RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
फिर वो दिन भी आ गया जब मैं दुल्हन बनी थी, सुबह से ही कलेजा मूह को आ रहा था. मेरी खाला की शादी शुदा लड़की यानी मेरी बहेन मेरा पास अकेले मे कुछ कहने आई उसका नाम रीना है.रीना मुझसे 2 साल बड़ी है
रीना "आरा मैं तुझ से वो कुछ कहना चाहती हूँ जो तुझे मालूम होना चाहिए"
मैं: "ऐसा क्या कहना चाहती है कि मुझे अकेले मे ले आई"
रीना: "ध्यान से सुन और अपनी गाँठ बाँध ले"
मैं: "अब बक भी क्या कहना चाह रही है"
रीना: "आज की रात के बारे में" ये कहकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी.
मैं: "चल पगली, हट यहाँ से"
रीना: "ये कोई मज़ाक नही है अगर ये नही जानेगी तो हो सकता है रोना पड़े"
मैं:"मुझे नही जानना ये सब, तू दिमाग़ मत खा"
रीना: "शूकर कर मैं तुझे बता रही हूँ, ये बात मुझे मेरी सहेलियो ने बताई थी"
मैं "क्या बताई थी?"
रीना: "आज की रात मियाँ बीवी का मिलन होता है"
मैं : "तो इसमे कौनसी नयी बात है"
रीना: "पगली, दो जिस्मो का मिलन होता है और तुझे मालूम होना चाहिए कि मिया क्या क्या करता है और उसको क्या नही करना चाहिए"
मैं:"क्या बक रही है?"
रीना:"देख, आज की रात के बाद तू कुँवारी नही रहेगी और आज तेरा कुँवारापन चला जाएगा"
मुझे ठीक से तो नही पता था लेकिन रीना की बातो से मैने कुछ कुछ अंदाज़ा लगा लिया था.
रीना: "आज तेरी गुलाबो से हो सकता है खून निकल पड़े या थोड़ा ज़्यादा दर्द हो लेकिन तुझे आज सब बर्दाश्त करना पड़ेगा"
हम लड़किया अपनी शरमगाह को गुलाबो कह कर पुकारती थी, रीना पहले से ही मुझसे खुली हुई थी और अपनी सुहागरात की दास्तान मुझे पहले ही सुना चुकी थी, मैं ये सब नही सुनना चाहती थी लेकिन फिर भी मुझे सुनना पड़ा.
मैं: "मुझे तू पहले ही ये सब बता चुकी है"
रीना: "इतना ध्यान रखना कि तेरा मिया तेरे पिछवाड़े मे शरारत ना करे"
मैं: "तू जा अब, बहुत हो चुकी ये सब बातें"
शाम को शादी की सारी रस्मे ख़तम हो चुकी थीं और मैं विदा होकर अपने ससुराल के सजे हुए कमरे मे बैठी थी और वहाँ पर पहले से ही काफ़ी औरतें मौजूद थी, सब मुझे मूह दिखाई के नेग दे कर एक एक करके जा रहीं थी,
ये कमरा काफ़ी सज़ा हुआ था, ये कमरा घर के कोने मे था, ये एक बड़ा सा खुला हुआ घर था, जिसमे कई कमरे थे वो बरामदे मे आकर जुड़ते है,सभी कमरे एक ही लाइन मे थे और सबका एक ही कामन किचन था. घर के कई बाथरूम और टाय्लेट थे.
मुझे अपने मिया का नाम ही मालूम था. उनका नाम शौकत था और वो बॅटरी और इनवेर्टर का काम करते थे.
आख़िर देर रात तक मैने अपने मिया का इंतेज़ार किया करीब 12 बजे वो मेरे कमरे मे दाखिल हुए. वो एक औसत दर्जे की हाइट के दुबले पतले से इंसान थे.
जैसी ही वो कमरे मे दाखिल हुए मेरी साँसें तेज़ हो गयी,मुझे इतना याद है कि वो आते ही मेरी तरफ बैठ गये,
उनका पास से सख़्त बू आ रही थी जो शराब की थी.
मुझे शराब से नफ़रत थी लेकिन मैं आज की रात को बर्बाद नही करना चाहती थी.
उन्होने मेरा घूँघट हटाया और कहा "बला की खूबसूरत हो"
मैं ये सुनकर थोड़ी की खुश हुई और शर्म से लाल हो गयी लेकिन इससे पहले की कुछ हो पाता वो लुढ़क कर बिस्तर पर गिर गये.
मुझे एक झटका सा लगा और मैं सोच मे पड़ गयी कि क्या यही वो रात है जिसका हर लड़की इंतेज़ार करती है. अब मैं रोना चाहती थी लेकिन रो भी ना सकी, मेरे बेचारे मा बाप जिन्होने इतनी मेहनत के साथ मेरी शादी की रकम जमा की थी, मेरी मा जो बेचारी डाइयबिटीस की मरीज़ है, अपना इलाज करवाने की बजाई मेरे लिए कुछ ना कुछ जोड़ती रहती थी, बड़े अरमान से मेरी शादी कर चुकी थी, मेरा बाबा जिनके कंधे मे अक्सर दर्द रहता था क्यूंकी वो जब खेती का काम नही होता था तो ट्रक चलाया करते थे और दिन रात मेहनत करते थे.
उन सब लोगो का चेहरा मेरे सामने घूम रहा था. बड़ा भाई भी अपनी पढ़ाई बीच मे रोक कर मेरे दहेज के सामान के लिए काम कर रहा था, रात भर वो भी
अपनी कलम घिस कर अपनी किताबों मे गुम रहता.
इन सब लोगो की ज़िंदगी हमसे जुड़ी हुई थी. मैं किसी तरह अपने शराब मे डूबे शौहर को सुला कर सो गयी.
सुबह जब दरवाज़े पर मेरी ननद ने दस्तक दी तो मैं जाग गयी.
मैने उसे अंदर आने को कहा.उसका नाम सबा था.
ये वही लड़की थी जो मुझे मेरे घर मे अपनी मा के साथ देखने आई थी.
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