RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
मेरी ये बात सुनके की मैं शौकत से बात करना चाह रही हूँ. इनायत के चेहरे का रंग फीका सा पड़ गया. बाबा का फोन आने से पहले वो सुकून मे दिख रहा था लेकिन अब कहीं गुम हो गया
था. हम इस वक़्त ड्रॉयिंग रूम और बेडरूम के बीच के हॉल मे बैठे थे, यहाँ से ही बाल्कनी थी जिसके पास कुर्सी पर मैं बैठी थी और मेरी ही पास सोफे पर इनायत था. मैने उसके उड़े हुए रंग
को देखा तो मुझे उसे छेड़ने की सूझी तो मैने उसके उस वक़्त के अंदाज़ की नकल करना चाही जब उसकी अम्मी और बहेन के सामने उसने मुझे कहा था कि "घबराना मत मैं तुम्हारे साथ हूँ"
मुझे ऐसा करके देख कर वो थोड़ा झेंप सा गया लेकिन फिर थोड़ा फ़िकरमंद होकर बोला
इनायत: "तुमने कह तो दिया कि तुम शौकत से बात करोगी लेकिन क्या करोगी तुम "
मैने उसकी तरफ बड़े इस सेक्सी स्टाइल मे अपना गाउन/मॅक्सी को अपनी कमर तक उठा लिया और उसकी तरफ शरारत भरे अंदाज़ मे अपनी चूत की तरफ इशारा करते हुए कहा "मैं शौकत से कहूँगी कि अब तुम इसके
काबिल नही रहे, इसपर अब तुम्हारे भाई का हक़ है, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हे अपनी इस्तेमाल की हुई पैंटी दे सकती हूँ, यादो के लिए"
और मैं खिल खिला कर हंस पड़ी, मेरी बात से इनायत के चेहरे पर जैसे कोई असर नही पड़ा लेकिन वो मेक्शी मे चूत के दर्शन से थोड़ा एग्ज़ाइटेड ज़रूर हुया था फिर भी वो थोड़ा सम्भल कर बोला
इनायत: "मैं सीरीयस हूँ, कुछ कहो गी या नही "
मैं:"अर्रे कह तो दिया मैने और क्या कहूँ"
इनायत:"क्या कह दिया तुमने?"
मैं:"यही की शौकत से मैं कहूँगी कि मैं अब उसके पास नही जाना चाहती हूँ और अब वो चाहे तो मेरी यादो के सहारे जी सकता है"
इनायत:"तुमको लगता है कि वो मान जाएगा और तुमसे कहेगा कि, ओ.के थॅंक्स फॉर कॉलिंग, सी यू लेटर"
मैं:"नहीं वो एक बार मे नही मानने वाला"
ये कहकर मैने मूड चेंज करने के लिया इनायत के सामने आकर एक झटके से अपना गाउन/मॅक्सी उतार फेंक दी और उसके पैरो के बीचे मे आकर मैने उसके पॅंट की ज़िप खोली और उसके अंडरवेर के
नीचे से उसका थोडा आकड़ा हुआ सा लंड बाहर निकाला और उसको चूसने लगी. धीरे धीरे अब वो सख़्त हो गया,जब वो पूरी तरहा कड़क हुआ तो मैने उठ कर उसकी पॅंट और अंडरवेर उतार दी और उसकी
गोद मे जा बैठी,उसने अपने हाथो से मेरी दोनो टाँगो को अपनी टाँगो के बाहर किया और अपने लंड को मेरी चूत मे अड्जस्ट किया. अब मैं धीरे धीरे उसकी गोद मे उछल उछल कर उसके कड़क
लंड का मज़ा ले रही थी. इनायत शायद कुछ इस बात को ज़्यादा डिसकस करना चाहता था.
इनायत:"मैं तो ये सोच रहा था कि मैं और तुम किसी अंजान जगह चल पड़ते हैं और कभी वापस ना आए"
इनायत मेरे उछलने और वापद उसके लंड पर आने की वजह से थोड़ा सा हाँफ रहा था जैसे कोई आदमी ट्रेडमिल पर चलते हुए बात करता है.
मैं:"तुम और मैं क्यूँ न अपने अज़ीज़ रिश्तेदारो से दूर कहीं चले जायें और
और किस जुर्म में चले जायें, कुसूर हमारा नही है, किसी के कोई ग़लत कदम से हम डर डर कर तो नही जी सकते"
इनायत को मेरी ये बात पसंद आई और वो थोड़ा मुस्कुराया और फिर बोला
इनायत:"सब्बास मेरी जान, तुम तो बड़ी कॉन्फिडेंट हो गयी हो,अच्छा लगा ये बात सुनकर"
मैं:"और नही तो क्या, साला इसके लंड से उसके लंड और फिर उसके लंड से इसके लंड पर झूलो, मैं कोई बदरिया हूँ जो अलग अलग पेड़ का केला खाती फिरू ज़िंदगी भर"
ये बात सुनकर वो खिल खिला हर हंस पड़ा, मुझे भी अपनी बात पर हँसी आ गयी.इतनी देर से उछाल रही थी कि मेरी चूत मे झूर झूरी सी होने लगी और मैं उसके लंड को गहराई मे लेजाकार चारो तरफ
हिलाने लगी और फिर निढाल होकर उससे चिपक गयी,इनायत के लंड मे अभी भी वही सख्ती थी, शायद वो चुदाई के इस खेल मे नही बल्कि कहीं बातो मे उलझा हुआ था.मैने उसका मूड ठीक करने के लिए
उठकर अपनी चूत को उसके मूह पर सटा दिया और चाटने का इशारा किया, वो धीरे धीरे हर कोने को चाट रहा था, उसके मूह पर मेरी चूत का सफेद गाढ़ा पानी लगा हुआ था, फिर मैं उसके
होंटो को चूसना सुरू कर दिया और उसमे मेरे बूब्स को दबाना शुरू कर दिया, अपनी ही चूत की मलाई मुझे अब बड़ी अच्छी लगती थी. लेकिन अब मुझे फिर से थोड़ी मस्ती आने लगी थी तो मैं पास पड़ी
कुर्सी को पकड़ कर घोड़ी बन गयी और उसको अपनी तरफ आने का इशारा किया, वो सोफे से उठ कर मेरी करीब आया और मेरे चुतडो को पीछे से थोड़ा सा हटा कर अपने केले को मेरी सुरंग के अंदर
धकेल दिया. मुझे ख़याल आया कि बाल्कनी का दरवाज़ा खुला है और बाहर थोड़ा अंधेरा हो चुका है और ठंडी ठंडी हवा आ रही है लेकिन मैने इसकी कोई परवाह ना की, इनायत ने अब धीरे धीरे
झटके लगाना सुरू कर दिया था. मेरे मूह से अब सीईईईईईईईईईईई अहह उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ की आवाज़ सॉफ दूर जाती सुनाई देती थी.मैने इनायत को थोड़ा सा छेड़ने की कोशिश की
मैं:"साला तुम्हारा लंड मेरी चूत मे इस तरहा फिट होता है जैसे किसी ग्लब्स मे हाथ फिट होता है, अगर मुझे तुम्हारा लंड ना मिलता तो मैं सोचती कि सेक्स के खेल मे कोई मज़ा ही नही है"
इनायत:"अच्छा"
मैं:"थोड़ा तेज़ तेज़ करो ना,धीरे धीरे मे मज़ा नही आता"
इनायत:"अच्छा"
मैं:"तुम्हे पता है तुम्हारे लंड के बिना अब मैं रह नही सकती"
इनायत:"हुउँ"
मैं:"तुम्हारे पीछे से करने मे ज़्यादा मज़ा आता है"
इनायत:"हां क्यूँ"
मैं:"मैने अंदाज़ा लगाया है कि तुम मेरी गांद के दीवाने हो"
इनायत:"वो तो मैं तब से हूँ जब तुम्हे पहली बार देखा था"
मैं:"ऐसा क्या है मेरी गान्ड मे, ये बड़े बड़े चुतड"
इनयत:"तुम्हारी रंगत किसी अँग्रेज़ औरत की तरहा सफेद है और तुम्हारे चूतड़ इतने सफेद और नर्म और बड़े बड़े है कि इनको देख कर कोई भी पागल हो जाए"
मैं:"अच्छा, तो जनाब दूसरे की बीवी की गान्ड पे नज़र रखते थे पहले से ही, अच्छा तुम्हारे खानदान मे तो सभी औरतो की गान्ड बड़ी बड़ी और गोरी गोरी है, तुमने अपनी मा और बहेन की नही देखी
क्या "
इनायत:"क्या बकती हो, कौन ध्यान देता है ऐसी बातो पर"
मैं:"तो जनाब अपनी मा बहेन तो सभी मर्दो को प्यारी होती है लेकिन किसी और बेटी या बहू पर तुम मर्द ध्यान देने से बाज़ नही आते"
इनायत:"क्या कह रही हो"
इनायत अब शायद झड़ने ही वाले था, मैं भी दोबारा शबाब पे थी, थोड़े ही देर मे उसने अपना लावा सुरंग मे छोड़ दिया और अब वो सोफे पर जाकर बैठ गया और आँखे बंद करके सुसताने लगा.
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