मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:19 PM,
#92
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
भाभी नशे मे झूमती हुई मुझे बोली, "ननद रानीजी! तुम अमोल के कमरे मे जाओ. मेरा भाई अपनी होने वाली पत्नी का इंतज़ार कर रहा है."
"जाती हूँ, भाभी!" मैं खुश होकर बोली.
"अब से तुम अमोल के कमरे मे ही सोना. बिलकुल पति-पत्नी की तरह." भाभी बोली, "और उससे जितना मन हो चुदवाना."
"ठीक है भाभी." मैने कहा.

विश्वनाथजी भाभी का हाथ पकड़कर खींचते हुए बोले, "अरी चल ना! वीणा को कुछ सिखाने की ज़रुरत नही है. तु चल मेरे साथ."
"आपका लन्ड और खड़ा होगा आज?" भाभी ने उनके मुरझाये लन्ड को पकड़कर हिलाया और पूछा.
"खड़ा हुआ तो तेरी गांड मे डालूंगा." विश्वनाथजी बोले, "और नही हुआ तो तेरी नाज़ुक जवानी को बाहों मे लेकर सोऊंगा."
"बाप रे! फिर तो लन्ड खड़ा ना हो यही अच्छा है!" भाभी बोली.

फिर वह विश्वनाथजी से लिपटकर डगमगाते हुए उनके कमरे मे सोने चली गयी.


अमोल अपने कमरे मे नंगा लेटा था. उसका लन्ड तनकर खड़ा था. कमरे मे एक नीली बल्ब जल रही थी. मैं कमरे मे नंगी घुसी और पलंग पर चढ़कर उससे लिपट गयी.
"मेरे जान!" मैं उसे चूमकर बोली.
"अब तो सब से चुदवा चुकी हो. अब ज़रा अपने होने वाले पति का भी हक अदा करो." वह बोला और मेरी चूचियों को मसलने लगा.

मैं शाम से चार-चार मर्दों से चुदवा चुकी थी, पर अमोल की बाहों मे आकर मुझे फिर चुदास चढ़ने लगी. क्योंकि पूरा माहौल ही इतना रोमानी था.

अमोल से अभी मेरी शादी नही हुई थी. पर हम अबसे रोज़ रात को पति-पत्नी की तरह सोने वाले थे और जी भरके चुदाई करने वाले थे. अमोल के या मेरे घरवाले हमे इसकी इजाज़त बिलकुल नही देते, पर मेरे मामाजी के घर पर हमे पूरी इज़ाजत थी.

अमोल और मैं एक दूसरे के नंगे जिस्मों से लिपटकर संभोग मे डूब गये. होठों से हमारे होंठ जुड़ गये थे. हमारे हाथ एक दूसरे के शरीर पर फिर रहे थे. हमारे यौनांग एक दूसरे के यौनांग से रगड़ रहे थे. मेरे नर्म चूचियां उसके कठोर सीने से चिपकी हुई थी. शराब और प्यार का नशा हम दोनो पर चढ़ा हुआ था.

यूं ही प्यार करते करते जाने कब अमोल मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरी बुरी तरह चुदी हुई चूत मे अपना लन्ड घुसाकर पेलने लगा. मैं भी कमर उठा उठाकर उसके धक्कों का जवाब देने लगी. हमारी सांसें तेज हो गयी. हम पसीने-पसीने होने लगे. जिस्म से जिस्म और चूत मे लन्ड रगड़ खा रहे थे.

अपने साजन की बाहों मे ऐसी मस्ती पाकर मैं झड़ने लगी. और मर्दों का लन्ड चाहे जितना भी बड़ा और मोटा हो, अपने आदमी से चुदवाकर एक अलग ही मज़ा आता है.

अमोल भी मेरी चूत की गहरायी मे लन्ड डाले झड़ने लगा और मुझ पर लेट गया. अपने चूत मे अमोल के लन्ड को लिये मैं उसके नीचे सो गयी. मुझे याद नही वह मेरे ऊपर से कब उतारा.

दावत के बाद के कुछ हफ़्ते जैसे एक सपने की तरह गुज़रे. घर मे हम सब तरह की अश्लीलता करते थे. कभी अध-नंगे होकर मर्दों को रिझाते थे तो कभी नंगे होकर चुदवाते थे. कभी बैठक मे, कभी कमरों मे, कभी आंगन मे, तो कभी खेत मे, हम अलग अलग साथी के साथ चुदाई करते थे. किसी किसी दिन दावत होती थी तो हम सब शराब पीकर सामुहिक चुदाई करते थे.

हमारी चुदाई की वीडिओ बनायी जाती थी, जिसे हम बाद मे मज़े लेकर देखते थे. खुद को टीवी पर चुदवाते हुए देखकर बहुत ही चुदास चढ़ती थी. मैं दिन मे विश्वनाथजी, मामाजी, बलराम भैया, किशन, या रामु से चुदवाती थी. पर रात को अमोल के साथ उसकी पत्नी की तरह सोती थी. हमे एक दूसरे से बेइंतेहा प्यार हो गया था.

इधर मेरा, भाभी, गुलाबी, और मामीजी का पेट भी काफ़ी बड़ा हो गया था. देखकर साफ़ लगता था कि हम सब गर्भवती हैं. भाभी, गुलाबी, और मामीजी पर तो कोई उंगली नही उठा सकता था क्योंकि वह तीनो शादी-शुदा हैं. पर मैं गाँव मे किसी से नही मिलती थी वर्ना सब सोचते कि मेरा पेट कैसे ठहर गया.

वैसे आजकल मर्दों को हमे चोदकर बहुत मज़ा आ रहा था. हमारे गर्भ मे ना जाने किसका बच्चा था. यही सोचकर उन सबको बहुत उत्तेजना होती थी. वह हमारे मोटे बुर मे लन्ड घुसाकर, हमारे भारी पेट पर चढ़कर हमारी चुदाई करते थे. इस हालत मे हमारी वीडिओ भी बनायी जाती थी जो देखकर बहुत ही अश्लील लगती थी.

अब मेरी शादी को तीन ही हफ़्ते बचे थे. विश्वनाथजी एक दिन हम सब से विदा लेकर सोनपुर लौट गये. उसी दिन मामाजी के पास मेरे पिताजी की चिट्ठी आयी. उन्होने लिखा कि वीणा को अब घर वापस भेज दो. उसे शादी के लिये तैयार होना है.

सुनकर मैं उदास हो गयी. घर जाकर तो मुझे एक भी लन्ड नही मिलेगा. मैं अपने चुदाई की लत को कैसे पूरी करुंगी? मोटे मोटे लन्ड लिये बिना तो मेरे लिये एक दिन भी जीना मुश्किल था.

भाभी बोली, "ननद रानी, तुम चुदाई की छोड़ो! यह सोचो कि इतना बड़ा पेट लेकर तुम अपने घर कैसे जाओगी? तुम्हारे माँ-बाप क्या कहेंगे? पूछेंगे नही कि तुम्हारे पेट मे किसका बच्चा है?"
"कह दूंगी अमोल का है." मैने कहा.
"इससे तुम्हारे मामाजी की बहुत बदनामी होगी." भाभी बोली, "तुम्हारे माँ-बाप कहेंगे तुम्हारे मामा ने अपने घर पर उनकी अनब्याही बेटी को चुदवाने का मौका दिया."

"ऐसा कुछ नही होगा, भाभी!" मैने कहा, "अमोल मेरा गर्भ गिराने ले जायेगा."
"कहाँ?"
"वह हाज़िपुर मे एक डाक्टर को जानता है." मैने कहा.

"हाय राम!" भाभी अपने माथे पर हाथ रखकर बोली, "पागल हो तुम? हाज़िपुर मे सब तुम्हारे मामाजी को जानते हैं. तुम वहाँ गर्भपात करवाने जाओगी तो उनकी इतनी बदनामी होगी कि पूछो मत! हम सबको गाँव छोड़ना पड़ेगा!"
"मामाजी को ही जानते हैं ना. मुझे तो नही!" मैने कहा, "और कोई अमोल को भी नही जानता है. हम कह देंगे हम दूसरे किसी गाँव से आये हैं."

"हूं." भाभी सोचकर बोली, "पर गुलाबी, मै, या मामीजी तो वहाँ नही जा सकते. हाज़िपुर के सब डाक्टर हमे जानते हैं. ऊपर से सवाल उठेगा हम शादी-शुदा होकर पेट क्यों गिराना चाहते हैं."
"तो तुम लोग क्या करोगी?" मैने पूछा.
"बच्चा देना ही पड़ेगा, चाहे बच्चा किसी का भी हो." भाभी बोली, "तुम्हारे भैया, रामु, या ससुरजी को तो कोई आपत्ती नही कि हम हराम के बच्चे को जनम देंगे."
"पर तुम आगे क्या करोगी?" मैने कहा, "सबसे चुदवाकर बार-बार पेट तो नही बना सकती हो?"
"तब की तब देखी जायेगी!" भाभी मुस्कुराकर बोली.

उस रात चुदवाते हुए मैने अमोल से ज़िद की कि वह अगले ही दिन मेरा गर्भ गिराने ले जाये. हालांकि उसे मेरे गर्भवती अवस्था मे चोदने और चुदाने मे बहुत मज़ा आता था वह राज़ी हो गया.


अगले दिन नाश्ते के बाद अपनी साड़ी को ढीली करके पहनकर मैं अमोल के साथ हाज़िपुर के लिये निकली. अमोल तांगे को हाज़िपुर स्टेशन के पीछे एक गली मे ले गया. गली मे एक डाक्टर मिश्रा के दवाखाने की बोर्ड लगी थी.

मैने अमोल का हाथ पीछे खींचकर कहा, "अमोल, मुझे यह कहाँ ले आये हो? मैं यहाँ बचपन मे मामाजी के साथ कई बार आयी हूँ!"
"मै तो बस इसी डाक्टर को जानता हूँ." अमोल ने कहा.
"यह डाक्टर मुझे पहचान लेगा!" मैने कहा, "फिर सोचो मामाजी की इज़्ज़त का क्या होगा!"
"नही पहचान सकेगा तुम्हे." अमोल मुझे खींचकर अन्दर ले जाते हुए बोला, "तुम तब बच्ची थी. अब तुम एक औरत बन गयी हो. ऊपर से तुम्हारा पेट बड़ा हो गया है."

मुझे अमोल दवाखने के अन्दर ले गया.

डाक्टर के कमरे के बाहर कुर्सी पर एक बुड्ढी औरत बैठी खांस रही थी. मुझे देखकर बोली, "बेटी, तबियत खराब है?"
"जी." मैने जवाब दिया.
"और पेट से भी हो?"
"न-नही तो!" मैने झट से कहा और अमोल की तरफ़ देखने लगी.
"अपने पति से शरमा रही हो?" बुढ़िया बोली, "अरे बच्चे तो भगवान की देन होते हैं!"

मैं बुढ़िया को कोसते हुए मन ही मन बोली, यह बच्चा भगवान की देन नही है. यह तो विश्वनाथजी और उनके चार बदमाश दोस्तों की देन है.

बुढ़िया डाक्टर दिखाकर चली गयी तो अमोल मुझे लेकर डाक्टर के कमरे मे गया.


डाक्टर मिश्रा एक अधेड़ उम्र के मोटे ताजे हंसमुख व्यक्ति थे. सर के बाल कुछ उड़ चुके थे और बाकी पक चुके थे. चेहरे पर आधी पकी हुई घनी मूंछे थी.

चश्मे के ऊपर से मुझे देखकर डाक्टर साहब बोले, "इधर बैठो, बेटी. क्या तकलीफ़ है?"

मेरे जवाब देने से पहले ही अमोल बोला, "डाक्टर साहब, वो बात यह है कि..."

डाक्टर साहब अमोल को गौर से देखकर बोले, "तुमको तो मैं पहले भी एक दो बार यहाँ देख चुका हूँ, है ना?"
"जी." अमोल ने जवाब दिया.
"कुछ महीनों पहले तुम एक स्कूल की लड़की को लेकर आये थे. एक मुसलमान लड़की थी. साथ मे उसकी माँ भी थी." डाक्टर साहब याद करके बोले, "और उससे पहले एक कामवाली को लेकर आये थे."
"जी उसी बारे मे..." अमोल बोलने लगा.
"क्यों करते हो यह सब गंदा काम?" डाक्टर साहब थोड़े रोश मे बोले, "अब न जाने किस बेचारी को बर्बाद करके यहाँ लाये हो. तुम बड़े बाप के ऐयाश बेटों को तो जेल होनी चाहिये."

सुनकर मुझे हंसी भी आ रही थी और शरम भी. बेचारा अमोल! मेरा गर्भ किसी और ने बनाया था और डांट उसे सुननी पड़ रही थी. वैसे यह स्कूल की मुसलमान लड़की कौन है? और वह अपनी माँ के साथ गर्भपात करवाने क्यों आयी थी? मुझे भाभी से पूछना पड़ेगा, मैने मन ही मन तय किया.

"जी आप मेरी बात सुनिये तो..." अमोल ने कहा.
"बोलो."
"डाक्टर साहब, इसका भी गर्भ गिराना है." अमोल ने कहा.
"वह तो मैं समझ ही गया हूँ. तुम जैसे लोग मेरे पास अपने पापों को धोने ही आते हो." डाक्टर साहब बोले, "पर तुम मेरी फ़ीस तो जानते ही हो."
"जी मैं रुपये लेकर ही आया हूँ." अमोल ने कहा.
"तुम तो जानते हो ऐसे मामलों मे मैं सिर्फ़ रुपये ही नही लेता हूँ." डाक्टर साहब बोले.
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