरा मन मौसी की गुदाज मोटी मोटी जाँघो को सहलाने और दबाने का कर रहा था, वैसे भी अपनी मौसी की मोटी मोटी सुडोल जाँघो को सहलाने की कल्पना से ही मेरा लंड पागल हुआ जा रहा था,
मैने धीरे से अपने आपको मौसी की ओर सरका लिया, और धीरे से मौसी के एक पेर को उपर उठा कर अपनी जाँघो पर रख लिया अब मैं मौसी के पेरो के पास कुछ इस कदर बैठा था कि अगर चाहता तो उसके मोटे मोटे दूध तक भी हाथ ले जा सकता था, आस पास के लोगो ने लाइट भी ऑफ कर दी और महॉल एक दम मेरे हिसाब का हो गया, अब सिर्फ़ डर था तो मौसी के जागने का इसके अलावा कोई प्राब्लम नही थी, अब मैने हिम्मत करके मौसी की मोटी मोटी जाँघो पर जैसे ही डरते हुए हाथ रखा उसकी मोटी जाँघो और उस पर भरे हुए मुलायम गोस्त के एहसास ने मेरे लंड को पॅंट फाड़ने के लिए मजबूर कर दिया,
कुच्छ देर मैं उसकी जाँघो को धीरे धीरे सहलाता रहा फिर उसके बाद मैने अपने हाथ को जाँघो के नीचे की तरफ ले जाकर जब उसकी गुदाज जाँघो को अपने हाथो मे भर कर दबोचा तो क्या बताऊ ऐसा आनंद लाइफ मे कभी महसूस नही किया, क्या जबरदस्त और मोटी जंघे थी उसकी, मौसी इतनी गहरी नींद मे लग रही थी कि मेरा रहा सहा डर भी ख़तम हो गया और मैं मौसी की मोटी जाँघो को मन मर्ज़ी से जितना ज़्यादा हो सकता था दबा रहा था,
कविता- आपके जंघे दबाने के बाद भी उनकी नींद नही खुली,
सोनू- नही वह तो सच मुच घोड़े बेच कर सो रही थी मैं उसकी जाँघो को खूब मसल रहा था, कुच्छ देर बाद मैने धीरे से हाथ आगे बढ़ाया और मेरा हाथ जैसे ही मौसी की पैंटी से टच हुआ मैं सिहर गया और बिना रुकते हुए मैने धीरे से जब मौसी की पैंटी के उपर से उसकी फूली हुई चूत को सहलाया तो एक दम से मस्त हो गया इतनी उठी हुई चूत और वो भी मुलायम पैंटी के उपर से हाई क्या बताऊ कविता मन तो किया कि उसकी मस्त फूली भोसड़ी को अपने हाथो मे भर कर कस कर भींच लू लेकिन मैं जानता था ऐसा करने पर कही वह उठ ना जाए,
मैं बड़े प्यार से उसकी फूली हुई चूत को पैंटी के उपर से कभी सहलाता और कभी हल्के हल्के उसकी चूत को दबा देता, अब मैं अपने हाथ से मौसी की जाँघो और चूत को मन माफिक तरीके से कभी सहला रहा था और कभी दबा रहा था और वह मस्ती मे सो रही थी,
कविता- अच्छा उनकी पैंटी गीली लग रही थी कि नही,
सोनू- अब इतना मेरा ध्यान नही गया वैसे भी उस समय मैं छोटा ही था मुझे इतना अनुभव नही था मैं तो बस उसकी मस्तानी चूत को सहलाने और दबा दबा कर महसूस करने मे ही मगन था, रात के 1 बज रहे थे अब मेरा डर ना के बराबर था इसीलिए मैने मौसी की टाँगो को थोड़ा फैला दिया और उसकी चूत के हर हिस्से को छु छु कर महसूस करने लगा,
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