RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मुझे याद आया कि मेरी मामी भी इसी तरह ट्रेन के टॉयलेट मे विश्वनाथजी से चुदवाई थी. सोचकर मैं और भी रोमांच से भर उठी.
सामने से दुबला लड़का मुझे चुम रहा था और मेरी चूचियों को दबा रहा था. मेरे थोड़े से फूले हुए पेट पर हाथ लगाकर बोला, "छमिया, तु पेट से है क्या?"
"तुम्हे कैसे पता?" मैने पूछा.
"मैने बहुत सी भाभीयों का पेट बनाया है." वह कुटिल मुसकान के साथ बोला, "मैने देखकर ही समझ जाता हूँ."
"ठीक ही समझे हो." मैने जवाब दिया.
"किससे बनवाया है तुने अपना पेट?" उसने मेरे निप्पलों को चुटकी मे लेकर मींजकर पूछा.
"आह!! पता नही! तुम जैसा ही कोई होगा!" मैने सित्कार के जवाब दिया.
"बहुत बड़ी चुदैल लगती है तु!" बोलकर वह आवेग मे मेरे होठों को चूसने लगा.
ट्रेन पूरे रफ़्तार से चल रही थी और डोल रही थी. गुरु अपनी कमर हिला हिलाकर मुझे चोदे जा रहा था.
"हाय, मेरे राजा! और जोर से चोदो! आह!! क्या मज़ा आ रहा है!" मैं मस्ती मे बोलने लगी.
गुरु "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" करके मुझे पीछे से ठोकता रहा.
बाहर से किसी ने टॉयलेट के दरवाज़े को खोलने की कोशिश की. दुबले लड़के ने आवाज़ दी, "खाली नही है!"
"तो जल्दी निकलो ना!" बाहर से एक आदमी की आवाज़ आयी.
मै मस्ती मे कराह रही थी, "उम्म! उफ़्फ़!! आह!! कितने दिनो बाद चूत को लन्ड मिली है! आह!!" पर पटरी पर ट्रेन की जोर की आवाज़ के कारण मेरी मस्ती की आवाज़ें दब जा रही थी.
तभी गुरु मुझे जोर जोर से पेलने लगा और आह!! आह!! करने लगा.
"तुम्हारा हो गया क्या?" मैने निराश होकर पूछा.
"तेरी चूत इतनी कसी है! मेरा तो पानी छूट रहा है!" वह बोला.
"मेरा अभी हुआ नही है!" मैने कहा.
"मेरा दोस्त है ना...आह!! आह!! आह!! आह!!" कहते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगा.
झड़ने के बाद गुरु मेरी पीठ अपने सीने से लगाये, मेरी चूत मे लन्ड ठांसे कुछ देर खड़ा रहा.
फिर उसका दोस्त बोला, "गुरु, अब मुझे चोदने दो!" उसने अपनी पैंट उतारकर दरवाज़े पर लटका दी थी और उसका मोटा, लंबा लन्ड तनकर खड़ा था.
गुरु ने मेरी चूत से अपना लन्ड निकाल लिया तो उसका वीर्य मेरे जांघों पर बहने लगा.
मैने अपनी गांड दुबले लड़के की तरफ़ की और गुरु को पकड़कर झुक गयी. दुबले लड़के ने अपना लन्ड मेरी चूत पर दबाया और कुशलता पुर्वक पूरा अन्दर घुसा दिया. उसके मोटे लन्ड से मेरी चूत चौड़ी हो गयी. मैं जोर से आह!! कर उठी और बोली, "पेलो मुझे अच्छे से! मैं झड़ने वाली हूँ!"
दुबला लड़का मुझे जोर जोर से चोदने लगा. अपना लंबा लन्ड मेरी चूत मे अन्दर बाहर करने लगा. उसकी चुदाई मे और भी मज़ा था. मैं गुरु को पकड़कर मस्ती मे बड़बड़ाने लगी और झड़ने लगी.
बाहर से कोई दरवाज़े को खटखटाने लगा और बोला, "तुम्हारा हुआ कि नही?"
"अबे बोला ना खाली नही है!" दुबला लड़का चिल्ला के बोला.
"साले, इतनी देर से अन्दर रंडी चोद रहा है क्या?" वह आदमी बोला.
"तेरी बहन को चोद रहा हूँ. आ देख ले!" दुबले लड़के ने चिल्लाकर जवाब दिया.
सुनकर मैं खिलखिला कर हंस दी.
दुबला लड़का एक मन से मुझे चोद रहा था. बीच-बीच मे ट्रेन रुक रही थी. लोग चढ़ रहे थे और उतर रहे थे. कोई टॉयलेट को खोलने की कोशिश करता फिर निराश होकर चला जाता. दुबले लड़के की चुदाई से मैं एक और बार झड़ गयी थी और बहुत थक भी गयी थी. पर वह गहरी सांसें ले लेकर मुझे चोदे जा रहा था.
उसका दोस्त खिड़की से बाहर देखकर बोला, "10 मिनट मे हाज़िपुर आने वाला है."
मै घबरा कर बोली, "तुम्हारा हुआ कि नही? मुझे हाज़िपुर मे उतरना है!"
"ठहर ना!" दुबला लड़का बोला, "तुझे इत्मिनान से चोद तो लूं...तेरी जैसी सुन्दर लड़की मुझे फिर कभी चोदने को नही मिलेगी."
"भगवान के लिये जल्दी करो!" मैं गिड़गिड़ायी.
पर वह बिना जल्दी किये मेरी कमर पकड़कर मुझे पेलता रहा.
गुरु ने तरस खाकर मुझे मेरी ब्रा पहना दी. फिर मुझे मेरी शमीज और फिर मेरी कमीज़ पहना दी. फिर अपने दोस्त को बोला, "यार, बस कर. बेचारी परेशान हो रही है."
दुबला लड़का जोर जोर से मेरी चूत मे अपना लंबा, मोटा लन्ड पेलने लगा और कराहने लगा. मुझे अब इतना डर लग रहा था कि मुझे बिलकुल भी मज़ा नही आ रहा था.
ट्रेन की रफ़्तार धीमी होने लगी.
"बस भी करो!" मैं चिल्लायी, "हाज़िपुर स्टेशन बस आने ही वाला है!"
"हाँ साली, निकाल रहा हूँ!" दुबला लड़का बोला, "गाँव मे जब किसी भाभी को चोदता हूँ तो कोई बस करने को नही कहती. तु साली मज़ा खराब कर रही है."
मै घबराहट मे रोने लगी.
ट्रेन स्टेशन मे घुसने को थी तब वह लड़का मेरी चूत की गहराई मे अपना लन्ड घुसाकर अपना वीर्य गिराने लगा. करीब 20 सेकंड तक मेरे अन्दर झड़कर वह अलग हुआ पर मुझे लगा न जाने कितना समय लगा रहा है.
उसने लन्ड निकाला नही कि मैने जल्दी से अपनी चड्डी और सलवार पहन ली. उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी चड्डी को गीला करने लगा. पर मेरे पास यह सब देखने का समय नही था. ट्रेन हाज़िपुर स्टेशन पर रुक चुकी थी.
मैं जल्दी से टॉयलेट से निकली तो सामने एक आदमी को देखा. वह टॉयलेट मे घुसने लगा तो अन्दर से दुबले लड़के की आवाज़ आयी, "खाली नही है!"
वह आदमी हक्का बक्का होकर मुझे देखने लगा.
मै भागकर अपने कुपे मे गयी और ऊपर से अपना सूटकेस उतारकर डिब्बे से निकली. और स्टेशन पर उतरते ही भीड़ मे खो गयी.
स्टेशन के बाहर अमोल मेरा इंतज़ार कर रहा था. उसे देखते ही मैं भागकर उसे लिपट गयी.
"अमोल, तुम कब आये?" मैने पूछा.
"तुम्हारा ख़त मिलते ही मैं हाज़िपुर आ गया था." अमोल बोला.
"अच्छा किये. तुम नही जानते मैं तुमसे मिलने के लिये कितनी तरस रही थी." मैने कहा.
उसने मेरा सूटकेस उठा लिया और मेरे कमर मे हाथ डालकर चल पड़ा. आते जाते लोग हमारे इस प्यार को निन्दा की नज़रों से देख रहे थे. पर मुझे क्या गम! मुझे तो मेरा अमोल मिल गया था.
हम एक तांगे मे बैठकर घर की तरफ़ चल दिये.
तांगे मे बैठते ही अमोल ने मेरे होठों को हलके से चूमा और बोला, "वीणा, काफ़ी तंदुरुस्त लग रही हो?"
"तंदुरुस्त नही, गर्भवती लग रही हूँ." मैने कहा, "और कुछ दिनो मे मेरे गाँव मे ढिंडोरा पिट जाता कि मैने न जाने किससे मुंह काला करवा लिया है. अब जल्दी से मुझे अपने उस डाक्टर के पास ले चलो और मेरा गर्भ गिरा दो."
"ले चलूंगा, जान." अमोल बोला, "अब तुम यहाँ आ गयी हो. कुछ दिन मज़े करो. शादी से पहले ही तुम्हारा गर्भ गिरवा दूंगा."
मैं खुश होकर उससे लिपटकर तांगे मे बैठी रही.
तांगा जल्दी ही हाज़िपुर शहर छोड़कर गाँव की तरफ़ बढ़ने लगा. यहाँ चारो तरफ़ खेत ही खेत थे जिसमे फ़सल लहरा रहे थे.
"अमोल, तुम ने तो मेरे पीछे बहुत मज़ा लिया होगा?" मैने पूछा.
"हाँ, लिया तो है." अमोल बोला, "गुलाबी, दीदी, और दीदी की सास - सबके साथ कुछ दिनो से मज़े कर रहा हूँ. तुम्हे सुनकर बुरा तो नही लगा?"
"नही तो!" मैं बोली, "जवान आदमी हो. अभी औरतों का भोग नही करोगे तो कब करोगे?"
"कितनी समझदार हो तुम!" अमोल मुझे चूमकर बोला, "मेरे पीछे क्या तुम ने कोई बदमाशी की?"
"नही, अमोल. अपने गाँव मे तो बदनामी के डर से कुछ नही कर सकती," मैने कहा, "पर आज ट्रेन मे ज़रूर कुछ किया था."
अमोल उत्सुक होकर मुस्कुराया और बोला, "ट्रेन मे?"
"हाँ. आते समय दो लड़के मिले थे. एक गुरु और एक चेला." मैने कहा, "मुझे छेड़ने लगे तो मैने उन्हे खुली छूट दे दी."
"फिर?"
"मै उन्हे ट्रेन के टॉयलेट मे ले गयी. दोनो ने वहाँ मुझे नंगी करके बहुत चोदा."
"उफ़्फ़! कैसे कर ली तु यह सब?" अमोल उत्तेजित होकर बोला.
"मै बहुत चुदासी हो गयी थी, अमोल!" मैने कहा, "तुम्हे सुनकर बुरा तो नही लगा?"
"नही, मेरी जान!" अमोल मुझे चूमकर बोला, "यही तो उम्र है तुम्हारी अलग अलग मर्दों का भोग करने की. वैसे कौन सा इत्र लगाकर निकली हो?"
"क्यों?"
"तुम्हारे कपड़े महक रहे हैं." अमोल शरारत से बोला.
"बदमाश कहीं के! इतने भोले मत बनो!" मैने उसे कोहनी मारी और कहा, "मेरी चूत चू रही है - उन दोनो लड़कों के वीर्य से."
अमोल ठहाका लगाकर हंस दिया. पर उसकी आंखें उत्तेजना से लाल हो रही थी. उसकी होने वाली पत्नी ट्रेन मे दो अनजान लड़कों से चुदवाकर उनका वीर्य अपनी चूत मे भरकर आयी है, सोचकर उसका लन्ड पत्थर की तरह सख्त हो गया था.
जल्दी ही हम मामाजी के घर पहुंच गये.
मामाजी का घर गाँव से थोड़ा हटकर उनके खेतों के बीच है. मैं यहाँ बचपन से आती रही थी, पर मुझे आज लगा कि घर कितने एकांत मे बना था! अन्दर जिस तरह के कुकर्म होते थे गाँव वालों को खबर ही नही हो सकती थी.
तांगे की आवाज़ सुनकर मामाजी घर से बाहर निकले. मुझे देखकर बोले, "वीणा बिटिया! तु आ गयी!"
मैं तांगे से उतरी और भागकर उनसे लिपट गयी.
उन्होने मेरे गालों को चूमा और कहा, "आने मे कोई परेशानी तो नही हुई?"
"नही मामाजी. बहुत मज़े करती हुई आयी हूँ." मैने अमोल को आंख मारी और कहा.
"चल, अन्दर चल. सब इंतज़ार कर रहे हैं." मामाजी बोले, "तेरे लिये एक तोहफ़ा भी है."
"तोहफ़ा? क्या, मामाजी?" मैने उत्सुक होकर पूछा.
"अन्दर चलकर खुद ही देख ले!" मामाजी बोले, "अमोल, वीणा बिटिया की सूटकेस अपने कमरे मे रख दो."
मै मामाजी के बाहों मे लिपटकर घर मे दाखिल हुई.
बैठक मे सोफ़े पर एक लंबे-चौड़े, अधेड़ उम्र के श्रीमान बैठे हुए थे. सांवला रंग, सर पर कच्चे-पक्के बाल, नाक के तले घनी मूंछें. उन्हे देखते ही मैं चिल्ला पड़ी, "विश्वनाथजी! आप यहाँ?"
विश्वनाथजी हंसे और उठकर मेरे पास आये. मुझे अपने ताकतवर बाहों मे भरकर उन्होने मेरे होठों को चूमा और कहा, "सुना तेरी शादी होने वाली है. मैने सोचा इससे पहले कि तु परायी हो जाये तुझे आखरी बार के लिये चख लेता हूँ."
"विश्वनाथजी, आप मुझे शादी के बाद भी जी भर के चख सकते हैं!" मैने इठलाकर कहा, "कब आये आप?"
"बस अभी कुछ देर पहले पहुंचा हूँ." विश्वनाथजी बोले.
"बिटिया, मैने सोचा कि हम सब लोग एक जगह एकत्रित हो ही रहे हैं तो विश्वनाथ को भी बुला लेते हैं." मामाजी बोले, "बलराम को इससे मिलने की बहुत इच्छा थी. आखिर इस सबकी शुरुआत तो सोनपुर मे विश्वनाथ के घर से ही हुई थी."
सुनकर विश्वनाथजी जोर से हंस पड़े. "ठीक कहते हो गिरिधर! तुम्हारी भांजी, बहु और बीवी सोनपुर जाकर ही तो इतनी मस्तानी हुई हैं. याद है, तुम्हारे आने के पिछले दिन कैसी मस्त दावत हुई थी?"
"याद है, विश्वनाथ, याद है." मामाजी बोले, "आज शाम भी एक दावत करेंगे. हमारे होने वाले जमाई ने ऐसी दावत देखी नही है."
|