RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
मुझे रोते हुए ना जाने कितना वक़्त हो चला था. शाम हो आई थी. ना जाने कब मैं सो गयी. जब नींद से
जागी तो देखती हूँ कि मेरे बगल मे मेरे ही कमरे मे मेरी सास सो रही थी. लेकिन जब कल रात को हुई
बेरहम दास्तान याद आई तो मेरी आँखो मे फिर आँसू भर आए. मैं सोच रही थी कि काश मैं नींद से
जाग ही ना पाती. नींद के बहाने ही सही कम से कम मैं इस तकलीफ़ से तो दूर थी. नींद की अच्छाई का पहली
बार मुझे इतना एहसास हुआ था.
अब तो रोने की ताक़त भी ना थी. बस मैं अपने घुटने अपनी सर पर टिकाये खामोशी से उस बदसूरत सुबह को देख
रही थी. ये घर फिर से मेरे लिए पराया हो चुका था और अब फिर मुझे वापस लौट कर अपने ही घर वापस जाना
था. वहाँ एक बेचारा बाप और एक बेचारी मा हो सकता है मुझे वापस देख कर सदमे और तकलीफ़ की सूरत
ना बन जायें. मैं यही सोच रही थी कि मेरे सर पर किसी ने हाथ फेरा तो मैं यकायक अपने उबलते तूफ़ानो
से वापस दुनिया मे आ गयी. देखती क्या हूँ कि मेरी मा अपने प्यारे हाथ मेरे सर पर फेर रही है. मा को
देख कर मेरी हालत उस बच्चे की तरहा हो गयी जो अपनी मा से किसी मेले मे बिछड़ जाने के बाद मिला हो. मैं एक
बार फिर फूट फूट कर रो पड़ी. इस बार ऐसा लगा जैसे मेरी रूह मेरे जिस्म के बाहर आने को बेताब है. मैं
फिर बेहोश हो गयी, ये शायद दूसरी बार था के मैं बेहोश हो गयी थी. जब होश आया तो खुद को अपने घर
मे अपने बाबा, अम्मा और भाई के पास पाया.
मेरे बाबा मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे, उनकी आँखें ऐसी लग रही थी जैसे कोई अंधेरे कुएें में अपनी
कोई गुम हुई चीज़तलाश करता हो. उनके काँपते हुए होंटो से बस यही बात निकल पाई कि "बेटी कैसी हो, अब कैसे
महसूस हो रहा है" इसके ज्वाब में मेरी आँखो ने दो आँसू बहाकर उनका जवाब दिया.
मैने कल से ही कुछ ना खाया था. जिस्म एक भोझ की तरहा लग रहा था और सर किसी छाले की तरहा फट जाना चाहता
था दर्द की वजह से. आँखें शायद सूज गयी थीं रोते रोते. अब मुझे ज़बरदस्ती चिकन का सूप पिलाया
गया. जो मैने थोड़ा ही पिया लेकिन उससे मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई.
अब मेरे बाबा चिल्ला पड़े "हरम्खोर ने मेरी बेटी की क्या हालत कर दी है, ज़लील कहीं का"
मेरी खाला और उनकी बेटी भी मुझे देखने आए. लेकिन खाला के मूह से अब कुछ नही निकलता था. वो शायद इस
तकलीफ़ मे मुबतिला थीं कि उन्ही की वजह से मेरा उस घर मे रिश्ता हुआ था.
खैर दिन इसी तरहा बीत रहे थे, मैं एक पहाड़ की तरहा एक बोझ बन के अपने घर मे वापस आ चुकी थी. बाबा
और अम्मा कभी भी मेरे सामने कुछ ना कहते लेकिन उनके चेहरो से ये बात मालूम करना मुश्किल ना था कि
मैं अब उनके जिस्म का नासूर बन चुकी हूँ.
थोड़े दिनो के बाद खाला फिर सुबह सुबह मेरे घर आई, इस वक़्त मेरे बाबा घर पर नही थे और मेरा छोटा
भाई कॉलेज गया हुआ था.
खाला: " कहाँ पर हो?"
अम्मा: "अस्सलामवालेकुम आपा"
खाला: "वालेकुम सलाम और ख़ैरियत तो है"
अम्मा: "हां अब जो है सो है"
खाला : "और आरा कैसी है"
अम्मा:"बस बेचारी जी रही है"
खाला: "तो कब तक तुम उसे ऐसी हालत मे रखो गी , उसके मुस्तकबिल के बारे मे कुछ सोचा है भी या नही"
अम्मा: "अभी कैसे कुछ सोचा जाए, उसकी हालत ऐसी कहाँ है"
खाला: "उसकी हालत कैसे दुरुश्त होगी जब तुम उसके बारे में कुछ सोच ही नही रही हो"
अम्मा: "क्या मतलब?"
खाला: "अर्रे जवान बेटी के हाथ पीले करने के बारे मे सोचो"
अम्मा: "अब इस ख़याल से ही डर लगता है"
खाला: "हां मैं जानती हूँ, लेकिन सुरुआत तो करनी चाहिए ना"
अम्मा :"हां वो तो है, लेकिन इतनी जल्दी क्या है"
खाला: "जल्दी, ह्म्म्म अब इतनी देर भी ना करो, शौकत के अब्बू हमारे घर आए थे, वो कह रहे थे कि वो फिर
से आरा को अपने निकाह मे लेना चाहता है"
अम्मा: "क्या? उनकी इतनी हिम्मत हो चली, और आप को उनसे कुछ बोलते ना बन पड़ा,और फिर उनकी ये बात आप हम तक पहुचाने भी आ गयी, हैरत है"
खाला: ""मेरी पूरी बात तो सुनो"
अम्मा: "देखो आपा आपका लिहाज़ है मुझे लेकिन आप उस मनहूस घर की बात दोबारा ना करना, आपका मालूम
नही था कि वो कमीना शराबी है"
खाला: "मेरा यकीन करो, मुझे हरगिज़ ना मालूम था, मैं अपनी बच्ची को क्यूँ जहन्नुम मे धकेल्ति?"
अम्मा: "अब यकीन का सवाल ही नही रहा आपा, अब तो हम सब झुलस गये हैं आग में, अब पानी डालने से क्या
होगा"
खाला: "देखो कई बार इंसान बड़ी ग़लती कर बैठा है, शौकत दिन रात रोता रहता है, वो बहुत ज़्यादा शर्मिंदा
है और वो,,,...."
अम्मान: शर्मिंदा हो या जहुन्नम मे जाए, मुझे क्या करना है, उसकी बात अब इस घर मे बिल्कुल ना होगी, आप
जायें इस वक़्त , मुझे बहुत काम पड़ा है"
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