Desi Sex Kahani होता है जो वो हो जाने दो
10-09-2018, 03:32 PM,
#52
RE: Desi Sex Kahani होता है जो वो हो जाने दो
अलका अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजकर थोड़ी देर में तैयार होकर वह भी ऑफिस के लिए निकल गई। मन में फीस की चिंता बराबर बनी हुई थी। वह एकदम लाचार नजर आ रही थी उसके पास कोई रास्ता ना था। कहां जाए किस से मांगे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। यही सब सोचते सोचते वह अपने ऑफिस में पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला। ऑफिस में पहुंचते ही सबसे पहले शर्मा की नजर अलका पर पड़ी। वह तो अलका का पहले से ही बहुत बड़ा दीवाना था। अलका को देखते ही। शर्मा रोज की तरह बोल पड़ा।

नमस्ते मैडम जी( कामुक नजर से देखते हुए।) 

अलका भी रोज की तरह उसके नमस्ते का जवाब देना ठीक नहीं समझी और सीधे अपनी केबिन की तरफ बढ़ गई। शर्मा अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ और पान चबाते हुए अलका को अपनी गांड मटकाते जाते हुए देखता रहा। वैसे भी शर्मा की नजर हमेशा अलका पर ही टिकी रहती थी खास करके उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और उसकी गहरी घाटी पर, और उसकी भरावदार गांड पर। यह दोनों अंगों को देखते हुए शर्मा जी का लंड टंनटना कर खड़ा हो जाता था। इस समय भी शर्मा जी का हाल यही था अलका को अपनी केबिन में घुसते हुए देखकर 
शर्मा जी अपने लंड को पेंट के ऊपर से ही मसल रहे थे।
अलका अपने केबिन में कुर्सी पर आकर बैठ गई उसका मन चिंताओं में घिरा हुआ था। फीस भरने की चिंता उसे पल पल खाए जा रही थी। फीस का बंदोबस्त कैसे होगा यह उस के समझ में नहीं आ रहा था। क्या करें क्या ना करें उसके सामने कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था। तनख्वाह मिलने में अभी 10 दिन का समय था। साहब से मांगने का मतलब था कि मुसीबत मोड़ लेना क्योंकि वह तनख्वाह तय की हुई तारीख को ही देता था उससे पहले ₹1 भी नहीं। अलका बहुत मजबूर थी, इसमें एक बार उसके मन में आया कि जाकर साहब से ही पैसे मांग ले। लेकिन अपने बढ़ते कदम को उसने रोक ली। पिछले दिनों को याद करके आगे बढ़ने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई । क्योंकि ऐसे ही किसी मुसीबत के समय उसने साहब से कुछ पैसे मांगे थे जोकि आने वाली तनख्वाह में से काटने को भी कही थी लेकिन अलका के ऊपर साहब बिगड़ गया था वह साफ साफ शब्दों में सुना दिया था की तनख्वाह से पहले ₹1 भी मिलने वाला नहीं है। उस समय हुई बेईज्जती को याद करके उसकी हिम्मत नहीं हुई। वह दोबारा अपनी बेइज्जती नहीं करवाना चाहती थी। 
अलका का मन आज काम में बिल्कुल नहीं लग रहा था जैसे तैसे करके वह धीरे-धीरे काम करती रही । लंच का समय कब बीत गया उसे पता ही नहीं चला उसने आज लंच भी नहीं की थी। जैसे जैसे दिन गुजर रहा था उसकी चिंता बढ़ती ही जा रही थी। 
ऑफिस का समय पूरा होने वाला था और अब तक फीस का बंदोबस्त हो नहीं पाया था और नाही होने के आसार नजर आ रहे थे। एक बार तो उसके मन में हुआ की शर्मा जी से ही पैसे उधार ले ले, क्योंकि वह जानतेी थीे कि शर्मा जी उसके ऊपर पहले से ही लट्टु है। अगर वह मांगेगी तो शर्माजी कभी भी इनकार नहीं करेगा। अच्छी तरह से जानती थी कि शर्मा जी उसे पैसे देकर फीस की समस्या से निजात तो दिला देगा लेकिन एक बार मदद करके फिर वह उसके साथ छुट छाट़ भी लेना शुरु कर देगा। और अलका अभी तक उसे दुत्कारते ही आ रहीे थी। शर्मा जी का उसके बदन को यूं घूर घूर कर देखना कतई पसंद नहीं था। लेकिन इस समय वह बड़ी मुसीबत में फंसी हुई थी। ऑफिस का समय भी पूरा होने वाला था। अलका की नजरें केबिन में टंगी दीवार घड़ी पर ही टिकी हुई थी। जैसे जैसे सेकंड वाली सुई टिक टिक करके आगे बढ़ रही थी वैसे वैसे अलका की दिल की धड़कने भी धक-धक करते हुए तेज गति से चल रही थी। अब तक उसे कोई भी राह नहीं मिल पाई थी बस एक रास्ता दिखाई दे रहा था जो की शर्मा जी पर ही खत्म हो रहा था। ऐसी मुसीबत की घड़ी में शर्मा जी के सामने हाथ फैलाने के सिवा उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं था। इसी सोच में ऑफिस का समय भी पूरा हो गया। उसने मन में ठान ली थी कि जो भी हो वह शर्मा जी से पैसे उधार जरूर लेगी। ऑफिस का समय पूरा होते ही टेबल पर रखा पर्श उसने कंधे पर लटका ली। केबिन से निकलते ही उसकी नजरे आज पहेली बार शर्मा जी को ढूंढ रही थी और शर्मा जी उसे अपने टेबल पर ही बैठे नजर आ गए। वह शर्मा जी के पास जाए या ना जाए अभी भी उसके मन में हीचक बहुत थी
मजबूर थी इसलिए धीरे-धीरे शर्मा जी के टेबल के पास बढ़ने लगी। अलका को अपने टेबल के पास आता देखकर शर्मा की आंखें चमक उठी, अलका को देखकर उसका मुंह खुला का खुला रह गया। अक्सर अलका ऑफिस से छूटने के बाद सीधे ऑफिस से बाहर निकल
जाया करती थी। शर्मा जी की खुशी का ठिकाना ना रहा जब अलका सीधे उसके टेबल के पास आकर रुकी। 
अलका उससे कहने में हिचकिचा रही थी। तभी हिम्मत जुटाकर वह शर्मा जी से बोली।

शर्मा जी मुझे आपसे कुछ....( इतना कहते-कहते अलका रुक गई और शर्मा जी के नजरों के सीधान को भांपते हुए वह अपनी साड़ी से अपने नंगे पेट को ढकने की कोशिश करने लगी। क्योंकि शर्मा जी की नजर अलका की गहरी नाभि पर जमी हुई थी। शर्मा जी उस नाभि को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था। और देखता भी क्यों नहीं आखिरकार अलका की नाभि थी इतनी खूबसूरत, की उसका आकर्षण किसी को भी आकर्षित कर लेती थी। गोरा चीकना सपाट पेट चर्बी का जरा सा नामोनिशान भी नहीं था। और पेट के बीचोबीच गहरी खाई समान नाभि, जिसका आकर्षण जांघों के बीच छिपी पतली दरार से कम नहीं थी। और शर्मा जी के लिए तो वाकई मे ं इस समय नाभी, नाभी न हो करके अलका की बुर ही थी। 
साड़ी से नंगे पेट को छुपाने के बावजूद भी जब शर्मा अपनी नजरों को नाभि से नहीं हटाया तो अल़का फिर से उसका ध्यान हटाते हुए बोली।

शर्मा जी (इस बार जोर से बोली थी)

हां हां हां ..... मैडम जी बोलिए.... क्या बोल रही थी आप। ( शर्मा जी हकलाते हुए बोल पड़े।)


शर्मा जी मुझे आपसे कुछ जरूरी.....( इतना कहते ही अलका फिर से रुक गई. क्योंकि इस बार शर्मा जी की नजर नाभि से हटकर उसकी बड़ी बड़ी चुचियों पर जा कर टीक गई थी। इस बार अलका से रहा नहीं गया वह गुस्से में एकदम आग बबूला हो गई। और एक बार फिर से गुस्से में जोर से चिल्लाते हुए बोली।
शर्मा जी.........

(अलका को जो गुस्सा होता देखकर शर्मा जी घबरा गए और हड़बड़ाहट में बोले।)

ककककक्या .... क्या कहना चाहती थी आप?

यही कि अपनी नजरों और जुबान दोनों को अपनी औकात में रखो वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा।( हल्का गुस्से में शर्मा जी को चेतावनी देकर वहां से पाव पटककर ऑफिस के बाहर निकल गई। शर्मा जी अल्का को गुस्से में जाता हुआ देखता रहा अलका के गुस्से से वह भी घबरा गया था। 


अलका के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था आखिरी उम्मीद शर्मा जी से थी लेकिन शर्मा जी की काम लोलुप नजरें अलका के बदन को जहां-तहां नाप रही थी यह अलका से बर्दाश्त नहीं हुआ, और उसने शर्मा जी को खरी-खोटी सुनाकर आखरी उम्मीद पर भी पर्दा डाल दी। अलका उदास मन से सड़क पर चली जा रही थी उसको यही चिंता सताए जा रही थी कि आखिर कल वह सोनू के उस स्कूल की फीस कैसे भरेगी। सोनू से उसने वादा की थी कि कल तुम्हारी फीस भर दी जाएगी उसके मन में ना जाने कैसे-कैसे ख्याल आ रहे थे। धीरे धीरे चलते हुए वह कब बाजार में पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला। वह अपने मन में यह सोच रही थी कि घर जाकर वह सोनु से क्या कहेगी, वह कैसे स्कूल जाएगा। यही सब बातें उसके दिमाग में घूम रही थी कि तभी पीछे से विनीत उसका हाथ पकड़ के उसे रोकते हुए बोला। 

क्या आंटी जी मैं कब से आपको पीछे से पुकारे जा रहा हूं लेकिन आप हैं कि मेरी आवाज सुने बिना ही चली जा रही हैं। ( विनीत अलका के उदास चेहरे की तरफ देखते हुए बोला।) क्या बात है आंटी जी आप इतना उदास क्यों ह ैईतना उदास होते हुए मैंने आपको पहले कभी भी नहीं देखा। क्या बात है आंटीजी... ( अलका एकदम उदास चेहरा लिए हुए विनीत की तरफ देखते हुए बोली।)

क्या बताऊं बेटा आज बड़ी तकलीफ में हूं। 

ऐसा क्या हो गया आंटी जी.... अच्छा पहले आप एक काम करिए मेरे साथ आइए इधर( इतना कहने के साथ ही विनीत अलका की कलाई पकड़े हुए पास वाले रेस्टोरेंट मे ले गया। अलका उसकी इस हरकत पर उसे कुछ बोल नहीं पाई कोई और समय होता तो जरूर उसका हांथ झटक दी होती ,लेकिन इस समय वह अपने दुख से ही परेशान थी कि किसी बात की भी शूझ उसमें नहीं थी। विनीत अलका का हाथ पकड़े हुए रेस्टोरेंट में ले गया और एक टेबल के पास कुर्सी खींचकर उसके तरफ बढ़ाते हुए अलका को बैठने के लिए कहा और खुद एक कुर्सी पर बैठ गया। अलका के चेहरे पर उदासी के बादल बराबर छाए हुए थे। 
तभी टेबल के पास एक वेटर आया । विनीत ने दो कॉफी और थोड़े बिस्कुट ऑर्डर कर दिया। लेकिन पहले दो गिलास ठंडा पानी लाने को कहा। वेटर आर्डर लेकर चला गया। 
अलका टेबल पर दोनों हाथ रखकर सिर झुकाए बैठी हुई थी। विनीत ने मौका देखकर फिर से अलका की हथेलियों को अपनी हथेलियों में भर लिया, इस बार अलका का हाथ पकड़ते ही विनीत का पूरा बदन झनझना गया। अलका के नरम नरम मुलायम हाथ विनीत के होश उड़ा रहे थे। विनीत ने अलका के नरम नरम हथेलियों को अपनी हथेली में दबाते हुए बोला।

क्या बात है आंटी जी आप इतना उदास क्यों हो? 
( नरम नरम अंगुलियों का स्पर्श उसके बदन के तार तार को झंकृत कर रहा था। विनीत का इस तरह से अलका का हाथ पकड़ना अलका के भी बदन मे सुरसुराहट पैदा कर रहा था। आज बरसों के बाद अलका के हाथ को कोई इस तरह से पकड़ रहा था। लेकिन अलका भी ऐसी हालत में थी कि वीनीत को कुछ कह नहीं पा रही थी। और वीनीत था की मौके का फायदा उठाते हुए अलका की नरम नरम हथेलियों को दबा रहा था सहला रहा था। विनीत की इस हरकत में विनीत के बदन में जोश जगा दिया था।वीनीत का लंड टनटना के खड़ा हो गया था। अलका थीे कि अपनी हालत पर गौर नहीं कर पा रही थी, और वो इस तरह से बैठी थी कि उसके ब्लाउस से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां आधी से भी ज्यादा झुक कर बैठने की वजह से बाहर को झांक रही थी। 

जिसे देखकर विनीत के लंड की नशो मे दौड़ रहा खुन दौरा
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RE: Desi Sex Kahani होता है जो वो हो जाने दो - by sexstories - 10-09-2018, 03:32 PM

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